ब्लॉग : बलोचिस्तान में आत्म निर्धारण बनाम प्रभुत्व की जंग by विवेक ओझा

हाल ही में पाकिस्तान की सेना ने बलोचियों पर आरोप लगाया है कि उन पर हुए बलोच हमले में सात पाकिस्तानी सैनिक मारे गए हैं। इससे पूर्व बलोचिस्तान के आवारन क्षेत्र में पाकिस्तानी सेना ने बलोचिस्तान में 10 संदिग्ध आतंकियों जिन्हें वह बलोच आतंकी कहता है , को मुठभेड़ में मौत के घाट उतार दिया था । इसी घटना के कुछ ही दिन बाद बलोच उग्रवादियों ने पाक सैनिकों पर प्रतिशोध की भावना के साथ हमला किया है। अक्टूबर माह में भी बलोचों ने ग्वादर शहर में फ्रंटियर कॉर्प्स के 7 सुरक्षा कर्मियों सहित कुल 14 लोगों की हत्या को अंजाम दिया था और इस तरह बलोच राष्ट्रवादियों और पाकिस्तानी सैनिकों के बीच इस तरह की जंग लगातार जारी है । इसी प्रकार हाल के समय में जिस तरह से बलोच सक्रिय कार्यकर्ताओं की रहस्यमय परिस्थितियों में मौतें हुईं है उसने भी पाकिस्तान के ऊपर मानवाधिकार उल्लंघन समेत बलोच स्वायत्तता के लिए उठने वाली प्रभावी आवाजों को दबाने में पाकिस्तान की सक्रियता को जाहिर किया है। करीमा बलोच दूसरी बलोच नागरिक हैं जिनकी विदेश में रहते हुए संदिग्ध परिस्थितियों में मृत्यु हुई है। इससे पहले स्वीडन में रहने वाले बलोच पत्रकार साजिद हुसैन रहस्यमय परिस्थितियों में गायब हो गए थे और फिर उनकी लाश मिली थी। भारत और बलोच लोगों के बेहतर संबंधों की हिमायती करीमा बलोच को पाकिस्तान द्वारा एक खतरे के रूप में देखा गया था और अब भारत की अपेक्षा है कि करीमा बलोच की हत्या की निष्पक्ष जांच होनी जरूरी है।

इस तरह वर्तमान में बलोचिस्तान में आत्म निर्धारण बनाम प्रभुत्व की जंग जारी है और बलोचिस्तान के भू आर्थिक और भू सामरिक महत्व को देखते हुए पाकिस्तान वहां अपनी हार्ड पॉलिटिक्स और मिलिट्री क्रैकडाउन की पॉलिसी से कोई समझौता नहीं करना चाहता बल्कि बलोच लिबरेशन मूवमेंट से सख़्ती से निपटना उसकी पहली प्राथमिकता है । चूंकि आतंकवाद से निपटने के नाम पर पाकिस्तान के साथ सहयोग करना , उसे समर्थन देना कुछ बड़ी शक्तियों की कूटनीति और विवशता दोनों रही है , इसलिए बलोचिस्तान में भी आत्म निर्धारण के जायज अधिकारों का बड़ी शक्तियों द्वारा लंबे समय तक समर्थन देने में आना कानी की गई।

पिछले वर्ष संयुक्त राज्य अमेरिका के डिपार्टमेंट ऑफ स्टेट ने बलोच लिबरेशन आर्मी को आतंकी संगठन घोषित किया था और साथ ही हिजबुल्ला के कार्यकारी हुसैन अली हज्जीमा को एक्जीक्यूटिव ऑर्डर 13224 के तहत स्पेशियली डेजिगनेटेड ग्लोबल टेररिस्ट्स भी घोषित किया था । यूएस का कहना था कि बलोच लिबरेशन आर्मी वर्ष 2004 से ही बलोच लोगों के लिए आत्म निर्धारण की मांग के साथ पाकिस्तान के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष में लगी हुई है । वर्ष 2018 में इसने कई आतंकी हमलों को अंजाम दिया जिसमें आत्मघाती हमले भी शामिल हैं । बीएलए पर बलूचिस्तान के ग्वादर क्षेत्र में चीन की परिसंपत्तियों पर हमले करने का भी आरोप लगाया गया है और इसके साथ ही बलूचिस्तान में सिविल युद्ध जैसी परिस्थिति निर्मित हो चुकी है । पाकिस्तान के नृजातीय बलूच क्षेत्र में बीएलए सुरक्षा बलों और आम नागरिकों को भी निशाना बनाती है। इसने चीन के इंजीनियरों पर आत्मघाती हमले किए हैं। नवम्बर , 2018 में कराची में स्थित चीनी कांस्युलेट पर हमला और मई 2019 में ग्वादर के एक लक्जरी होटल में किया गया हमला बीएलए की सक्रियता को प्रदर्शित करता है । यह सब उदाहरण अमेरिका की तरफ से दिए गए थे ।

