ब्लॉग : क्या होगी भारत अमेरिका संबंधों की दशा दिशा by विवेक ओझा

विश्व राजनीति और क्षेत्रीय राजनीति अभूतपूर्व बदलावों के दौर से गुजर रहा है। खाद्य प्रणाली हो या ऊर्जा प्रणाली ग्लोबल वार्मिंग के दौर में कई स्तरों पर ग्लोबल वार्निंग मिलनी शुरू हो गई हैं । ऐसे में कोविड महामारी के दौर में भारतीय हितों की सुरक्षा के लिए प्रधानमंत्री मोदी की 5 दिवसीय अमेरिका यात्रा अत्यंत महत्वपूर्ण है। कोविड , क्लाइमेट और क्वाड जैसे मुद्दों को केंद्रीय वार्ता का विषय बनाने की बात भारतीय प्रधानमंत्री ने की है जिसका मतलब साफ है कि भारत इस यात्रा के दौरान सबसे अधिक जोर अमेरिका और उसके सहयोगियों के साथ स्वास्थ्य साझेदारी को मजबूती देने , सतत विकास के लिए ग्रीन इकॉनोमी को मजबूती देने , वैश्विक पर्यावरण को जलवायु परिवर्तन से बचाने और उसके लिए स्वच्छ और नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देने और इसके साथ ही वैश्विक क्षेत्रीय स्थिरता और सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिए क्वाड समूह को मजबूती देते हुए सदस्य राष्ट्रों को सुरक्षा प्रतिरक्षा के मुद्दे पर और नजदीक लाने पर दे रहा है। क्वाड देशों की नौसैनिक , सैन्य , अंतरिक्ष और उच्च प्रौद्योगिकी क्षमता और उनकी अर्थव्यवस्थाओं के बड़े आकार और उनके महत्व से भारत परिचित है। भारतीय प्रधानमंत्री मोदी को पता है कि क्वाड सदस्य देशों के सहयोग से भारत को ब्लू वॉटर नेवी बनाने और हिन्द प्रशांत क्षेत्र में मेरीटाइम डोमेन अवेयरनेस को बढ़ाने में सार्थक सहयोग मिल सकता है। अभी कुछ रोज पूर्व ही ऑस्ट्रेलिया ने भारत को गगनयान मिशन के लिए एक बड़े अंतरिक्ष सहयोग की बात की है । ऑस्ट्रेलिया ने कहा है कि उसके कोकोस कीलिंग द्वीप पर इसरो का एक ग्राउंड स्टेशन स्थापित कर भारत को उसके गगनयान मिशन के लिए ऑस्ट्रेलिया सहायता प्रदान करेगा। इसरो के प्रमुख के. सीवान ने भी इस बात की पुष्टि की है कि इसरो ऑस्ट्रेलिया के कोकोस कीलिंग द्वीप पर गगनयान मिशन के लिए इसरो के ग्राउंड स्टेशन को लगाने के लिए वार्ता में लगा हुआ है।

अमेरिका में सत्ता परिवर्तन एवं ...

इसी क्रम में भारतीय प्रधानमंत्री की दिलचस्पी इस समय जापान के साथ सामरिक साझेदारी और वैश्विक गठजोड़ को एक नई ऊंचाई पर ले जाना है । भारत और जापान के बीच एक सैन्य सूचना विनिमय और लॉजिस्टिक के पारस्परिक आदान प्रदान को लेकर एक समझौता " एक्विजिशन एंड क्रॉस सर्विंग एग्रीमेंट " को मूर्तमान रूप दिया जाना अभी बाकी है। 2018 में दोनों देशों ने इस पर समझौता किया था और यह भारत और अमेरिका के बीच हुए कॉमकेसा समझौते के तर्ज पर ही किया गया है। अब समय आ गया है कि हिन्द प्रशांत की सुरक्षा और स्थिरता के लिए इसे अंतिम रूप से कार्यशील बनाया जाये। निश्चित रूप से भारतीय प्रधानमंत्री की जापानी प्रधानमंत्री से जो वार्ता हिन्द प्रशांत क्षेत्र पर हुई अभी हुई है उसमें इस आयाम पर भी बात हुई होगी क्योंकि दोनों देश इस समझौते को महासागरीय सुरक्षा के लिए आवश्यक मानते हैं। जापान के साथ भारत का आर्थिक क्षेत्र का दूसरा सबसे बड़ा समझौता " व्यापक आर्थिक साझेदारी समझौता ( सेपा ) जो 2011 में हुआ था और जिसमें कहा गया था कि अगले 10 वर्षों में यानि 2021 तक दोनों देशों के द्विपक्षीय व्यापार में 94 प्रतिशत से अधिक वस्तुओं पर प्रशुल्क खत्म कर दिया जाएगा , अब उसकी समीक्षा का भी समय आ गया है । भारत को यह भी देखना है कि भारत जापान के मध्य लगभग 16 बिलियन डॉलर के द्विपक्षीय व्यापार में व्यापारिक घाटे का जो सामना खुद ही करना पड़ता है , वह उसे भरने के लिए जापान के साथ क्या रणनीति अपनाता है। दरसअल प्रधानमंत्री मोदी जिस क्वाड समूह के सदस्य देशों से पृथक पृथक व्यक्तिगत स्तर पर मुलाकात करने गए हैं , वह क्वाड अपने को एक सैन्य गुट से एक व्यापारिक गुट के रूप में परिवर्तित करने में भी लगा है । ऐसे में इन सभी देशों के साथ भारत के व्यापारिक आर्थिक हितों को सुरक्षित करने की व्यवहारिक रणनीति बनानी होगी ।

