ब्लॉग : यूएनएचसीआर में घिरे श्रीलंका को भारत का साथ क्यों मिला by विवेक ओझा

47 सदस्यीय संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद ने 23 मार्च को श्रीलंका के खिलाफ तमिल मानवाधिकार हनन के आरोप में प्रस्ताव को अंगीकृत किया गया । 47 में 22 सदस्य देशों ने प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया जबकि बांग्लादेश , चीन और पाकिस्तान ने श्रीलंका का साथ देते हुए इस प्रस्ताव के खिलाफ मतदान किया। आलोचकों का एक वर्ग इन देशों पर आरोप लगाता है कि इन देशों को मानवाधिकार से कोई मतलब है । पाकिस्तान का बलोचों और शिया हजारा के खिलाफ मानवाधिकार उल्लंघन के मामले किसी से छुपा नहीं है , वहीं चीन के खिलाफ उईगर मुसलमानों के खिलाफ अत्याचार के मामले जगजाहिर हैं। वहीं एमनेस्टी इंटरनेशनल ने बांग्लादेश के खिलाफ भी मानवाधिकार उल्लंघन के कई आरोप लगाए हैं , वहां सेक्युलर एक्टिविस्ट्स और एलजीबीटी समुदाय के खिलाफ अत्याचार के कई मामले दर्ज किए गए हैं। लेकिन यहां अधिक जिज्ञासा बढ़ाने वाली बात यह है कि भारत के ऊपर श्रीलंकाई तमिलों का साथ छोड़ने का आरोप क्यों लग रहा है । संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद् के एक प्रस्ताव से भारत के सामने एक धर्म संकट की स्थिति आ गई । भारत को श्रीलंका के जाफना के तमिलों के मानवधिकार उल्लंघन के आरोप में श्रीलंका के पक्ष में या विपक्ष में मतदान करना था और अंततः भारत ने मतदान प्रक्रिया से अनुपस्थित रहने का निर्णय किया। यहां यह सवाल उठता है कि जिस तमिल अधिकार समर्थन के मुद्दे को भारत ने श्रीलंका के साथ द्विपक्षीय संबंधों के प्रमुख निर्धारक और आधारस्तंभ के रूप में हमेशा से माना है उसे किनारे रखकर भारत ने श्रीलंका सरकार को समर्थन क्यों दिया ? भारत ने श्रीलंका में भारतीय मूल के तमिलों को मानवतावादी सहायता प्रदान करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी।

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद प्रस्ताव और भारतीय राजनय :

विदेश नीति में दुविधा और धर्मसंकट की स्थिति आना कोई नई बात नहीं है ज़रूरी है तो राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा। श्रीलंकाई तमिलों को मानवतावादी सहायता देना भारतीय विदेश नीति का पिछले कई दशकों से अनिवार्य अंग रहा है । सबसे अधिक तमिल मुद्दे ने ही भारत श्रीलंका संबंधों को निर्धारित प्रभावित किया है। यूएनएचआरसी में अब तमिल मानवाधिकार बनाम श्रीलंका सरकार की स्थिति में भारत ने अपने बृहद राष्ट्रीय हितों ( हिंद महासागर के सैन्यीकरण को रोकने और उसमें श्रीलंका की भूमिका को सुनिश्चित करने , दक्षिण एशिया में चीन के मंसूबों को सफल ना होने देने के लिए श्रीलंका को अपने पक्ष में कर पाने) पर ध्यान केंद्रित कर श्रीलंका सरकार को अंतरराष्ट्रीय न्यायालयों में ना घसीटे जाने के लिए मतदान प्रक्रिया से अनुपस्थित रहने का निर्णय किया ।

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद ...

