ब्लॉग : ओमिक्रान वैरिएंट और अफ्रीका के लिए दुनिया की जिम्मेदारी by विवेक ओझा

आज जिस तरह से कोविड का एक नया वैरिएंट ओमिक्रॉन उभरा है और उसने जिस तरह से अफ्रीकी देशों को अपनी चपेट में लेना शुरू किया है , उसे देखते हुए दुनिया भर के देशों का चिंतित होना स्वाभाविक है लेकिन यह बिल्कुल भी जायज नही होगा कि अफ्रीकी देशों के साथ दुनिया भर के देश अस्पृश्यता का बर्ताव करें । दरअसल अफ्रीकी महाद्वीप को विश्व भर के राष्ट्रों के सहयोग समर्थन की जरूरत लंबे समय से अलग अलग कारणों से रही है लेकिन आज ज़ूनोटिक बीमारियों के दौर में उसे इस सहयोग की कुछ ज्यादा ही जरूरत है। विश्व भर के देशों को इस बात को ध्यान में रखना चाहिए कि अफ्रीकी महाद्वीप पशुजन्य संक्रामक बीमारियों का हॉटस्पॉट्स रहा है । युगांडा हो या कांगो के जायरे नदी का क्षेत्र , इबोला वायरस हो या जीका , अफ्रीकन स्वाइन फीवर हो या , वेस्ट नील फीवर हो या रिफ्ट वैली फीवर अफ्रीका में इन सबकी शुरुआत होना इस बात का सूचक है कि महामारियों के मामले में अफ्रीका की उपेक्षा नही की जा सकती बल्कि दुनिया भर के देशों को अफ्रीका को इससे बाहर निकलने में हर स्तर पर सहयोग देना चाहिए नहीं तो अफ्रीका की ओरिजिन वाले ज़ूनोटिक बीमारियों के आउटब्रेक्स दुनिया को महामारियों की सौगात दे सकते हैं। इसलिए लंबे समय तक व्हाइट मेन्स बर्डन का दंभ भरने वाले देशों को कोविड हैंडलिंग बर्डन में भी अपनी क्षमता दिखानी जरूरी हो गई है।

अकेले वर्ष 2019 में अफ्रीकी महाद्वीप में ज़ूनोटिक बीमारियों के 500 बार घटित होने की बात सामने आई जिसमें अकेले 57 प्रतिशत सेनेगल से थे , एक्वाइन इन्फ्लुएंजा जिसे हॉर्स फ्लू भी कहते हैं की बीमारी अफ्रीका में एक साल में 280 बार सामने आई तो संयुक्त राष्ट्र को अपनी रिपोर्ट में कहना पड़ा कि विश्व ज़ूनोटिक बीमारियों से निपटने में अफ्रीका के अनुभवों का लाभ ले सकता है।

ओमनीक्रान वैरिएंट की गंभीरता को देखते हुए जहां एक तरफ भारत सहित दुनिया भर के देशों से अफ्रीका से होने वाली एयर फ्लाइट्स पर रोक लगाने की बात सोचनी शुरू की है , वहीं भारत सरकार ने मानवतावादी दृष्टिकोण प्रदर्शित करते हुए हाल ही में कहा है कि इस विपरीत परिस्थिति में वह अफ्रीकी देशों के साथ खड़ा है और उन्हें हर संभव मदद देने का इच्छुक है। भारत सरकार ने कहा है कि वह आवश्यक लाइव सेविंग ड्रग्स , टेस्ट किट्स , ग्लव्स , पीपीई किट्स और वेंटिलेटर जैसे मेडिकल उपकरणों को अफ्रीकी देशों को देने के लिए तैयार है। भारत के विदेश मंत्रालय ने 29 नवंबर को कहा है कि ओमनी क्रोन वेरिएंट से प्रभावित अफ्रीकी देशों मलावी इथोपिया जांबिया, लेसोथो , गिनी और मोज़ाम्बिक को कोविशील्ड वैक्सीन की आपूर्ति के लिए केंद्र सरकार ने सभी आदेश जारी कर दिए हैं। भारत वैसे भी अभी तक 41 अफ्रीकी देशों को 25 मिलियन मेड इन इंडिया वैक्सीन डोजेज भेज चुका है जिसमें से 1 मिलियन डोज 16 अफ्रीकी देशों को अनुदान के रूप में हैं।

