ब्लॉग : बीजापुर नक्सली घटना से सबक लेने की जरूरत by विवेक ओझा

बीजापुर नक्सली हमले में 12 नक्सलियों के मारे जाने और 22 जवानों के शहीद होने की खबर बताती है कि अभी भी देश नक्सलवाद और माओवाद आंतरिक , राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए एक बड़ी चुनौती है। गुरिल्ला युद्ध पद्धति में निपुण नक्सलियों , माओवादियों की गतिविधियों को यथाशीघ्र नियंत्रित करते हुए देश को नक्सलवाद और माओवाद से मुक्त करने का निर्णायक समय अब आ चुका है । चूंकि बीजापुर और सुकमा जिले से केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल के कोबरा बटालियन, डीआरजी और एसटीएफ के संयुक्त दल को नक्सल विरोधी अभियान में रवाना किया गया था और इसी अभियान के दौरान हुई मुठभेड़ में इतना बड़ा हादसा हुआ तो यह सवाल उठना भी लाजमी है कि देश के पास क्या प्रभावी काउंटर इनसर्जेंसी रणनीति है भी कि नहीं।

गृह मंत्रालय , चुनाव आयोग के हालिया आंकड़ों और अन्य रिपोर्टों के जरिए इस बात की समीक्षा करनी जरूरी है कि नक्सलवाद , माओवाद या समग्र रूप में वामपंथी उग्रवाद पर कितना लगाम लगाया जा सका है। चूंकि ये मामला देश की आंतरिक सुरक्षा का तो इसे केवल चुनावी रैलियों में उपलब्धि मूलक बयान भर से नहीं जोड़ा जा सकता । भारत सरकार के गृह मंत्रालय के पास ही देश की आंतरिक सुरक्षा की जिम्मेदारी है और वह 2006 में गठित वामपंथी उग्रवाद प्रभाग के साथ मिलकर वामपंथी उग्रवाद की समस्या का समग्र रूप में प्रभावी तरीके से निराकरण करने के लिए जिम्मेदार है ।

देश में नक्सलवाद और माओवाद की वर्तमान स्थिति को जानने वाले आंकड़ों पर विचार करना आवश्यक है । भारत सरकार के गृह राज्य मंत्री ने 5 फरवरी , 2019 को संसद में स्पष्टीकरण दिया था कि वर्तमान में देश के 11 राज्यों के 90 जिले वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित हैं।

नक्सलियों का गढ़ माने जाने छत्तीसगढ़ में करीब 14 जिले नक्सल प्रभावित हैं। इसमें बालोद, बलरामपुर, बस्तर, बीजापुर, दंतेवाड़ा, नारायणपुर, राजनंदगांव, सुकमा और कबीरधाम आदि मुख्य हैं। वहीं झारखंड की बात करें तो 23 जिलों में से 19 नक्सल प्रभावित इलाकें हैं। खनिजों से भरपूर झारखंड के बोकारो, धनबाद, दुमका, हजारीबाग, कोडरमा, लातेहार, लोहारदागा, पलामू, रामगढ़ मुख्य रूप से नक्सल प्रभावित क्षेत्र हैं। महाराष्ट्र की देखें तो वहां 3 जिलों को नक्सल प्रभावित घोषित किया गया है जिसमें चंद्रपुर, गढ़चिरौली और गोंदिया आते हैं। यह इलाका रेड कॉरिडोर के तहत आता है। 2018 में 8 नए क्षेत्रों को नक्सल और माओवाद प्रभावित क्षेत्र घोषित किया गया था। आंध्र प्रदेश के गुंटूर, विशाखापट्टनम, पूर्व गोदावरी, पश्चिम गोदावरी जिले , बिहार के औरंगाबाद, बंका, कैमूर, जहानाबाद, मुंगेर, नालंदा, रोहतास, वैशाली, पूर्वी और पश्चिमी चंपारण जिले , केरल के मल्लापुरम, पलक्कड़ और वायनाड ज़िलों , ओडिशा के कालाहांडी, कंधमाल, कोरापुट, मलकनगिरी, संभलपुर, सुंदरगढ़ जैसे जिले, तेलंगाना के आदिलाबाद, वारांगल , उत्तर प्रदेश के चंदौली, मिर्जापुर और सोनभद्र जिले , मध्य प्रदेश के मंडला और बालाघाट , पश्चिम बंगाल का झारग्राम जिला अभी भी वामपंथी उग्रवाद यानि नक्सलवाद और माओवाद के चपेट में अभी भी हैं।