वहीं भारत का मत है कि 8 से 9 जुलाई के मध्य तालिबान शांति वार्ता के मद्देनजर बीएलए को एक आतंकी संगठन घोषित करना अमेरिका का पाकिस्तान के प्रति तुष्टिकरण की नीति को दर्शाता है क्यूंकि ट्रंप प्रशासन अफगानिस्तान में शांति , सुरक्षा के लिए पाकिस्तान की अहम भूमिका मानता है । कुछ समय पहले ही अफगानिस्तान और पाकिस्तान के संदर्भ में गुड तालिबान और बैड तालिबान की बातें चर्चा में थी । भारत ने इसे अमेरिका में आगामी राष्ट्रपति चुनाव के मद्देनजर अफगानिस्तान से अमेरिकी फौजों की वापसी और अफगानिस्तान में शांति प्रक्रिया में पाकिस्तान की भूमिका को सुनिश्चित करने के लिए क्विड प्रो क्यो के रूप में देखा है । पाकिस्तान कई वर्षों से अमेरिका से आग्रह कर रहा था कि बीएलए को प्रतिबंधित किया जाए । हाल के समय में अमेरिका से पाकिस्तान से ऐसी मांग इस आधार पर की कि बीएलए चीनी परिसंपत्तियों को नष्ट कर रहा है जो पहले से ही पाकिस्तान की जर्जर अर्थव्यवस्था को एक और झटका देकर उसकी औद्योगिक विकास की गति को प्रभावित कर देगा । पाकिस्तान का यह भी कहना है कि लोग उसे वैश्विक आतंकवाद का एपिसेंटर कहते हैं जबकि बलूचिस्तान क्षेत्र में वह स्वयं आतंकवाद का भुक्तभोगी है।

बलोच इतिहास: प्रभुत्व बनाम आत्म निर्धारण

बलूचिस्तान के आज के ज्वलंत मुद्दे को समझने के लिए संक्षेप में इसके इतिहास के बारे में जानना जरूरी है । 1947 से पहले बलूचिस्तान ब्रिटेन का एक प्रोटेक्टरेट यानि संरक्षित राज्य था। बलूचिस्तान पर कलात के खान का शासन था । गौरतलब है कि बलूचिस्तान (कलात, खारान, लॉस बुला, मकरान) ऐसी रियासत थी जिस पर ब्रिटिश साम्राज्य का सीधा तौर पर शासन नहीं था । इन रियासतों को ये अधिकार दिया गया कि ये भारत और पाकिस्तान दोनों में से किसी भी देश के साथ विलय कर सकती हैं या फिर स्वयं को स्वतंत्र राष्ट्र घोषित कर सकते है। यहीं से समस्या की शुरूआत होती है ।

