ब्लॉग : ग्लोबल इलेक्ट्रिसिटी ग्रिड पर भारत ब्रिटेन साझेदारी के मायने और इस ग्रिड पर भारत के प्रस्ताव by विवेक ओझा

हाल ही में भारत और ब्रिटेन के मध्य सौर ऊर्जा के प्रयोग को वैश्विक स्तर पर बढ़ावा देने और साथ ही जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए ग्रीन ग्रिड पर जॉइंट डिक्लरेशन जारी करने पर बात हुई है। इसे ग्लोबल एनर्जी ग्रिड भी कहा जा रहा है । इस दिशा में भारत के प्रधानमंत्री द्वारा वन सन , वन वर्ल्ड , वन ग्रिड की धारणा का प्रतिपादन किया गया है। भारत इस वैश्विक ग्रिड को ठीक वैसे ही विकसित करना चाहता है जैसा कि उसने इंटरनेशनल सोलर अलायंस को लांच करने की दिशा में काम किया था। हाल ही में ब्रिटिश सांसद और COP 26 के लिए नियुक्त अध्यक्ष आलोक शर्मा ने भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से जलवायु परिवर्तन और COP 26 से जुड़े मुद्दों पर भारत ब्रिटेन मजबूत गठजोड़ पर चर्चा की है। ग्लोबल ग्रीन ग्रिड के तहत भारत चाहता है कि 2050 तक सभी महाद्वीपों से सम्बद्ध नवीकरणीय ऊर्जा का एक सिंगल पॉवर ग्रिड बन जाए जिससे वैश्विक ऊर्जा सुरक्षा में मदद मिल सके।

भारत और ब्रिटेन ने 120 मिलियन डॉलर कोष वाले ग्रीन ग्रोथ इक्विटी फंड का भी निर्माण कर रखा है जिसका उद्देश्य जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग से निपटने वाले ग्रीन प्रोजेक्ट्स में अधिक से अधिक साझा निवेश करना है। इसे अब बढ़ाकर 200 मिलियन डॉलर किया गया है। लो कार्बन इकॉनोमी या ग्रीन अर्थव्यवस्था के विकास की दृष्टि से यह एक महत्वपूर्ण कदम है। सितंबर , 2021 ब्रिटेन ने भारत में ग्रीन प्रोजेक्ट्स में 1.2 बिलियन डॉलर के निवेश पर भारत के साथ सहमति बनाई है । इसका मुख्य उद्देश्य नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देने और जलवायु परिवर्तन से निपटने वाली परियोजनाओं में निवेश करना है। ब्रिटेन का डेवेलपमेंट फाइनेंस इंस्टिट्यूट सीडीएस इन ग्रीन प्रोजेक्ट्स में निवेश करेगा। 2022 से 2026 की अवधि के लिए भारत में यह निवेश किया जाएगा।

भारत- यूनाइटेड किंगडम वर्चुअल शिखर ...

महामारी के इस दौर में भारत ने हाल ही में वन सन वन वर्ल्ड वन ग्रिड की संकल्पना को मजबूती देते हुए एक ग्लोबल इलेक्ट्रिसिटी ग्रिड के निर्माण का प्रस्ताव किया है। इसके तहत नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय ने पश्चिम एशिया और दक्षिण पूर्वी एशिया के 140 से अधिक देशों के मध्य सौर ऊर्जा संसाधनों के साझा करने के मुद्दे पर वैश्विक सर्वसम्मति बनाने की योजना निर्मित की है । इस परियोजना के अगले चरण में इस ग्रिड को अफ्रीकी ऊर्जा केंद्रों से भी जोड़ने पर विचार किया गया है । इस परियोजना का मुख्य विचार यह है कि दुनिया भर में सौर ऊर्जा केंद्रित एक कॉमन ट्रांसमिशन सिस्टम का विकास किया जाय। भारत सरकार ने इस विषय पर सलाहकारी फर्मों के प्रस्तावों को हाल ही में आमंत्रित किया है ताकि एक दीर्घकालिक वैश्विक इलेक्ट्रिसिटी ग्रिड का रोडमैप समावेशी तरीके से तैयार किया जा सके । ऐसे सीमापारीय ऊर्जा परियोजनाओं को दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों , मध्य पूर्व और अफ्रीकी देशों के साथ मिलकर शुरू कर भारत वैश्विक ऊर्जा सुरक्षा के क्षेत्र में नेतृत्वकारी भूमिका निभाने की मंशा रखता है। विश्लेषक यह भी मानते हैं कि वन सन वन वर्ल्ड वन ग्रिड का विचार भारत ने चीन के वन बेल्ट वन रोड पहल के तर्ज पर कर चीन को इस महामारी के दौर में अपनी वैश्विक भूमिका की पहचान कराने के लिए की है । एक तरफ जहां चीन की वन बेल्ट वन रोड पहल विश्व भर के देशों में अवसंरचनात्मक विकास परियोजनाओं पर केंद्रित है वहीं भारत की यह योजना सौर ऊर्जा के क्षेत्र में दुनिया भर के देशों के साथ सहयोग पर केंद्रित है। भारत को अपनी क्षमता और सीमाएं पता हैं कि वह किस स्तर तक किसी वैश्विक परियोजना को आगे ले जा सकता है और किस स्तर तक निवेश , ऋण और अनुदान दे सकता है । यही बात उसे यथार्थवादी विश्व राजनीति में एक विशेष स्थान भी देती है । गौरतलब है कि भारतीय प्रधानमंत्री ने क्रॉस बॉर्डर सोलर कनेक्टिविटी का विचार अक्टूबर 2019 में दिया था । इस वर्ष भारत ने ग्लोबल इलेक्ट्रिसिटी ग्रिड को मूर्तमान स्वरूप देने के लिए वर्ल्ड बैंक के अधिकारियों के साथ भी वार्ता करना शुरू कर दिया है । 

