ब्लॉग : सस्टेनेबल गैस्ट्रोनॉमी के राह पर चले दुनिया by विवेक ओझा

आज जिस विषय पर आप लेख पढ़ेगें वो उन सभी लोगों के लिए बेहद महत्वपूर्ण है जो लज़ीज़ फूड्स के दीवाने हैं, वैसे स्पाइसी , तीखा किस्म किस्म का खाना अधिकांश भारतीयों को पसंद होता है । ऐसे लोगों को एक बड़ा स्वास्थ्य संदेश देने के लिए संयुक्त राष्ट्र और विश्व खाद्य एवं कृषि संगठन ने 18 जून, 2017 को दुनिया के पहले सस्टेनेबल गैस्ट्रोनॉमी दिवस को सेलिब्रेट करने की शुरुआत की थी । हाल ही में संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन ने 4 एशियाई चाय कृषि/उत्पादन स्थलों को वैश्विक रूप से महत्तवपूर्ण कृषि धरोहर प्रणाली घोषित किया था तो मन में यह सवाल उठा कि किसी कृषि या उत्पादन स्थल को वैश्विक धरोहर घोषित करने के पिछे क्या उद्देश्य हो सकता है ? इस बात की पड़ताल करने पर पता चला कि ऐसा कदम सतत् खाद्य सुरक्षा , खाद्य के धारणीय उपभोग के साथ ही सस्टेनेबल गैस्ट्रोनॉमी के विकास और उसके लिए जागरुकता बढ़ाने में भी सहायक है ।

सबसे पहले जानते हैं कि सस्टेनेबल गैस्ट्रोनॉमी जैसे भारी भरकम शब्द का मतलब क्या है?

गैस्ट्रोनॉमी को आर्ट ऑफ फूड कहा जाता है । यानी हम जो खाते हैं वो किस क्वालिटी का है , हमारे खाने के लिए जिसने भी जो भी उगाया है उसकी क्वालिटी क्या है । गैस्ट्रॉनमी का मतलब एक विशेष क्षेत्र में पकाए जाने वाले फूड की विशेष विधि भी है । जैसे साउथ इंडिया में डोसा इडली बनाने का एक अलग ही तरीका है , यूपी बिहार में बाटी चोखा बनाने की एक विशेष विधि है , गढ़वाली, कुमाऊनी, कश्मीरी , राजस्थानी व्यंजनों की अपनी अपनी विशेषता है । गैस्ट्रॉनमी इन्हीं लोकल फूड्स और पाक शैली को लाइम लाइट में लाने वाला शब्द है । यूएन के फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गनाइजेशन के एक ऑनलाइन फीचर " क्रॉप ऑफ दि मंथ " की बात करना यहां ठीक रहेगा । एफ ए ओ के इस ऑनलाइन फोरम के जरिए भिन्न भिन्न प्रकार की फसलों को बढ़ावा दिया जाता है ताकि ऐसी पारंपरिक फसलें जो सही ढंग से प्रयोग में नहीं लाई गई हैं , उनके प्रयोग और महत्व के विषय में जागरूकता बढ़े।

वहीं दूसरी तरफ सस्टेनेबिलिटी या धारणीयता का मतलब है धरती पर पाए जाने वाले संसाधनों जैसे फसलें , अनाज , मछलियां और खाद्य निर्माण विधि आदि का उपयोग और प्रयोग इस तरीके से किया जाए कि किसी भी चीज की बर्बादी ना हो । टमाटर , आलू जैसी कितनी चीजों के गोदामों में सड़ने और उसे सड़कों के किनारे फेकने की खबर हम लोगों ने पढ़ी सुनी होगी । ऐसे ही भारी मात्रा में किया गया फूड वेस्टेज पृथ्वी के हित में नहीं हैं । आज इन संसाधनों को बचाकर आने वाली पीढ़ी के भविष्य की सुंदर पटकथा लिखने की जरूरत है । सस्टेनेबल गैस्ट्रोनॉमी यह बताता है कि हम अपने लोकल फूड्स में जो इंग्रेडिएंट ( सामग्रियां मसलन धनिया , जीरा , हींग , गरम मसाला) आदि डालते हैं वो कहां से आती है। जो भी फूड प्रोडक्ट हम खा रहें हैं , वह कहां उगाया गया है , कहीं वो दिल्ली में यमुना के सबसे प्रदूषित क्षेत्र के आस पास तो नहीं उगाया गया है , कहीं सब्जियों में दूषित पानी से छिड़काव तो नहीं किया गया है । बहुत से लोग दिल्ली में पालक खाना इसलिए भी पसंद नहीं करते । सस्टेनेबल गैस्ट्रोनॉमी हमें ये भी बताता है कि किस तरीके से खाद्य पदार्थ बाजारों में पहुंचते हैं और अंततः कैसे हमारी थाली में पहुंच कर हमारे स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं ।

सस्टेनेबल गैस्ट्रोनॉमी इस बात की वकालत करता है कि लोकल फूड्स खाए जाए , लोकल एरियाज में लोग उत्पादन कार्य करें और ऐसा करने से लोगों के जीविकोपार्जन , पर्यावरण और अर्थव्यवस्था को लाभ मिलेगा । 2050 तक 9 बिलियन आबादी को अच्छा , सस्ता खिलाना है तो ये कदम चुनना होगा । उत्पादन प्रक्रिया में एक तिहाई फूड का वेस्टेज होता है । यूएन एनवायरमेंट प्रोग्राम कहता है कि हर साल उत्पादित किए जाने वाले खाद्यान्न का 30 प्रतिशत व्यर्थ हो जाता है , वो एक खाद्य अपशिष्ट के रूप में ही बचता है। यूएन के अनुसार 1.3 बिलियन टन खाद्यान्न हर साल व्यर्थ जाता है और अगर उसकी कीमत आंके तो यह 750 बिलियन डॉलर की आर्थिक क्षति के बराबर है। यही कारण है कि यू एन ने वर्ष 2019 में 29 सितम्बर को इंटरनेशनल डे ऑफ अवेयरनेस ऑफ फूड लॉस एंड वेस्ट के रूप में मनाने का निर्णय किया था।

विश्व में खाद्य सुरक्षा के लिए भी ऐसे में सस्टेनेबल गैस्ट्रोनॉमी को चुनना एक बेहतर कदम होगा । यह धारणा कहती है स्थानीय व्यंजन खाइए , किसानों के जीविकोपार्जन का भाग बनिए , परम्पराओं जिंदा रखिए , फैमिली फार्मर्स और स्माल प्रोड्यूसर को सपोर्ट करिए, यात्रा में लोकल फूड्स लेके चलिए , बर्गर पिज़्ज़ा नहीं, और फूड वेस्टेज को ख़त्म करिए । तो फिर चलिए कुछ अच्छा खाते हैं और खिलाते हैं।

विवेक ओझा (ध्येय IAS)


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