मकरान, लास बेला और ख़रान का जिन्ना के दबाव में पाकिस्तान में विलय कर लिया गया था लेकिन कलात के खान मीर अहमद ख़ान ने ख़ुद के स्वतंत्र शासन की घोषणा 11 अगस्त 1947 को कर दिया और अपनी आजादी भी घोषित कर दी । इसके तीन दिन बाद ही पाकिस्तान खुद एक स्वतंत्र और संप्रभु देश बन गया लेकिन मार्च 1948 को पाकिस्तानी सेना ने कलात पर आक्रमण कर उसपर अवैध कब्जा कर लिया और खान ऑफ कलात मीर अहमद यार खान को जेल में डाल दिया गया । बलोच लोगों के मूल अधिकारों , मानवाधिकारों का घोर उल्लंघन शुरू हुआ। पिछले सात दशक से बलूचिस्तान पर पाकिस्तान का सैन्य कब्जा बरकरार है । उस पर पाकिस्तान का राजनीतिक और सांस्कृतिक प्रभुत्व है और वह पाकिस्तान के द्वारा आर्थिक शोषण का शिकार रहा है । 1948 के बाद से ही बलोच नेशनल आर्मी ने पाकिस्तान के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष शुरू किया। जेल में बंद कलात के खान के भाई प्रिंस अब्दुल करीम ने बलोच अधिकारों के लिए विद्रोह किया और उन्हें भी कारावास का दंड मिला। पाकिस्तान ने बलोच शियाओं को अपना निशाना बनाया है । पाकिस्तान में प्रतिदिन शिया समुदाय के लोगों की हत्याएं की जा रही हैं । क्वेटा क्षेत्र में रहने वाले हजारा शिया मुस्लिमों का जातीय संहार किया जा रहा है । हज़ारा मध्य अफ़गानिस्तान में बसने वाली और दरी फ़ारसी की हज़ारगी उपभाषा बोलने वाली क़ौम है । दरी फ़ारसी अफगानिस्तान में बोली जाने वाली आधुनिक फ़ारसी का एक रूप है, जो पश्तो के अलावा वहां की संवैधानिक राजभाषा है। हज़ारा बिरादरी के लोग शिया इस्लाम के मानने वाले होते हैं। इसी वजह से पाकिस्तान में शिया और हज़ारा दोनों निशाने पर रहते हैं क्योंकि सुन्नी कट्टरपंथ उनको मुसलमान नहीं मानता । बलूचिस्तान में भी हजारा समुदाय को पाकिस्तानी सुन्नी कट्टरपंथ का सामना करना पड़ रहा है ।

मुहम्मद इकबाल के अखिल इस्लामवाद ( पैन इस्लामिज्म) , चौधरी रहमत अली का पाकिस्तान शब्द गढ़ना, जिन्ना के द्वि राष्ट्रीय सिद्धांत को एक कदम और आगे ले जाते हुए 1955 में पाकिस्तान के तीसरे प्रधानमंत्री मुहम्मद अली बोगरा ने वन यूनिट स्कीम ऑफ पाकिस्तान की आधिकारिक घोषणा 22 नवंबर , 1954 को की । वन यूनिट सिस्टम का विचार पाकिस्तान के तत्कालीन गवर्नर जनरल मलिक ग़ुलाम ने दिया था। इसी के साथ ही पाकिस्तान की नेशनल असेंबली ने 1955 में एक विधेयक पारित कर समूचे पश्चिमी पाकिस्तान के एक एकल प्रांत में विलय की मंजूरी दी और इसे 14 अक्टूबर , 1955 को क्रियान्वित भी कर दिया गया । 1954 में बोगरा ने 1954 में वन यूनिट सिस्टम की तारीफ़ करते हुए कहा था " अब कोई बंगाली , पंजाबी, सिंधी, पठान , बलोच , बहवालपुरी और खैरपुरी नहीं होंगे , होगा तो केवल अखंड पाकिस्तान । उसके इस विचार को अयूब खान ने भी समर्थन प्रदान किया । अक्टूबर 1957 में बलूच नेताओं ने पाकिस्तानी राष्ट्रपति इस्कन्दर मिर्ज़ा से मुलाकात कर कलात को वन यूनिट से बाहर रखने की मांग की। लेकिन अयूब खान ने ऐसा करने से मना कर दिया और इसके बाद वहां विद्रोह शुरू हो गया। 6 अक्टूबर 1958 को अयूब खान ने पाकिस्तानी आर्मी को बलूचिस्तान में भेज कलात के खान और उनके सहयोगियों को गिरफ्तार कर लिया। इसके बाद से बलोच लोगों के दमन की दास्तां काफी दुखद रही। पाकिस्तान विरोधी बलोच लोगों को जेलों में भरा गया , उन्हें हेलीकाप्टर से बड़े गहरे खड्डों में गिरा दिया गया , महिलाओं के साथ पाशविक आचरण किए गए , भाषा ,संस्कृति को रौद दिया गया और एक सहिष्णु, पंथनिरपेक्ष, समावेशी मानसिकता वाले बलोच क्षेत्र के सोशल फेब्रिक में सुन्नी कट्टरपंथ को स्थापित करने की पुरजोर कोशिश की गई । वर्ष 2006 में बलोच जनजातीय नेता अकबर खान बुगती की नृशंस हत्या कर दी गई जिसके चलते बलूचिस्तान में भीषण विरोध प्रदर्शन हुए ।

