ब्लॉग : कश्मीर में परसेप्शन मैनेजमेंट बनाम हाइब्रिड आतंक by विवेक ओझा

जम्मू कश्मीर को आंतक मुक्त करना , शून्य सीमा पार घुसपैठ को सुनिश्चित करना , कश्मीरी पंडितों में सुरक्षा के भाव को भरना और जम्मू कश्मीर को समावेशी विकास की राह पर ले जाना , ये वो कुछ जरूरतें हैं जिसके लिए जम्मू कश्मीर ने लंबे समय से इंतज़ार किया है। अब जबकि धारा 370 हट चुकी है और जम्मू कश्मीर राष्ट्रीय विकास और राष्ट्रीय सुरक्षा की मुख्य धारा से जुड़ चुका है तो ऐसे में जरूरत है एक ऐसे रणनीति को जो जम्मू कश्मीर पर आँख उठाने वाले किसी भी राष्ट्र विरोधी ताकत की मंशा को ध्वस्त कर सके।

कश्मीर में अभी भी सुरक्षा संबंधी चुनौतियां मौजूद हैं। लश्करे तैयबा और हिजबुल मुजाहिदीन के आतंकी शांति सुरक्षा को चोट पहुचाने की फ़िराक में लगे हुए हैं लेकिन केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की जम्मू कश्मीर में सुरक्षा व्यवस्था की समीक्षा की हालिया बैठक के बाद से ऐसे आतंकी संगठनों को भारतीय सेना ने निशाना बनाया है। जम्मू कश्मीर के कुपवाड़ा में लश्कर के तीन आतंकी मार गिराए गए हैं। शोपिया में भी आतंकियों का यही हाल किया गया है। लेकिन भारतीय सेना की इन सैन्य कार्यवाहियों के बीच कश्मीर घाटी में एक बड़ी चुनौती "हाइब्रिड आतंकवादी" की उभर रही है।

हाइब्रिड आंतकी वे होते हैं जो सुरक्षा एजेंसियों की आंतकवादियों की सूची में शामिल नही होते लेकिन संबंधित आतंकी संगठन के इशारे पर आतंकी हमले कर अपना सामान्य जीवन बिताने लगते हैं। जम्मू कश्मीर के शोपिया में हाइब्रिड आतंकियों की कार्यवाही देखी गई है। शोपिया के सेडाव इलाके के दो स्थानीय लोगों शौकत अहमद शेख़ और परवाज़ अहमद लोन ने लश्कर ए तैयबा के इशारे पर हाइब्रिड आतंकी के रूप में अपनी भूमिका निभाई। इन दोनों ने शोपिया के सेडाव इलाके में किराए के एक निजी वाहन के अंदर विस्फोट कराया जिसमें उत्तराखंड के जवान प्रवीण शहीद हो गए थे। लश्करे तैयबा के मुख्य आंतकवादी आबिद रमजान शेख ने इन दोनों हाइब्रिड आतंकियों को वाहन में विस्फोटक फिट करने की ट्रेनिंग दी थी।

यहां अहम सवाल ये उठता है कि कश्मीर घाटी में आज स्थानीय नागरिकों का इस्तेमाल कर हाइब्रिड आतंकी , ओवरग्राउंड वर्कर , व्हाइट कॉलर्ड टेरोरिस्ट , स्लीपर सेल का नेटवर्क कैसे और क्यूं बढ़ा है। इसका सीधा सा जवाब है कि ये भारत सरकार के कश्मीर घाटी में परसेप्शन मैनेजमेंट स्ट्रेटेजी का काउंटर है जो आतंकी संगठन कर रहे हैं। दरसअल भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गृहमंत्री अमित शाह , राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और देश के आर्मी चीफ़ कि कई बैठकों के बाद केंद्र सरकार इस निष्कर्ष पर पहुंची है कि अगर जम्मू एंड कश्मीर में शांति और सुरक्षा कानून और व्यवस्था को बेहतर बनाना है तो यह केवल सैन्य कार्यवाही के जरिए ही संभव नहीं है बल्कि इसके लिए कश्मीर घाटी के लोगों की मनोवृत्ति में बदलाव लाने के काम करने होंगे जिससे यहां के स्थानीय युवाओं की केंद्र सरकार के नेतृत्व में विश्वास बढ़े , कश्मीर में शासन के अंगों के प्रति लोगों में विश्वसनीयता का भाव बढ़े , इसी को पब्लिक परसेप्शन मैनेजमेंट स्ट्रेटेजी कहते हैं जिसके लिए देश का गृह मंत्रालय इन क्षेत्रों में सिविक एक्शन प्रोग्राम चलाता है जिसे देश के सेंट्रल आर्म्ड पुलिस फोर्स ( जम्मू कश्मीर के मामले में आइटीबीपी और बीएसएफ) अंजाम देते हैं।