भारत द्वारा वर्ल्ड सोलर बैंक के गठन का प्रस्ताव :

वन सन वन वर्ल्ड वन ग्रिड - यूपीएससी ...

भारत ने इसके अलावा एक वर्ल्ड सोलर बैंक के गठन का प्रस्ताव भी किया है जिससे अन्तर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन के मिशन को पूरा करने के लिए वित्त और प्रौद्योगिकी की लागत में कमी लाई जा सके । यह बैंक कुल 10 बिलियन डॉलर का हो सकता है जिसकी चुकता पूंजी 2 बिलियन डॉलर हो सकती है । इस प्रस्तावित सोलर बैंक में भारत की हिस्सेदारी 30 प्रतिशत तक हो सकती है । गौरतलब है कि भारत की मंशा है कि ऐसे बैंक का मुख्यालय भारत में ही स्थित हो , जिससे इस दिशा में उसे एक प्रभावी बढ़त मिल सके । चीन में ब्रिक्स देशों के न्यू डेवलपमेंट बैंक के साथ ही एशियाई अवसंरचना निवेश बैंक का मुख्यालय है । इन बैंकों के काम काज पर चीन ने निगाह लगाए रखी है जिसका उसे फायदा भी मिला है । यदि वर्ल्ड सोलर बैंक का मुख्यालय भारत में स्थापित करने में सफलता पाई जाती है तो भारत नवीकरणीय ऊर्जा के वित्तीय न में नए मानक स्थापित कर सकेगा और वो भी स्वतंत्र तरीके से । ब्रिक्स के न्यू डेवलपमेंट बैंक ने हाल के समय में घोषणा की है कि  उसके कोष का 50 प्रतिशत या उससे भी अधिक नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं में निवेश किया जाएगा । लेकिन इस संदर्भ में ब्रिक्स के सदस्यों चीन , रूस , ब्राज़ील और दक्षिण अफ्रीका की भी भूमिकाएं इस बैंक में निर्धारित  हैं और चीन विशेषकर अपने लाभों के लिए सोचता है , ऐसे में भारत इंटरनेशनल सोलर अलायंस और वर्ल्ड सोलर बैंक के जरिए तीसरी दुनिया के देशों में ऊर्जा सुरक्षा प्रदाता की अपनी भूमिका स्वतंत्र तरीके से बिना किसी हस्तक्षेप के निभा सकता है। इंटरनेशनल सोलर अलायंस ने वर्ष 2030 तक सौर ऊर्जा संसाधनों और प्रौद्योगिकियों के विकास के लिए 1000 बिलियन डॉलर के निवेश को आकर्षित करने का लक्ष्य तय कर रखा है । इस दृष्टिकोण से वर्ल्ड सोलर बैंक के गठन में सफलता मिलना भारत के लिए लाभदायक रहेगा । इस बैंक के निर्माण से ग्लोबल इलेक्ट्रिसिटी ग्रिड की योजना में सहायता मिल सकेगी और इसलिए यह विचार किया गया है कि इस बैंक से म्यांमार , थाईलैंड , कंबोडिया , लाओस , वियतनाम जैसे देशों को भारतीय उपमहाद्वीप से जोड़ा जाए और ऊर्जा सुरक्षा के मुद्दे को भारतीय राजनय को प्रभावी बनाने के उपकरण के रूप में देखा जा सके।

