ब्लॉग : दक्षिण पूर्व एशिया में म्यांमार की नई राह by विवेक ओझा

म्यांमार के सत्ताधारी दल नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी ने हाल ही में संसदीय चुनावों में जीत दर्ज की है और नोबेल शांति पुरस्कार विजेता आन सान सू ची के नेतृत्व में म्यांमार एक बार फिर से अपनी क्षेत्रीय और वैश्विक भूमिका को निभाने की दिशा में अग्रसर होगा। कई अन्य देशों के चुनावों की तरह म्यांमार का चुनाव भी विवादों से मुक्त नहीं रह पाया और सेना समर्थित विरोधी दल यूनियन सॉलीडैरिटी एंड डेवलपमेंट पार्टी ने सत्ताधारी दल पर सत्ता के दुरूपयोग के साथ चुनाव जीतने का आरोप लगाया । लेकिन इसका सत्ता संरचना पर कोई नकारात्मक प्रभाव पड़े , इसकी संभावना बहुत ही कम है। यहां महत्वपूर्ण सवाल यह उठता है कि दक्षिण पूर्वी एशिया में आसियान सदस्य म्यांमार अपने नेतृत्व के साथ किन प्राथमिकताओं के साथ काम करेगा । क्या म्यांमार इंडो पैसिफिक और एशिया प्रशांत क्षेत्र की शांति सुरक्षा और स्थिरता के लिए कार्य करने वाले देशों के साथ ईमानदारी से लगकर अपनी भूमिका निभाएगा अथवा चीन के वन बेल्ट वन रोड पहल के तहत चीन म्यांमार इकोनोमिक कॉरिडोर जैसे अवसंरचनात्मक गठजोड़ों पर ध्यान केंद्रित करेगा। सवाल यह भी उठता कि रोहिंग्या संकट के मामले पर आन सान सू की सरकार पर मानवाधिकार उल्लंघन के जो गंभीर आरोप लगाए गए , उनके प्रति म्यांमार की सरकार कितनी संवेदनशील है और क्या अब रोहिंग्या समस्या का कोई स्थाई समाधान बांग्लादेश और भारत सहित अन्य देशों के साथ मिलकर म्यांमार का नेतृत्व ढूंढेगा ? इसके अतिरिक्त म्यांमार में नए शासन को भारत के उत्तर पूर्वी राज्यों की सुरक्षा और विकास से जोड़कर भी देखा जाता है। भारत म्यांमार सीमा और खासकर उत्तर पूर्वी राज्यों में उग्रवादी संगठनों , विप्लव कारी समूहों और गुटों से निपटने में म्यांमार सरकार की प्रतिबद्धता महत्तवपूर्ण मानी गई है । चूंकि म्यांमार में लंबे समय से मिलिट्री जुंटा ( सैन्य शासन ) रहा है जिसके चलते वहां सरकार ने लोकतांत्रिक मूल्यों की बजाय सर्वाधिकार वादी और अधिनायवादी मूल्यों को अधिक तरजीह दी है , इसलिए अब म्यांमार में भी माना जाने लगा है कि जब तक नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी को पूर्ण बहुमत देकर आन सान की सरकार की मिलिट्री पर निर्भरता और उसके दबाव से मुक्त नहीं किया जाता तब तक एक बेहतर शासन प्रणाली के समक्ष अड़चनें बनी रहेंगी । यही कारण है कि इस बार के संसदीय चुनावों में आन सान की पार्टी को बड़े पैमाने पर समर्थन मिला है। नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी म्यांमार में सक्रिय विद्रोही उग्रवादी समूहों से शांति वार्ता को संपन्न करने में अधिक प्रभावी तरीके से कार्य कर सकती है। एनएलडी की जीत के दूरगामी परिणाम प्राप्त हो सकते हैं । यूएसडीपी के कई नेता जो म्यांमार की सेना में अपनी सेवाएं दे चुके हैं , उनके चीन के साथ घनिष्ठ संबंध रहे हैं और यूएस डीपी के सत्ता में आने पर वे चीनी हितों के प्रति अधिक निष्ठावान होकर कार्य करते जिसका नुकसान भारत को होता । अराकान आर्मी को बीजिंग का समर्थन प्राप्त है ।