रक्षा क्षेत्र की 'दूसरी सकारात्मक ...

पीएम मोदी ने 'मेक इन इंडिया' पहल को आगे बढ़ाने के लिए व्यापारिक नेताओं और निवेशकों से मुलाकात की । इस कड़ी में आईटी क्षेत्र से लेकर वित्त, रक्षा और नवीनीकरण ऊर्जा के क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करने वाले पांच शीर्ष अमेरिकी सीईओ के साथ अलग-अलग बैठकें सम्पन्न की गई हैं। एडोब , जनरल एटॉमिक्स, क्वालकॉम, फर्स्ट सोलर और ब्लैकस्टोन जैसी कंपनियों के मुख्य कार्यकारी अधिकारियों के साथ भारतीय प्रधानमंत्री की बैठक इस बात का संकेत है कि व्यापार वाणिज्य और निवेश को नई ऊंचाई पर ले जाने के लिए भारत सरकार प्रतिबद्ध है। वर्तमान समय में भारत और अमेरिका के मध्य वस्तुओं और सेवाओं में द्विपक्षीय वार्षिक व्यापार 149 बिलियन डॉलर के रिकॉर्ड स्तर तक पहुँच चुका है जिसे निकट भविष्य में 500 बिलियन डॉलर करने के लक्ष्य पर भी दोनों देश सहमत हो चुके हैं। ऐसे में अमेरिकी कंपनियों से व्यापार निवेश के मुद्दों पर चर्चा करना और अधिक जरूरी हो जाता है। अभी भारत और अमेरिका के द्विपक्षीय व्यापार में भारत को करीब 30 बिलियन डॉलर का फायदा हो रहा है जिसे भारत बेहतर आर्थिक रणनीति के जरिये बढ़ाने में भी सक्षम हो सकता है।

क्वॉलकॉम सेमीकंडक्टर उत्पादन, सॉफ्टवेयर, वॉयरलेस टेक्नोलॉजी सर्विस के क्षेत्र में प्रमुखता से काम करती है। इससे भारत में 5जी तकनीकी का इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार करने और उसके इस्तेमाल में मदद मिल सकती है। इसके जरिये भारत में ऑटोमोटिव, आईओटी के क्षेत्र में बड़ा निवेश हो सकता है। इसी कड़ी में ब्लैक स्टोन के चेयरमैन और मुख्य कार्यकारी अधिकारी के साथ राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन और राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन सहित भारत में चल रही परियोजनाओं में निवेश के अवसरों पर भारतीय प्रधानमंत्री की चर्चा हुई।

सेमी कंडक्टर (Semi Conductor) : डेली करेंट ...

ग्लोबल कोविड 19 समिट में सहभागिता करते हुए भारतीय प्रधानमंत्री ने महामारी के आर्थिक प्रभावों की चर्चा करते हुए कहा कि वैक्सीन सर्टिफिकेट्स को पारस्परिक मान्यता देते हुए राष्ट्रों को वैश्विक यात्राओं को सरल बनाने की दिशा में कार्य करना चाहिए। दरसअल भारतीय प्रधानमंत्री ने पिछले कुछ वर्षों में वैश्विक तनावों और समस्याओं के आर्थिक प्रभावों के मुद्दे को उठाकर यह जाहिर कर दिया है कि भारत को अपनी ही अर्थव्यवस्था की चिंता नही है बल्कि वैश्विक अर्थव्यवस्था की भी दशा दिशा न बिगड़े भारत यह चाहता है। भारतीय प्रधानमंत्री ने इससे पहले ब्रिक्स के एक समिट में कहा था कि वैश्विक आतंकवाद से हर साल 1 ट्रिलियन डॉलर की क्षति होती है , इस लिहाज से वैश्विक आंतकवाद ग्लोबल इकोनॉमी के लिए भी खतरा पैदा करता रहा है।

भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा इस यात्रा के दौरान भारत अमेरिका व्यापक वैश्विक सामरिक साझेदारी की समीक्षा करने की बात की गई है । 2020 के शुरुआत में दोनों देशों ने आपसी सम्बंधों को कॉम्प्रिहेन्सिव ग्लोबल स्ट्रैटेजिक पार्टनरशिप के स्तर पर ले जाने का निर्णय लिया था। इसके तहत वैश्विक आतंकवाद से मिलकर निपटने का फैसला लिया गया था । दोनों देशों के मध्य  ड्रग तस्करी, नार्को-आतंकवाद और संगठित अपराध जैसी गंभीर समस्याओं के बारे में एक नए मेकैनिज्म पर भी सहमति हुई थी। कुछ ही समय पहले दोनों देशों के मध्य स्थापित स्ट्रैटेजिक एनर्जी पार्टनरशिप भी सुदृढ़ होती जा रही है और इस क्षेत्र में आपसी निवेश बढ़ा है। तेल और गैस के लिए अमेरिका भारत का एक बहुत महत्वपूर्ण स्त्रोत बन गया है। अमेरिकी संसद कुछ समय पहले भारत को नाटो देशों के समान दर्जा देने वाले प्रस्ताव को मंजूरी दी थी। इसके चलते  अब रक्षा संबंधों के मामले में अमेरिका भारत के साथ नाटो के अपने सहयोगी देशों, इजरायल और साउथ कोरिया की तर्ज पर ही डील करेगा।

भारत अमेरिका का सामरिक  क्षेत्र में सहयोग :

वर्तमान वैश्विक शक्ति समीकरण में अमेरिका भारत के माध्यम से चीन की बढ़ती आक्रमकता को प्रतिसन्तुलित करना चाहता है। साथ ही अपनी अर्थव्यवस्था के पुनरोद्धार के लक्ष्य के साथ वह भारत के बड़े बाजार का दोहन करना चाहता है। दूसरी  भारत हिन्द प्रशांत क्षेत्र के नेतृत्वकर्ता की भूमिका निभाने का इच्छुक है , जहाँ अपने पड़ोस में चीन की बढ़ती उपस्थिति से वह चिंतित है । ऐसे में भारत की अमेरिका से सामरिक भागीदारी उसे चीन पर बढ़त बनाने का अवसर दे सकता है । यही कारण है कि हिन्द प्रशांत क्षेत्र के सम्बंध में दोनों देशों के दृष्टिकोणों में साम्यता देखी जा सकती है । दोनों ही देश इस क्षेत्र में आधिपत्यवादी व वर्चस्ववादी नीतियों का विरोध करते हैं  और अंतरराष्ट्रीय कानूनों पर आधारित सामुद्रिक व्यवस्था के समर्थक है । दोनों देशों के मध्य बढ़ते सामरिक सहयोग के निम्नलिखित उदहारण देखे जा सकते है-

  • अमेरिका द्वारा अपनी सामुद्रिक सुरक्षा रणनीति में एशिया प्रशांत क्षेत्र का नाम बदलकर हिंद प्रशांत क्षेत्र कर दिया गया है , जो इस क्षेत्र में भारत की केंद्रीय भूमिका को मान्यता देता है।
  • दोनों देशों के मध्य विदेश और रक्षा मंत्री के स्तर पर 2+2 वार्ता प्रारम्भ की गई है जिसके तहत वैश्विक आतंकवाद , साइबर सुरक्षा , महासागरीय सुरक्षा जैसे मुद्दों पर सामरिक वार्ता की जा रही है । भारत टू प्लस टू वार्ता के तहत अमेरिका के साथ अपने प्रतिरक्षा साझेदारी को कितना तरज़ीह देता है इसका आंकलन इस बात से लगाया जा सकता है कि प्रधानमंत्री मोदी के अमेरिका यात्रा पर उनके साथ भारतीय विदेश मंत्री और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार भी गए हैं।
  • जापान,अमेरिका और भारत(JAI) के मध्य मालाबार नौसैन्य अभ्यास का आयोजन हो रहा है और इसमें ऑस्ट्रेलिया को भी जोड़े जाने पर विचार चल रहा है जिससे हिन्द प्रशांत और एशिया प्रशांत के सुरक्षा परिदृश्य को मजबूती दी जा सके।
  • जापान, अमेरिका, भारत और आस्ट्रेलिया के मध्य क्वैड के रूप में सामरिक बैठकें  हो रही हैं । इन बैठकों का एक मुख्य मकसद चीन की एकाधिकारवादी मानसिकता को नियंत्रित करना है । चीन के वन बेल्ट वन रोड पहल के नकारात्मक प्रभावों पर ये राष्ट्र आपस में चर्चा कर अपनी प्रभावी कार्यवाही को संपन्न करने के लिए रणनीति निर्मित करते हैं । 
  • हाल ही में दोनों देश एशिया और अफ्रीका में वैश्विक विकास हेतु त्रिपक्षीय सहयोग के तहत किसी तीसरे देश मे संयुक्त परियोजना संचालित करने पर भी  सहमत हुए है।

विवेक ओझा (ध्येय IAS)


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