ब्लॉग : कार्बी आंगलांग के पृथक राज्य की मांग और ऐतिहासिक कार्बी एकॉर्ड , 2021 के मायने by विवेक ओझा

असम को मिनी भारत के रूप में जाना जाता रहा है । यहां के भिन्न भिन्न नृजातीय समूहों के चलते असम के हर क्षेत्र की अपनी एक पृथक एथनिक आइडेंटिटी रही है । बोडो हो या कछारी , मिकिर हो या कार्बी सबकी अलग अलग बोली भाषा , जीवन शैली , सामुदायिक संस्कृति रही है । अपने अपने नृजातीय पहचान पर किसी प्रकार का खतरा न आने देने के लिए असम के नृजातीय समुदाय सक्रिय रहे हैं और अपनी मांगों को पूरा कराने के लिए सभी ने अपने स्थानीय लोगों से निर्मित उग्रवादी संगठन बनाये और अलगाववादी आंदोलन को असम में बढ़ावा दिया । बोडो लोगों ने असम से पृथक अपने लिए एक बोडोलैंड राज्य के लिए आंदोलन चलाया तो वहीं कार्बी लोगों ने एक पृथक कार्बी राज्य के लिए उग्रवादी हिंसा को अंजाम दिया। असम के सबसे घातक उग्रवादी संगठन उल्फा की बात करें तो इसने भारतीय संघ से ही असम को अलग करने का अलगाववादी आंदोलन चलाया था। इन सब कारकों ने उत्तर पूर्वी भारत की शांति , सुरक्षा और विकास को लंबे समय तक बुरी तरीके से प्रभावित किया। इसी के चलते हाल के समय में भारत सरकार ने " उग्रवाद मुक्त समृद्ध उत्तर पूर्व " का लक्ष्य बनाया और यह ठाना कि कार्बी उग्रवादियों सहित सभी प्रमुख उग्रवादी संगठनों के उग्रवादियों को आत्मसमर्पण कराने और उनका पुनर्वास कराने की ठोस रणनीति पर भारत सरकार पूर्वोत्तर भारत की राज्य सरकारों के साथ मिलकर काम करेगी । इसी कड़ी में हाल ही में ब्रू एकार्ड और बोडो एकॉर्ड के बाद कार्बी विद्रोहियों को भी हथियार डालने के उद्देश्य से भारत सरकार ने कार्बी एकॉर्ड को सितंबर , 2021 में अंजाम दिया है।

कार्बी आंगलोंग में अलगाववाद और उग्रवाद का इतिहास :

कार्बी लोगों को भारतीय संविधान के आदेश (भारत सरकार के आदेश) में मिकिर के नाम से उल्लेख किया गया है न कि कार्बी के नाम से। लेकिन इसके बावजूद कार्बी लोगों ने अपने को कभी मिकिर नही कहा न कहलाना पसंद किया। कुछ जगहों पर इन्हें अरलेंग भी कहा जाता है। कार्बी लोगों अपनी संस्कृति , भाषा की रक्षा के लिए 1950 के दशक से ही असुरक्षित महसूस करते रहे। कार्बी लोग कार्बी आंगलोंग जिले के अलावा उत्तरी कछार जिले , कामरूप , मोरीगांव , नंगाव और सोनितपुर जिले में भी थोड़ी बहुत संख्या में निवास करते हैं। कार्बी लोग मंगोलायड प्रजाति से संबंधित हैं और भाषाई स्तर पर वे तिब्बती बर्मा समूह से संबंधित हैं। तिब्बती बर्मा समूह की भाषा बोलने वाले लोगों का मूल निवास पश्चिमी चीन के निकट यांग टी कियांग और होआंग हो नदियों का क्षेत्र है जहां से ये भाषा बोलने वाले लोग ( कार्बी भी ) भारत और बर्मा ( आधुनिक म्यंमार ) के ब्रम्हपुत्र , इरावदी और चिंदविन नदियों के क्षेत्र में प्रवास कर आये थे।