म्यांमार भारत के लुक ईस्ट पॉलिसी के साथ अब एक्ट ईस्ट पॉलिसी और एक्सटेंडेड नेबरहुड फर्स्ट पॉलिसी की सफलता के लिए अति आवश्यक है। दक्षिण एशिया और बंगाल की खाड़ी में क्षेत्रीय एकीकरण , अवसंरचनात्मक विकास , सुरक्षा निश्चिंतता के लिहाज से म्यांमार का अहम योगदान है। भारत म्यांमार थाईलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग जिसे अब लाओस , कंबोडिया और वियतनाम तक विस्तारित कर दिया गया है , इस बात का मजबूत प्रमाण है । एक लोकतांत्रिक , क्षेत्रीय स्थिरता और समृद्धि समर्थक म्यांमार कई मुद्दों पर चीन के साथ अपने रिश्तों को पुनर्परिभाषित कर भारत के साथ मजबूती से खड़ा हो सकता है । खासकर दक्षिण चीन सागर में चीन ने दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों के सागरीय संप्रभुता का जिस प्रकार से हनन करने की कोशिश की है , उसका तार्किक ढंग से विरोध करने के लिए म्यांमार को कॉस्ट बेनिफिट एनालिसिस से ऊपर उठना होगा । आखिर चीन ने आसियान सदस्य देशों को अपनी महत्वाकांक्षा को पूरा करने के लिए निशाना बनाया है तो म्यांमार को आसियान के एक सक्रिय सदस्य के रूप में एशिया प्रशांत क्षेत्र में नियम और क़ानून आधारित व्यवस्था के विकास के लिए पूर्ण साहस के साथ आगे आना होगा।

उत्तर पूर्वी भारत की सुरक्षा और म्यांमार -

पिछले तीन वर्षों में नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड ( इजाक मुइवा ) ने म्यांमार में रहने वाले विद्रोहियों और उत्तर पूर्वी भारत में रहने वाले विद्रोहियों के साथ मिलकर भारत सरकार और उत्तर-पूर्वी राज्यों के सुरक्षा के समक्ष बड़ी चुनौती उत्पन्न की है । इस गुट ने म्यांमार के टागा क्षेत्र में भारत विरोधी अभियानों को संपन्न करने का काम किया है। नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड (खापलांग) ने म्यांमार के अराकान साल्वेशन आर्मी के विद्रोहियों और काचिन पृथकतावादियों के साथ मिलकर म्यांमार में भारत की ऊर्जा परियोजनाओं और विकास परियोजनाओं को निशाना बनाने की योजना बनाई है। यह विद्रोही कलादान मल्टीमॉडल ट्रांसपोर्टेशन प्रोजेक्ट और अन्य संयंत्रों को नष्ट करने की रणनीति बनाते पाए गए हैं। इन सबसे निपटने के लिए म्यांमार और भारत की संयुक्त सेना ने फरवरी-मार्च 2019 में सर्जिकल स्ट्राइक - 3 जिसे ऑपरेशन सनराइज भी नाम दिया गया, के माध्यम से नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड (खापलांग) नगा विद्रोही समूहों और अराकान साल्वेशन आर्मी के टागा स्थित आतंकी शिविरों को नष्ट कर दिया। वर्तमान में नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड खापलांग ने अपने कैडरों को टागा में कैम्प खोलने और म्यांमार की सेना के खिलाफ जवाबी कार्यवाही के आदेश भी दिए हैं । उन्होंने म्यानमार के कोकी क्षेत्र में भी कैम्प खोलने का निर्णय किया है । इन सब कामों को नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड ( खापलांग) कई उत्तर पूर्वी विद्रोही संगठनों के लिंक के साथ अंजाम दे रहा है, जिसमें उल्फा (आई) एनडीएफबी और केएलओ शामिल हैं।