साथ ही भारत ने अपने पुराने डिप्लोमेटिक मूव को बरकरार रखते हुए श्रीलंका के 13 वें संविधान संशोधन के पूर्ण क्रियान्वयन की सिफ़ारिश करते हुए यह भी संदेश दिया कि उसे अभी भी श्रीलंका के तमिलों की परवाह है और उन्हें पूर्ण अधिकार संपन्न बनाने की बात भारत करता रहेगा। श्रीलंका सरकार ने हाल के वर्ष में भारत के प्रति थोड़ा सॉफ्ट रूझान दिखाना शुरू किया है और अब भारत अपनी आइलैंड डिप्लोमेसी , सागर विजन और पड़ोसी प्रथम की नीति के तहत श्रीलंका के रुझान को खोना नहीं चाहता। अब तमिल मानवाधिकार की जगह श्रीलंका सरकार को अप्रत्यक्ष समर्थन देना कितना सकारात्मक परिणाम देगा ये तो आगे पता चलेगा लेकिन इस बीच खबर यह है कि श्रीलंका ने चीन से तीन साल के लिए 1.5 बिलियन डॉलर को लोन फिर से लेने का समझौता कर लिया है। अब कोई ये कहे क्या इसी को देखने के लिए भारत सरकार ने यूएनएचआरसी में श्रीलंका को मानवावाधिकार उल्लंघन के आरोपों से बचाने हेतु निर्णय किया था तो ये सही आरोप और संतुलित मूल्यांकन नहीं होगा । खबर तो ये भी आई है कि चीन ने अपने सामरिक महत्व वाले कोलंबो बंदरगाह के वेस्टर्न कंटेनर टर्मिनल को विकसित करने का ठेका भारत और जापान को दे दिया है । कुल मिलाकर कहने का मतलब है कि अपने अपने स्व परिभाषित राष्ट्रीय हितों के लिए राष्ट्रीय में गिव एंड टेक चलता रहता है , यही यथार्थ है। और इसी क्रम में अपनी अच्छी छवि और मूल्य सिद्धांत प्रधानता बनाए रखने के लिए मानवतावादी सहायता और हस्तक्षेप की नीति को भी खंगालते रहना होता है।

तमिल मुद्दा भारत और श्रीलंका के द्विपक्षीय संबंधों का निर्धारक कारक :

तमिल अधिकार समर्थन के मुद्दे को भारत ने श्रीलंका के साथ द्विपक्षीय संबंधों के प्रमुख निर्धारक और आधारस्तंभ के रूप में हमेशा से माना है उसे किनारे रखकर भारत ने श्रीलंका सरकार को समर्थन क्यों दिया ? भारत ने श्रीलंका में भारतीय मूल के तमिलों को मानवतावादी सहायता प्रदान करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। गौरतलब है कि वर्ष 1956 में श्रीलंका सरकार ने सिंहलीज ओनली बिल पारित किया जिसका मुख्य उद्देश्य तमिलों को उनके अधिकारों से वंचित करना था ताकि सिंहलीज बहुसंख्यक समुदाय का सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों में प्रभुत्व बना रह सके। इसके उपरांत वर्ष 1972 में श्रीलंका का नया संविधान निर्मित किया गया और तमिलों की अपेक्षाएं इसमें भी पूरी नहीं की गई और इस नए संविधान में सिंहली को राष्ट्रभाषा और बौद्ध धर्म को आधिकारिक मान्यता दी गई। तमिलों ने अपने लिए जिन मांगों को श्रीलंका सरकार के समक्ष रखा था उनको नहीं माना गया। जाफना के तमिलों की मुख्य मांगें निम्नलिखित हैं - प्रथम श्रेणी की नागरिकता का दर्जा , श्रीलंका में निर्णय निर्माण प्रक्रिया में हिस्सेदारी के साथ राजनीतिक प्रतिनिधित्व की मांग , सामाजिक आर्थिक नियोजन में हिस्सेदारी, तमिल भाषा को आधिकारिक मान्यता देने की मांग, तमिल संस्कृति , सभ्यता और जीवन शैली के साथ भेदभाव और हस्तक्षेप ना करने की मांग, बुनियादी सुविधाओं और अवसंरचनाओं के निर्माण की मांग जिसमें प्राथमिक शिक्षा , स्वास्थ्य , विद्युत , सड़क , कृषि आदि शामिल थे।

इसी बीच 1964 और 1974 में भारत और श्रीलंका के बीच भारतीय मूल के व्यक्तियों पर हुए समझौते के तहत 4,61,639 तमिलों को श्रीलंका से भारत प्रत्यावर्तित यानि वापस लाया गया । वहीं भारत श्रीलंका समझौता ( क्रियान्वयन ) अधिनियम 1967 , राज्यविहीन व्यक्तियों को नागरिकता अधिनियम 1988 और राज्य विहीन व्यक्तियों को नागरिकता अधिनियम , 2003 के तहत श्रीलंका ने 7,40,985 भारतीय मूल के तमिलों और उनकी प्राकृतिक वृद्धि को नागरिकता प्रदान किया।

लिट्टे का दौर और श्रीलंका में गृह युद्ध का भारत पर प्रभाव :

