ब्लॉग : क्वॉड के जरिए दो महासागरों के चार शक्तियों का संगम by विवेक ओझा

12 मार्च को क्वाड यानी क्वाडिलेटरल ग्रुपिंग के चार सदस्य देशों के नेताओं की पहली वर्चुअल मीटिंग हुई । भारत , अमेरिका , जापान और ऑस्ट्रेलिया के शासनाध्यक्षों के बीच जिस मुद्दे पर सबसे प्रमुख रूप में बात हुई वो था इंडो पैसिफिक क्षेत्र की सुरक्षा और भारत का सागर विजन। कोविड 19 वैक्सीन को लेकर भारत और अन्य सदस्यों ने जिस तरह से सकारात्मक सोच को जाहिर किया उसने क्वाड को एक सकारात्मक और समावेशी सोच वाले फोरम के रूप में बनाए रखा , सदस्य देशों ने इसमें जलवायु परिवर्तन , सागरीय सुरक्षा, महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकी सहयोग , आपूर्ति प्रणालियों पर चर्चा कर इसे चीन के प्रतिसंतुलन करने वाले ब्लॉक से ऊपर एक बहुआयामी महत्व वाले समूह के रूप में प्रस्तुत किया। बैठक में ऑस्ट्रेलिया का कहना था कि 21वीं सदी हिंद-प्रशांत क्षेत्र की ही है जो दुनिया की तकदीर तय करेगी।

क्वाड की परिकल्पना 2004 में सुनामी के बाद सामने आई थी। भारत ने 2004 में अपना नौसैनिक दम खम दिखाते हुए सिद्ध किया कि वह ऐसी प्राकृतिक आपदाओं के दौरान न केवल तमिलनाडु और अंडमान निकोबार द्वीपसमूह को सुरक्षा दे सकता है बल्कि अपने पड़ोसियों मालदीव , श्रीलंका और इंडोनेशिया को भी सहायता दे सकता है। 32 भारतीय जहाजों और 5500 कार्मिकों ने भारत की तरफ से हिंद महासागर की सुनामी के समय अपनी मानवतावादी सहायता पड़ोसी देशों को उपलब्ध कराई थी। इसके बाद जापान के प्रधानमन्त्री ने आर्क ऑफ प्रोस्पेरिटी एंड फ्रीडम की धारणा और दो महासागरों के संगम ( कांफ्लूएंस ऑफ़ टू सीज ) की धारणा के जरिए हिंद महासागर और प्रशांत महासागर के संगम को क्षेत्र के राष्ट्रों के लिए साझे हित के रूप में प्रस्तुत किया था जिसने क्वाड को एक नया आकार देने की कोशिश की थी । दिसंबर 2006 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी जापान के आर्क ऑफ प्रोस्पेरिटी एंड फ्रीडम की धारणा का समर्थन और स्वागत किया था। 2007 में मालाबार संयुक्त सैन्यभ्यास के आयोजन के साथ क्वॉड की धारणा को एक नया आधार मिला। जब ये विशाखापट्टनम में आयोजित हुआ तो जापान , ऑस्ट्रेलिया और सिंगापुर को भी इससे जोड़ा गया। जब ये सब हो रहा था और दो महासागरों के संगम की धारणा को जापान मजबूती देने में लगा था तब चीन और रूस ने क्वॉड को एशियाई नाटो के रूप में प्रस्तुत कर इसके प्रति अपनी आशंकाएं प्रकट की थीं।

अमेरिका जिसे उत्तर कोरिया के साथ सिक्स पार्टी वार्ता में चीन का सहयोग चाहिए था ,ने क्वॉड के प्रति अपना रुझान एक समय में हल्का कर दिया था और ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री ने भी अपने को संयुक्त अभ्यासों से बाहर रखा था । इसके बाद क्वॉड एक दशक के लिए प्रभावहीन सा हो गया लेकिन एक बार फिर से क्वाड को नई ऊर्जा 2017 में तब मिली जब डोकलाम विवाद और चीन की एशिया खासकर दक्षिण एशिया में बढ़ती विस्तारवादी नीति और डोकलाम मुद्दे पर भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच तनातनी को देखते हुए इस विवाद के एक महीने बाद ही क्वाड के चारों देशों के नेता मनीला में इंडिया ऑस्ट्रेलिया जापान यूएस वार्ता के लिए मिले और यहां से क्वॉड की धारणा को अधिक मजबूती मिली ।

क्वॉड के मूल में है इंडो पैसिफिक का संरक्षण :

2018 में सिंगापुर में शांगरी-ला संवाद में भारतीय प्रधानमंत्री ने इंडो पैसिफिक की धारणा को स्पष्ट करते हुए बताया था कि इसमें समूचे हिंद महासागर से लेकर पश्चिमी प्रशांत महासागर तक का क्षेत्र शामिल है। इसमें भारतीय दृष्टिकोण से अफ्रीका , अमेरिका और जापान के क्षेत्र शामिल हैं। भारत का इंडो पैसिफिक रणनीति इन सब भौगोलिक आयामों को शामिल करते हुए आसियान केंद्रीयता को भारतीय इंडो पैसिफिक रणनीति का आधार स्तंभ मानती है। समावेशिता और खुलापन भारत की इस नीति के अनिवार्य अंग हैं। हिंद प्रशांत क्षेत्र में भारतीय हितों की रक्षा के लिए अब एक्ट ईस्ट पॉलिसी एक्ट इंडो पैसिफिक पॉलिसी में बदलती नज़र आ रही है। दक्षिण एशिया , दक्षिण पूर्वी एशिया , पूर्वी एशिया के देशों के साथ चलते हुए इंडो पैसिफिक क्षेत्र में भारत अपने हितों के क्रम में चीन को प्रतिसंतुलित करने का प्रयास करता रहा है और इसके साथ ही अमेरिका , जापान , ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों को इंडो पैसिफिक की सुरक्षा रणनीति का भाग बनाने में भारत काफी हद तक सफल भी रहा है । लेकिन इससे भी अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि फ्री एंड ओपेन इंडो पैसिफिक रणनीति को आज यूरोपीय देशों द्वारा मान्यता मिलने लगी है ।