प्रस्तावित इलेक्ट्रिसिटी ग्रिड और सोलर बैंक के जरिए सधता भारतीय हित :

गौरतलब है कि दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों के साथ भारत की कई अवसंरचनात्मक विकास और ऊर्जा परियोजनाएं चल रहीं हैं । भारत , म्यांमार , थाईलैंड के बीच बनने वाले त्रिपक्षीय राजमार्ग  को अब वियतनाम , लाओस और कंबोडिया तक विस्तारित करने का निर्णय किया जा चुका है वहीं म्यांमार के साथ भारत का कलादान मल्टीमॉडल ट्रांसपोर्ट प्रोजेक्ट चलाया जा रहा है , मेकोंग गंगा पहल के जरिए भी भारत और आसियान देशों के मध्य संबंधों को मजबूती दी जा रही है । इन स्थितियों में भारत अपनी प्रस्तावित ऊर्जा कूटनीति के जरिए आसियान के साथ अधिक  मजबूत संबंधों की नींव रखते हुए अपनी नवोदित एक्ट ईस्ट पॉलिसी के लक्ष्यों की प्राप्ति कर सकता है । एशिया प्रशांत क्षेत्र में अबाधित व्यापारिक गतिविधियों के लिए महत्वपूर्ण राष्ट्रों को अपने पक्ष में जोड़ने के उपाय भारत को करने होंगे । वैसे भी दक्षिण पूर्वी एशियाई देश चीन के अतिक्रमण राजनीति से परेशान है । अतः सौर ऊर्जा परियोजनाओं से आसियान देशों को जोड़ने का विचार भारत के लिए कई मायनों में सार्थक परिणाम देने वाला साबित हो सकता है । 

ब्लॉग : सॉफ्ट पॉवर का उपकरण बनती एक्ट ...

इसी प्रकार भारत ने सौर ऊर्जा के मुद्दे पर अफ्रीकी देशों को भी लामबंद करने की कोशिशें शुरू कर दी हैं । कई अफ्रीकी देश भारत के नेतृत्व वाले इंटरनेशनल सोलर अलायंस के सदस्य हैं , वहीं दूसरी तरफ चीन ने अफ्रीकी देशों को अपने एशियाई अवसंरचना निवेश बैंक के साथ जोड़ने में हाल के समय सक्रियता दिखाई है । पिछले वर्ष ही बेनिन , रवांडा और जिबूती को चीन के नेतृत्व वाले इस बैंक का सदस्य बनाया गया है । वर्तमान विश्व व्यवस्था में  अपने राष्ट्रीय हितों को पूरा करने के लिए कोई भी तरीका राष्ट्रों द्वारा अपनाया जा सकता है। चाहे ऊर्जा कूटनीति हो , प्रत्यक्ष विदेशी निवेश या अन्य निवेश हो , ऋण और अनुदान देकर राष्ट्रों को कृपा पात्र बनाना हो , ऐसे कई अन्य तरीकों से राष्ट्र अपने हितों को सिद्ध करने में लगे रहते हैं । भारत ने भी इन तरीकों पर अमल कर विश्व और क्षेत्रीय राजनीति में अपने व्यापक उद्देश्यों को प्राप्त करने की कवायद शुरू कर दी है ।

चीन ने अपनी वन बेल्ट वन रोड पहल के तहत विश्व भर के देशों में  पॉवर ग्रिडों का नेटवर्क बिछाने , तेल और प्राकृतिक गैसों के लिए गहरे समुद्री बंदरगाहों का नेटवर्क बनाने पर जोर देना शुरू किया है। ऐसे में भारत के लिए भी यह जरूरी था कि वह इस दिशा में कार्य करे । भारत ने जापान के साथ मिलकर अफ्रीकी महाद्वीप में एशिया अफ्रीका ग्रोथ कॉरिडोर का गठन इसी उद्देश्य के साथ किया है । 

दक्षिण एशिया में रीजनल इलेक्ट्रिसिटी ग्रिड के मायने:

