ब्लॉग : मणिपुर द्वारा म्यांमार के लोगों पर भारत में प्रवेश पर रोक के मायने by विवेक ओझा

मणिपुर ने म्यांमार के लोगों के भारत में प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया है और साथ ही अपने जिलों को सर्तकर्ता ( विजिल ) अभिकरणों को सक्रिय रखने के लिए कहा है। भारत और म्यांमार की सीमा पर टिआऊ नदी पर बने ब्रिज की सुरक्षा के लिए अर्ध सैनिक बल चौकसी में लग चुके हैं। मणिपुर सरकार ने अपने 5 जिलों के डिप्टी कमिश्नर से म्यांमार की सीमा से भारत के भू क्षेत्र में आने वाले म्यांमार के लोगों को शरण और भोजन ना देने के लिए कहा है। उल्लेखनीय है कि यह जिले ऐसे हैं जिनकी सीमा म्यांमार से लगती है । मणिपुर म्यांमार से 398 किलोमीटर लंबी सीमा साझा करता है। मणिपुर के पांच जिले चंदेल , उखरूल , चुराचंदपुर , कामजोंग और टेंगनाउपल की सीमा म्यांमार से साझा होती हैं। इन जिलों को म्यांमार से भारत में प्रव्रजन के लिहाज से अति संवेदनशील माना जाता है ।

म्यांमार में सैन्य तख्ता पलट के बाद से पिछले 2 माह में वहां की सेना ने लगभग 510 आम नागरिकों की हत्या कर दी है जिससे वहां भय और असुरक्षा का माहौल बना हुआ है । कुछ समय पूर्व कोविड 19 महामारी के मद्देनजर मणिपुर के स्थानीय जिला प्रशासन ने म्यांमार से आने वाले शरणार्थियो को खाद्य और शरण का प्रस्ताव किया था लेकिन अब मणिपुर सरकार ने साफ निर्देश दे दिए हैं कि उन्हें फूड या शेल्टर न दिया जाए । 10 मार्च को भारत सरकार के गृह मंत्रालय ने मणिपुर , मिजोरम , अरुणाचल प्रदेश और नागालैंड के मुख्य सचिवों और असम राइफल्स को पत्र लिखकर भारत म्यांमार सीमा की सुरक्षा के लिए सर्तकर्ता , चौकसी बढ़ाने को कहा था ताकि म्यांमार के लोगों को पूर्वोत्तर भारत में प्रवेश करने से रोका जा सके। अब यह प्रयास किया गया है कि सीमा शहर मोरेह ( मणिपुर ) में स्थित भारत म्यांमार बॉर्डर ब्रिज क्षेत्र से म्यांमार के लोगों का भारत में प्रवेश न हो सके। भारत ऐसे समय में सख़्त हो रहा है जब म्यांमार के यूएन में राजदूत ने कुछ समय पूर्व भारत सरकार और भारतीय राज्यों से म्यांमार के शरणार्थियो को मानवतावादी आधार पर शरण देने की अपील की थी। पर मणिपुर सरकार द्वारा जो निर्देश जारी किए गए हैं उसमें यह भी कहा गया है कि अगर कोई गंभीर चोट अथवा ऐसा कुछ घटित होता है तो मानवतावादी आधार पर विचार करते हुए चिकित्सकीय ध्यान रखा जाना चाहिए लेकिन जिला प्रशासन को म्यांमार के शरणार्थियों को खाना देने और आश्रय देने के लिए कैंप बिलकुल नहीं खोलने चाहिए।

उत्तर पूर्व के उग्रवादी संगठनों के लिए म्यांमार रहा है शरण स्थल :

मणिपुर के चूड़ाचंद्रपुर, चंदेल और उखरूल, कामजोंग और टेंगनाउपाल जिले से म्यामांर की 398 किलोमीटर लंबी सीमा सटी है। पहाड़ी इलाका होने के कारण कई बार यहां के उग्रवादी संगठन उग्रवादी हमलों को अंजाम देकर सीमा के दूसरी ओर चले जाते हैं।