भारत की बलूचिस्तान में रुचि

वर्तमान में चीन पाकिस्तान इकनॉमिक कॉरीडोर स्कीम के तहत ग्वादर बंदरगाह के विकास का काम जारी है । ग्वादर बंदरगाह बलूचिस्तान के तटीय क्षेत्र में स्थित है । पाकिस्तान ने 1958 में इसे ओमान से खरीदा था । और अब चीन पाकिस्तान इस क्षेत्र में डीप सी पोर्ट विकसित करने में लगे हैं । बलूचिस्तान प्राकृतिक गैस, तेल और खनिज संसाधन की दृष्टि से अति समृद्ध प्रदेश है । यहां कोयला , तांबा और स्वर्ण के भी समृद्ध भंडार हैं , इसी को ध्यान में रखकर सीपेक को विकसित किया जा रहा है । सीपेक जम्मू कश्मीर क्षेत्र के गिलगित बाल्टिस्तान अथवा पाक अधिकृत कश्मीर क्षेत्र से गुजरेगा , ऐसे में यह भारत की प्रादेशिक अखंडता और संप्रभुता को प्रभावित करता है । दिल्ली के लाल किले से बलोच लोगों के आत्म निर्धारण के अधिकार , उनकी स्वायत्तता और आजादी का जिक्र कर भारतीय प्रधानमंत्री ने बलूचिस्तान को इसी लिए नैतिक और कूटनीतिक समर्थन दिया । इसका प्रत्यक्ष लाभ भले ही ना हो लेकिन ग्वादर क्षेत्र में बलोच लोगों ने सिपेक के निर्माण में लगे चीनी इंजीनियरों पर हमले किए हैं , झड़प की कई वारदातें सामने आई हैं । बलोच लोगों ने खुले तौर पर आरोप लगाया है कि चीन पाकिस्तान इकनॉमिक कॉरिडोर को अबाधित रूप से जारी रखने के लिए बलोच शियाओं का जातीय संहार किया जा रहा है , ऐसे में वैश्विक स्तर पर यह मानवाधिकार उल्लंघन का मामला बनता है जिसे वैश्विक मंचों पर उठा कर भारत पाकिस्तान की अनैतिकता का पर्दाफाश कर सकता है । चूंकि बलोच लोग पाकिस्तानी सेना और सरकार के सबसे बड़े दुश्मन है । नाभिकीय शक्ति संपन्न पाकिस्तान पर दबाव डालने के लिए भी बलोच फैक्टर कारगर साबित हो सकता है । इसके अलावा ट्रांस्नेशनल इस्लामिक नेटवर्क्स से निपटने के लिए बलूचिस्तान , गिलगित बाल्टिस्तान और सिंध के आत्म निर्धारण के अधिकार के समर्थन की नीति अपनाकर भारत ऐसे देशों को अपने पक्ष में लामबंद कर सकता है । गौरतलब है कि पाकिस्तान सरकार ने गिलगित-बाल्टिस्तान क्षेत्र की कानूनी स्थिति की समीक्षा के लिये 2018 में एक समिति का गठन किया था । भारत इस क्षेत्र को जम्मू-कश्मीर का हिस्सा मानता है। गिलगित-बाल्टिस्तान क्षेत्र को पाकिस्तान अपने पांचवें प्रांत के रूप में घोषित करने की योजना बना रहा है, जिसका भारत जोरदार विरोध कर रहा है। इसे उत्तरी क्षेत्र के रूप में भी जाना जाता है।

बलूचिस्तान समूचे दक्षिण पश्चिम पाकिस्तान को निर्मित करने वाला भू क्षेत्र है जिसकी सीमा पश्चिम में अफगानिस्तान और ईरान से लगती है और इसके दक्षिण में अरब सागर स्थित है । यह पूरे पाकिस्तान का लगभग आधा भू क्षेत्र है । तालिबान नेटवर्क से निपटने के लिए , स्वर्णिम त्रिभुज जैसे नारकोटिक्स बेल्ट से निपटने के लिए बलूचिस्तान , ईरान और अफगानिस्तान की तिकड़ी एक कारगर उपकरण साबित हो सकती है । चूंकि ईरान में शियाओं की बड़ी आबादी निवास करती है , और बलोच क्षेत्र में भी शियाओं को सुन्नी कट्टरता से बचाने के लिए भारत ईरान और अफगानिस्तान गठजोड़ जरूरी है। इस गठजोड़ से चाहबहार और तापी गैस पाइपलाइन जैसे प्रोजेक्ट्स को मजबूती मिलने में मदद मिलेगी ।

विवेक ओझा (ध्येय IAS)


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