ब्लॉग : दक्षिण पूर्वी एशिया में मजबूत होता भारत वियतनाम गठजोड़ by विवेक ओझा

महासागरों , सामरिक महत्व के सागरों की सुरक्षा का मुद्दा भारत की विदेश नीति में एक बेहद अहम मुद्दे के रूप में पिछले कुछ वर्षों से उभरा है और जब बात महासागरीय सुरक्षा की हो तो दक्षिण पूर्वी एशिया के महत्व की उपेक्षा नहीं की जा सकती । हिन्द महासागर हो या प्रशांत महासागर दुनिया के तमाम देशों का आर्थिक भविष्य इन भू आर्थिक महत्व के क्षेत्रों से जुड़ा है । यही कारण है कि आज हर कोई जिम्मेदार देश चाहे वो महाशक्ति हो या क्षेत्रीय शक्ति इस बात को खुलकर कहने लगा है कि दक्षिण चीन सागर या पूर्वी चीन सागर में नौगमन की स्वतंत्रता ( फ़्रीडम ऑफ नेविगेशन ) किसी भी हाल में बहाल की जानी चाहिए । महत्वपूर्ण समुद्री व्यापारिक मार्गों तक देशों की अबाध पहुंच होनी चाहिए , महासागरीय क्षेत्रों में दुनिया के देशों को वायु मार्गों सहित उड़ान की स्वतंत्रता होनी चाहिए। ये सब किसी या किन्हीं देशों के एकाधिकारवादी या प्रभुत्व वादी मानसिकता के चलते ना हो पाए तो इसका खामियाजा दुनिया के कई देशों को उठाना पड़ेगा जिनका किसी महासागरीय या सागरीय क्षेत्र में हित जुड़ा हुआ है। यही कारण है कि आज दुनिया भर के बड़े से बड़े देश फिर चाहे वो अमेरिका हो या भारत , जापान हो , फ्रांस या जर्मनी हो या फिर ऑस्ट्रेलिया हर कोई इन क्षेत्रों की स्वतन्त्रता का हवाला देते हुए रूल बेस्ड वर्ल्ड ऑर्डर को विकसित करने की पुरजोर वकालत करते नजर आते हैं। ये देश कहते हैं कि कोई भी सागरीय विवाद हो , किसी देश के सागरीय सीमा के निर्धारण का सवाल हो या फिर उनके मैरीटाइम जुरिडिक्शन का सवाल हो , इन मामलों में युनाइटेड नेशन्स कन्वेंशन ऑन दि लॉ ऑफ दि सी के प्रावधानों से संगति रखते हुए ही राष्ट्रों को आपसी मामलों को सुलझाना चाहिए।

दक्षिण पूर्वी एशिया के देशों में भी मैरीटाइम सिक्योरिटी का मुद्दा एक अत्यंत संवेदनशील मुद्दा हो गया है। दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों को भारत जैसे मजबूत उभरती बाजार अर्थव्यवस्था के सहयोग की जितनी जरूरत रही है , उतनी ही जरूरत भारत को भी सागरीय सुरक्षा के मसलों पर आसियान देशों की रही है। यही कारण है कि वियतनाम सहित आसियान के दसों देश भारत की एक्ट ईस्ट पॉलिसी और एक्सटेंडेड नेबरहुड की धारणा के अनिवार्य अंग के रूप में प्रोजेक्ट किए गए हैं। इस संदर्भ में भारत और वियतनाम के संबंधों को एक विशेष दृष्टिकोण से देखा जाना चाहिए । भारत और वियतनाम के बीच हाल में हुए वर्चुअल शिखर सम्मेलन में दक्षिण चीन सागर की मौजूदा स्थिति पर दोनों देश के बीच विस्तार से चर्चा हुई । भारत द्वारा वियतनाम को सागर -3 मिशन के तहत मानवीय सहायता देने के लिए भेजा गया भारतीय युद्ध पोत आईएनएस किलतान वियतनाम के बंदरगाह पर हाल ही में पहुंचा है। हो ची मिन्ह शहर में बाढ और कोविड से त्रस्त वियतनामी नागरिकों को राहत और सुरक्षा देने के लिए भारत ने 15 टन मानवीय राहत सामग्री इस युद्ध पोत के जरिए भेजी है।

