ब्लॉग : संयुक्त राष्ट्र तय करे अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद की सार्वभौमिक परिभाषा by विवेक ओझा

दुनिया भर के देशों द्वारा आतंकवाद के रोक थाम के लिए किए गए अनेक प्रयासों के बावजूद दुनिया के हर कोने में आतंकी हमलों से जुड़े समाचार मिलने में कोई कमी नहीं आई है। आतंकी संगठन नए तरीकों , नए गठजोड़ों के साथ एक प्रतिस्पर्धी उद्योग के रूप में काम कर रहे हैं ,इससे भी बड़ी चुनौती यह है कि पिछले कुछ वर्षों में आतंकवाद और संगठित अपराधों के मध्य गहरा संबंध विकसित हुआ है। इसी के साथ भारत जैसे देश ने इस समस्या के स्थाई समाधान के मार्ग में जिस सबसे बड़ी रुकावट की पहचान की है वो है : दुनिया भर के देशों में अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद की एक सार्वभौमिक या सर्व स्वीकृत परिभाषा पर सहमति ना बन पाना। भारत ने पिछले कुछ महीनों में क्षेत्रीय संगठनों जी 20, ब्रिक्स, शंघाई सहयोग संगठन आदि की वर्चुअल बैठकों में अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद पर व्यापक अभिसमय जिसका प्रस्ताव स्वयं भारत ने ही सबसे पहले किया था , को मूर्तमान बनाने के लिए राष्ट्रों से अपील किया ।

यह बहुत सुखद समाचार है कि कुछ समय पूर्व ही भारत द्वारा संयुक्त राष्ट्र महासभा में आतंकवाद की एक सार्वभौमिक परिभाषा के प्रस्ताव को दक्षिण एशियाई देश नेपाल का समर्थन मिला था । नेपाल ने साफ़ कर दिया है कि वह भारत द्वारा 1996 में संयुक्त राष्ट्र महासभा में प्रस्तावित अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद पर व्यापक अभिसमय को पूर्ण समर्थन देगा । पिछले कुछ वर्षों में लगातार भारत ने पूरी दुनिया के देशों से इस प्रस्ताव के समर्थन में सहयोग मांगा है । यूएन महासभा के साथ ही ब्रिक्स ,शंघाई सहयोग संगठन, जी 20 , इस्लामिक सहयोग संगठन , गुट निरपेक्ष आंदोलन समिट सहित सभी प्रमुख मंचों पर इस प्रस्ताव के सार्वभौमिक अनुसमर्थन के लिए भारत ने कई कूटनीतिक प्रयास किए हैं। ऐसे में नेपाल जैसा पड़ोसी देश जो हाल के समय में चीन और पाकिस्तान के प्रभाव में दिखा है , से इस अभिसमय को समर्थन मिलने की बात इसलिए महत्तवपूर्ण है क्योंकि यह राजनीतिक और आर्थिक दोनों रूपों में विभाजित दक्षिण एशियाई देशों में अन्तर्राष्ट्रीय आंतकवाद की एक सार्वभौमिक परिभाषा वाले अभिसमय के पक्ष में सोचने की दिशा तय कर सकता है। वस्तुतः नेपाल सहित अन्य दक्षिण एशियाई देशों और इस्लामिक सहयोग संगठन के देशों पर इस अभिसमय को पूर्ण समर्थन देने का दबाव हाल के समय में बढ़ा है और जब से फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स पाक प्रायोजित आतंकवाद के खिलाफ अति सक्रिय हुआ है, तब से दुनिया के कई देशों में आंतकवाद से निपटने की पारंपरिक मानसिकता में बदलाव देखे गए हैं ।

नेपाल के इस बदले अंदाज और भारत के समर्थन के कारणों की पड़ताल अमेरिकी विदेश विभाग की नवंबर , 2019 में जारी रिपोर्ट ‘कंट्री रिपोर्ट ऑन टेररिज्म 2018’ के जरिए की जानी चाहिए। इस रिपोर्ट में खुलासा किया गया है कि इंडियन मुजाहिदीन (आईएम) ने भारत के खिलाफ आतंकी घटनाओं को अंजाम देने के लिए नेपाल को अपना सबसे बड़ा अड्डा बना लिया है। उसने लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद और हरकत उल-जिहादी इस्लामी से भी गठजोड़ कर लिया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि आईएम का पहला मकसद भारत में आतंकी घटनाओं को अंजाम देना है। इसी के तहत उसने अपना दायरा बढ़ाते हुए भारत के पड़ोसी देश नेपाल को अपना सबसे बड़ा केंद्र बना लिया है। इसके लिए उसे पाकिस्तान समेत मिडिल ईस्ट (पश्चिम एशिया) देशों से फंड भी मिलता है । इसलिए नेपाल भारत के साथ अपने द्विपक्षीय संबंधों में सुधार हेतु कुछ सकारात्मक मानसिकता प्रदर्शित करना चाहता है।