म्यांमार सेना ने हाल ही में भारत-म्यांमार सीमा पर विद्रोही समूहों पर प्रभावी नियंत्रण के लिए ऑपरेशन सनराइज-3 शुरू किया है। चूंकि विद्रोही समूह कोरोना के बाद बोरोजगार हुए युवाओं को जाल में फंसा रहे हैं , इसलिए म्यांमार सरकार द्वारा ऐसा निर्णय लिया गया है। कई अवसरों पर यह प्रमाण मिल चुके हैं कि युंग आंग के नेतृत्व वाली नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड-खापलांग म्यांमार के अंदर अपनी स्थिति मजबूत करने की कोशिश में है। विभिन्न एनएससीएन समूह भारतीय सुरक्षा बलों पर हमला करने की साजिश रच रहे हैं जिसको नाकाम किया जाना जरूरी है। इसी क्रम में म्यांमार के सैगिंग क्षेत्र में विभिन्न स्थानों पर एनएससीएन ( के) और अन्य समूहों की तलाश में विशेष म्यांमार सेना इकाइयां तलाशी अभियान चलाने में लगी हुई हैं। म्यांमार सेना मणिपुर नदी के पूर्वी हिस्से की ओर भी अभियान चला रही हैं। विद्रोही समूह अराकान सेना मिजोरम के लोंग्थलाई जिले के कई इलाकों में शिविर लगाए हुए है, जो कलादान परियोजना के लिए खतरा हैंं। कलादान मल्टी-मॉडल परिवहन परियोजना को भारत के दक्षिण-पूर्व एशिया के प्रवेश द्वार के रूप में देखा जा रहा है। भारत ने इस परियोजना के लिए अप्रैल 2008 में म्यांमार के साथ एक समझौता किया था। इसके जरिए मिज़ोरम को म्यांमार के रखाइन सित्वे से जोड़ा जाएगा।

भारत म्यांमार द्विपक्षीय संबंध -

भारत और म्यांमार ने हाल के समय में जिन विषयों पर अपने द्विपक्षीय संबंधों को मजबूती देने के लिए समझौते किए हैं उनमें शामिल हैं : म्यांमार के रखाइन प्रांत के सामाजिक आर्थिक विकास में भारत द्वारा सहायता , मानव दुर्व्यापार को रोकने के लिए पारस्परिक सहयोग , रखाइन क्षेत्र में जल आपूर्ति प्रणाली का निर्माण, सौर ऊर्जा के जरिए विद्युत वितरण , रखाइन क्षेत्र में स्कूलों और सड़कों का निर्माण आदि । इससे स्पष्ट है कि भारत रोहिंग्या संकट के समाधान के रूप में उन्हें म्यांमार में विकास का वातारण देने के लिए प्रतिबद्ध है। दोनों देशों ने भारतीय रुपे कार्ड म्यांमार में शुरू करने का भी निर्णय किया है। दोनों देश एक डिजिटल पेमेंट गेटवे के निर्माण की संभावना पर विचार करने में भी लगे हैं। म्यांमार में भारतीय राजदूत ने पिछले वर्ष भारत द्वारा रोहिंग्या शरणार्थियों के लिए बनाए गए 250 पूर्ण निर्मित घर म्यांमार को सौंपे थे। यह प्रोजेक्ट भारत और म्यांमार सरकार द्वारा 2017 में हस्ताक्षरित किए गए समझौते का हिस्सा था। इसके तहत सरकार को पांच वर्षों में 25 मिलियन का व्यय करना था। 40 वर्ग मीटर में बने इन घरों को भूकंप और चक्रवाती तूफान से बचने के लिए भी डिजाइन किया गया है। यह भारत सरकार के मानवतावादी सहायता के दृष्टिकोण को भी दर्शाता है साथ ही अपनी आंतरिक सुरक्षा के प्रति सजगता और सतर्कता को भी प्रदर्शित करता है।