वैसे भी भारत का मिशन सागर -3 पड़ोसी और अन्य देशों को मानवतावादी सहायता और आपदा राहत सहायता देने के लिए फ्रेम किया गया है। लेकिन यह भी सच है कि इसके जरिए भारत एक मीनिंगफुल मैरीटाइम डिप्लोमेसी को संचालित करने की राह पर भी चल पड़ा है जिसके पिछे मंशा यह है कि आसियान के कई देशों जहां चीन इंडस्ट्रियल कॉरिडोर खोलने , स्पेशल इकोनोमिक ज़ोन बनाने , बंदरगाह और डीप सी पोर्ट खोलने , सैन्य और नौसैन्य अड्डे खोलने, सागरीय लॉजिस्टिक्स फैसिलिटी खोलने की फिराक में है , वहां ऐसे देशों को सागरीय संप्रभुता का महत्व और उसकी कीमत भारत समझा सके। इस प्रकार मिशन सागर -3 के तहत वियतनाम को मदद देने के जरिए उसके साथ समुद्री सहयोग भी सुनिश्चित करने का लक्ष्य भारत के मन में है , साथ ही दोनों देश क्षेत्रीय सुरक्षा के मुद्दों पर आपसी गठजोड़ के लिए भी सक्रिय हुए हैं। इसका एक प्रमाण यह भी है कि भारत ने हाल ही में वियतनाम को 12 पेट्रोल बोट्स भी प्रदान किए हैं जो उनके मैरीटाइम सहयोग को दर्शाता है। इसके साथ ही आईएनएस किलतान युद्ध पोत 26- 27 दिसंबर को दक्षिण चीन सागर में वियतनाम पीपुल्स नेवी के साथ एक अभ्यास में भाग लेने के उद्देश्य से भी भेजा गया है।

वियतनाम के भारत पर भरोसे की वजहें :

दक्षिण चीन सागर विवाद पर वियतनाम और फिलीपींस जैसे राष्ट्र भारत को विश्वास में लेने की कोशिशें भी करने लगे हैं । वियतनाम ने जुलाई , 2019 में दक्षिण चीन सागर विवाद के बारे में भारत को जानकारी दी । पिछले वर्ष जिस वैनगार्ड बैंक को लेकर वियतनाम और चीन के बीच दक्षिण चीन सागर में लेकर स्वामित्व विवाद हुआ था , वहां से मात्र 100 नॉटिकल मील की दूरी पर ऑयल ब्लॉक नंबर 06/1 हैं जहां पर भारत के ओएनजीसी , रूस के रोस्नेफ्ट और वियतनाम के पेट्रो वियतनाम के नियमित तेल और गैस उत्पादन के साझे उपक्रम 17 वर्षों से कार्यरत हैं । इस क्षेत्र में अन्य भारतीय निजी कंपनियां भी तेल अन्वेषण के अवसरों पर निगाह लगाए हुए हैं। गौरतलब है कि जुलाई , 2019 में चीन का समुद्री सर्वेक्षण पोत वियतनाम के अनन्य आर्थिक क्षेत्र में वैनगार्ड बैंक में अवैध तरीके से प्रवेश कर गया था जिससे दोनों देशों के बीच तनाव भी बढ़ गया । वैनगार्ड बैंक स्पार्टले द्वीप पर स्थित है । वियतनाम यहां तेल अन्वेषण परियोजना चलाना चाहता है जिसमें चीन बाधा पैदा कर रहा है । चीन और वियतनाम के तटरक्षक पोत इस स्थिति में आक्रामक मुद्रा में रहे हैं । 6 सशस्त्र तटरक्षक पोत जिनमें 2 चीन के और 4 वियतनाम के थे , द्वारा वैंगार्ड बैंक और स्पर्टले द्वीप की निगरानी की गई । जुलाई, 2019 में चीन के सर्वे पोत हैयांग डिझी 8 ने वियतनाम के नियंत्रण वाले रीफ क्षेत्र वैंगार्ड तट में प्रवेश किया जिसे वियतनाम अपना ईईजेड मानता है । चीन का कहना था कि वह इस क्षेत्र में सिस्मिक सर्वे करना चाहता था ।

