ब्लॉग : क्या हैं यूरोपीय संघ के नए इंडो पैसिफिक प्लान के मायने by विवेक ओझा

हिन्द प्रशांत क्षेत्र की सुरक्षा , स्थिरता में दुनिया के सभी प्रभावशाली देश और संगठन रुचि रखते हैं क्योंकि सब अपने लिए स्वतंत्र , मुक्त सागरीय व्यापार की स्थिति बनाना चाहते हैं , इसी कड़ी में हाल ही में यूरोपीय संघ ने अपना इंडो पैसिफिक प्लान लांच किया है। वैसे तो यूरोपीय संघ के कुछ सदस्य देशों ने व्यक्तिगत स्तर पर अपनी इंडो पैसिफिक स्ट्रैटेजी को लांच कर रखा है लेकिन यह पहला अवसर है जब ईयू ने क्षेत्रीय संगठन के स्तर पर ऐसा किया है।

यूरोपियन यूनियन के विदेश नीति मामलों के मुख्य अधिकारी जोसेप बोर्रेल ने ईयू के इंडो पैसिफिक प्लान को स्पष्ट करते हुए बताया है कि इसका उद्देश्य हिन्द प्रशांत क्षेत्र में चीन की उपस्थिति का विरोध करना है। इसी क्रम में यूरोपीय संघ ने कहा कि वह चीन को पसंद न आने वाले देश ताइवान से एक व्यापार समझौता भी करेगा और हिन्द प्रशांत क्षेत्र में समुद्री मार्गों को मुक्त रखने के लिए अधिक जहाजों की भी तैनाती करेगा।

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यूरोपीय संघ ने यह भी कहा है कि उसकी इंडो पैसिफिक स्ट्रेटेजी चीन के लिए भी खुली है ख़ासकर जलवायु परिवर्तन जैसे क्षेत्रों में साथ मिलकर काम करने के लिए। लेकिन यूरोपीय संघ अपने इंडो पैसिफिक प्लान के तहत भारत , जापान , ऑस्ट्रेलिया और ताइवान जैसे देशों के साथ सहयोग पर अधिक बल देगा जिससे हिन्द प्रशांत क्षेत्र में चीन की बढ़ती ताकत पर नियंत्रण लगाया जा सके।

ईयू ने यह भी साफ किया है कि वह सुरक्षा के मुद्दों पर ब्रिटेन के साथ भी मिलकर कार्य करने का इच्छुक है लेकिन ब्रिटेन ने ईयू छोड़ने के बाद से ईयू में अधिक रुचि नहीं दिखाई है। वहीं दो यूरोपीय देश फ्रांस के ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका के साथ हालिया तनावों पर भी ईयू ने अपने मत व्यक्त किये हैं।

वर्ष 2018 में फ़्रांस के राष्ट्रपति ने अपनी इंडो पैसिफिक रणनीति की रूपरेखा प्रस्तुत की थी और इस क्षेत्र की सुरक्षा , स्थिरता , विकास को विश्व शांति और समृद्धि के लिए आवश्यक माना था। भारत और फ्रांस की नौसेनाओं ने पिछले वर्ष हिंद महासागर के रीयूनियन द्वीप में संयुक्त पेट्रोलिंग की थी । 

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हाल ही में कनाडा ने भी जापान के साथ मिलकर मुक्त और स्वतंत्र इंडो पैसिफिक क्षेत्र की आवश्यकता पर बल देते हुए अपनी इंडो पेसिफिक पॉलिसी बनाने का संकेत दिया है। ब्रिटेन ने भी इंडो पैसिफिक रणनीति में रुचि लेनी शुरू कर दी है। इस प्रकार चीन द्वारा वैश्विक विधियों के अतिक्रमण को रोकने के लिए यूरोप के कई देश लगातार इंडो पैसिफिक के मुद्दे पर लामबंद हो रहे हैं।