सितंबर 2019 में भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा संयुक्त राष्ट्र संघ के मुख्यालय में अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद पर व्यापक अभिसमय को शीघ्र से शीघ्र अंगीकृत करने , इस पर हस्ताक्षर करने और इसका अनुसमर्थन करने के लिए राष्ट्रों से अपील की गई थी । इसके साथ ही कई क्षेत्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर भारत ने इस अभिसमय को मूर्तमान स्वरूप देने हेतु राष्ट्रों से सहयोग करने की बात कही है क्योंकि आतंकवाद की कोई सार्वभौमिक स्वीकृत परिभाषा नहीं है और इसके चलते विभिन्न देशों के राष्ट्रीय कानूनों में आतंकवाद और आतंकवादियों से निपटने संबंधी प्रावधानों में अस्पष्टता बनी रहती है। इसीलिए भारत ने वर्ष 1996 में अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद पर व्यापक अभिसमय को अपनाने के लिए संयुक्त राष्ट्र में एक प्रस्ताव रखा था लेकिन अमेरिका और इस्लामिक सहयोग संगठन के सदस्य देशों तथा कुछ लैटिन अमेरिकी देशों के विरोध और मतभेद के चलते इस प्रस्ताव को अंगीकृत नहीं किया जा सका है।

अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद पर व्यापक अभिसमय (सीसीआईटी) वैश्विक स्तर पर आतंकवाद से निपटने की एक वैधानिक रूपरेखा प्रस्तुत करता है और यह सभी हस्ताक्षरकर्ता देशों पर बाध्यकारी दायित्व आरोपित करने का प्रस्ताव करता है कि वे आतंकी समूहों के वित्तपोषण और उन्हें सेफ हैवंस देने का काम न करें।

सीसीआईटी के मुख्य उद्देश्य उद्देश्यों की बात करें तो इसमें कुछ ठोस प्रावधान करने की बात की गई है जिसका आतंक के पोषण करने वाले राष्ट्रों को असहज करना स्वाभाविक है । इस अभिसमय में जिन प्रमुख बातों को रखा गया है उनमें शामिल हैं : पहला, आतंकवाद की एक सार्वभौमिक परिभाषा जिसे संयुक्त राष्ट्र के 193 सदस्य देश अपने आपराधिक कानूनों में शामिल करें।

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दूसरा, इसका उद्देश्य है सभी आतंकी समूहों को प्रतिबंधित करना और सभी आतंकी शिविरों का उन्मूलन करना। इस अभिसमय में राष्ट्रीय सरकारों से ऐसा करने का आवाहन किया गया है।

तीसरा, सभी आतंकवादियों के खिलाफ विशेष कानूनों के तहत मुकदमा चलाने का प्रावधान करना और इसे राष्ट्रों पर बाध्यकारी बनाना। भारत का मानना है कि सामान्य कानून और व्यवस्था से संबंधित नियमों , कानूनों की बजाय विशिष्ट आतंक निरोधक कानूनों के जरिए इस समस्या से निपटना जरूरी है अन्यथा आतंकवादियों के संरक्षण हेतु स्पेस मिलता रहेगा। यहां इस बात का उल्लेख करना आवश्यक है कि पाकिस्तान ने आतंकी संगठनों और उनके मुखियाओं के खिलाफ मेंटेनेंस ऑफ पब्लिक ऑर्डर एक्ट के तहत कार्रवाई की है ना कि एंटी टैरोरिज़्म एक्ट , 1997 के तहत । यह पाकिस्तान की मंशा पर सवाल खड़े करने के लिए काफी है। मेंटेनेंस ऑफ पब्लिक ऑर्डर एक्ट के तहत प्रावधान है कि प्राधिकारी किसी भी निरुद्ध व्यक्ति को 60 दिनों से अधिक समय तक के लिए नजरबंद नहीं रख सकते। पाकिस्तान ने मसूद अजहर और हाफ़िज़ सईद पर अभियोग शांति के भंग करने के आरोप पर चलाया है ना कि आंतक निरोधी कानूनों के तहत ऐसा किया गया है । भारत ने पाकिस्तान के इस दोहरे मानदंड को समय समय पर तोड़ने की कोशिश की है । इसके लिए भी सीसीआईटी का सार्वभौमिक अनुसमर्थन आवश्यक हो गया है।

चौथा, सीमा पार आतंकवाद को विश्वव्यापी स्तर पर एक प्रत्यर्पण योग्य अपराध बनाना ताकि एक देश से भाग कर दूसरे देश में रह रहे आतंकियों के खिलाफ कार्यवाही संभव हो सके । इस संदर्भ में भारत और अफगानिस्तान के बीच 2016 में हुई प्रत्यर्पण संधि का जिक्र आवश्यक है जिसके अनुमोदन पत्र का दोनों देशों ने निर्णायक रूप से आदान प्रदान नवंबर , 2019 में किया । इस प्रत्यर्पण संधि से भारत और अफगानिस्तान के बीच आतंकवादियों, आर्थिक अपराधियों और ऐसे ही अन्य अपराधियों के प्रत्यर्पण का कानूनी रास्ता खुल जाएगा। वैश्विक आंतकवाद से निपटने के लिए ऐसा ही विधिक सहयोग सभी राष्ट्रों के मध्य होना अपेक्षित है।

