ब्लॉग : म्यांमार में सैन्य शासन का एक विरोध ऐसा भी by विवेक ओझा

न्यूजीलैंड की प्रधानमन्त्री ने एक साहसिक कदम उठाते हुए म्यांमार की सैन्य सरकार के साथ अपने सभी उच्च स्तरीय राजनीतिक और सैन्य संपर्क और संबंध को तोड़ लिया है। म्यांमार के सैन्य अधिकारियों और नेताओं पर न्यूजीलैंड की यात्रा करने पर पूर्ण रोक लगा दी गई है। न्यूजीलैंड का कहना है कि वह सुनिश्चित करेगा कि उसके द्वारा म्यांमार की सेना को किसी भी सहयोग कार्यक्रम का लाभ ना मिले । न्यूजीलैंड की सरकार म्यांमार की नई सैन्य सरकार की वैधता को मान्यता नहीं देती । न्यूजीलैंड ने म्यांमार की सैन्य सरकार से आवाहन किया है कि वह लोकतांत्रिक रूप से चुने गए से सभी नज़रबंद नेताओं को तत्काल रिहा करे। ग़ौरतलब है कि म्यांमार की सेना ने वहां के सत्ताधारी दल की नेता आंग सान सूची समेत कुछ बड़े नेताओं को हिरासत में लेते हुए कुछ समय पूर्व सत्ता परिवर्तन कर दिया था। अमरीका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडन ने भी म्यांमार में सैन्य तख्ता पलट की घटना के बाद म्यांमार की सेना और उसके अधिकारियों के खिलाफ प्रतिबंध लगाने की चेतावनी दी थी और वहां लोकतांत्रिक मूल्यों की तत्काल पुनर्बहाली पर जोर दिया था।

लेकिन यहां इस बात का ध्यान रखना जरूरी है कि अमेरिका द्वारा म्यांमार पर आर्थिक राजनीतिक प्रतिबंध लगाने पर चीन और म्यांमार की नजदीकी बढ़ सकती है । म्यांमार और चीन में पहले से ही मुक्त व्यापार समझौता हो चुका है और चीन पाकिस्तान इकोनोमिक कॉरिडोर की तर्ज पर चीन म्यांमार इकोनोमिक कॉरिडोर को भी मूर्त रूप देने पर चीन और म्यांमार के मध्य सहमति बन चुकी है। चीन के दक्षिणी प्रांत युन्नान को म्यांमार के दूसरे सबसे बड़े शहर मांडले से जोड़ने की योजना इसके तहत शामिल है। म्यांमार चीन के बेल्ट रोड पहल , समुद्री रेशम मार्ग परियोजना का समर्थन करता है और उसे चीन के मोतियों की लड़ी की नीति का हिस्सा भी माना जाता है। चीन म्यांमार में सबसे बड़ा निवेशक राष्ट्र है। यह म्यांमार के लिए सबसे बड़ा ऋणदाता देश है। चीन म्यांमार इकोनोमिक कॉरिडोर के तहत कुल 38 परियोजनाओं को चलाने का प्रस्ताव किया गया है। जनवरी , 2020 में चीनी राष्ट्रपति की म्यांमार यात्रा के दौरान कुल 33 समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए थे । क्यौकप्यू स्पेशल इकोनोमिक ज़ोन , म्यांमार के क्यौकप्यू शहर में एक अरब डॉलर की लागत से समुद्री बंदरगाह विकसित करने , रखाइन प्रांत में एक डीप सी पोर्ट प्रोजेक्ट चलाने और यांगून में एक सिटी प्रोजेक्ट चलाने का समझौता शामिल है। उल्लेखनीय है कि म्यांमार में पहले से ही दो चीनी निर्मित बंदरगाह मौजूद हैं।