यूरोपीय संघ परिषद ने हाल के समय में सागरीय चुनौतियों के दौर में, ‘क्षेत्रीय स्थिरता, सुरक्षा, समृद्धि और सतत विकास में योगदान करने के उद्देश्य से’ अपने रणनीतिक फोकस, उपस्थिति और कार्रवाईयों को सुदृढ़ करने हेतु, यूरोपीय संघ की भारत-प्रशांत (इंडो-पैसिफिक) क्षेत्र में सहयोग- रणनीति के निष्कर्ष को मंजूरी प्रदान की है।इंडो-पैसिफिक क्षेत्र हेतु यूरोपीय संघ की नवीन प्रतिबद्धता के तहत लोकतंत्र, मानवाधिकारों, कानून के शासन और अंतर्राष्ट्रीय कानून के सम्मान को बनाए रखने” पर बल दिया गया है। इसका लक्ष्य, नियम-आधारित प्रभावी बहुपक्षवाद को बढ़ावा देना है।

गौरतलब है कि इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में वर्तमान गतिशीलता के चलते गहन भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा उत्पन्न हो रही है, जिस कारण व्यापार और आपूर्ति श्रृंखलाओं के साथ-साथ तकनीकी, राजनीतिक और सुरक्षा क्षेत्रों में भी तनाव बढ़ा है। इन घटनाक्रमों से इस क्षेत्र ओर इसके आप-पास के क्षेत्रों की स्थिरता और सुरक्षा के लिए संकट बढ़ता जा रहा है, जिसका यूरोपीय संघ के हितों पर सीधे प्रभाव पड़ता है।

क्यों जरूरी है इंडो पैसिफिक क्षेत्र की सुरक्षा :

  • भारत की रणनीतिक स्थिति में बढ़त के लिए, अमेरिका के साथ मजबूत संबंधों को एक महत्वपूर्ण उपकरण के रूप में देखा जाता है।
  • राष्ट्रीय हितों के लिए दीर्घकालिक परिकल्पना।
  • हिंद महासागर क्षेत्र में चीन की तेजी से बढ़ती उपस्थिति, व्यापार और सेना के माध्यम से एशिया तथा उससे आगे भूराजनीतिक पहुंच का विस्तार करने के चीनी प्रयास।
  • नौ-परिवहन की स्वतंत्रता, क़ानून-आधारित व्यवस्था का पालन करने तथा व्यापार हेतु सुव्यवस्थित माहौल का निर्माण करने हेतु।
  • मुक्त समुद्र एवं मुक्त हवाई मार्गो तथा कनेक्टिविटी के लिए; और अंतरराष्ट्रीय नियमों और मानकों को बनाए रखने के लिए।
  • इन लक्ष्यों को ध्यान में रखते हुए भारत और यूरोपीय संघ कुछ महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों जैसे- समुद्री डकैती, आतंकवाद, नीली अर्थव्यवस्था, समुद्री प्रौद्योगिकी आदि में एक साथ मिलकर काम और सहयोग कर सकते हैं।

हिन्द प्रशांत क्षेत्र की सुरक्षा के ...

यहां यह भी जानना आवश्यक है कि यूरोपीय संघ के साथ संचार के सुरक्षित समुद्री गलियारों में योगदान करने के लिये यूरोपीय संघ ने दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया में अपने क्रिमारियो (CRIMARIO) यानि क्रिटिकल मेरीटाइम रूट्स इन इंडियन ओसियन के भौगोलिक दायरे का विस्तार करने का निर्णय भी लिया है।यूरोपीय संघ ने वर्ष 2015 में क्रिमारियो परियोजना हिंद महासागर में समुद्री सुरक्षा और सुरक्षा में सुधार के लिये लॉन्च की थी, जिसके अंतर्गत पूर्वी अफ्रीका के कुछ चयनित देशों और द्वीप समूहों पर विशेष ध्यान दिया गया था। इस परियोजना का उद्देश्य इस क्षेत्र के देशों का उनके समुद्री परिस्थितिजन्य जागरूकता में वृद्धि करने हेतु समर्थन करना है।

यूरोपीय संघ के CRIMARIO 1 ने 2005 से 2019 तक कार्य किया है जबकि 2019 में CRIMARIO 2 को लांच किया गया है। इनका उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय व्यापार और समृद्धि के लिए जरूरी सी लाइन्स ऑफ कम्युनिकेशन्स को सुरक्षित करने में अपने व्यापारिक साझेदारों को मदद देना है।

विवेक ओझा (ध्येय IAS)


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