भारत के विदेश मंत्रालय का इस घटना पर स्पष्ट रूप से कहना है कि दक्षिण चीन सागर क्षेत्र के प्रमुख जलमार्गों तक पहुंच के पूर्वानुमान , इस क्षेत्र में शांति और स्थिरता में भारत के मूलभूत और वैध हित निहित हैं। भारत 1982 के संयुक्त राष्ट समुद्री विधि अभिसमय के सिद्धांतों के अनुसरण के क्रम में फ्रीडम ऑफ नेविगेशन और दक्षिण चीन सागर में संसाधनों तक पहुंच का समर्थन करता है । भारत का 55 प्रतिशत व्यापार दक्षिण चीन सागर के सागरीय जलमार्गों से गुजरता है । इस दृष्टि से इसे शांति का क्षेत्र बनाना भारत की प्राथमिकता है । इस क्षेत्र की स्थिरता में योगदान कर भारत आसियान देशों के साथ भी संबंधों में और मजबूती ला सकता है । भारत का कहना है कि उसके तेल अन्वेषण कार्यक्रम पर इससे कोई रोक नहीं लगेगी। 2014 के बाद वियतनाम और चीन के बीच इस क्षेत्र में यह सबसे बड़ा विवाद है । 2014 में चीन ने इस क्षेत्र के परासेल द्वीप में तेल प्राप्ति के लिए ऑयल ड्रिलिंग शुरू की थी , चूंकि वियतनाम इस द्वीप पर अपने स्वामित्व की बात करता है इसलिए वियतनाम में चीन विरोधी आंदोलन शुरू हो गए थे। चीन दक्षिण चीन सागर में भारत के तेल अन्वेषण गतिविधियों पर आपत्ति दर्ज कर चुका है । लेकिन वियतनाम ने भारत के अलावा अमेरिका , रूस ऑस्ट्रेलिया को चीन की अवैध गतिविधियों के बारे में जानकारी दी है ।

दक्षिण चीन सागर से जुड़े अन्य विवाद -

फरवरी से जुलाई 2019 के मध्य चार बार चीन ने फिलीपींस के सिबुथू जलडमरूमध्य में अपने युद्धपोत भेज कर दक्षिण चीन सागर में तनाव बढ़ा दिया था । फिलीपींस ने भी चीन पर आरोप लगाया था कि उसके अनन्य आर्थिक क्षेत्र में चीन के 2 अनुसंधान पोत काम कर रहे हैं । फिलीपींस इस मामले को चीन के साथ फिर से उठाने को तैयार था । इसके अलावा पिछले वर्ष चीन और मलेशिया के बीच लूकोनिया शोल और चीन फिलीपींस के बीच रीड बैंक को लेकर भी विवाद बढ़ गया है ।

दक्षिण चीन सागर विवाद दुनिया के सबसे बड़े महासागरीय विवाद के रूप में माना जाता है । चीन के दक्षिण में स्थित सागर जो प्रशांत महासागर का भाग है, को ही दक्षिण चीन सागर कहते हैं । चीन से लगे दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों और उनके द्वीपों को लेकर भी चीन और वियतनाम , इंडोनेशिया , मलेशिया, ब्रूनेई दारुसल्लाम, फिलीपींस , ताइवान , स्कार्बोराफ रीफ आदि क्षेत्रों को लेकर विवाद है । लेकिन मूल विवाद की जड़ है दक्षिण चीन सागर में स्थित स्पार्टले और परासेल द्वीप । चीन ने दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों के अनन्य आर्थिक क्षेत्र में अतिक्रमण कर वहां अपनी संप्रभुता के दावों के लिए नौ स्थानों पर डैश या चिन्ह लगाकर विवाद को बढ़ा दिया है इसलिए इस विवाद को नाइन डैश लाइन विवाद भी कहते हैं । चीन का नाइन डैश लाइन यूनाइटेड नेशंस कन्वेंशन ऑफ द लॉ ऑफ द सी, 1982 के एक्सक्लूसिव इकनॉमिक जोन की मान्यता का खंडन करता है । चीन की निगाह दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों के ईईजेड और साउथ चाइना सी के द्वीपों में पाए जाने वाले प्राकृतिक संसाधनों , प्राकृतिक तेल , गैस , मत्य संसाधनों पर है । इसलिए हाल में स्पारटले और पारासेल के अलावा चीन और वियतनाम के बीच वैनगार्ड बैंक को लेकर , चीन फिलीपींस के बीच रीड बैंक को लेकर , मलेशिया के साथ लूकोनिया शोल को लेकर , ताइवान के साथ स्कारबोराफ रीफ के स्वामित्व को लेकर विवाद है ।