जिनपिंग दोनों देशों के राजनयिक रिश्तों की 70वीं वर्षगांठ पर म्यांमार आए हैं मगर इस यात्रा के दौरान वह म्यांमार की शीर्ष नेता आंग सान सू ची के साथ मिलकर चीन-म्यांमार आर्थिक गलियारे के तहत कई परियोजनाओं को शुरू करेंगे। चीन के इस बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव में भौगोलिक रूप से म्यांमार काफ़ी अहम है। म्यांमार ऐसी जगह पर स्थित है जो दक्षिण एशिया और दक्षिण पूर्व एशिया के बीच है। यह चारों ओर से ज़मीन से घिरे चीन के युन्नान प्रांत और हिंद महासागर के बीच पड़ता है इसलिए चीन-म्यांमार इकनॉमिक कॉरिडोर की चीन के लिए बहुत अहमियत है।

म्यांमार में सैन्य तख्ता पलट की पृष्टभूमि और मायने :

म्यांमार में लोकतान्त्रिक रूप से निर्वाचित आन सान सूची की सरकार ने सैन्य तख्ता पलट का सामना किया है । यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है कि म्यांमार की सेना ने देश में एक साल का आपातकाल लगाते हुए वहां की सत्ताधारी दल की नेता और देश की वास्तविक प्रमुख आन सान सूची और वहां के राष्ट्रपति को नज़रबंद कर हिरासत में ले लिया है। सभी एयरपोर्ट्स बंद कर दिए गए हैं और हवाई उड़ानों पर रोक लगा दी गई है। लोकतंत्रिक रूप से निर्वाचित सरकारें कितनी मुश्किल से बनती हैं , इस बात से म्यांमार की सेना का कोई मतलब नहीं है। अब फिर से म्यांमार में सेना ने सत्ता पर कब्जा कर लिया है। म्यांमार के सत्ताधारी दल नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी ने कुछ समय पूर्व ही संसदीय चुनावों में जीत दर्ज की थी लेकिन कई अन्य देशों के चुनावों की तरह म्यांमार का चुनाव भी विवादों से मुक्त नहीं रह पाया और सेना समर्थित विरोधी दल यूनियन सॉलीडैरिटी एंड डेवलपमेंट पार्टी ने सत्ताधारी दल पर सत्ता के दुरूपयोग के साथ चुनाव जीतने का आरोप लगाया था।

म्यांमार में आम जनता द्वारा निर्वाचित सरकार और सेना के बीच टकराव कोई नया नहीं है। म्यांमार की सेना का आन सान सूची के प्रति दृष्टिकोण अभी हाल ही में तब पता चला था जब देश के सेना प्रमुख मिन आंग हलैंग ने एक रूसी पत्रिका को दिए साक्षात्कार में कहा था कि देश के लिए केवल एक व्यक्ति द्वारा निर्णय लेना और उससे पहले किसी भी जरूरी संगठन या व्यक्ति से सलाह मशविरा ना करना बहुत खतरनाक है । म्यांमार के सेना प्रमुख का यह वक्तव्य स्टेट काउंसलर आन सान सूची के लिए दिया गया माना जाता है जो सत्ताधारी दल नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी की भी प्रमुख नेता हैं। यहां यह जानना जरूरी है कि नागरिक सत्ता और सैन्य सत्ता के बीच यह तनाव और बढ़ा जब पहली बार 2008 में म्यांमार में पहली बार संसदीय चुनाव हुए और नागरिक सत्ता चुने हुए रूप में म्यांमार के लोकतान्त्रिक भविष्य का गवाह बनी थी लेकिन इससे टटमाडॉ यानी म्यांमार की सेना द्वारा ड्राफ्ट किए गए 2008 के देश के संविधान में विशेष शक्तियों के साथ देश की राजनीति में म्यांमार की सशस्त्र सेना की भूमिका की गारंटी दी गई थी । वहीं नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी और आंग सान सूची ने लंबे समय से देश के संविधान के अलोकतांत्रिक प्रकृति का विरोध किया था।

