ब्लॉग : कहां खड़ी है भारत की विदेश नीति by विवेक ओझा

पिछले 6 वर्षों में भारत की विदेश नीति का मूल्यांकन करें , तो बहुत सी महत्वपूर्ण बातें सामने आती हैं। विदेश नीति का सबसे बड़ा लक्ष्य राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा है और पिछले 6 वर्षों में भारत की विदेश नीति को नई चुनौतियों के साथ नए आयाम , उद्देश्य मिले हैं और कई अवसरों पर भारतीय विदेश नीति ने अभूतपूर्व उपलब्धि भी हासिल की है । सबसे पहले देखें तो भारत की विदेश नीति ने अपनी पड़ोसी प्रथम की नीति के तहत बहुत कुछ नया सीखा है। पाकिस्तान और नेपाल को छोड़ दें तो सभी दक्षिण एशियाई देशों के साथ भारत का सहयोग और द्विपक्षीय संबंध मजबूत हुआ है और आज मालदीव और श्रीलंका जैसे राष्ट्र जो कभी चीन के अधिक प्रभाव में थे , इंडिया फर्स्ट पॉलिसी के तहत कार्य करने लगे हैं। इसके साथ ही भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा एक्सटेंडेड नेबरहुड फर्स्ट पॉलिसी के तहत दक्षिण एशियाई देशों के अलावा आसियान और पश्चिम एशिया तक के देशों को पड़ोसी के रूप में देखने का जो विजन दिया गया है , उसी का प्रभाव है कि आज दक्षिण पूर्वी एशियाई और पश्चिम एशियाई देश चीन , पाकिस्तान , व्यापार वाणिज्य और महासागरीय सुरक्षा के मुद्दों पर भारत के साथ खड़े हैं । सऊदी अरब और यूएई जैसे देश पाकिस्तान को सबक तक सिखाने के कदम उठाते देखें गए हैं। ऑर्गनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कॉन्फ्रेंस की बैठक में मालदीव द्वारा भारत का पक्ष लेना भी ऐसा ही कदम है। धारा 370 के उन्मूलन , पीओके पर आक्रामक नीति , एफएटीएफ में पाकिस्तान को आतंकी वित्त पोषण के मुद्दे पर घेरना , सिंधु जल तंत्र के पूर्वी नदियों के जल प्रवाह को नियंत्रित करने , सर्जिकल स्ट्राइक जैसी पहलों के जरिए भारत पाकिस्तान को वैश्विक स्तर पर अलग थलग करने में पहली बार सफल रहा है। ओआईसी के लगभग सभी प्रभावी मुस्लिम देश पाकिस्तान की उपेक्षा करना सीख गए हैं । यह भारत की अरब विश्व के प्रति एक ठोस नीति का परिचायक है।

दूसरा, भारत ने सागरों और महासागरों की सुरक्षा को विश्व और क्षेत्रीय राजनीति में एक नया आयाम दिया है। भारत ने हिन्द महासागर और प्रशांत महासागर में नौ गमन की स्वतंत्रता , महत्वपूर्ण वाणिज्यिक समुद्री मार्गों से अबाधित आवाजाही को एक नया वैश्विक आंदोलन बना दिया है जिसमें उसे अमेरिका , जापान , ऑस्ट्रेलिया समेत आसियान , पूर्वी एशियाई और अफ्रीकी देशों का सहयोग मिला है । यही कारण है कि भारत ने 2015 में भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा एक्ट ईस्ट पॉलिसी की शुरुआत की गई जिसका उद्देश्य एशिया प्रशांत क्षेत्र में शांति , स्थिरता और समृद्धि को बढ़ावा देना था । इस पॉलिसी में दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों के साथ सहयोग के अलावा एशिया पैसिफिक के अन्य देशों के साथ सहयोग , समन्वय पर बल दिया गया । इस पॉलिसी के एक अपरिहार्य हिस्से के रूप में भारत ने जापान की पहचान की और यही कारण है कि वर्ष 2015 में दोनों देशों ने "जापान भारत विजन 2025 विशेष सामरिक और वैश्विक साझेदारी " की घोषणा की जिसका मुख्य उद्देश्य हिन्द प्रशांत क्षेत्र और विश्व में शांति और समृद्धि के लिए काम करना है।

अमेरिका की इंडो पैसिफिक स्ट्रेटजी और क्वाड सुरक्षा समूह से अपने गठजोड़ के चलते भारत आज भारतीय प्रधानमंत्री के नेतृत्व में महासागरीय संप्रभुता की सुरक्षा को एक वैश्विक महत्व का मुद्दा बनाने में लगा है और इसका परिणाम यह मिला है कि जर्मनी ने हिंद प्रशांत क्षेत्र के लोकतांत्रिक देशों के साथ भागीदारी मजबूत करने के लिए नई इंडो पैसिफिक पॉलिसी बनाई है जिसका समर्थन भारत, जापान और आसियान देशों ने कर दिया है।