श्रीलंकाई सेना ने 1976 के बाद लिट्टे विद्रोहियों का भीषण दमन करना शुरू किया । तमिल स्वायत्तता की मांग के साथ तमिलों ने सिंहलियों की हत्याएं करना शुरू किया । 1983 में कोलंबो में तमिल विरोधी हिंसा शुरू हो गई । तमिलों के मारे जाने से तमिलनाडु की भावनाएं आहत हुईं। भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने वायु मार्ग ( चार्टर्ड सिविल प्लेन ) और चार्टर्ड इंडियन सिविल शिप्स से तमिलों को खाद्य सामग्री , दवाइयां और अन्य आवश्यक रसद सामग्री उपलब्ध कराई थी । तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम जी रामचंद्रन ने इसके लिए नई दिल्ली जाकर भारतीय प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी से मुलाकात कर उन्हें 1971 के पूर्वी पाकिस्तान के प्रकरण में भारतीय सहायता के तर्ज पर तमिलों को सहायता देने का निवेदन किया था। इसी समय जब भारत सरकार को एक रिपोर्ट के जरिए सूचना मिली कि श्रीलंका सरकार ने तमिल सिंहली विवाद में अमेरिका , ब्रिटेन , पाकिस्तान और बांग्लादेश से सहायता के निवेदन किया है तो भारत के विदेश मंत्री ने 2 अगस्त , 1983 को विभिन्न विदेशी शक्तियों से श्रीलंका के नृजातीय संघर्ष के मामले से बाहर रहने का आग्रह किया । पाकिस्तान जो कथित तौर पर श्रीलंका के गृह युद्ध में राहत सहायता और सैन्य सहायता उपलब्ध करा रहा था , उसे इस संघर्ष में हस्तक्षेप करने का कोई अवसर भारत नहीं देने का पक्षधर था । इंदिरा गांधी ने स्पष्ट तौर पर कहा था कि तमिलों के साथ किए जाने वाले अन्याय की स्थिति में भारत मूक दर्शक नहीं बना रह सकता । 29 जुलाई , 1983 को भारतीय विदेश मंत्री नरसिम्हा राव को श्रीलंका भेजा गया ताकि वस्तु स्थिति का सही मूल्यांकन किया जा सके । भारत के इन सब सक्रिय पहलों को श्रीलंका और सिंहलियों ने अपने आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप समझा । सिंहलियों ने इसे अपनी संप्रभुता और प्रादेशिक अखंडता का अतिक्रमण समझा । कालांतर में भारत ने तमिल पृथकतावादियों और श्रीलंका की सरकार के मध्य मध्यस्थता कराने का प्रयास किया। इधर 1987 तक लगभग डेढ़ लाख श्रीलंकाई तमिल शरणार्थी भारतीय राज्य तमिलनाडु में आ चुके थे ।

राजीव जयवर्धने एकॉर्ड और तमिल समस्या के समाधान का प्रयास :

राजीव जयवर्धने एकॉर्ड के क्रियान्वयन के लिए श्रीलंका का 13 वा संविधान संशोधन लाया गया जिसमें तमिलों की मांग को पूरा करने के लिए प्रावधान किए गए हैं जो निम्नलिखित हैं। श्रीलंका सरकार ने तमिलों को शक्तियों के विलय के लिए और उन्हें राजनीतिक प्रतिनिधित्व प्रदान करने के लिए प्रांतीय परिषदों के गठन का प्रावधान किया गया । इस संशोधन में प्रांतों के गवर्नरों की नियुक्ति और अधिकारों तथा प्रांतीय परिषदों के कार्यकाल के विषय में प्रावधान किया गया। इसके साथ ही बोर्ड ऑफ मिनिस्टर्स के नियुक्ति और उनके अधिकारों का भी प्रावधान किया गया । 13 में संविधान संशोधन के जरिए प्रांतीय परिषदों को विधायी शक्तियों को देने का भी प्रावधान किया गया। इसमें तमिल क्षेत्रों में वित्तीय मामलों और उनके हितों को सुनिश्चित करने के लिए वित्त आयोग के गठन का भी प्रावधान किया गया।

