ब्लॉग : म्यांमार की सैन्य सरकार की नीति से प्रभावित होता मिजोरम by विवेक ओझा

हाल ही में म्यांमार की सेना ने वहां के सशस्त्र नागरिकों के खिलाफ़ जिस तरह की कार्यवाही की है उसके चलते 100 से अधिक म्यांमार के नागरिक वहां से भागकर भारतीय राज्य मिजोरम में प्रवेश कर गए हैं। मिज़ोरम के गृह मंत्री जो अभी कोविड के चलते क्वारन्टीन हैं , उन्होंने 100 से अधिक म्यांमारी शरणार्थियों के राज्य में आने की पुष्टि भी कर दी है। म्यांमार के हताश शरणार्थियों ने छोटी देशी नाव के माध्यम से टियाउ नदी को पार किया और पूर्वोत्तर राज्य के सीमावर्ती गांवों में शरण लेने के लिए तैर कर पार हो गए। भीषण सैन्य दमन के बीच इन लोगों को यही रास्ता सूझा कि वो पड़ोसी क्षेत्र मिजोरम जो म्यांमार के साथ 510 किलोमीटर लंबी सीमा साझा करता है , वहां प्रवेश करें। ये 100 से अधिक शरणार्थी जो हाल में मिजोरम में आ गए हैं , उनमें से अधिकांश म्यांमार की चिन पहाड़ियों में रहने वाले लोग हैं और यहां यह जानना जरूरी है कि म्यांमार का चिन राज्य मिजोरम के 6 जिलों : चैम्फई , ह्नाहथिआल, सरछीप , सेतुअल, सियाहा और लॉन्गतलाई से सीमा साझा करता है।

आधिकारिक आंकड़ों की बात करें तो पिछले कुछ माह में ही म्‍यांमार के लगभग 10 हजार लोग मिजोरम में आकर रह रहे हैं। ग़ौरतलब है कि चिनलैंड डिफेंस फोर्स और चिन नेशनल आर्मी (या चिन नेशनल फोर्स) ने संयुक्त अभियान में मिजोरम सीमा के सामने लुंगलर गांव में म्यांमार सेना के शिविर पर कुछ समय पहले कब्जा कर लिया था और म्यांमार सेना के 12 सैनिकों को हिरासत में लिया था। उसके बाद सैन्य प्राधिकरण ने जवाबी हमला करने के लिए कुछ हेलीकॉप्टर और दो जेट लड़ाकू विमान भेजे थे।

तख्तापलट विरोधी एनयूजी और म्यांमार सेना के कार्यकर्ताओं के बीच भयंकर गोलीबारी और गोले फटने और अन्य आग्नेयास्त्रों के इस्तेमाल की आवाजें म्यांमार की सीमा से लगे गांवों से सुनी गईं। इसके चलते म्यांमार से मिज़ोरम आने वाले शरणार्थी संकट को बढ़ावा मिला।

म्यांमार के शरणार्थियों के आंकड़ों का प्रबंधन संग्रहण रखने वाले अपराध जांच विभाग (सीआईडी) के अधिकारियों ने साफ तौर पर कहा है कि 2021 के मार्च माह से अब तक करीब 20 विधायकों समेत करीब 11,500 शरणार्थियों ने मिजोरम के 11 जिलों में शरण ली है।

रोहिंग्या मुद्दा (Rohingya Issue) : डेली ...

भारत-म्यांमार सीमा के साथ चम्फाई जिला वर्तमान में 4,550 शरणार्थियों को शरण दे रहा है, जो सबसे अधिक है, इसके बाद आइजोल जिला है जहां 1,700 शरणार्थियों ने शरण ली है।

क्या मिजोरम को म्यांमार के शरणार्थियों को शरण देने का अधिकार है?

भारत सरकार के गृह मंत्रालय द्वारा जारी दिशानिर्देशों के अनुसार , राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों के प्रशासन के पास किसी भी विदेशी को शरणार्थी का दर्जा देने की कोई शक्ति नहीं है, और भारत 1951 के संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी सम्मेलन और इसके 1967 के प्रोटोकॉल का हस्ताक्षरकर्ता नहीं है। यद्यपि भारत सरकार शरणार्थियों के मुद्दे को एक मानवतावादी प्रश्न के रूप में देखती है लेकिन पिछले चार पांच वर्षों से भारत सरकार ने साफ कर दिया है कि देश की राष्टीय सुरक्षा और पूर्वोत्तर भारत की आंतरिक सुरक्षा से सरकार कोई समझौता नहीं कर सकती , फिर चाहे शरणार्थी अफ़ग़ान हो या रोहिंग्या , चकमा हो या हजोंग या फिर कोई और।

मिज़ोरम सरकार म्यांमार से आये शरणार्थियों के प्रति क्यों हैं उदार ?