अफ्रीकी देशों के साथ भारत के गहरे हित जुड़े हुए हैं। 1 अक्टूबर को जब भारत ने विश्व स्वास्थ्य संगठन के हवाले से यह सुना कि यूरोपीय यूनियन के 62 प्रतिशत जनसंख्या के पूर्ण रूप से वैक्सीनेशन की तुलना में अफ्रीका में पूर्ण वैक्सीनेशन की दर मात्र 4.4 प्रतिशत है तो भारत ने यह मन बना लिया कि वह अफ्रीकी देशों में वैक्सीनेशन अभियान को तेजी दिलाने में अपना योगदान करेगा। अभी तक प्राप्त सूचनाओं के अनुसार अफ्रीका महाद्वीप की केवल 7 प्रतिशत जनसंख्या ही वैक्सीनेशन के दायरे में आ पाई है।

दुनिया भर में इस बात की आशकाएं बनीं हुईं हैं कि कहीं कोविड की तीसरी लहर देशों और उनके नागरिकों को एक बड़ी मुसीबत में फिर से न डाल दे। जब से कोविड का एक नया वैरिएंट ओमनिक्रान सामने आया है तब से दुनिया के कुछ देश प्रभावी पूर्ण लॉकडाउन लगाने को बाध्य हुए हैं , ऑस्ट्रिया जैसे यूरोपीय देशों का उदाहरण यहां देखा जा सकता है। इसके साथ ही भारत सहित जिन देशों में अभी इस वैरिएंट के कुछ ही मामले सामने आए हैं उनके लिए यह बड़ी चुनौती है कि वो अपनी स्वास्थ्य अवसंरचनाओं , अर्थव्यवस्था की गति , ज़ूनोटिक बीमारियों के लिए नई मेडिकल प्रौद्योगिकियों के विकास में किस प्रकार निरंतरता रख पाएंगे। भारत जैसे देश में जहां 100 करोड़ से अधिक कोविड वैक्सीन लगाएं जा चुके हैं , वहां इस बात की खुशफ़हमी बेमानी होगी कि इतने बड़े वैक्सीनेशन अभियान के बाद ओमनीक्रान वैरिएंट से डरने की जरूरत नही है । दरअसल भारत के स्वास्थ्य मंत्रालय का ही कहना है कि ओमिक्रोन वैरिएंट 5 गुना ज्यादा तेजी से फैल सकता है। 24 नवंबर को दक्षिण अफ्रीका और बोत्सवाना में इस वैरिएंट को दर्ज किया गया और 26 नवंबर को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसे वैरिएंट ऑफ कंसर्न बताया था। हालांकि, किस स्तर पर मामले बढ़ेंगे और रोग की गंभीरता को लेकर स्थिति अभी स्पष्ट नहीं है। भारत के स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा है कि “भारत में टीकाकरण की तीव्र गति और डेल्टा स्वरूप के प्रभाव को देखते हुए इस रोग की गंभीरता कम रहने की उम्मीद है। हालांकि, वैज्ञानिक साक्ष्य अब तक नहीं आए हैं।

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भारत जेनेरिक वैक्सीन की दिशा में क्या सोचता है और उसकी इस दिशा में प्रतिबद्धता कहां तक है ? यहां यह विचारणीय है कि भारत वर्ष 2017 में इंटरनेशनल वैक्सीन इंस्टीट्यूट का सदस्य बना था । कई बड़ी बीमारियों के उपचार के लिए सस्ते दर पर वैक्सीन विकसित करने का काम यह संस्थान बखूबी करता है। इस संस्थान में सदस्य बनने और बने रहने के लिए किसी देश को हर साल इसे 5 मिलियन डॉलर का वित्तीय योगदान करना होता है । भारत भी इसी शर्त के साथ इसका सदस्य बना हुआ है । यह भारत की वैश्विक स्वास्थ्य संरक्षण की धारणा को दर्शाता है।