पड़ोसी देशों के साथ भी  सीमापारीय ऊर्जा गलियारों के निर्माण पर  भारत ने बल दिया है । बांग्लादेश में मैत्री सुपर थर्मल पावर प्लांट , रामपाल पॉवर प्लांट , नेपाल और भारत के बीच मोतिहारी से अमलेखगंज तक सीमा पारीय तेल पाइपलाइन की शुरुआत इसी उद्देश्य से की गई है । भारत ने ग्लोबल इलेक्ट्रिसिटी ग्रिड के समान ही पड़ोसी देशों के साथ मिलकर एक रीजनल पॉवर ग्रिड पर भी योजना बनाई है और इसके जरिए भूटान , नेपाल , म्यांमार और बांग्लादेश के साथ श्रीलंका जैसे  देशों को भी ऊर्जा आपूर्ति की जा सके। क्रॉस बॉर्डर इलेक्ट्रिसिटी ट्रेड भारत की विदेश में एक महत्वपूर्ण स्थान पा चुका है । नवंबर , 2014 में भारत ने सार्क देशों के साथ इस संदर्भ में एक समझौते पर हस्ताक्षर भी किया था और अगस्त , 2018 में बिम्सटेक देशों के साथ ऐसे ही इलेक्ट्रिक ग्रिड के लिए ज्ञापन समझौते पर हस्ताक्षर किया गया था । इसके अलावा अपनी सौर ऊर्जा कूटनीति को बढ़ाते हुए भारत सरकार ने अफ्रीका में सौर ऊर्जा परियोजनाओं के लिए रियायती ब्‍याज दरों पर दस अरब डॉलर की ऋण सुविधा का भी प्रावधान किया है। भारत का आयात निर्यात बैंक आईएसए के सदस्‍य देशों के साथ मिलकर इस ऋण सुविधा को लागू कर रहा है।  भारत ने 24 सितंबर 2019 को संयुक्‍त राष्‍ट्र महासभा के 74 वें सत्र के दौरान प्रशांत द्वीपीय क्षेत्र के विकासशील देशों को उनके यहां सौर ऊर्जा,नवीकरणीय ऊर्जा और जलवायु से संबधित परियोजनाओं के लिए 12 मि‍लियन अमरीकी डॉलर का अनुदान तथा रियायती दरों पर 150 मिलियन डॉलर की ऋण सुविधा की घोषणा की थी।

सौर ऊर्जा में भारत की राहें : 

भारत सरकार ने 2022 के आखिर तक 175 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा संस्‍थापित क्षमता का लक्ष्‍य निर्धारित किया है। इसमें से 60 गीगावाट पवन ऊर्जा से, 100 गीगावाट सौर ऊर्जा से, 10 गीगावाट बायोमास ऊर्जा से तथा 5 गीगावाट लघु पनबिजली से शामिल है। इस विजन को गति देने के लिए इस क्षेत्र में वैश्विक सहयोग की आवश्यकता पर बल देना भारत की तार्किक सोच को दर्शाता है । ग्रिड कनेक्‍टेड नवीकरणीय ऊर्जा के तहत पिछले साढ़े तीन वर्षों के दौरान 27.07 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा का क्षमता संवर्धन किया गया है, जिसमें सौर ऊर्जा से 12.87 गीगावाट, पवन ऊर्जा से 11.70 गीगावाट, लघु पनबिजली से 0.59 गीगावाट तथा जैव ऊर्जा से 0.79 गीगावाट शामिल है। स्‍वच्‍छ ऊर्जा क्षेत्र की वृद्धि दर से उत्‍साहित होकर भारत सरकार ने लक्षित राष्‍ट्रीय निर्धारित योगदान (आईएनडीसी) पर संयुक्‍त राष्‍ट्र जलवायु परिवर्तन संरचना सम्‍मेलन को प्रस्‍तुत अपने प्रतिवेदन में कहा है कि भारत प्रौद्योगिकी के अंतरण एवं हरित जलवायु निधि समेत निम्‍न लागत अंतराष्‍ट्रीय वित्‍त की सहायता से 2030 तक गैर-फॉसिल ईंधन आधारित ऊर्जा  संसाधनों से 40 प्रतिशत संचयी बिजली ऊर्जा क्षमता अर्जित करेगा।

इस प्रकार भारत ने विश्व समुदाय को संदेश दिया है कि वह सौर ऊर्जा के क्षेत्र में बड़े बड़े दावे और वायदे करने तक सीमित नहीं है बल्कि प्रभावी स्तर पर जीवाश्म ईंधन से लड़ाई लड़ते हुए नवीकरणीय ऊर्जा को अपनी ऊर्जा सुरक्षा का वास्तविक आधार बनाने के लिए सक्रिय भी है । अब भारत को यह देखना है कि सौर ऊर्जा और अन्य नवीकरणीय ऊर्जा के जिन बड़े लक्ष्यों को उसने तय किया है , उसके मार्ग की वास्तविक बाधाओं जैसे वित्तीय व्यवस्था , प्रौद्योगिकी , हस्तांतरण के लिए भी उपयुक्त रणनीति बनानी होगी और साथ ही स्वदेशी सौर प्रौद्योगिकी के विकास पर बल देना होगा ।

विवेक ओझा (ध्येय IAS)


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