कोबरा बटालियन, ग्रेहाउंड जैसे सुरक्षा बलों को अधिक मारक क्षमता देने का काम भी अब अधिक जरूरी हो गया है । एक ऐसे समय में जबकि देश में वामपंथी उग्रवाद के भौगोलिक प्रसार में कमी आई है ऐसे में बीजापुर और गढ़चिरौली जैसी घटनाएं सुरक्षा बलों के लिए नए खतरे के रूप में आई हैं। अभी दो वर्ष पूर्व ही गृह मंत्रालय ने वामपंथी उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों में कमी आने की रिर्पोट और आंकड़ा दिया था। तब भारत सरकार के गृह मंत्रालय ने वामपंथी उग्रवाद और विशेषकर नक्सलवाद से निपटने में मिली सफलता पर आंकड़ें प्रस्तुत किए थे । 2014 से अप्रैल 2019 के दौरान इसके पहले के पांच वर्षों की तुलना में नक्सली हिंसा से जुड़ी घटनाओं में 43 फीसदी तक कमी आई थी। गृह मंत्रालय के अनुसार नक्सली हिंसा की दो-तिहाई घटनाएं सिर्फ 10 जिलों में हुई थीं । दूसरे शब्दों में 2018 में नक्सली हिंसा की सूचना केवल 60 जिलों में सामने आई थी जिसमें से दो तिहाई हिंसा सिर्फ 10 जिलों में हुई। भारत सरकार का अभिमत है कि नीतियों के प्रभावी क्रियान्वयन के कारण नक्सली हिंसा में काफी कमी आई है और इसके भौगोलिक विस्तार में कमी आई है। 2016-19 के बीच नक्सली हिंसा की संख्या 2013-15 की तुलना में क्रमश: 15.8 फीसदी कम रही , जबकि इस कारण होने वाली मौत की संख्या में भी 16.6 फीसदी कमी आई। 2018 में 30 जून तक नक्सली हिंसा में 139 लोगों की मौत हुई जबकि 2019 में इस दौरान 117 मौतें हुईं थीं । केंद्र सरकार ने इन आंकड़ों के साथ यह भी कहा है कि सरकार नक्सलवाद से निपटने के लिए एक समग्र नीति लागू कर रही है। इसके तहत नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में सुरक्षाबलों की तैनाती करने के साथ ही विकास कार्य किए जा रहे हैं। इसी का परिणाम है कि माओवाद से प्रभावित अब केवल 10 राज्य- छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, बिहार, महाराष्ट्र, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश हैं जो आंतरिक सुरक्षा के समक्ष चुनौती उत्पन्न करते हैं ।

भारत सरकार का दृष्टिकोण, सुरक्षा, विकास, स्थानीय समुदायों के अधिकारों और हकदारियों को सुनिश्चत करने, शासन प्रणाली में सुधार तथा जन अवबोधन प्रबंधन के क्षेत्रों में समग्र तरीके से वामपंथी उग्रवाद से निपटना है। इस दशकों पुरानी समस्या से निपटने के लिए, संबंधित राज्य सरकारों के साथ विभिन्न उच्चस्तरीय विचार-विमर्श और बातचीतों के बाद यह उपयुक्त समझा गया है कि तुलनात्मक रूप से अधिक प्रभावी क्षेत्रों के लिए एकीकृत दृष्टिकोण के परिणाम मिलेंगे। लेकिन भारत सरकार के मानवीय लोकतान्त्रिक दृष्टिकोण के साथ ही उग्रवाद विरोधी अभियानों को मजबूती दी जानी अत्यंत आवश्यक है । अलग अलग प्रकार के विशेष प्रशिक्षित बटालियनो के जरिए सुरक्षा संबंधी ठोस उपाय किए जाने जरूरी हैं। गृह मंत्रालय पहले ही कह चुका है कि नक्सल विरोधी ऑपरेशन की अगुवाई राज्य करें, अर्धसैनिक बल इसमें सहयोग करेंगे। इंटेलिजेंस एजेंसी और सुरक्षा बलों को स्थानीय जनता के साथ नेटवर्क विकसित करने की जरुरत को समझने पर भी गृह मंत्रालय जोर दे चुका है। गृह मंत्रालय ने यह भी कहा है कि वर्तमान में मानव रहित विमानों ( यूएवी ) का इस्तेमाल नक्सल गतिविधियों से निपटने में बहुत कम हो रहा है जिसे बढ़ाने की जरुरत है। हर बटालियन के साथ यूएवी और मिनी यूएवी होनी चाहिए। नक्सली लुटे हुए हथियारों का इस्तेमाल करते हैं और इसे रोकने के लिए हथियार में ट्रैकर लगाएं जाने की जरूरत है।

विवेक ओझा (ध्येय IAS)


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