इस समझौते में तमिल को श्रीलंका की आधिकारिक भाषा के रूप में मान्यता दिया गया। सर्वाधिक महत्वपूर्ण रूप में इसमें उत्तरी पूर्वी प्रांत में उच्च न्यायालयों की स्थापना का भी प्रावधान किया गया। 13 वें संविधान संशोधन के तहत श्रीलंका को 9 प्रांतों में वर्गीकृत किया गया जिसका प्रशासन एक निर्वाचित मुख्यमंत्री की अध्यक्षता वाले परिषद द्वारा किया जाना था। इस संशोधन के तहत उत्तर और पूर्वी प्रांत का विलय कर एक एकल उत्तर पूर्वी प्रांत बनाया गया। इन सभी प्रावधानों के बावजूद 13 वें संविधान संशोधन के कई प्रावधानों को अभी तक लागू नहीं किया गया है जिससे तमिल स्वायत्तता की मांग सही अर्थों में अभी भी पूरी नहीं हो सकी है । पुलिस , भूमि संबंधी और वित्तीय अधिकार अभी भी तमिलों को प्रदान नहीं किया गया है। इसे 13- माइनस के नाम से जानते हैं । श्रीलंका के नव निर्वाचित राष्ट्रपति ने भी जनवरी , 2020 में स्पष्ट किया है कि 13 वें संविधान संशोधन के कुछ प्रावधानों को लागू नहीं किया जा सकता और श्रीलंका सरकार कुछ वैकल्पिक व्यवस्था पर विचार करेगी।

श्रीलंका सरकार का साथ देने का औचित्य :

वर्तमान भू -अर्थ प्रधान विश्व में दक्षिण एशिया उभरती अर्थव्यवस्थाओं के क्षेत्र के रूप में महत्वपूर्ण शक्ति का केंद्र बनता जा रहा है । ऐसे में भारत अपनी पड़ोसी प्रथम नीति के तहत पड़ोसी देशों के साथ विवादों के शांतिपूर्ण समाधान और सहयोग के अवसरों की तलाश पर अधिक बल दे रहा है। यही नहीं भारत का प्रयास सुरक्षा प्रदायक और विकास भागीदार के रूप में पड़ोसी देशों में विद्यमान बिग ब्रदर सिंड्रोम को दूर करने के लिए भी जारी है। इस संदर्भ में भारत के स्ट्रेटजिक बैकयार्ड में अवस्थित श्रीलंका हिन्द प्रशांत क्षेत्र में भारत के नेतृत्वकारी भूमिका के लिए महत्वपूर्ण हो जाता है, लेकिन दोनों देशों के परंपरागत सम्बंध तमिल संकट, मछुआरों से सम्बंधित विवाद जैसे मुद्दों के कारण अविश्वास और पूर्वाग्रह पर आधारित रहे है। हालांकि तमिल अतिवादी संगठन लिट्टे की समाप्ति के बाद दोनों देश के संबंधों में सुधार की संभावना व्यक्त की गई। लेकिन इस दौरान भी भारत की घरेलू राजनीति और तमिल क्षेत्रीय दलों के दबाव के कारण भारत की श्रीलंका से दूरी बनी रही, क्योंकि 2003-2009 के मध्य श्रीलंका में हुए गृहयुद्ध में श्रीलंकाई सेना पर निर्दोष तमिलों के गम्भीर मानवाधिकार उल्लंघन का आरोप लगा था। जबकि इसी दौरान चीन द्वारा न केवल मानवाधिकार उल्लंघन के प्रश्न पर अंतरराष्ट्रीय मंचो पर श्रीलंका का समर्थन किया गया , बल्कि गृहयुद्ध और प्राकृतिक आपदा से प्रभावित श्रीलंका की कमजोर अर्थव्यवस्था को व्यापक स्तर पर आर्थिक मदद भी दी गयी।परिणामस्वरूप श्रीलंका चीन पर अतिनिर्भर होता गया और भारत के स्वाभाविक क्षेत्र में चीन का नियंत्रण बढ़ता गया। लेकिन 2014 के बाद दोनों देशों के संबंधों में फिर से सकारात्मक बलवाव देखे जाने लगे । 2014 में भारत मे एक पूर्ण बहुमत की सरकार गठित हुई , अतः अब तमिल क्षेत्रीय दलों की भारत के विदेश नीति के निर्धारण में भूमिका नही रही। इसी पृष्ठभूमि में तीन दशकों के बाद किसी भारतीय प्रधानमंत्री की श्रीलंका यात्रा हुई , जहाँ भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा सागर नीति की घोषणा की गई और श्रीलंका के साथ संबंधों को नए सिरे से परिभाषित किया जाने लगा। दूसरी ओर श्रीलंका निरन्तर चीन के ऋण जाल में फंसता गया और हम्बनटोटा बंदरगाह चीन के पास जाने के बाद श्रीलंका सरकार की संप्रभुता पर ही प्रश्न उठने लगे। अतः श्रीलंकाई सरकार वर्तमान में सामरिक स्वायत्तता की नीति के आधार पर अपनी विदेशनीति को विविधीकृत करने का प्रयास कर रही है , जिससे चीन पर बढ़ती निर्भरता कम की जा सके। अतः वर्तमान श्रीलंकाई सरकार भारत के साथ संबंधों को प्राथमिकता दे रही है।

