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Brain-booster / 13 Sep 2022

यूपीएससी और राज्य पीसीएस परीक्षा के लिए ब्रेन बूस्टर (विषय: चीन-ताइवान टकराव (China-Taiwan Tussle)

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चर्चा में क्यों?

  • अमेरिकी प्रतिनिधि सभा की अध्यक्ष नैन्सी पेलोसी की ताइवान यात्रा के बाद, चीन उस क्षेत्र में अब तक का सबसे बड़ा सैन्य अभ्यास कर रहा है।
  • चीन ताइवान को एक अलग प्रांत मानता है जो वन चाइना पॉलिसी के तहत पुनः बीजिंग के नियंत्रण में होगा।
  • हालांकि, स्व-शासित द्वीप अपने स्वयं के संविधान और लोकतांत्रिक ढंग से चुने गए  नेताओं के साथ खुद को मुख्य भूमि चीन (पीआरसी) से अलग मानता है।

पृष्ठभूमिः

  • 1895 में प्रथम चीन-जापान युद्ध के बाद, ताइवान जापान के नियंत्रण में था। द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद, चीनी गणराज्य (आरओसी) ने अपने सहयोगियों (संयुक्त राज्य अमेरिका और यू.के.) के समर्थन से ताइवान पर शासन करना प्रारंभ किया था ।
  • शुरुआत में चीन में दो राजनीतिक दल थे- कुओमिन्तांग या आरओसी और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी)।
  • चीनी गृहयुद्ध में माओत्से तुंग के नेतृत्व में कम्युनिस्ट ताकतों की जीत हुई।
  • केएमटी नेता चांग काई-शेक 1949 में ताइवान भाग गए।
  • इसलिए, ताइवान जिसे आधिकारिक तौर पर आरओसी के रूप में जाना जाता  है, ताइवान-जलडमरूमध्य द्वारा चीन से  ताइवान द्वीप अलग होता है। ताइवान  1949 से मुख्य भूमि चीन (पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना) से स्वतंत्र रूप से शासित है।

वन चाइना पॉलिसीः

  • इसमें कहा गया है कि चीन केवल एक है और ताइवान उसका अभिन्न अंग है।
  • बीजिंग के साथ राजनयिक संबंध स्थापित करने वाले किसी भी देश को यह स्वीकार करना होगा कि केवल ‘एक चीन’ है और ताइवान के साथ सभी  औपचारिक संबंधों को समाप्त करना होगा।

एक देश, दो प्रणाली दृष्टिकोण

  • यह पहली बार डेंग जियाओपिंग द्वारा कम्युनिस्ट मुख्य भूमि और ऐतिहासिक रूप से चीनी क्षेत्रों (ताइवान, हांगकांग और मकाऊ- जिसमें पूंजीवादी अर्थव्यवस्थाएं थीं।) के बीच संबंधों को बहाल करने के लिए प्रस्तावित किया गया था।
  • यह प्रणाली प्रारंभ में ताइवान के लिए प्रस्तावित की गई थी।
  • उन्होंने सुझाव दिया था कि केवल एक चीन होगा लेकिन हांगकांग और मकाऊ जैसे विशिष्ट चीनी क्षेत्र अपनी आर्थिक और प्रशासनिक व्यवस्था बनाए रख सकते हैं। जबकि मुख्य भूमि चीन चीनी विशेषताओं
    वाले समाजवाद का उपयोग करता है।
  • 1984 की चीन-ब्रिटिश संयुक्त घोषणा में, दोनों देश इस बात पर सहमत हुए कि ब्रिटेन हांगकांग की संप्रभुता चीन को सौंप देगा। 
  • चीन हांगकांग के रक्षा और विदेशी मामलों के लिए जिम्मेदार है जबकि हांगकांग अपनी आंतरिक सुरक्षा का प्रबंधन स्वयं करता है।

चीन पर ताइवान का प्रभावः

  • ताइवान ने चीन के आर्थिक, भौतिक और तकनीकी विकास में बहुत बड़ा योगदान दिया है। इसने चीन को दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने में सक्षम बनाया है।
  • लेकिन चीन और ताइवान के बीच इस संबंध को केवल सहभोजवाद (Commensalism) के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है जिसमें ताइवान को केवल न्यूनतम लाभ प्राप्त होता है।
  • ताइवान के लोग इसे महसूस करने पर स्वतंत्र होने की कोशिश कर रहे हैं। वे अपने निवेश को भारत, न्यूजीलैंड जैसे अन्य देशों में बढ़ावा दे रहे हैं जिससे स्वयं को पूरी तरह से चीन पर निर्भर होने से रोका जा सके।

भारत के लिए निहितार्थः

  • भारत एलएसी पर चीन के साथ अपनी सुरक्षा सम्बन्धी समस्याओं का सामना कर  रहा है, इस प्रकार शिक्षा जगत में सुझाव हैं कि भारत को न केवल तिब्बत कार्ड  का उपयोग करना चाहिए बल्कि अपनी
    वन चाइना पॉलिसी की भी समीक्षा करनी चाहिए ।
  • बीजिंग को कड़ा संदेश देने के लिए भारत को ताइवान के साथ अधिक मजबूत संबंध विकसित करना चाहिए।
  • भारत और ताइवान वर्तमान में एक दूसरे की राजधानियों में ‘व्यापार और सांस्कृतिक आदान-प्रदान’ कार्यालय बनाए हुए हैं।

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