वैक्सीन रिसर्च और विकास के लिए दक्षिण कोरिया स्थित इस संस्थान के पहल का भारत समर्थन करता है । इसके लिए इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च और इंटरनेशनल वैक्सीन इंस्टीट्यूट के बीच एमओयू पर हस्ताक्षर किया गया था। गौरतलब है कि तब चिकित्सा क्षेत्र के विशेषज्ञों ने कहा था कि यह साझेदारी वैक्सीन विकास की दिशा में अनुसंधान गतिविधियों और प्रशिक्षण कार्यक्रमों के सार्थक गठजोड़ को बढ़ावा देगा और इससे विश्व के निर्धन और दुर्बल देशों की वैक्सीन तक पहुंच में सुधार कर स्वास्थ्य परिणामों में सुधार के इस संस्थान के लक्ष्य को प्राप्त करने में आसानी होगी और यह विकसित और विकासशील दोनों ही देशों को वैश्विक स्वास्थ्य अवसंरचना के प्रति सचेत और सामर्थ्यवान बनाएगा। इससे वैश्विक स्तर पर वैक्सीन विकास की दिशा में क्षमता निर्माण को मजबूती देने में बल मिलेगा जिसकी आज दुनिया भर के देशों को बहुत जरूरत है। भारत के वैक्सीन इंडस्ट्री , प्रतिरक्षण कार्यक्रमों और लोक स्वास्थ्य नीतियों के लिहाज से इंटरनेशनल वैक्सीन इंस्टीट्यूट से गठजोड़ आवश्यक भी था और भारत ने इस आवश्यकता की पहचान भी सही समय पर की । ईबोला और जीका वायरसों के प्रकोप के दौर में प्रभावी वैक्सीन का विकास वैसे भी एक अपरिहार्य जरूरत बन गई थी जिसपर कोरोनावायरस ने आके पुख़्ता मोहर लगा दिया ।

भारत ने तय किया है कि वह अगले 5 वर्षों में ग्लोबल वैक्सीन मिशन में 15 मिलियन डॉलर का योगदान करेगा । ग्लोबल एलायंस फॉर वैक्सीन्स ऐंड इम्यूनाइजेशंस ( गावी ) का कहना है कि भारत अकेला ऐसा देश है जो प्राप्तकर्ता की जगह अब दानकर्ता हो गया है। गावी के प्लेटफॉर्म पर भारत सबसे बड़ा वैक्सीन विनिर्माता देश बन चुका है और गावी वैक्सीन के 60 प्रतिशत से अधिक का विनिर्माण अकेले भारत करता है। इस ग्लोबल वैक्सीन एलायंस का लक्ष्य है कि अगले 5 वर्षों में 8 मिलियन लोगों के जीवन को सुरक्षित करना है । इस दिशा में भारत का उसके साथ गठजोड़ लक्ष्य प्राप्ति में काफी सहायता दे सकता है।

भारत ने अफ्रीका को हर स्तर पर मदद की है । आज अफ्रीका सहित तीसरी दुनिया के देशों को कोविड के नए वैरिएंट से बचाने में भारत की भूमिकाओं पर फिर से चर्चा होने लगी है। पिछले दो वर्षों में दुनिया ने इस बात को देखा है कि भारत और दक्षिण अफ्रीका ने ही विश्व व्यापार संगठन में कोविड वैक्सीन को पेटेंट से छूट का वैश्विक अभियान चलाया ताकि गरीब और विकासशील देश बौद्धिक संपदा अधिकार मानकों के चलते स्वास्थ्य सुविधाओं के संदर्भ में मात न खाएं। भारत और दक्षिण अफ्रीका ने ही अमेरिका सहित दुनिया के बड़ों देशों से कोविड वैक्सीन को बौद्धिक संपदा अधिकारों के दायरे से छूट देने में सहयोग देने की अपील की थी।

भारत को कोविड की दो लहरों से हुई अपूरणीय क्षतियों को ध्यान में रखते हुए अति सतर्कता के साथ अपने वर्तमान स्वास्थ्य अवसंरचनाओं को मजबूती देना होगा , उनका आधुनिकीकरण करना होगा , कौन सी नई स्वास्थ्य अवसंरचनाओं और नई प्रौद्योगिकियों की जरूरत होगी , इसकी तत्काल पहचान कर समुचित प्रबंध में अभी से लगना पड़ेगा क्योंकि आगामी चुनावों के मद्देनजर भीड़ को इकट्ठा होने से रोकना इतना आसान काम नही होगा । भारत में चुनाव को एक साथ पर्व और मनोरंजन दोनों माना जाता है लेकिन जिस दिन लोक को अपनी सही जिम्मेदारियों का अहसास हो जाएगा उस दिन देश में हेल्थ डेमोक्रेसी विकसित होगी । कोविड से मानव संसाधन की सुरक्षा के लिए जिम्मेदारी भरा आचरण करना ही हेल्थ डेमोक्रेसी की नींव देश में रख सकेगा। आज दुनिया भर में जिस तरह से संक्रामक ज़ूनोटिक और नॉन जूनोटिक बीमारियां बढ़ रही हैं , उसे देखते हुए ग्लोबल हेल्थ पार्टनरशिप्स को एक वैश्विक अभियान और प्रतिबद्धता के रूप में लेना होगा।

विवेक ओझा (ध्येय IAS)


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