ब्लॉग : कश्मीर मुद्दा, भारत और ओआईसी के प्रस्ताव के बीच पाकिस्तान by विवेक ओझा

कश्मीर मुद्दा विश्व के कई देशों और कुछ संगठनों के लिए भारत विरोध के एक उपकरण के रूप में प्रयोग में लाया जाता रहा है । ऑर्गनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कोऑपरेशन और पाकिस्तान के लिए कश्मीर मुद्दा भारत के तनाव को मापने का यंत्र समझा गया है। इसी संदर्भ में कश्मीर मुद्दे पर ओआईसी के हालिया प्रस्ताव और उसके पीछे की मंशा पर आज दैनिक जागरण में प्रकाशित मेरा लेख आपके समक्ष है। भारत के कूटनीतिक प्रयासों से कई ओआईसी देशों के साथ भारत के बेहतर संबंध भी हाल में विकसित हुए हैं। इस हिसाब से भारत - ओआईसी संबध सुधार के उपायों को ओआईसी विरोध के नाम पर भूला नहीं जाना चाहिए। अरब विश्व , इस्लामिक विश्व की आवाज ओआईसी को भारत की आवाज भी सुनाई देनी चाहिए और भारत तो अच्छे संबंधों के लिए मौके दे ही रहा है।

काश्मीर मुद्दे के अंतरराष्ट्रीयकरण या क्षेत्रीयकरण करने के प्रयासों को भारत बहुत संवेदनशीलता के साथ लेता है। काश्मीर मुद्दे पर भारत सरकार की भूमिका को विवादास्पद बनाने के हर प्रयासों के प्रति भी भारत सतर्क रहा है। इसी क्रम में हाल ही में कश्मीर मुद्दे पर ऑर्गनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कोऑपरेशन द्वारा प्रस्ताव रखने और उसपर भारत विरोधी वक्तव्य जारी करने का काम किया गया है जिसका भारत ने कड़े शब्दों में विरोध किया है। नाईजर में आयोजित ओआईसी की बैठक में जिन प्रस्तावों को अंगीकृत किया गया है , उसमें काश्मीर पर अपनाए गए प्रस्ताव में कहा गया है कि भारत सरकार द्वारा जम्मू कश्मीर में मुस्लिम अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ अत्याचार किया गया है। भारतीय सुरक्षा बलों द्वारा काश्मीर में मानवाधिकार उल्लंघन का कार्य किया गया है। इस पर भारत सरकार के विदेश मंत्रालय ने स्पष्ट रूप से कहा है कि ओआईसी के ऐसे प्रस्तावों से एक केवल देश पाकिस्तान को भारत विरुद्ध अभियान चलाने में मदद भर मिल सकती है और पाकिस्तान को ऐसे किसी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष मदद पर ओआईसी को पुनर्विचार करना चाहिए। भारत सरकार का कहना है कि यह बड़े खेद का विषय है कि ओआईसी जैसा संगठन अपने को पाकिस्तान के हाथों इस्तेमाल किए जाने वाला एक मुहरा बना रहा है और उसे अपना समर्थन देना जारी रखे हुए है । भारत का मत है कि पाकिस्तान स्वयं धार्मिक असहिष्णुता, कट्टरता, अल्पसंख्यकों के ऊपर अत्याचार को बढ़ावा देने वाला देश है।

पाकिस्तान को काश्मीर मुद्दे पर अंतरराष्ट्रीय और क्षेत्रीय स्तर पर अलग थलग करने के लिहाज से यह जरूरी है कि ओआईसी जैसे संगठन के किसी प्रस्ताव या दृष्टिकोण में पाकिस्तान अपने झूठे दावों की वैधता ना खोज पाए। ओ आइ सी के काश्मीर मुद्दे पर प्रस्ताव या उसके किसी दस्तावेज में काश्मीर की स्थिति का ज़िक्र करना भारत के लिए एक अहम सवाल इसलिए हो जाता है क्योंकि ऑर्गनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कोऑपरेशन इस्लामिक , मुस्लिम अथवा अरब विश्व की सामूहिक आवाज है । इसके नीतियों , प्रस्तावों , विरोध और बहिष्कार संबंधी रणनीति को मध्य पूर्व और खाड़ी सहित दुनिया भर के इस्लामिक देश गंभीरता से लेते हैं। ओ आई सी के प्रस्तावों के आधार पर इस्लामिक देशों में आत्म निर्धारण अधिकार संबंधी आंदोलनों को वैधता मिलने की संभावना रहती है।

 