दरसअल मिजोरम में रहने वाला बहुसंख्यक समुदाय मिज़ो मूल से उत्त्पति के आधार पर भारत का नही रहा है। मिजोरम राज्य सरकार की आधिकारिक वेबसाइट पर भी लिखा गया है कि इस बात की अधिक संभावना है कि मिज़ो लोग चीन के यालुंग नदी ( yalung river) के तटों पर पर स्थित शिनलुंग ( shinlung) अथवा छिंलूंगसान ( Chhinlungsan) से प्रवास करते हुए म्यांमार जैसे देशों में बसते हुए भारत के पुर्वोत्तर क्षेत्र में आये। सबसे पहले मिज़ो लोग चीन से बाहर निकलकर म्यांमार की शान पहाड़ी क्षेत्र में बसे और फिर वहां से काबा घाटी ( kabaw valley) में बसे और वहां से खम्पट ( khampat) और फिर वहां से 16वीं शताब्दी के मध्य में म्यांमार की चिन पहाड़ियों ( Chin Hills) में बसे और यही कारण है कि आज मिजोरम का मिज़ो समुदाय म्यांमार के चिन क्षेत्र से आने वाले लोगों के साथ अपने नृजातीय सह अस्तित्व और पहचान को साझा करने की बात करता है । मिज़ो लोग चिन पहाड़ी क्षेत्र और चीन के यालुंग नदी क्षेत्र को अपनी उत्पत्ति स्थल के रूप में देखते हुए साझे पूर्वजों की भावना से भर जाते हैं और म्यांमार के शरणार्थियों को शरण देने के लिए तैयार हो जाते हैं।

यही कारण है कि जब म्यांमार में सैन्य तख्ता पलट हुआ और शरणार्थी मिजोरम आने लगे तो मिजोरम के मुख्यमंत्री जोरमथांगा ने सबसे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से 1 फरवरी , 2021 को म्यांमार में सैन्य तख्तापलट के बाद से राज्य में आए शरणार्थियों को शरण, भोजन और आश्रय प्रदान करने का आग्रह किया था। म्यांमार की सीमा से लगे चार पूर्वोत्तर राज्यों के लिए केंद्रीय गृह मंत्रालय की सलाह का जिक्र करते हुए और म्यांमार से भारत में अवैध घुसपैठ को रोकने के लिए कार्रवाई करने के लिए असम राइफल्स और बीएसएफ को भी, जोरमथांगा ने कहा था, यह मिजोरम को स्वीकार्य नहीं है। मिजोरम सरकार का एक प्रतिनिधिमंडल पहले ही उपराष्ट्रपति, केंद्रीय गृह राज्यमंत्री और गृह सचिव से दिल्ली में मिल चुका था ताकि उन्हें केंद्र पर दबाव डालने के लिए राजी किया जा सके कि मिजोरम में शरण लिए हुए म्यांमार के नागरिकों को जबरदस्ती वापस म्यांमार न धकेला जाए।

यहां यह भी जानना ठीक रहेगा कि मिजोरम सरकार ने म्यांमार के शरणार्थियों के बच्चों को राज्य के सरकारी स्कूलों में दाखिला देने का फैसला भी किया। कुछ ही समय पहले मिजोरम के स्कूल शिक्षा निदेशक जेम्स लालरिंचना ने बच्चों के मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा के अधिकार अधिनियम, 2009 (आरटीई अधिनियम-2009) का हवाला देते हुए सभी जिला और उप-मंडल शिक्षा अधिकारियों से कहा था कि 6 से 14 वर्ष की आयु के बच्चे वंचित समुदायों के लोगों को प्राथमिक शिक्षा पूरी करने के लिए अपनी उम्र के अनुसार उपयुक्त कक्षा में स्कूलों में प्रवेश पाने का अधिकार है।

मानवतावादी दृष्टिकोण के आधार पर काम करना गलत नही है लेकिन किसी राज्य की जनांकिकी संरचना में बदलाव होने से सामने आने वाले संभावित परिणामों , राष्ट्रीय और आंतरिक सुरक्षा के मुद्दों के प्रति भी राज्य सरकारों को संवेदनशील होने की जरूरत है । एक तरह मिजोरम सरकार और मिज़ो उग्रवादी संगठन और मिज़ो युवा अपने यहां से ब्रू जनजाति जिसे रेयांग जनजाति भी कहते हैं , मारपीट कर त्रिपुरा भगाने के लिए प्रतिबद्ध रही है और ब्रू लोगों की त्रिपुरा से मिजोरम वापसी को हरसंभव प्रयास कर रोकने में लगी रही है , वहीं म्यांमार के शरणार्थियों के प्रति उसने उदारता के द्वार खोल रखे हैं। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि मिजोरम सरकार को राज्य के विकास , मूल नागरिकों के कल्याण को ध्यान में रखते हुए राष्ट्रीय हितों को सर्वोपरि रखने की दिशा में भी सोचते हुए अपने मानवतावादी दायित्वों पर बल देना चाहिये।

विवेक ओझा (ध्येय IAS)


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