सीसीआईटी में इतने प्रभावी और समाधान आधारित प्रावधानों के होने के बावजूद इसके मार्ग में अवरोध बने हुए हैं और यह मूर्त रूप नहीं ले पा रहा है । यह राष्ट्रों के लिए दुर्भाग्य पूर्ण ही है । सबसे पहले तो इस्लामिक सहयोग संगठन के देशों के द्वारा इस अभिसमय के विरोध के चलते यह कार्यशील नहीं हो सका है। इस्लामिक सहयोग संगठन के देशों का मानना रहा है कि राष्ट्रीय स्वाधीनता आंदोलनों को आतंकवाद की परिभाषा से बाहर रखा जाए जैसे इजरायल और फिलिस्तीन का युद्ध और इस आधार पर फिलिस्तीन के उग्रवादी और आतंकी गुटों के कार्यकलापों को वैध ठहराया जाना ।

दूसरा, पाकिस्तान जैसे देश आतंकियों को स्वतंत्रता सेनानी के रूप में देखते हैं और आतंकी कृत्य को एक धर्म युद्ध के रूप में। पाक अधिकृत कश्मीर में आजादी की लड़ाई को पाकिस्तान एक जेहाद के रूप में देखता है । इसलिए वह भारत द्वारा प्रस्तावित इस अभिसमय का विरोध करता है।

कुछ लैटिन अमेरिकी देशों ( दक्षिण अमेरिकी देशों) जैसे कोलंबिया, वेनेजुएला, क्यूबा और पेरू में साम्यवादी लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए पृथकतावादी आंदोलन और उससे संबंधित कार्यों को आतंकी कृत्य और आतंकवाद की परिभाषा में शामिल न करने पर जोर दिया जाता है ताकि इन देशों के द्वारा पृथकतावादी और अलगाववादी आंदोलनों को चलाया जा सके। इन कारणों से सीसीआईटी पर वैश्विक सर्वसम्मति नहीं बन पाई है।

इन समस्त अवरोधों के बावजूद भारत जिस मुखरता से हर साल संयुक्त राष्ट्र महासभा के वार्षिक सम्मेलन में इस अभिसमय को सभी देशों द्वारा अंगीकार करने और उसे वैधानिक रूप से बाध्यकारी बनाने के लिए प्रयासरत है , उसे देखकर यह लगता है कि वो दिन दूर नहीं जब भारत इस अभिसमय के पक्ष में अधिकतम समर्थन जुटा लेगा । इसके साथ ही भारत सहित वैश्विक स्तर पर आतंकी समूहों की रणनीति में आ रहे आमूलकारी बदलावों को ध्यान में रखते हुए भारत में आतंकवाद को प्रतिस्पर्धी उद्योग के रूप में ना पनपने देने के लिए ठोस रणनीति बनानी होगी । आसूचना इकाइयों के मध्य बेहतर समन्वय , रीयल टाइम बेसिस पर आतंकी गतिविधियों , योजनाओं , षड्यंत्रों की पहचान करना , आतंकी अभियानों के लिए नई भर्ती प्रक्रिया के नेटवर्क को तोड़कर स्थानीय युवाओं को आजीविका के बेहतर विकल्प देना , आतंकी गतिविधियों को संचालित होने देने में सहायक कारकों जैसे फ्रंट संगठनों , ओवर ग्राउंड वर्कर्स , डू इट योरसेल्फ टेररिस्ट ( डीआईवाई आतंकी ) के नेटवर्क पर मारक कार्यवाही करना और सुरक्षा बलों को अत्याधुनिक तकनीक , हथियार , सुरक्षा उपकरणों से लैस करना आदि कई अन्य प्रभावी कदम उठाए जा सकते हैं। हाल के वर्षों में भारत में साम्प्रदायिक सौहार्द को भी भंग करने और विभिन्न धार्मिक समुदायों के मध्य मनोवैज्ञानिक दूरी पैदा करने की कोशिशें भी की जा रही है, जिससे आंतकी समूहों को भारत में ही वैचारिक समर्थन मिल सके। इसलिए आतंकी समूहों के सम्बन्ध में कोई भी रणनीति तभी सफल हो पाएगी जब हम घरेलू स्तर पर विभिन्न समुदायों के मध्य आपसी सौहार्द और भारत सरकार के प्रति विश्वास को बनाये रखें।

विवेक ओझा (ध्येय IAS)


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