ओआईसी द्वारा काश्मीर या अल्पसंख्यक अत्याचार के प्रश्न पर दिया गया बयान कोई पहला अवसर नहीं है जब भारत सरकार की नीतियों पर प्रश्न चिन्ह खड़ा किया गया है। भारत सरकार ने जिस नागरिकता संशोधन अधिनियम , 2019 के जरिए उत्पीड़ित हिन्दुओं को मानवतावादी हस्तक्षेप और सहायता के नाम पर नागरिकता देने का निर्णय किया था , उसपर मलेशिया और 57 मुस्लिम देशों के इस्लामिक सहयोग संगठन ने प्रश्नचिह्न खड़े किए थे और तो और पाकिस्तान ने भी अमेरिका द्वारा अपनी पिछले वर्ष जारी किए गए धार्मिक स्वतंत्रता रिपोर्ट के आधार पर पाकिस्तान को ब्लैकलिस्ट किए जाने का विरोध करते हुए कहा था कि अमेरिका को भारत सरकार द्वारा अल्पसंख्यकों के संगठित स्तर पर दमन को देखते हुए पाकिस्तान कि बजाय भारत सरकार को ब्लैकलिस्ट करना चाहिए । इसी क्रम में मलेशिया ने भी भारत के ऊपर प्रश्न खड़े किए थे । मलेशिया के प्रधानमंत्री महातिर मोहम्मद ने पिछले वर्ष कुआलालंपुर शिखर सम्मेलन 2019 में भारत के नए नागरिकता कानून की आलोचना की थी। मलेशियाई पीएम ने अपने संबोधन में कहा था कि यह देखकर दुख हो रहा है कि जो भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश होने का दावा करता है, वह कुछ मुसलमानों को उनकी नागरिकता से वंचित करने की कार्रवाई कर रहा है। उन्होंने इस कानून की आवश्यकता पर सवाल उठाते हुए कहा था कि इसके कारण लोग मर रहे हैं। जब 70 साल तक लोग बगैर किसी परेशानी के एकसाथ रहते आ रहे थे, तब ऐसे नागरिकता कानून बनाने की जरूरत ही नहीं थी ? ऑर्गनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कॉन्फ्रेंस ने भारत में नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ हो रहे प्रदर्शनों और अयोध्या मामले पर आए फैसले को लेकर अपनी चिंता जाहिर की है। अपने बयान में ओआईसी ने कहा कि वह बारीकी से भारत में अल्पसंख्यक स्थिति पर नजर बनाए हुए है। यह संगठन चूंकि मुस्लिम विश्व की सामूहिक आवाज के रूप में माना जाता है इसलिए इसके किसी निर्णय और बयान का भारत के मुस्लिम हितों के संबंध में प्रभाव पड़ने की उम्मीद से इंकार भी नहीं किया जा सकता । भारत की आजादी के बाद से कुछ ऐसे ठोस निर्णय लेने और उन्हें लागू करने की जरूरत थी जो विभाजक राजनीति को दूर कर देश को समावेशी विकास के रास्ते पर ले जा सकें। ऐसे ही कुछ ठोस फैसले भारत सरकार द्वारा हाल के समय में लिए गए । नेशनल सिटीजन रजिस्टर और नागरिकता संशोधन अधिनियम , 2019 जैसे कदम धारा 370 और अनुच्छेद 35 ए के उन्मूलन, तीन तलाक पर रोक संबंधी कानून और अयोध्या राम मंदिर विवाद समाधान के फेहरिस्त में जुड़ गए। ये सब कुछ ऐसे कदम थे जिस पर घरेलू स्तर के साथ ही कुछ राष्ट्रों द्वारा राजनीति करते हुए अल्पसंख्यकों के मन में खौफ पैदा करने का प्रयास किया गया और इन्हें अल्पसंख्यक विरोधी पहल करार दिया गया।

यूएन देश और पाकिस्तान शांति की संस्कृति का करें विकास :

संयुक्त राष्ट्र महासभा के 75 वें सत्र की शुरुआत में भारत के प्रतिनिधि द्वारा पाकिस्तान पर दक्षिण एशिया में शांति की संस्कृति विकसित ना होने देने के चलते फटकार लगाई गई है। भारत ने साफ तौर पर कहा है कि वर्ष 2019 में शांति की संस्कृति ( कल्चर ऑफ पीस ) पर पारित प्रस्ताव का उल्लंघन पाकिस्तान द्वारा लगातार किया जा रहा है। कुछ समय पूर्व ही सिक्खों के पवित्र धर्म स्थल करतारपुर साहिब गुरुद्वारे का प्रबंधन पाकिस्तान सरकार ने सिख समुदाय के हाथ से लेकर गैर सिख समुदाय को मनमाने तरीके से सौंप दिया है । यह कृत्य पाकिस्तान के धार्मिक असहिष्णुता की मानसिकता का प्रतीक है। इस मुद्दे पर भारत ने पाकिस्तान के हाई कमीशन के प्रतिनिधि को तलब किया है।