कार्बी आंगलांग जिला असम के मध्य भाग में स्थित है और नागालैंड राज्य से इसकी सीमा लगती है , यह गोलाघाट और होजाई और दीमा हसाओ  जिलों से भी घिरा है। 1951 में असम में एक  यूनाइटेड मिकिर एंड नॉर्थ कछार हिल्स जिला एक नए जिले के रूप में गठित हुआ था । 3 नवंबर , 1951 को गोलाघाट जिला ( तत्कालीन सिबसागर ) नगांव , कछार और यूनाइटेड खासी और जयंतिया जिले के भागों के साथ यह जिला बनाया गया था। बाद में मिकिर हिल्स और नॉर्थ कछार जिलों को अलग अलग जिला बनाया गया । 14 अक्टूबर , 1976 को मिकिर हिल्स जिले को ही कार्बी आंगलांग जिला नाम दिया गया । वर्तमान में यह असम का सबसे बड़ा जिला है ।

कार्बी आंगलोंग जिला परिषद का गठन 17 नवंबर , 1951 को हुआ था और इसे ही बाद में 23 जून , 1952 को कार्बी आंगलोंग स्वायत्त परिषद नाम दे दिया गया। वहीं उत्तरी कछार पर्वतीय जिला परिषद का गठन 29 अप्रैल , 1952 को किया गया था जिसे 13 सितम्बर 1995 को उत्तरी कछार पर्वतीय स्वायत्त परिषद नाम से जाना जाने लगा। ये दोनों ही स्वायत्त परिषद यानि कार्बी आंगलोंग स्वायत्त परिषद और उत्तरी कछार पर्वतीय जिला परिषद जिस नियम कानून के तहत बनाये गए हैं और जिसके अधीन कार्य करते हैं वो है : असम स्वायत्त जिला ( जिला परिषदों का निर्माण) रूल्स , 1951

1990 के दशक में पृथक कार्बी राज्य की मांग के साथ सशस्त्र अतिवाद और विप्लवकारी गतिविधियों की शुरुआत हुई थी । वर्ष 1996 में दो उग्रवादी गुटों कार्बी नेशनल वॉलिंटियर्स और कार्बी पीपुल्स फोर्स का गठन किया गया था। 1999 में ये दोनों गुट एक बैनर पर आए और गुट का एक नाम यूनाइटेड पीपुल्स डेमोक्रेटिक सोलिडैरिटी रखा । इन्होंने पृथक राज्य के नाम पर हिंसा की । वर्ष 2002 में इसने भारत सरकार के साथ सैन्य विराम समझौता किया लेकिन इसके वार्ता विरोधी गुट ने कार्बी लोंगरी नॉर्थ कछार हिल्स लिबरेशन फ्रंट का गठन कर पृथक कार्बी प्रदेश की मांग को जारी रखा । 2010 में इस नए संगठन ने भी भारत सरकार के साथ सैन्य विराम समझौता किया और इसके 400 से अधिक कैड रों ने आत्मसमर्पण किया था । इसके बाद भी कार्बी आंगलांग क्षेत्र में केपीएलटी नामक नए संगठन ने उल्फा , एनडीएफबी ( एस) और एनएससीएन ( इजाक मुइवा ) से गठजोड़ कर पृथक कार्बी राज्य की मांग के लिए हिंसक गतिविधियों को जारी रखा । 1 अप्रैल , 1995 को कार्बी आंगलांग डिस्ट्रिक्ट काउंसिल को एक उन्नत स्तर प्रदान करते हुए कार्बी आंगलांग स्वायत्त परिषद बनाया गया । भारतीय संविधान के अनुसूची 6 के तहत ऐसा करके कार्बी लोगों की आकांक्षाओं को कुछ हद तक पूरा करने की कोशिश की गई थी ।

कार्बी एक प्रमुख जातीय समुदाय है, जो कई साल से असम में कार्बी आंगलोंग स्वायत्त परिषद (KAAC) की मांग करता आ रहा है और अलग-अलग हिंसक घटनाओं में लिप्त थे। कई गुटों में बिखरे असम के प्रमुख जातीय समुदाय कार्बी के विद्रोह का लंबा इतिहास रहा है, जो 1980 के दशक के उत्तरार्ध से हत्याओं, जातीय हिंसा, अपहरण और कराधान में शामिल रहा है। लगभग 200 कार्बी उग्रवादी उन 1,040 उग्रवादियों का हिस्सा हैं, जिन्होंने इस साल 25 फरवरी को पूर्व मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल की उपस्थिति में गुवाहाटी के एक कार्यक्रम में औपचारिक रूप से हथियार डाल दिए थे।

