ब्लॉग : प्रवासी पक्षियों का भारत में स्वागत है by विवेक ओझा

आज यानी 9 अक्टूबर को विश्व प्रवासी पक्षी दिवस ( वर्ल्ड माइग्रेटरी बर्ड डे) है । इस बार संयुक्त राष्ट्र ने इस दिवस की मुख्य थीम को काफी संवेदनशीलता के साथ तय किया है। इस साल का थीम है : सिंग , फ्लाई , सोर लाइक ए बर्ड है । आज का दिन हमें प्रवासी पक्षियों के हालात को जानने , उनसे सहानुभुति रखते हुए उनके संरक्षण की दिशा में किये जा रहे कार्यों को आगे बढ़ाने का दिन है। इसलिए संयुक्त राष्ट्र ने इस साल प्रवासी पक्षियों के संरक्षण के लिए जो कैम्पेन चुना है उसमें सबसे अधिक फ़ोकस बर्ड सांग और बर्ड फ्लाइट पर किया गया है।

प्रवास किसी को पसंद नही होता , सबको पसंद होता है मूल आवास , मूल निवास स्थान। लेकिन मूल आवास पर चाहे व्यक्ति हो या पशु पक्षी उसकी जरूरतें पूरी नहीं होती तो उसे प्रवास करना ही पड़ जाता है। पशु पक्षियों को प्रवासी बनने में जो कारक सबसे अहम भूमिका निभाते हैं वो हैं कठोर जलवायु या पर्यावरण की दशाएं जिनसे अनुकूलन कर पाना पशु पक्षियों के लिए मुश्किल हो जाता है और वो प्रवास कर जाते हैं। खाने पीने की कमी , बच्चे पैदा करने के लिए आदर्श आवासों की तलाश में भी पशु पक्षियों को प्रवास करना पड़ जाता है। प्रवास के दौरान पक्षियों और पशुओं को कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है , उन्हें हज़ारों मील उड़ते हुए सागरों , महासागरों , नदियों , झीलों , झरनों , पहाड़ों , रेगिस्तानों , जंगलों , हवा के तेज थपेड़ों को पार करते हुए अपने लिए एक मुकम्मिल जगह पर पहुँचना होता है। ऐसी लंबी यात्रा के दौरान इन प्रवासी पक्षियों को डीजल या पेट्रोल भराने का भी सुख नसीब नही होता। ये तो मुसाफ़िर हैं जिन्हें बस अपने पंखों के भरोसे उड़ते जाना होता है। भूख लगती होगी तो क्या कैसे कब खाते होंगे , थकान लगती होगी तो कितना आराम करते होंगे। इन्हें तो ये भी पता नही होता कि जिस देश में प्रवास कर ये पहुँचने वाले हैं वहां पर्यटन क्षेत्र इनकी राह ताक रहा होता है। जब 22 हज़ार किलोमीटर की सबसे लंबी यात्रा करने वाला प्रवासी पक्षी अमूर फाल्कन नागालैंड के वोखा नागा पांगती गावों में पहुँचता है तो वहां पर्यटन का एक अलग ही आलम होता है। आधे घंटे के अंदर इन गांवों में मिलियंस की संख्या में अमूर फाल्कन साइबेरिया और उत्तरी चीन मंगोलिया से होते हुए पूर्वोत्तर भारत और आगे दक्षिण अफ्रीका ठंडियों के मौसम में पहुँचते हैं। वहीं साइबेरियन क्रेन बर्फ के सफेद रंग के पक्षी हैं और सर्दियों के दौरान भारत आते हैं। ये क्रेन सर्वभक्षी हैं और रूस और साइबेरिया के आर्कटिक टुंड्रा में प्रजनन करते हैं। साइबेरियन क्रेन या स्नो क्रेन भारत के भरतपुर स्थित केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में विस्थापित प्रवासी पक्षियों की गंभीर रूप से संकटग्रस्त प्रजातियों के रूप में जाने जाते हैं ।

दुनिया की 11,000 पक्षी प्रजातियों में पांच में से तकरीबन 1 प्रजाति माइग्रेट करती है, जिनमें से कुछ तो बहुत अधिक दूरी तय करती हैं। इन प्रवासी पक्षियों के संरक्षण के लिए देशों और राष्ट्रीय सीमाओं के बीच पूरे उड़ान मार्ग के साथ-साथ सहयोग और समन्वय की आवश्यकता होती है। भारत में आने वाले कुछ प्रमुख प्रवासी पक्षियों में बार-हेडेड गूज, स्टेपी ईगल, यूरेशियन कर्लेव, व्हाइट वैगेट, ग्रेट क्रेस्टेड ग्रेब, कॉमन ग्रीनशंक और यूरेशियन कूट शामिल हैं।

प्रवासी पक्षियों के संरक्षण के महत्व पर विचार करते हुए भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने फरवरी, 2020 में गुजरात के गांधीनगर में आयोजित प्रवासी प्रजातियों पर 13वें कॉन्‍फ्रेंस ऑफ पार्टीज सम्‍मेलन (सीएमएस सीओपी 13) के उद्घाटन समारोह के दौरान कहा था कि भारत सभी मध्य एशियाई फ्लाईवे रेंज देशों के सक्रिय सहयोग के साथ प्रवासी पक्षियों के संरक्षण को एक नए प्रतिमान तक ले जाने का इच्छुक है, और उसे मध्य एशियाई उड़ान मार्ग पर प्रवासी पक्षियों के संरक्षण के लिए अन्य देशों के लिए कार्य योजना की तैयारियों को सुगम करते हुए प्रसन्नता होगी। प्रधानमंत्री ने यह भी कहा था कि ‘भारत में जैव विविधता के चार आकर्षण है-पूर्वी हिमालय, पश्चिमी घाट, भारत-म्‍यांमार क्षेत्र तथा अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, जो विश्‍व से आने वाले प्रवासी पक्षियों की 500 प्रजातियों का वास है।

मध्य एशियाई उड़ान मार्ग (सीएएफ) में प्रवासी पक्षियों और उनके आवासों के संरक्षण कार्यों को मजबूती देने के संकल्प के साथ इसके रेंज देशों की दो दिवसीय ऑनलाइन बैठक कुछ ही रोज पहले ( 6 अक्टूबर को ) शुरू हुई थी। मध्य एशियाई उड़ान मार्ग (सीएएफ) आर्कटिक और हिंद महासागरों के बीच यूरेशिया के एक बड़े क्षेत्र को कवर करता है। इस उड़ान मार्ग में पक्षियों के कई महत्वपूर्ण प्रवास मार्ग शामिल हैं। भारत समेत, मध्य एशियाई उड़ान मार्ग के अंतर्गत 30 देश आते हैं।

प्रवासी पक्षी विश्व पर्यावरण की अमूल्य संपदा हैं , वो इस बात का संदेश देते हैं कि कठिन से कठिन परिस्थितियों और दुर्गम से दुर्गम रास्तों के बीच उम्मीदों का डेरा कैसे डाला जाता है। जरूरत इस बात की है कि प्रवासी पक्षियों के उड़ान के वैश्विक मार्गों को अवरोधों से मुक्त रखा जाए। विभिन्न देशों के पर्यावरण मंत्रालय इसमें आपसी सहमतियां बनाएं। प्रवासी पक्षियों को पर्यटन के उत्पाद की दृष्टि से ऊपर उठकर देखना होगा।

विवेक ओझा (ध्येय IAS)


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