तीसरा, भारत ने पिछले 6 वर्षों में विश्व के अलग अलग हिस्सों के लिए विशिष्ट नीति बनाई है। मध्य एशियाई देशों से ऊर्जा सुरक्षा और सामरिक गठजोड़ के लिए कनेक्ट सेंट्रल एशिया पॉलिसी , एक्ट फार ईस्ट पॉलिसी के तहत रूस के सुदूर पूर्व में विकास गठजोड़ , सागर विजन से एक कदम आगे जाते हुए रूस के साथ दक्षिणी चीन सागर में वैकल्पिक व्यापारिक मार्ग खोलने, 2018 में इजरायल के साथ पहली बार सामरिक साझेदारी समझौता करने का कार्य किया गया है ।

चौथा, एक्ट ईस्ट फोरम के जरिए जापान को उत्तर पूर्वी भारतीय राज्यों के विकास और सुरक्षा कार्यों में संलग्न कराने, भूटान को विशेष अनुदान , सहायता देकर उत्तर पूर्वी भारतीय राज्यों विशेषकर असम , अरुणाचल और सिक्किम की सुरक्षा में सहयोगी बनाने , बांग्लादेश को उत्तर पूर्वी भारत के त्रिपुरा से विशेष रूप से जोड़ने में भारत सफल रहा है और यह चीन से उत्तर पूर्वी भारत के प्रादेशिक अखंडता को बचाने की एक उत्कृष्ट नीति रही है। भारत ने दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों को दक्षिण चीन सागर के मुद्दे पर अपने सहयोगी देश होने का प्रमाण कई अवसरों पर देकर वियतनाम और फिलीपींस जैसे देशों का विश्वास जीता है । कंबोडिया और फिलीपींस ने हाल में भारत के साथ मुक्त व्यापार समझौते का भी प्रस्ताव कर दिया है। चीन को अफ्रीका में जवाब देने के लिए भारत और जापान का गठजोड़ मजबूत हुआ है।

पाचवां, भारत ने नवीकरणीय ऊर्जा और वैश्विक आपदा प्रबंधन में अपनी नेतृत्वकारी भूमिका निभाई है। इंटरनेशनल सोलर एलायंस और ग्लोबल कोलिशन ऑन डिजास्टर रेजिलिएंट इंफ्रास्ट्रक्चर के बाद अब भारत ग्लोबल इलेक्ट्रिसिटी ग्रिड का प्रस्ताव कर चुका है । वन सन वन वर्ल्ड वन ग्रिड का यह भारतीय विचार चीन के ओबोर का एक नैतिक प्रतिकार है। कोरोना महामारी के दौर में भारत ने वन सन वन वर्ल्ड वन ग्रिड की संकल्पना को मजबूती देते हुए एक ग्लोबल इलेक्ट्रिसिटी ग्रिड के निर्माण का प्रस्ताव किया है। इसके तहत नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय ने पश्चिम एशिया और दक्षिण पूर्वी एशिया के 140 से अधिक देशों के मध्य सौर ऊर्जा संसाधनों के साझा करने के मुद्दे पर वैश्विक सर्वसम्मति बनाने की योजना निर्मित की है । इस परियोजना के अगले चरण में इस ग्रिड को अफ्रीकी ऊर्जा केंद्रों से भी जोड़ने पर विचार किया गया है । इस परियोजना का मुख्य विचार यह है कि दुनिया भर में सौर ऊर्जा केंद्रित एक कॉमन ट्रांसमिशन सिस्टम का विकास किया जाय। भारत ने इसके अलावा एक वर्ल्ड सोलर बैंक के गठन का प्रस्ताव भी किया है जिससे अन्तर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन के मिशन को पूरा करने के लिए वित्त और प्रौद्योगिकी की लागत में कमी लाई जा सके । यह बैंक कुल 10 बिलियन डॉलर का हो सकता है जिसकी चुकता पूंजी 2 बिलियन डॉलर हो सकती है । इस प्रस्तावित सोलर बैंक में भारत की हिस्सेदारी 30 प्रतिशत तक हो सकती है ।