भारत ने सभी संयुक्त राष्ट्र देशों से अपील की है कि वे सभी धर्मों के खिलाफ होने वाले हमलों के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद करें। वो किसी धर्म विशेष के खिलाफ होने वाले अत्याचार पर ही कुछ बोलने का चयन करने की आदत से बचें । विश्व के अलग अलग देशों में कई धर्म और उससे जुड़े लोगों के खिलाफ उनके राष्ट्र के भीतर ही अत्याचार हो रहे हैं जिसके खिलाफ संयुक्त राष्ट्र के देशों को सामूहिक आवाज उठाने की जरूरत है। भारत ने साफ तौर पर कहा है कि हिन्दू धर्म , बौद्ध धर्म और सिक्ख धर्म के खिलाफ होने वाले हमलों को समतामूलक भाव से संज्ञान में लेने में संयुक्त राष्ट्र महासभा असफल रहा है । भारत का कहना है कि हिन्दू धर्म के मानने वालों की संख्या 1.2 बिलियन से अधिक है , वहीं बौद्ध धर्म के 535 मिलियन से अधिक मतावलंबी दुनिया भर में फैले हुए हैं और पूरी दुनिया में सिख धर्म के 30 मिलियन से अधिक मतावलंबी हैं जिनके धार्मिक विश्वास ,भावना , अधिकारों का संरक्षण समान भाव से करने की जरूरत है।

ओआईसी और आतंकवाद संबंधी मुद्दा :

भारत ने वर्ष 1996 में अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद पर जिस व्यापक अभिसमय को अपनाने के लिए संयुक्त राष्ट्र महासभा में एक प्रस्ताव रखा था वह भी अमेरिका और इस्लामिक सहयोग संगठन के सदस्य देशों तथा कुछ लैटिन अमेरिकी देशों के विरोध और मतभेद के चलते अभी तक अंगीकृत नहीं किया जा सका है। इस्लामिक सहयोग संगठन के देशों के द्वारा इस अभिसमय के विरोध के चलते यह कार्यशील नहीं हो सका है। इस्लामिक सहयोग संगठन के देशों का मानना रहा है कि राष्ट्रीय स्वाधीनता आंदोलनों को आतंकवाद की परिभाषा से बाहर रखा जाए जैसे इजरायल और फिलिस्तीन का युद्ध और इस आधार पर फिलिस्तीन के उग्रवादी और आतंकी गुटों के कार्यकलापों को वैध ठहराया जाना । पाकिस्तान जैसे देश आतंकियों को स्वतंत्रता सेनानी के रूप में देखते हैं और आतंकी कृत्य को एक धर्म युद्ध के रूप में। पाक अधिकृत कश्मीर में आजादी की लड़ाई को पाकिस्तान एक जेहाद के रूप में देखता है । इसलिए वह भारत द्वारा प्रस्तावित इस अभिसमय का विरोध करता है।

भारत के लिए ओआईसी की अहमियत :

इस्लामी सहयोग संगठन के सदस्यों में से एक चौथाई से अधिक सदस्य संयुक्त राष्ट्र में हैं, और मानवता के लगभग एक चौथाई है। यह एक ऐसा संगठन है, जिसकी हमारी दुनिया को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका है। इस्लामिक सहयोग संगठन संयुक्त राष्ट्र संघ के बाद दूसरा सबसे बड़ा अंतरसरकारी संगठन है जिसमें 57 इस्लामिक सदस्य देश हैं जो विश्व के चार महाद्वीपों से हैं । यह संगठन मुस्लिम विश्व की सामूहिक आवाज है। यह विश्व के विभिन्न लोगों में अन्तर्राष्ट्रीय शांति और सौहार्द्र को बढ़ावा देते हुए मुस्लिमों के हितों को सुरक्षित करने का लक्ष्य रखता है । यह संगठन आज इस्लाम के प्रति देशों के पूर्वाग्रह , भय , आशंकाओं को दूर करने की अपील करता है। यह इस्लाम से नफ़रत वाली धारणा इस्लामोफोबिया को मुस्लिम विश्व के लिए एक बड़े खतरे के रूप में देखता है। लेकिन इस संगठन को खुद भी पूर्वाग्रही होने से बचने का प्रयास करना होगा।

यह संगठन राष्ट्रों को न सिर्फ एक समान विश्वास की नींव पर लाता है, बल्कि उनके लोगों के लिए बेहतर भविष्य की साझा इच्छा से भी ऐसा करता है।

  1. दक्षिण पूर्व एशिया से लैटिन अमेरिका के तटों तक;
  2. मध्य एशिया के मैदान से लेकर अफ्रीकी महाद्वीप के विशाल विस्तार तक;
  3. दक्षिण एशिया से पश्चिम एशिया और उत्तरी अफ्रीका के विशाल खंड तक, राष्ट्रों का प्रतिनिधित्व यहां किया गया है, जो भाषा और साहित्य, रीति-रिवाजों और संस्कृति, इतिहास और विरासत की शानदार विविधता को भी दर्शाता है। भारतीय विदेश मंत्री द्वारा 2019 के इस्लामिक सहयोग संगठन की बैठक में यह विचार प्रस्तुत किया गया था ।