नशीले पदार्थों की तस्करी और भारत म्यांमार संबंध -

एक और प्रमुख मुद्दा जो भारत और म्यांमार के द्विपक्षीय संबंधों में खलल डालता रहा है वह है नशीले पदार्थों की तस्करी का मुद्दा । चूंकि म्यांमार नार्कोटिक ड्रग्स की तस्करी वाले क्षेत्र स्वर्णिम त्रिभुज का हिस्सा है और यह चार उत्तर पूर्वी भारतीय राज्यों अरुणाचल प्रदेश , नागालैंड , मणिपुर और मिजोरम से सीमा साझा करता है , इसलिए म्यांमार के साथ भारत के संबंध इस विषय पर बहुत संवेदनशील हो जाते हैं। मणिपुर के उखरूल , चंदेल , चंद्रचुरपुर में अफीम और हेरोइन की तस्करी बड़े पैमाने पर होती है। ड्रग फ़्री उत्तर पूर्व और म्यांमार दोनों देशों की साझी जिम्मेदारी है। अमेरिकी ड्रग एनफोर्समेंट एडमिनिस्ट्रेशन के अनुसार , म्यांमार दक्षिण पूर्वी एशिया का 80 प्रतिशत हेरोइन उत्पादन करता है और वैश्विक आपूर्ति के 60 प्रतिशत के लिए अकेले जिम्मेदार है । चीन को म्यांमार के ड्रगलॉर्ड्स का सहयोग समर्थन समय समय पर मिलता रहा है लेकिन सर्वाधिक चिंता की बात तो यह है कि भारत म्यांमार की सीमा पर कई हेरोइन लैब्स सक्रिय हैं। मिज़ोरम में म्यांमार के रास्ते से एंफेटामाइन जैसे पार्टी ड्रग्स की तस्करी और अवैध खरीद फरोख्त भी काफी बढ़ चुकी है जो उत्तर पूर्वी भारत के युवा मानव संसाधन को क्षति पहुंचा रही है।

नार्कोटिक ड्रग्स के इम्फाल , आइजोल, कोहिमा, सिलचर , दीमापुर में पहुंचने के बाद इसे कोलकाता, मुंबई , दिल्ली , चेन्नई और बंगलुरू को डिस्पैच कर दिया जाता है। हाल ही में भारत म्यांमार सीमा पर स्थित मोरेह पर लगभग 9 करोड़ रूपए मूल्य के अवैध ड्रग्स को सुरक्षा बलों द्वारा जब्त किया गया है। ऐसे कई उदाहरण अन्य उत्तर पूर्वी राज्यों के संबध में आए दिन मिलते रहते हैं जिससे इस व्यापार की बढ़ती विभीषिका का पता चलता है। यहां यह उल्लेखनीय है कि ड्रग तस्करी दोनों देशों के लिए एक गंभीर मसला इसलिए है क्योंकि इससे आतंक , उग्रवादी , विप्लवकारी , पृथकतावादी गतिविधियों और उन्हें करने वाले समूहों का वित्त पोषण संभव हो जाता है । इसलिए यह दोनों देशों के लिए आंतरिक सुरक्षा के साथ साथ प्रादेशिक अखंडता का भी मुद्दा है जिसके समाधान के लिए भारत और म्यांमार ने अपनी प्रतिबद्धता भी प्रदर्शित की है । इसके अलावा नागालैंड और अरुणाचल प्रदेश में सक्रिय उग्रवादी अलगाववादी समूहों को भी चीन से वित्तीय सहायता और हथियार आपूर्ति के रूप में सहायता मिल रही है। ऐसे भारत विरोधी नेटवर्क्स को तोड़ने में म्यांमार का सहयोग अपेक्षित है।

विवेक ओझा (ध्येय IAS)


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