चूंकि म्यांमार में लंबे समय से मिलिट्री जुंटा ( सैन्य शासन ) रहा है जिसके चलते वहां सरकार ने लोकतांत्रिक मूल्यों की बजाय सर्वाधिकारवादी और अधिनायवादी मूल्यों को अधिक तरजीह दी है , इसलिए अब म्यांमार में भी माना जाने लगा है कि जब तक नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी को पूर्ण बहुमत देकर आन सान की सरकार की मिलिट्री पर निर्भरता और उसके दबाव से मुक्त नहीं किया जाता तब तक एक बेहतर शासन प्रणाली के समक्ष अड़चनें बनी रहेंगी । यही कारण है कि पिछले वर्ष संसदीय चुनावों में आन सान की पार्टी को बड़े पैमाने पर पूर्ण बहुमत के साथ समर्थन मिला । यूएसडीपी के कई नेता जो म्यांमार की सेना में अपनी सेवाएं दे चुके हैं , उनके चीन के साथ घनिष्ठ संबंध रहे हैं और यूएसडीपी के सत्ता में आने पर वे चीनी हितों के प्रति अधिक निष्ठावान होकर कार्य करते जिसका नुकसान भारत को होता और अराकान आर्मी को भी बीजिंग का समर्थन प्राप्त है । एनएलडी का जीतना सेना और विपक्षी दलों को रास नहीं आया।

सेना , धर्म और नागरिक सत्ता में टकराव है तख्ता पलट की वजह :

9 फरवरी , 2020 को लगभग 1000 बौद्ध भिक्षुओं ने म्यांमार नेशनल ऑर्गनाइजेशन के बैनर तले म्यांमार के वाणिज्यिक राजधानी यांगून में देश की सेना के पक्ष में और आन सान सूची के विरुद्ध सड़कों पर विरोध प्रदर्शन किया था । इन बौद्ध भिक्षुओं का मानना था कि नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी बौद्ध धर्म को उपेक्षित करने वाले कदम उठा रही है और इसके साथ ही आन सान सूची और देश के धार्मिक मामलों के मंत्री थुरा आंग के ख़िलाफ़ कई हेट स्पीच दिए गए। दोनों के खिलाफ आरोप लगाए गए कि वे म्यांमार के बहुसंख्यक वर्ग के धर्म यानी बौद्ध धर्म को दबा कर गैर बौद्ध लोगों का पक्ष ले रहे हैं और म्यांमार की सेना की राजनीतिक शक्ति में कमी लाने के लिए संवैधानिक संशोधन का प्रस्ताव कर रहे हैं। इन बौद्ध लोगों ने नो रोहिंग्या वाले बैनरों के साथ विरोध प्रदर्शन किया था । म्यांमार सेना बौद्ध भिक्षुओं को म्यांमार की राजनीति में प्रभाव को बनाए रखने के लिए यूज करती है वहीं नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी ने राजनीति की धर्म से दूरी के लिए भी कुछ कदम उठाए हैं जो सेना और बौद्ध लोगों को रास नहीं आए।