छठा, इंडो पैसिफिक क्षेत्र की सुरक्षा भारत की विदेश नीति के सबसे प्रमुख उद्देश्य के रूप में सामने आई है। भारत सरकार के विदेश मंत्रालय ने हाल ही में हिंद प्रशांत क्षेत्र पर ध्यान देने के लिए एक अलग ही प्रभाग का गठन किया है। इसे ओशेनिया डिवीजन नाम दिया गया है । यह अतिरिक्त सचिव की अध्यक्षता में कार्य करेगा और यह दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों, प्रशांत द्वीपीय देशों और वृहद हिंद प्रशांत क्षेत्र के मुद्दों और भारत के उससे जुड़े हितों पर ध्यान केंद्रित करेगा । ओशेनिया डिवीजन प्रशांत द्वीपीय देशों - कुक आइलैंड्स , तुवालू , पापुआ न्यू गिनी , नौरू , मार्शल द्वीप , सोलोमन द्वीप और टोंगा पर विशेष ध्यान केंद्रित करेगा । इसके साथ ही भारत द्वारा इंडो पैसिफिक और आसियान नीति को एक एकल यूनिट के अन्तर्गत लाया गया है। इसे चीन से निपटने का कारगर उपाय माना जा रहा है । चीन द्वारा हिंद महासागरीय क्षेत्र के साथ ही एशिया प्रशांत और हिंद प्रशांत क्षेत्र के देशों को अपने प्रभाव में लेने के लिए अति सक्रिय होते पाया गया है । ऐसे में भारत का ओशनिया डिवीजन इन सभी क्षेत्रों को एकीकृत रूप से देखते हुए भारत के हितों के लिए नीतिगत निर्णय ले सकेगा । इस निर्णय के जरिए भारत पश्चिमी प्रशांत ( प्रशांत द्वीपीय देशों ) से लेकर अंडमान सागर और चीन द्वारा सामरिक रूप से महत्वपूर्ण समझे जाने वाले क्षेत्रों को समान महत्व वाले स्थलों के रूप में देखेगा । इस नए डिवीजन में ऑस्ट्रेलिया , न्यूजीलैंड के साथ संबंधों पर विशेष बल दिए जाने का निर्णय किया गया है। क्वाड में ऑस्ट्रेलिया की भूमिका और प्रभाव को देखते हुए ऐसा किया जाना स्वाभाविक भी था ।

इंडो पैसिफिक डिवीजन का गठन कर चुका है भारत :

वर्ष 2019 में भारत सरकार द्वारा इंडो पैसिफिक डिवीजन का गठन किया गया था और इसमें आसियान , क्वाड और इंडियन ओशन रिम एसोसिएशन को शामिल किया गया था । इससे भी पहले देखें तो भारत सरकार ने इंडियन ओशेन डिवीजन का गठन किया था जिसके अन्तर्गत श्रीलंका , मालदीव , मॉरिशस और सेशेल्स को एक साथ शामिल किया गया था और वर्ष 2019 में इस डिवीजन में विस्तार कर मेडागास्कर, कोमोरोस और रीयूनियन द्वीप को शामिल किया गया था। हिन्द प्रशांत और एशिया प्रशांत क्षेत्र महाशक्तियों के सामरिक आर्थिक हितों के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण और संवेदनशील क्षेत्र के रूप में सामने आए हैं । सैन्य और नौसैन्य अड्डों , ऊर्जा आवश्यकताओं , खाद्य सुरक्षा हेतु मत्स्य संसाधन पर बढ़ती निर्भरता आदि कई अन्य कारणों से ये क्षेत्र भू सामरिक , भू राजनीतिक और भू आर्थिक महत्व के हो गए हैं । इसी बात को ध्यान में रखकर ही भारत सरकार के विदेश मंत्रालय ने हिंद प्रशांत क्षेत्र पर ध्यान देने के लिए ओसेनिया डिवीजन बनाया है ।

इन सभी उपलब्धियों के साथ भारत के समक्ष नई चुनौतियां भी उभरी हैं । चीन और उसके प्रभाव में नेपाल के साथ सीमा विवाद , चीन और आसियान देशों के साथ बढ़ा व्यापारिक घाटा , दक्षिण चीन सागर में चीन की अवैध गतिविधियां , 5 ट्रिलियन डॉलर अर्थव्यवस्था के लक्ष्य के मार्ग में कोरोना महामारी का रोड़ा , विश्व के कई देशों के नए नेतृत्व से अर्थपूर्ण सामंजस्य बिठाना , पड़ोसी राष्ट्रों में चीन की बढ़ती विस्तारवादी नीति , खाड़ी देशों प्रवासी भारतीय श्रमिकों के हितों की सुरक्षा के प्रति सतर्कता आदि ऐसी कई चुनौतियों हैं जिनसे बेहतर रणनीति से निपटने हुए भारतीय विदेश नीति को आगे बढ़ना होगा ।

विवेक ओझा (ध्येय IAS)


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