ब्लॉग : एनआईए और भारत में आईएसआईएस षड्यंत्र मामला by विवेक ओझा

भारत की आंतरिक और राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूती देने में हाल के समय में नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी की भूमिका मुखर रूप में सामने आई है। बांग्लादेश से जाली भारतीय नोटों की तस्करी के आरोपी के खिलाफ हाल में चार्जशीट दाखिल करने का मामला हो , या खालिस्तान समर्थक गतिविधियों के लिए अमेरिका , ब्रिटेन और कनाडा में रहने वाले 16 आरोपियों के खिलाफ आरोपपत्र दायर करने का मामला हो , साइप्रस से प्रत्यर्पित फरार खालिस्तानी आतंकी को गिरफ्तार करने का मामला हो , पाकिस्तान से तस्करी कर लाए ड्रग्स बेचकर खालिस्तान लिबरेशन फोर्स (केएलएफ) की अवैध गतिविधियां चलाने में संलग्न लोगों के खिलाफ कार्यवाही का मामला हो या फिर सबसे प्रमुख रूप में आतंकी संगठन आईएसआईएस के भारत में षड्यंत्र का मामला हो , एनआईए ने एक सक्रिय संघीय जांच एजेंसी के रूप में बहुआयामी भूमिका निभाई है। आईएसआईएस जैसे आतंकी संगठनों के द्वारा भारत और अन्य देशों में आतंकवाद के जिस स्वरूप को मजबूती देने की कोशिश की गई है उसे धार्मिक आतंकवाद की श्रेणी में रखा जाता है और आतंकवाद का यह स्वरूप घातक रूप में देश की आंतरिक सुरक्षा, राष्ट्रीय सुरक्षा और देश के सेकुलर ताने बाने पर बड़े खतरे उत्पन्न करता है । आईएसआईएस जिस धार्मिक आंतकवाद के सहारे एक अखिल इस्लामिक गणराज्य की स्थापना का मंसूबा रखता है , वह भारत जैसे देशों के लिए इसलिए अधिक खतरनाक है क्योंकि धर्म ग्रंथों की गलत और अति कट्टर व्याख्या कर भारतीय युवाओं को चरमपंथी , धार्मिक मतांध बनाकर उनके मन में धार्मिक पूर्वाग्रह , दुराग्रह , ईर्ष्या , द्वेष , शत्रुता के भावों का बीजारोपण किया जाता है और अब इस काम को अधिक बखूबी अंजाम देने के लिए ऑनलाइन उग्रवाद को बढ़ावा देने का काम किया जा रहा है । एक तरह से यह साइबर आतंकवाद को बढ़ावा देने का काम है।

इससे निपटने के लिए नैशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी भारत में आतंकवाद से जुड़े मामलों में जांच पड़ताल करने , चार्जशीट दाखिल करने ,मुकदमा चलवाने के लिए अधिकृत एजेंसी है जो इस काम को अपने विशेष न्यायालयों के जरिए पूरा करती है। हाल ही में एनआईए के स्पेशल कोर्ट ने देश में आतंकी संगठन आईएसआईएस से जुड़कर षड्यंत्र करने वाले एक चेन्नई के नागरिक को 7 वर्ष के सश्रम कारावास की सजा सुनाई है । राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) ने स्पेशल कोर्ट को जानकारी देते हुए कहा है कि भारत में आईएसआईएस षड्यंत्र मामलों की जांच के दौरान यह पाया गया कि आईएसआईएस भारत और विदेश में निवासी और अनिवासी भारतीयों की भर्ती के लिये बड़ी साजिश रचने में लगातार सक्रिय है। एनआईए के स्पेशल कोर्ट ने आईएसआईएस के संपर्क वाले जिस व्यक्ति को 7 वर्ष के कारावास का दण्ड दिया है उसका प्रत्यर्पण सूडान से किया गया था । एनआईए के विशेष अदालत ने जिन कानूनी धाराओं के तहत दंड दिया है, वे हैं : भारतीय दंड संहिता की धारा 120 बी (आपराधिक साजिश) गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम की धारा 18 (आतंकी कृत्य की साजिश रचना), 18-बी (आतंकी कृत्य के लिये लोगों की भर्ती), 38 (आतंकी संगठन का सदस्य होने) और 39 (आतंकी संगठन की मदद करने) के तहत उसे दोषी ठहराया। गौरतलब है कि आतंकवाद के विभिन्न स्वरूपों और उसके संगठित अपराधों से लिंक को तोड़ने के मकसद से ही पिछले साल एनआईए संशोधन अधिनियम , 2019 में नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी को आतंकी मामलों से निपटने के साथ ही साइबर सुरक्षा से जुड़े मामलों , जाली मुद्रा कारोबार से जुड़े अपराधों, विस्फोटक पदार्थ से जुड़े अपराधों , मानव तस्करी से जुड़े मामलों , जॉच का अधिकार क्षेत्र विदेशों तक बढ़ाने और ऐसे व्यक्तियों को भी जांच के घेरे में रख सकने का अधिकार दिया गया है, जो भारत के बाहर भारतीय नागरिकों के खिलाफ या भारत के हितों को प्रभावित करने वाला अनुसूचित अपराध करते हैं। ऐसे विधायन का महत्व तब समझ में आता है जब देश के सामने आईएसआईएस जैसे आतंकी संगठनों के पेशेवर आतंकियों द्वारा भारत में साइबर अपराधों में लिप्त होकर देश में धार्मिक कट्टरता के लिए हिंसा को ऑनलाईन वैधता देते हुए पाया जाता है जैसा की उपरोक्त नए मामले में पाया भी गया है।