जून , 2019 में देश के धार्मिक मामलों और संस्कृति मंत्रालय ने एक सार्वजनिक वक्तव्य जारी कर कहा था कि यदि कोई भी बौद्ध भिक्षु किसी सामाजिक और राजनीतिक गतिविधि में संलग्न होता है और उसके जरिए समुदाय को अस्थिर करने में भड़काऊ कार्य करता है तो उसे क्लेरिक की पदवी से हटा दिया जाएगा या वह क्लेरिक की पदवी का हकदार नहीं होगा। इसमें कहा गया था कि ऐसे बौद्ध भिक्षु बुद्धिज्म की गरिमा को खराब करने वाले होंगे । बहुत से लोग म्यांमार में यह आरोप लगाते हैं कि सेना ने बौद्ध समूहों से अपने समर्थकों के एक ग्रुप को निकाल कर अपनी स्थिति मजबूत की है । वर्ष 2011 में जब म्यांमार में सत्ता संक्रमण से गुजरी और वहां सैन्य शासन की जगह नागरिक सरकार सत्ता में आई तो सेना ने अपने को अल्ट्रा नेशनलिस्ट बौद्ध नेताओं से मजबूती से जोड़ लिया और ऐसे बौद्ध नेताओं ने सेना से वित्तीय सहायता और उपहार के बदले म्यांमार की सेना की लोकप्रियता और उसके प्रभाव को बढ़ाने की दिशा में कार्य करने लगे कुछ बौद्ध भिक्षु के समूहों ने तो प्रो मिलिट्री प्रोपेगेंडा भी चलाना शुरु कर दिया और मुस्लिमों के खिलाफ ईर्ष्या द्वेष भी भड़काना शुरू किया। मई 2019 में नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी की सरकार ने यह निर्णय लिया की अल्ट्रा नेशनललिस्ट बौद्ध भिक्षु यू विराथु के खिलाफ म्यांमार के दंड संहिता के धारा 124 ए के तहत देशद्रोह का मुकदमा चलाया जाएगा। यह धारा सरकार के खिलाफ द्वेष फैलाने और सरकार की अवमानना के लिए अधिकतम 20 वर्ष के कारावास की सजा और जुर्माना तय करती है। यू विराथु ने आंग सान सूकी का मजाक बनाया था और नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी सरकार के द्वारा 2008 के संविधान में संशोधन करने के प्रयास को अत्यधिक उपहास के साथ व्यक्त किया था। उसने अप्रत्यक्ष रूप से कह दिया था कि कोई है जो एक विदेशी के साथ सो रहा है अथवा रात बिता रहा है। इस स्टेटमेंट का आशय आन सान सूकी के मृत ब्रिटिश पति से था। विराथु को एमएचएन द्वारा मार्च 2017 में भी प्रतिबंधित किया गया था क्योंकि वह पब्लिक प्रीचिंग के जरिए लोगों को भड़का रहा था सरकार के इस कदम की घोर भर्त्सना बीडीपीएफ द्वारा की गई थी। बीडीपीएस ने यंगून की सड़कों पर रैलियां की थी और विराथु के पक्ष में समर्थन प्रदर्शित किया था।

16 और 17 जून , 2020 को भी बीएसपीएस ने अपनी वार्षिक बैठक की थी जिसमें 1000 से अधिक बौद्ध भिक्षु शामिल हुए थे। इस बैठक में बौद्ध भिक्षुओं द्वारा नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी की सरकार की घोर भर्त्सना की गई जिसमें कहा गया कि आन सान सूकी की सरकार रोहिंग्या मुसलमानों के साथ संघर्ष से निपटने में प्रभावी काम नहीं कर रही है और म्यांमार और बौद्ध धर्म के गरिमा के साथ खिलवाड़ किया गया है। वर्ष 2014 में विराथु जेल से छूटकर बाहर आया और उसके आते ही म्यांमार की सेना के समर्थन वाली एमबीटी एक शक्तिशाली संगठन के रूप में उभरी । उल्लेखनीय है कि नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी एमबीटी जैसे समूहों के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण नहीं रखती और इसलिए एमबीटी एनएलडी और आन सान सूची के विरोध को अपने एजेंडे में सबसे ऊपर रखती है और म्यांमार की सेना का उसे खुला समर्थन भी प्राप्त है। म्यांमार की सेना का कहना है कि एमबीटी और बीडीपीएफ एक अनिवार्य आवश्यकता हैं और देश में बुद्धिज़्म के नाम पर इनका समर्थन जरूरी है। जून , 2019 में बीडीपीएफ ने यांगून रीजनल मिलिट्री कमांडर से 19, 600 अमेरिकी डॉलर प्राप्त किया और उसी माह बीडीपीएफ़ ने सात सूत्रीय वक्तव्य जारी कर अगले साल यानी 2020 में म्यांमार में होने वाले आम चुनाव में मतदाताओं से नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी को मत ना देने की अपील की थी , इससे म्यांमार की सेना और वहां के अल्ट्रा नेशनलिस्ट बौद्ध समूहों के बीच आन सान सूची के खिलाफ गठजोड़ का पता चलता है। रोहिंग्या के खिलाफ अत्याचार में म्यांमार की सेना की भूमिका किसी से छिपी नहीं है।