ब्लॉग : इंडो-पैसिफिक को नकारने का ...

वर्ष 2018 में फ़्रांस ने अपनी इंडो पैसिफिक रणनीति की रूपरेखा प्रस्तुत की थी जबकि अमेरिका की इंडो पैसिफिक स्ट्रेटजी और क्वाड सुरक्षा समूह से अपने गठजोड़ के चलते भारत आज भारतीय प्रधानमंत्री के नेतृत्व में महासागरीय संप्रभुता की सुरक्षा को एक वैश्विक महत्व का मुद्दा बनाने में लगा है और इसका परिणाम यह मिला है कि जर्मनी ने हिंद प्रशांत क्षेत्र के लोकतांत्रिक देशों के साथ भागीदारी मजबूत करने के लिए नई इंडो पैसिफिक पॉलिसी बनाई है जिसका समर्थन भारत, जापान और आसियान देशों ने कर दिया है। भारत ने सागरों और महासागरों की सुरक्षा को विश्व और क्षेत्रीय राजनीति में एक नया आयाम दिया है ।

भारत ने हिन्द महासागर और प्रशांत महासागर में नौ गमन की स्वतंत्रता , महत्वपूर्ण वाणिज्यिक समुद्री मार्गों से अबाधित आवाजाही को एक नया वैश्विक आंदोलन बना दिया है जिसमें उसे अमेरिका , जापान , ऑस्ट्रेलिया समेत आसियान , पूर्वी एशियाई और अफ्रीकी देशों का सहयोग मिला है । यही कारण है कि भारत ने 2015 में भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा एक्ट ईस्ट पॉलिसी की शुरुआत की गई जिसका उद्देश्य एशिया प्रशांत क्षेत्र में शांति , स्थिरता और समृद्धि को बढ़ावा देना था । इस पॉलिसी में दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों के साथ सहयोग के अलावा एशिया पैसिफिक के अन्य देशों के साथ सहयोग , समन्वय पर बल दिया गया । इस पॉलिसी के एक अपरिहार्य हिस्से के रूप में भारत ने जापान की पहचान की और यही कारण है कि वर्ष 2015 में दोनों देशों ने "जापान भारत विजन 2025 विशेष सामरिक और वैश्विक साझेदारी " की घोषणा की जिसका मुख्य उद्देश्य हिन्द प्रशांत क्षेत्र और विश्व में शांति और समृद्धि के लिए काम करना है । हाल ही में कनाडा ने भी जापान के साथ मिलकर मुक्त और स्वतंत्र इंडो पैसिफिक क्षेत्र की आवश्यकता पर बल देते हुए अपनी इंडो पेसिफिक पॉलिसी बनाने का संकेत दिया है। ब्रिटेन ने भी इंडो पैसिफिक रणनीति में रुचि लेनी शुरू कर दी है। इस प्रकार चीन द्वारा वैश्विक विधियों के अतिक्रमण को रोकने के लिए यूरोप के कई देश लगातार इंडो पैसिफिक के मुद्दे पर लामबंद हो रहे हैं।

हिंद महासागर में सागर विजन और सागर मिशन :

मई , 2020 में भारत ने मिशन सागर लॉन्च किया था जिसका उद्देश्य हिंद महासागर के क्षेत्रों में अपनी मेडिकल डिप्लोमैसी की धार तेज करते हुए क्षेत्र के देशों को कोविड 19 से जुड़ी सहायता प्रदान करना था । इस मिशन के भाग के रूप में आईएनएस केशरी ने मालदीव, मॉरीशस , मेडागास्कर , कोमोरॉस और सेशल्स की यात्रा की थी और अपने एक्सटेंडेड नेबरहुड की धारणा के तहत इन समुद्री पड़ोसियों कोविड महामारी से बचाने के लिए मदद दी गई। 55 दिनों तक 7,500 नॉटिकल मील की यात्रा करते हुए आईएनएस केशरी ने भारत के सागर विजन को साकार करने के लिए मिशन सागर को आकार दिया ।

मॉरीशस और कोमोरोस द्वीप को तो भारत ने मानवतावादी सहायता के नाम पर आवश्यक खाद्य वस्तुओं , दवाइयों , आयुर्वेदिक औषधियों की आपूर्ति की थी और इन दोनों देशों में मेडिकल एसिस्टेंस टीम भी भेजी थी। मिशन सागर भारत के प्रधानमंत्री मोदी द्वारा 2014 में अपनाए गए सागर विजन का ही मूर्तमान स्वरूप है । सागर विजन का आशय है , हिंद महासागर क्षेत्र में सभी की सुरक्षा और संवृद्धि।

विवेक ओझा (ध्येय IAS)


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