भारत में आईएसआईएस की उपस्थिति के साक्ष्य समय समय पर गृह मंत्रालय और एनआईए ने दिए हैं। हाल ही में भारत सरकार के गृह मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि दक्षिणी भारतीय राज्यों सहित विभिन्न राज्यों के कुछ लोगों के इस्लामिक स्टेट में शामिल होने की बात केंद्रीय और राज्य सुरक्षा एजेंसियों के सामने आई है। इसको लेकर नेशनल इंवेस्टीगेशन एजेंसी ने 17 मामले दर्ज किए हैं। गृह मंत्रालय ने भी कहा है कि एनआईए ने तेलंगाना, केरल, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और तमिलनाडु में आईएस की उपस्थिति से संबंधित 17 मामले दर्ज किए हैं और 122 आरोपी व्यक्तियों को गिरफ्तार किया है। एनआईए की जांच में पता चला है कि इस्लामिक स्टेट (आईएस) केरल, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, राजस्थान, बिहार, यूपी, मध्य प्रदेश, और जम्मू-कश्मीर में सबसे अधिक सक्रिय है। भारत के गृह मंत्रालय ने भारतीय राज्यों में आईएसआईएस की उपस्थिति और सक्रियता होने की सार्वजनिक तौर पर पुष्टि सितंबर , 2020 में की थी। भारत में युवाओं में कट्टरपंथ के प्रसार का साक्ष्य संयुक्त राष्ट्र के इस्लामिक स्टेट , अल कायदा और अन्य संबंधित व्यक्तियों और इकाइयों से संबंधित एनालिटिकल सपोर्ट एंड सैंक्शंस मॉनिटरिंग टीम पर 26 वीं रिपोर्ट में दिया गया है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि आईएस और अल कायदा के कई सदस्य कर्नाटक और केरल में हैं। ऐसी भी आशंका रिपोर्ट में व्यक्त की गई है कि आईएसआईएल से संबद्ध भारतीय शाखा हिन्द विलायाह में लगभग 200 सदस्य हैं जो इस्लामिक चरमपंथी मानसिकता के शिकार हैं।

भारत में आईएसआईएस की सक्रियता से निपटने की रणनीति को बहुस्तरीय और बहुआयामी बनाने की जरूरत है और एनआईए के नेतृत्व में ऐसा किया भी जा रहा है । अपनी विचारधारा को फैलाने के लिए आईएस इंटरनेट आधारित विभिन्न सोशल मीडिया मंचों का इस्तेमाल कर रहा है। इसे देखते हुए संबद्ध एजेंसियां साइबर स्पेस की सतत निगरानी कर रही हैं और कानून के अनुसार कार्रवाई की जा रही है। गृह मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि केंद्र सरकार के पास सूचना है कि इन लोगों को वित्त कैसे मुहैया कराया जा रहा है और अपनी आतंकी गतिविधियों को संचालित करने के लिए उन्हें विदेशों से कैसे मदद मिल रही है। इसलिए आतंक के वित्त पोषण को रोकने की रणनीति के तहत जाली मुद्रा कारोबार , ब्लैक मनी , मनी लांड्रिंग ,हवाला कारोबार से निपटने पर विशेष जोर दिया गया है।

केंद्र सरकार ने गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) कानून, 1967 के तहत प्रथम अनुसूची में आईएसआईएस और उसकी आतंकी शाखाओं को शामिल कर उन्हें आतंकी और अवैधानिक संगठन घोषित किया है। इनमें शामिल हैं : इस्लामिक स्टेट, इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड लेवांत, इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया, दाएश, इस्लामिक स्टेट इन खोरासान प्रॉविन्स (आईएसकेपी), आईएसआईएस विलायत खोरासान, इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक और शाम-खोरासान ।