आत्मसमर्पण करने वाले उग्रवादियों में इंग्ती कथार सोंगबिजित भी शामिल था, जो राज्य में उग्रवाद और जातीय हिंसा के कई मामलों में शामिल रहा है। इन उग्रवादियों ने कुल 338 हथियार जमा किए, जिनमें 11,203 गोलियों के साथ 8 लाइट मशीनगन, 11 एम-16 राइफल और 58 एके-47 राइफल भी थी। पांचों संगठनों के उग्रवादी एक साल बाद तब अपने हथियार के साथ आत्मसमर्पण करने आए थे जब भाजपा ने बोडोलैंड में लंबे समय से चल रही हिंसा को समाप्त करने के लिए बोडो शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए थे।

कार्बी एकॉर्ड , 2021 :

केन्द्रीय गृह मंत्री की उपस्थिति में 4 सितंबर को असम की क्षेत्रीय अखंडता को सुनिश्चित करने वाले दशकों पुराने संकट को समाप्त करने के लिए ऐतिहासिक कार्बी आंगलोंग समझौते पर नई दिल्ली में हस्ताक्षर हुआ । मुख्यमंत्री असम और  कार्बी लोंगरी नॉर्थ कछार हिल्स लिबरेशन फ्रंट/के.एल.एन.एल.एफ., पीपुल्स डेमोक्रेटिक काउंसिल ऑफ कार्बी लोंगरी/पी.डी.सी.के., यूनाइटेड पीपुल्स लिबरेशन आर्मी/यू.पी.एल.ए., कार्बी पीपुल्स लिबरेशन टाइगर्स/के.पी.एल.टी. गुटों के प्रतिनिधियों सहित केंद्रीय गृह मंत्रालय और असम सरकार के वरिष्ठ अधिकारीगण उपस्थित थे।

इस ऐतिहासिक समझौते के फलस्‍वरूप, 1000 से अधिक सशस्त्र कैडर हिंसा का त्‍याग कर समाज की मुख्यधारा में शामिल हो गए हैं। कार्बी क्षेत्रों में विशेष विकास परियोजनाओं को शुरू करने के लिए केंद्र सरकार और असम सरकार द्वारा पांच वर्षों में 1,000 करोड़ रुपये का एक विशेष विकास पैकेज दिया जाएगा।

समझौते की मुख्य विशेषताएं:

  • यह समझौता ज्ञापन असम की क्षेत्रीय और प्रशासनिक अखंडता को प्रभावित किए बिना कार्बी आंगलोंग स्वायत्त परिषद को और अधिक स्वायत्तता का हस्तांतरण करेगा।
  • कार्बी लोगों की पहचान, भाषा, संस्कृति आदि की सुरक्षा और परिषद क्षेत्र में सर्वांगीण विकास को सुनिश्चित करेगा।
  • कार्बी सशस्त्र समूह हिंसा को त्यागने और देश के कानून द्वारा स्थापित शांतिपूर्ण लोकतांत्रिक प्रक्रिया में शामिल होने के लिए सहमत हुए हैं। समझौते में सशस्त्र समूहों के कैडरों के पुनर्वास का भी प्रावधान है।
  • असम सरकार कार्बी आंगलोंग स्वायत्त परिषद क्षेत्र से बाहर रहने वाले कार्बी लोगों के विकास पर ध्यान केंद्रित करने के लिए एक कार्बी कल्याण परिषद की स्थापना करेगी।
  • कार्बी आंगलोंग स्वायत्त परिषद के संसाधनों की पूर्ति के लिए राज्य की संचित निधि को बढ़ाया जाएगा।
  • वर्तमान समझौते में कार्बी आंगलोंग स्वायत्त परिषद को समग्र रूप से और अधिक विधायी, कार्यकारी, प्रशासनिक और वित्तीय शक्तियां देने का प्रस्ताव है।

विवेक ओझा (ध्येय IAS)


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