जुलाई , 2019 में अमेरिका ने म्यांमार सेना के चार सबसे बड़े मिलिट्री कमांडर पर प्रतिबंध भी इसी लिए लगा दिया था कि वो रोहिंग्या के जातीय संहार को बढ़ावा देने में संलग्न थे। लेकिन अमेरिका का यह कदम भी म्यांमार की सेना को म्यांमार में बौद्ध राष्ट्रवाद और मुस्लिम फोबिया को बढ़ावा देने से नहीं रोक पाया । देश की सेना की राजनीतिक शाखा यूनियन सोलिडैरिटी एंड डेवलपमेंट पार्टी ने बौद्ध लोगों को नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी और मुस्लिमों के खिलाफ भड़काने में कोई कमी नहीं रखी। एनएलडी की सरकार द्वारा 2017 में मा बा था यानी एमबीटी नामक बौद्ध धर्म संगठन को भंग कर दिया गया जो देश में बौद्ध राष्ट्रवाद को बढ़ावा देने में सहायक था। एमबीटी म्यांमार में मुस्लिम विरोधी भावना भड़काने का दोषी रहा है। इन सब बातों से स्पष्ट है कि म्यांमार में सैन्य तख्ता पलट एनएलडी विरोधी बृहद एजेंडे की देन है।

सैन्य तख्ता पलट पर भारत की चिंताएं :

भारत ने म्यांमार में हुए सैन्य तख्ता पलट के प्रति गंभीर चिंता जाहिर की है। भारत का कहना है कि वहां कानून के शासन और लोकतांत्रिक प्रक्रिया का सम्मान होना चाहिए। भारत के म्यांमार में कई अति महत्वपूर्ण सामरिक आर्थिक हित संलग्न हैं जिसके चलते वहां लोकतांत्रिक सरकार का होना जरूरी है। उत्तर पूर्वी भारतीय राज्यों की म्यांमार से होने वाली ड्रग तस्करी , हथियार तस्करी और अन्य संगठित अपराध से निपटने के लिए अच्छे द्विपक्षीय संबंध का होना जरूरी है। भारत से म्यांमार , थाईलैंड , लाओस कंबोडिया और वियतनाम तक बनने वाले राजमार्ग सहित ऐसी कई परियोजनाएं हैं जिनमें म्यांमार सेना द्वारा तब्दीली करने पर भारत को नुकसान हो सकता है , ठीक वैसे ही जैसे अभी हाल ही में श्रीलंका ने ईस्ट कंटेनर टर्मिनल को भारत और जापान के हिस्सेदारी के बगैर बनाने का निर्णय किया है। उत्तर पूर्व भारतीय राज्यों के उग्रवादी संगठन खासकर एनएससीएन ( आईएम ) और एनएससीएन ( के) जो म्यांमार की धरती का इस्तेमाल भारत के विरुद्ध करते हैं , उनसे निपटने के लिए म्यांमार का सहयोग अपेक्षित है लेकिन यहां इस बात का भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि म्यांमार की सेना सब कुछ भारत के खिलाफ और चीन के हित में ही करेगी , ऐसा पूर्वाग्रह रखना ग़लत है। जब तक म्यांमार में शांतिपूर्ण लोकतांत्रिक प्रक्रिया की बहाली नहीं हो जाती तब तक भारतीय हितों के लिए म्यांमार के नेतृत्व से प्रभावी तरीके से निपटना होगा। अभी 22 जनवरी को ही भारत ने म्यांमार को कोविशिल्ड वैक्सीन के 15 लाख डोज दिए हैं और इसके साथ ही म्यांमार की नौसेना को उसकी पहली पनडुब्बी आईएनएस सिंधुवीर भारत द्वारा ही उपहार में दी गई है। म्यांमार अपनी कई आवश्यकताओं के लिए भारत पर निर्भर है , भारत को यह समझ कर कार्य करना चाहिए।

विवेक ओझा (ध्येय IAS)


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