दरअसल इस रणनीति पर काम करके जम्मू कश्मीर के स्थानीय लोगों में भारत विरोधी दुष्प्रचार , भ्रामक सूचना तंत्र , पूर्वाग्रह , कट्टरता , अलगाववादी भावना को रोकने में बड़े पैमाने पर मदद मिल सकती है इसलिए केंद्र सरकार ने जम्मू कश्मीर के समावेशी विकास के लिए कई कार्यक्रम और योजनाएं लांच की है और वहां वैज्ञानिक अनुसंधान आधारित शिक्षा को भी बढ़ावा देने का प्रयास किया। चाहे प्रस्तावित अग्निपथ योजना के तहत बिल्कुल युवा ऊर्जावान लोगों को चार साल के लिए सेना में भर्ती करने का विचार हो , कश्मीर घाटी में चलाया गया ऑपेरशन ऑल आउट हो , राइफल वूमेन की तैनाती हो , जम्मू में उत्तर भारत के पहले इंडस्ट्रियल बॉयोटेक पार्क की शुरुआत हो , कश्मीर में देश के पहले लैवेंडर फेस्टिवल के जरिये स्थानीय आजीविका को बैंगनी क्रांति से जोड़ने की बात हो , साम्बा के पल्ली को देश की पहली कार्बन न्यूट्रल पंचायत बनाने की बात हो कश्मीर का मुकद्दर संवारने की पूरी कोशिश चल रही है। इसी कड़ीं में जम्मू कश्मीर में एक नई प्रवृत्ति " इकोनॉमिक पाराडिप्लोमेसी" का उभार देखना भी सुखद है । दरसअल संयुक्त अरब अमीरात से 40 सदस्यों का एक उच्च प्रतिनिधिमंडल जम्मू कश्मीर में निवेश की संभावनाओं की तलाश करने सीधे जम्मू आया है। जम्मू कश्मीर शासन ने इस संबंध में 26 हज़ार करोड़ के निवेश प्रस्तावों को मंजूरी भी दी है और इसे अगले 6 माह में 70 हज़ार करोड़ रुपये करने की योजना है। अब कश्मीर में सुरक्षा और भयमुक्त वातावरण रहेगा तभी तो निवेश आकर्षित होगा।

अब यहां समझने वाली बात ये है कि अगर कश्मीर के स्थानीय युवाओं और अन्य वर्गों में सुशासन , विकास , अधिकार और दायित्व के भाव मजबूती से विकसित हो गए तो पाकिस्तानी आतंकी संगठनों का और लोकल अलगाववादियों का प्रोपोगेंडा नेटवर्क धराशायी हो जाएगा और यही कारण है कि आज आतंकी संगठनों ने आम जनता को अपने मक़सद के लिए यूज न हो पाने की चिंता के चलते हाइब्रिड आतंकी , ओवर ग्राउंड वर्कर्स के नेटवर्क को तेजी से हवा देना शुरू किया है। लेकिन केंद्र सरकार यदि बिना इन बातों से प्रभावित हुए एक तरफ बेस्ट गवर्नेंस सर्विस डिलीवरी के जरिये जन अवबोधन प्रबंधन का काम करते हुए जहां जरूरी हो वहां जीरो टॉलरेंस मिलिट्री एक्शन लेने पर फोकस करती रहे तो आने वाले समय में जम्मू कश्मीर की जनता ख़ुद से ही अपने क्षेत्र को आंतकवाद मुक्त बनाने के अभियान में लग जायेगी , तब यह केवल केंद्र सरकार , राज्य सरकार या सुरक्षा बलों की ही जिम्मेदारी नही रह जायेगी। कुल मिलाकर हम माओत्से तुंग के एक वक्तव्य को कश्मीर में आतंकवाद की धारणीयता के कारणों से जोड़कर देख सकते हैं। माओ का कहना था कि , " गोरिल्ला उग्रवादी मछली के समान होते हैं जो जनता रूपी सागर में कब कैसे तैरना है ,अच्छी तरह जानते हैं "। इस कथन का सीधा सा मतलब है आम जनता का विद्रोही मकसदों के लिए इस्तेमाल। ऐसा इस्तेमाल करके पाकिस्तानी आतंकी संगठनों की "वायलेंस इंडस्ट्री " लंबे समय से बिना किसी बाधा के फल फूल रही थी पर अब धारा 370 जाने के बाद से समय आ गया है कि जनता रूपी सागर हर उपद्रवी को तैरने का मौका न दे बल्कि उनको डुबोने का साजो सामान तैयार कर दे।

विवेक ओझा (ध्येय IAS)


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