2014 में म्यामांर में 2000 उग्रवादियों ने शरण ले रखी थी। इन उग्रवादियों को अधिकतर हथियार चीन के अवैध कारोबारियों से मिलते हैं। इस लिहाज से म्यांमार से होने वाले आवागमन के लिए सतर्कता बरती जानी जरूरी हो जाती है। चूंकि भारत ने यूएन रिफ्यूजी कंवेंशन, 1951 यानी शरणार्थियों पर यूएन के वियना कन्वेंशन पर हस्ताक्षर नहीं किया है । इसलिए वह एक मानवाधिकार संरक्षण को बढ़ावा देने वाला देश होने के बावजूद अपने राष्ट्रीय और आंतरिक सुरक्षा के लिए व्यावहारिक निर्णय ले पाने में सक्षम रहा है। भारत ने यूएन के एंटी टार्चर कंवेंशन को भी रेटिफाई नहीं किया है , इसलिए भी वो सीमा पार प्रव्रजन के मुद्दे को राष्ट्रीय हितों के मद्देनजर हैंडल करता है।

नशीले पदार्थों की तस्करी और भारत म्यांमार संबंध

एक और प्रमुख मुद्दा जो भारत और म्यांमार के द्विपक्षीय संबंधों में खलल डालता रहा है वह है नशीले पदार्थों की तस्करी का मुद्दा । चूंकि म्यांमार नार्कोटिक ड्रग्स की तस्करी वाले क्षेत्र स्वर्णिम त्रिभुज का हिस्सा है और यह चार उत्तर पूर्वी भारतीय राज्यों अरुणाचल प्रदेश , नागालैंड , मणिपुर और मिजोरम से सीमा साझा करता है , इसलिए म्यांमार के साथ भारत के संबंध इस विषय पर बहुत संवेदनशील हो जाते हैं। मणिपुर के उखरूल , चंदेल , चंद्रचुरपुर में अफीम और हेरोइन की तस्करी बड़े पैमाने पर होती है। ड्रग फ़्री उत्तर पूर्व और म्यांमार दोनों देशों की साझी जिम्मेदारी है। अमेरिकी ड्रग एनफोर्समेंट एडमिनिस्ट्रेशन के अनुसार , म्यांमार दक्षिण पूर्वी एशिया का 80 प्रतिशत हेरोइन उत्पादन करता है और वैश्विक आपूर्ति के 60 प्रतिशत के लिए अकेले जिम्मेदार है । चीन को म्यांमार के ड्रगलॉर्ड्स का सहयोग समर्थन समय समय पर मिलता रहा है लेकिन सर्वाधिक चिंता की बात तो यह है कि भारत म्यांमार की सीमा पर कई हेरोइन लैब्स सक्रिय हैं। मिज़ोरम में म्यांमार के रास्ते से एंफेटामाइन जैसे पार्टी ड्रग्स की तस्करी और अवैध खरीद फरोख्त भी काफी बढ़ चुकी है जो उत्तर पूर्वी भारत के युवा मानव संसाधन को क्षति पहुंचा रही है। नार्कोटिक ड्रग्स के इम्फाल , आइजोल, कोहिमा, सिलचर , दीमापुर में पहुंचने के बाद इसे कोलकाता, मुंबई , दिल्ली , चेन्नई और बंगलुरू को डिस्पैच कर दिया जाता है। हाल ही में भारत म्यांमार सीमा पर स्थित मोरेह पर लगभग 9 करोड़ रूपए मूल्य के अवैध ड्रग्स को सुरक्षा बलों द्वारा जब्त किया गया है। ऐसे कई उदाहरण अन्य उत्तर पूर्वी राज्यों के संबध में आए दिन मिलते रहते हैं जिससे इस व्यापार की बढ़ती विभीषिका का पता चलता है। यहां यह उल्लेखनीय है कि ड्रग तस्करी दोनों देशों के लिए एक गंभीर मसला इसलिए है क्योंकि इससे आतंक , उग्रवादी , विप्लवकारी , पृथकतावादी गतिविधियों और उन्हें करने वाले समूहों का वित्त पोषण संभव हो जाता है । इसलिए यह दोनों देशों के लिए आंतरिक सुरक्षा के साथ साथ प्रादेशिक अखंडता का भी मुद्दा है जिसके समाधान के लिए भारत और म्यांमार ने अपनी प्रतिबद्धता भी प्रदर्शित की है । इसके अलावा नागालैंड और अरुणाचल प्रदेश में सक्रिय उग्रवादी अलगाववादी समूहों को भी चीन से वित्तीय सहायता और हथियार आपूर्ति के रूप में सहायता मिल रही है। ऐसे भारत विरोधी नेटवर्क्स को तोड़ने में म्यांमार का सहयोग अपेक्षित है।

विवेक ओझा (ध्येय IAS)


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