ओआईसी के सदस्य देश ब्रुनेई, इंडोनेशिया और मलेशिया भारत की एक्ट ईस्ट पॉलिसी के महत्वपूर्ण स्तंभ हैं, और इंडो पैसिफिक क्षेत्र में भारत के व्यापक जुड़ाव हैं। वहीं दूसरी तरफ अफगानिस्तान, बांग्लादेश और मालदीव के साथ भारत के संबंध दक्षिण एशिया में शांति , सुरक्षा और स्थिरता के लिए अत्यंत आवश्यक हैं। पश्चिम एशिया में, फिलिस्तीनी लोगों की आकांक्षाओं के साथ भारत की एकजुटता अटूट रही है। अरब विश्व के देशों में भारत के लिए विश्वास निर्माण भारत की एक बड़ी जरूरत रही है। वहीं इस्लामिक सहयोग संगठन का सदस्य ईरान भारत के ऊर्जा सुरक्षा के हितों के लिए अत्यंत आवश्यक है।

ओआईसी सदस्य देशों ट्यूनीशिया, मोरक्को और अल्जीरिया जैसे देशों के साथ भारत एक अधिक समावेशी दुनिया के लिए अपनी आकांक्षा साझा करने की दिशा में कार्य करता है। अफ्रीका से प्राकृतिक तेल की प्राप्ति के लिए इन देशों का विशेष महत्व है । टर्की के साथ भी भारत ने अपने संबंधों को मजबूती देने का प्रयास किया है । सर्वाधिक महत्वपूर्ण रूप में इस्लामिक सहयोग संगठन के खाड़ी सदस्य देशों से भारत का विशेष संबंध है । खाड़ी सहयोग परिषद भारत का सबसे बड़ा क्षेत्रीय व्यापारिक साझेदार है जिसके साथ भारत के 100 बिलियन डॉलर से अधिक के द्विपक्षीय व्यापार हैं और भारत को पूरी दुनिया के भारतीय डायास्पोरा से मिलने वाले रेमिटेंस में आधे से अधिक हिस्सा खाड़ी देशों का है ।

1 मार्च , 2019 को संयुक्त अरब अमीरात अबू धाबी में आयोजित ओआईसी समिट में उद्घाटन सत्र में भारतीय विदेश मंत्री को पहली बार भाग लेने के लिए आमंत्रित किया गया । किसी भारतीय विदेश मंत्री को पहली बार इस संगठन ने गेस्ट ऑफ ऑनर के रूप में उपस्थित होने के लिए आमंत्रित किया था। उल्लेखनीय है कि भारत को पहली बार इस संगठन की बैठक में भाग लेने के लिए वर्ष 1969 में आमंत्रित किया गया था लेकिन पाकिस्तान की आपत्ति और भारत विरोधी कूटनीति के चलते भारत इसमें भाग नहीं ले पाया । खाड़ी देश कतर पहला देश था जिसने वर्ष 2002 में ओआईसी के विदेश मंत्रियों की बैठक में यह प्रस्ताव किया था कि भारत को इस्लामिक सहयोग संगठन के पर्यवेक्षक सदस्य का दर्जा दिया जाए । कतर का कहना था कि भारत में बड़ी मुस्लिम जनसंख्या निवास करती है अतः वैश्विक स्तर पर मुस्लिम हितों के प्रतिनिधित्व में भारत को भी बड़ी भूमिका मिलनी चाहिए लेकिन पाकिस्तान ने कतर के इस प्रस्ताव को पारित नहीं होने दिया । वर्ष 2018 में बांग्लादेश ने भी प्रस्ताव किया कि इस्लामिक सहयोग संगठन के चार्टर में संशोधन कर गैर मुस्लिम देशों जैसे भारत को पर्यवेक्षक सदस्य का दर्जा दिया जाए ।

कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि भारत और ओआईसी के मध्य सामंजस्यपूर्ण संबंध भारत और अरब विश्व के बेहतर संबंधों के लिए जरूरी हैं। इसलिए एक दूसरे की क्षेत्रीय प्रादेशिक अखंडता और संप्रभुता का सम्मान करते हुए विभाजक वैश्विक और क्षेत्रीय राजनीति को बढ़ावा देने के प्रयासों से बचना चाहिए और यह तब अधिक महत्वपूर्ण अपेक्षा हो जाती है जब बात दक्षिण एशिया में पाकिस्तान के मंसूबों की हो ।

विवेक ओझा (ध्येय IAS)


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