ब्लॉग : 15 सितंबर को क्यों मनाते हैं अंतरराष्ट्रीय लोकतंत्र दिवस by विवेक ओझा

सच्चा लोकतंत्र किसी एक केंद्र में बीस आदमियों के मिल बैठने से नहीं चलाया जा सकता। इसे नीचे से काम करना चाहिए, लोकतंत्र का संचालन गांव-गांव के लोगों द्वारा खुद से होना चाहिए।” लोकतंत्र के बारे में मेरी यह धारणा है कि इसमें कमजोर से कमजोर आदमी के पास भी उतने ही अवसर होने चाहिए जितने कि सबसे ताकतवर के पास।” –महात्मा गांधी

संयुक्त राष्ट्र और पूरी दुनिया आज यानि 15 सितंबर के दिन अंतरराष्ट्रीय लोकतंत्र दिवस मनाती है। हर वर्ष का एक थीम चुना जाता है जो इस बात का संकेत देता है कि लोकतंत्र के लिए समसामयिक परिस्थितियों में कौन सी चीज सबसे जरूरी है जिस पर विश्व समुदाय और देशों को ध्यान रखना भी आवश्यक है। इस दिवस की 2020 की थीम 'कोविड -19 : ए स्पॉटलाइट ऑन डेमोक्रेसी' थी वहीं, 2019 में थीम 'भागीदारी' थी। वहीं इस साल यानि 2021 में संयुक्त राष्ट्र ने इसकी थीम के तहत " भविष्य के संकटों के आलोक में लोकतांत्रिक प्रतिरोध क्षमता को मजबूती देने (strengthening democratic resilience in the face of future crises) की बात की है।

2007 में संयुक्त राष्ट्र महासभा के द्वारा अंतरराष्ट्रीय लोकतंत्र दिवस की शुरुआत की गई थी। सबसे पहले 2008 में अंतरराष्ट्रीय लोकतंत्र दिवस मनाया गया। इसके तहत दुनिया के हर कोने में सुशासन लागू करने का उद्देश्य रखा गया है। भारत को दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र कहा जा सकता है, क्योंकि यहां लगभग 60 करोड़ लोग अपने मत का प्रयोग करके सरकार को चुनते हैं।

15 सितंबर का दिन चुनने की वज़ह :

अगर हम यह जानना चाहते हैं कि 15 सितंबर को ही ये दिवस क्यों मनाया जाता है तो उत्तर यह है कि लोकतंत्र के अंतर्राष्ट्रीय दिवस के अस्तित्व का श्रेय लोकतंत्र पर सार्वभौमिक उद्घोषणा ( Universal declaration) को जाता है, जिसे 15 सितंबर, 1997 को अंतर-संसदीय संघ (IPU) के जरिए अपनाया गया था। अंतर संसदीय परिषद ( inter parliamentary council ) जो कि अंतर संसदीय संघ की गवर्निंग बॉडी है , द्वारा लोकतंत्र की सार्वभौमिक उद्घोषणा को अंगीकार किया गया था। यहां यह भी जानना जरूरी है कि 15 सितंबर 1997 को मिस्र के काहिरा ( cairo ) में 98वें अंतर संसदीय सम्मेलन का समापन हुआ था । ये सम्मेलन कुल 5 दिन चला था और इसके सम्पन्न होने के साथ ही लोकतंत्र की सार्वभौमिक उद्घोषणा को अंगीकृत किया गया था और इसी दिन की याद में संयुक्त राष्ट्र ने 2007 में तय किया कि 15 सितंबर को ही अंतरराष्ट्रीय लोकतंत्र दिवस मनाया जाएगा।

क्यों है भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र :

लोकतंत्र भारत के लिए एक महायज्ञ से कम नही है। सांख्‍यिकी की दृष्‍टि से यह देखकर आश्‍चर्य होता है: 1.3 बिलियन की आबादी वाले देश में 814.5 मिलियन भारतीय 16वीं लोकसभा के चुनाव में मतदान करने के लिए पात्र थे। चूंकि प्रतिनिधि मूलक या सहभागिता मूलक सरकार और शासन प्रणाली शासन का एक आदर्श रूप है इसलिए भारतीय लोकतंत्र को इस मक़सद की प्राप्ति में लगाया गया।

  • भारत अपने नागरिकों के साथ ही व्यक्तियों को भी महत्वपूर्ण मौलिक अधिकार और मानवाधिकार प्रदान करता है , इस रूप में भारत का लोकतंत्र मजबूत है। भारत में विधि के शासन के लिए पर्याप्त सम्मान है , संसद और राज्य विधानसभाओं में बने कानूनों के हिसाब से भारत जैसा विशाल देश चलता है , ये एक बड़ी उपलब्धि है।
  • भारत का लोकतंत्र इसलिए मजबूत है कि यहां नागरिकों के चयन के अधिकार को सुरक्षित किया गया है। स्वतंत्रता , समानता और बंधुत्व को मजबूती देने के लिए सरकारी और गैर सरकारी मशीनरी को प्रभावी तरीके से इस्तेमाल करने की कोशिश की गई है।
  • भारत के लोकतांत्रिक व्यवस्था की एक ख़ास बात यह भी है कि यहां लोगों के विरोध के अधिकार को भी सम्मान दिया गया है। आम नागरिक भ्रष्टाचार , महिला सुरक्षा , पर्यावरण जैसे कई अन्य क्षेत्रों से जुड़े असंतोष के साथ आंदोलन और धरना , विरोध प्रदर्शन करने का अधिकार रखते हैं।
  • भारत के लोकतांत्रिक व्यवस्था को मजबूती देने में सिविल सोसाइटी संगठन , गैर सरकारी संगठन , गैर लाभकारी संगठन , परोपकारी समूह महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे हैं। इनके जरिए व्यवस्था और शासन तंत्र पर जरूरी चेक्स एंड बैलेंस भी रखे गए हैं।
  • भारत में लोकतंत्र एक जीवन शैली और एक समावेशी विचारधारा के रूप में रहा है। जैसे जैसे भारत का लोकतंत्र सघन होता गया है , वैसे वैसे ट्रांसजेंडर्स , दिव्यांगों , बुजुर्गों , श्रमिक महिलाओं , कुपोषण के शिकार बच्चों , किसानों , आदिम जनजातियों , पारंपरिक वनवासी लोगों के अधिकारों को सुरक्षित करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए गए हैं।

विवेक ओझा (ध्येय IAS)


ध्येय IAS के अन्य ब्लॉग