कट्टरता , धर्मांधता , धार्मिक और अन्य आधारों पर उग्रवादी मानसिकता , रूढ़िवादिता के जरिए आतंकी गतिविधि , अलगाववादी आंदोलन , जेहादी विचारधारा को फलने फूलने का अवसर मिला है और इस बात की गंभीरता को ध्यान में रखकर भारत सरकार के गृह मंत्रालय ने भी हाल ही में देश में हर तरह के रेडिकलाइजेशन ( कट्टरता ) की वर्तमान स्थिति को जानने और उसके हिसाब से देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए काम करने के उद्देश्य से एक व्यापक अध्ययन को मंजूरी दी है । देश में कट्टरता की स्थिति का पता लगाने संबंधी अनुसंधान इस दिशा में देश में पहली बार किया जा रहा है। इसके तहत कट्टरता शब्द को वैधानिक रूप से परिभाषित किया जाएगा और उसके अनुरूप वैधानिक क्रियाकलाप ( रोकथाम ) अधिनियम , 1967 में आवश्यक संशोधन करने की सिफारिश की जाएगी। गृह मंत्रालय के तत्वावधान में इस अध्ययन और अनुसंधान को दिशा देने वाले नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी , दिल्ली ने स्पष्ट किया है कि देश में किस किस प्रकार की कट्टरता है , उसकी वजह क्या है , उसको बढ़ावा देने वाले कारक कौन से हैं और कट्टरता की सोच को खत्म कैसे किया जा सकता है , इन सब अध्ययनों को धार्मिक रूप से तटस्थ होकर संपन्न किया जाएगा।

भारत सरकार के गृह मंत्रालय के तहत देश में चरमपंथ और कट्टरपंथी सोच से निपटने के लिए आतंकवाद-रोधी एवं इस्लामिक कट्टरवाद रोधी (सीटीसीआर) प्रभाग बनाया गया है । यह आतंकवाद, आतंकवाद से मुकाबला करने, कट्टरपंथीकरण, गैर कानूनी क्रियाकलाप ( रोकथाम) अधिनियम , नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी अधिनियम, फेक इंडियन करेंसी नेटवर्क ( एफआईसीएन) और फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) के आतंक के वित्त पोषण को रोकने , काले धन और मनी लॉन्ड्रिंग से निपटने के प्रयासों को दिशा देता है। इसके अलावा कट्टरपंथ से निपटने के लिए भारत के सशस्त्र बलों , अर्ध सैनिक बलों के द्वारा कट्टरपंथ , अलगाववाद और आतंकवाद प्रभावित क्षेत्रों में प्रभावी तरीके से सिविक एक्शन प्रोग्राम और परसेप्शन मैनेजमेंट रणनीति के जरिए गुमराह युवाओं में शासन प्रशासन के प्रति विश्वसनीयता के भावों का विकास किया जाना जरूरी है। जेहादी साहित्य , दस्तावेज आदि के प्रसार को रोकने के लिए सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म्स का प्रभावी विनियमन जरूरी है। उग्रवाद , आतंकवाद और कट्टरतावाद या चरमपंथ को केवल बल के इस्तेमाल से पराजित नहीं किया जा सकता और इसके लिए समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता को स्वीकार करना राष्ट्रों के लिए जरूरी है। अतिवादी और हिंसक विचारधाराओं को बढ़ावा देने के लिए वेब और सोशल मीडिया के उपयोग को रोकना, युवाओं को कट्टरपंथी बनाने और आतंकवादी कार्यकर्ताओं की भर्ती करने में धार्मिक केंद्रों के उपयोग को रोकने और सहिष्णुता को बढ़ावा देने के उपाय राष्ट्रों द्वारा किए जाने आवश्यक हैं। इस संदर्भ में उरुग्वे के सवाब और हेदायह केंद्र जैसी पहलों के योगदान का उदाहरण दिया जा सकता है जो चरमपंथी विचारधाराओं का मुकाबला करने और अंतरराष्ट्रीय उग्रवाद-विरोधी सहयोग को ऑनलाईन स्तर पर आगे बढ़ा रहे हैं। ऐसे ही चरमपंथ विरोधी केंद्रों के गठन की जरूरत भारत में भी है। इसके अतिरिक्त आधुनिक शिक्षा प्रणाली जिसमें मानवीय मूल्य , लोकतांत्रिक मूल्यों और सरोकारों , मानवाधिकारों , राष्ट्रीय एकीकरण के भावों को संवेदनशीलता के साथ रखा गया हो , उसे चरमपंथ प्रभावित क्षेत्रों में कुशलता से रखा जाना आवश्यक है। जोर इस बात पर होना चाहिए कि गुमराह युवाओं का डी - रेडीकलाइजेशन रणनीति के तहत कैसे उनकी कट्टरपंथी सोच और वैचारिकी का खात्मा किया जा सकता है। गृह मंत्रालय के तत्वावधान में गुमराह युवाओं को उनकी कट्टरपंथी सोच से उन्हें मुक्त करने के लिए डी- रेडीकलाइजेशन के लिए महाराष्ट्र मॉडल का अध्ययन किया गया है जहां इस दिशा में सफलता पाई गई है।

विवेक ओझा (ध्येय IAS)


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