दक्षिण चीन सागर का सामरिक , आर्थिक महत्व -

चीन को प्राकृतिक तेल की आपूर्ति मध्य पूर्व से होती है और यह मलक्का जलडमरुमध्य के रास्ते से होकर गुजरता है । अक्सर अमेरिका चीन को चेतावनी देता है कि वह मलक्का जलडमरुमध्य को ब्लॉक कर देगा जिससे चीन की ऊर्जा आपूर्ति रुक जाएगी । इसलिए चीन दुनिया भर के अन्य देशों में अपनी ऊर्जा सुरक्षा को लेकर सजग और आक्रामक हुआ है । यही कारण है कि चीन को दक्षिण चीन सागर में अपने भू आर्थिक और भू सामरिक हित दिखाई देते हैं । दक्षिण चीन सागर में 11 बिलियन बैरेल प्राकृतिक तेल के भंडार है और 190 ट्रिलियन क्यूबिक फीट प्राकृतिक गैस के भंडार है , जिसके 280 ट्रिलियन क्यूबिक फीट होने की संभावना भी व्यक्त की गई है । यह क्षेत्र ऐसा हैं जहां से हर वर्ष 5 ट्रिलियन डॉलर मूल्य का अंतर्राष्ट्रीय व्यापार संभव होता है। 2016 में दक्षिणी चीन सागर से होकर 6 ख़रब डॉलर का समुद्री व्यापार गुज़रा था। दक्षिणी चीन सागर, प्रशांत महासागर और हिंद महासागर के बीच स्थित बेहद अहम कारोबारी इलाक़ा भी है। दुनिया के कुल समुद्री व्यापार का 20 फ़ीसदी हिस्सा यहां से गुज़रता है। इस इलाक़े में अक्सर अमरीकी जंगी जहाज़ गश्त लगाते हैं, ताकि समुद्री व्यापार में बाधा न पहुंचे लेकिन चीन इसे अमरीका का आक्रामक रवैया कहता है। यहां स्थित महत्वपूर्ण समुद्री व्यापारिक मार्गों के जरिए अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में सुगमता होती है । यह क्षेत्र अपार मत्स्य संसाधन वाला क्षेत्र है । इसलिए चीन इस प्रकार के क्षेत्रों में रुचि रखता है । चीन ने दक्षिण चीन सागर के द्वीपों में कई प्रकार के अवैध कार्य किए हैं । अंतर्राष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन करते हुए चीन ने यहां कृत्रिम द्वीप बनाए हैं , संसाधन अन्वेषण के लिए सर्वे भी किए हैं । यहां यह जानना भी जरूरी है कि सिर्फ़ तेल और गैस ही नहीं, दक्षिणी चीन सागर में मछलियों की हज़ारों नस्लें पाई जाती है। दुनिया भर के मछलियों के कारोबार का क़रीब 55 फ़ीसदी हिस्सा या तो दक्षिणी चीन सागर से गुज़रता है, या वहां पाया जाता है। इसलिए बात अब सिर्फ़ गैस और तेल की नहीं है । चीन और फिलीपींस के बीच स्कारबोरफ शोल नामक मत्स्य संसाधन बहुल क्षेत्र को लेकर दक्षिण चीन सागर में विवाद रहे हैं ।

सागर सुरक्षित है तो समृद्धि और स्थिरता सुरक्षित है , भारत इस सोच के साथ सागरीय नौगमन की स्वतंत्रता की बात करता है। अपनी एक्ट ईस्ट पॉलिसी के तहत भारत दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण समुद्री व्यापारिक मार्गों की स्वतंत्रता और सुरक्षा की वकालत करने वाला देश है और इस दृष्टि से भारत वियतनाम संबंधों का मजबूत होना बहुत जरूरी है।

विवेक ओझा (ध्येय IAS)


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