आज दो तीन वर्षों से जबकि लगने लगा है कि श्रीलंका को मालदीव की भांति इंडिया फर्स्ट पॉलिसी पर चलने के लिए तैयार किया जाना आसान दिख रहा है तो भारत ने श्रीलंका से अपने सामरिक हितों को पूरा कराने के लिए उसे अपने से जोड़ने और मतभेदों को ख़त्म करने की रणनीति अपनाई है।

भारत की तमिल केंद्रित सहायता रणनीति :

भले ही भारत ने श्रीलंका सरकार को समर्थन देने के उद्देश्य से मतदान से अनुपस्थित रहने का निर्णय किया लेकिन भारत तमिलों का साथ छोड़ बैठा है , ऐसा नहीं है । तमिल अधिकारो के लिए भारत आज भी श्रीलंका सरकार से सक्रिय वार्ता में लगा हुआ है। श्रीलंका भारत के विकासात्मक सहायता के प्रमुख प्राप्तकर्ता देशों में से एक है । भारत ने विकासात्मक सहयोग के नाम पर श्रीलंका को कुल 3 बिलियन डॉलर देने की प्रतिबद्धता तय कर रखी है जिसमें से 560 मिलियन डॉलर विशुद्ध रूप से अनुदान के रूप में है । एक शांतिपूर्ण , स्थिर और समृद्ध श्रीलंका भारत और समूचे दक्षिण एशिया के लिए जरूरी है । इसलिए भारत ने श्रीलंका में विकास की गतिविधियों को बढ़ावा देने की रणनीति श्रीलंका में 2009 में गृह युद्ध के खत्म होने के समय से अपना रखी है। भारत ने 2009 से ही इंडियन हाउसिंग प्रोजेक्ट के तहत श्रीलंका में 50,000 घरों को बनाने का समझौता कर रखा है । ये घर भारत श्रीलंका में युद्ध प्रभावित लोगों और बागानों में कार्य करने वाले श्रमिकों के लिए बनवा रहा है। इसके लिए श्रीलंका को भारत द्वारा 1372 करोड़ रूपए अनुदान दिया गया है । अभी तक उत्तर पूर्वी प्रांत में भारत कुल 46,000 घरों का निर्माण कार्य पूरा कर चुका है। शेष 4000 मध्य और उवा क्षेत्र के लिए बनाए जा रहे हैं जिसमें से 1,000 घरों का निर्माण कार्य पूरा किया जा चुका है। इसके अलावा वर्ष 2017 में 485 करोड़ रुपए की लागत से 10,000 अतिरिक्त घर श्रीलंका में बनाने की घोषणा भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा की गई ।

भारत सरकार ने श्रीलंका में हाई इंपैक्ट कम्युनिटी डेवलपमेंट प्रोजेक्ट्स के जरिए विकासात्मक सहयोग करने का निर्णय किया था । हम्बनटोटा में मछुआरा और कृषक समुदाय के लगभग 70,000 लोगों को आजीविका सहायता उपलब्ध कराने , वावुनिया हॉस्पिटल में मेडिकल उपकरणों की आपूर्ति , मुल्लाई-थिवू मछुवारों के लिए 150 मछली पकड़ने वाली नावें और फिशिंग गियर प्रदान करके मानवतावादी सहायता की है । वर्ष 2018 में भारत ने श्रीलंका के कोलंबो और त्रिंकोमाली बंदरगाह को विकसित करने के लिए श्रीलंका सरकार की सहमति प्राप्त की । 2019 में दोनों देशों में सहमति बनी कि उत्तरी प्रांत में भारत के सहयोग से कंकेसंथुराई बंदरगाह को विकसित किया जाएगा । यह लगभग 46 मिलियन डॉलर की परियोजना है। यह तमिल बाहुल्य इलाके में पड़ने वाला बंदरगाह है , इसलिए भारत ने इसके उन्नयन में विशेष रुचि ली है । आयात और निर्यात क्षेत्रों को मजबूती देने के लिए इस पोताश्रय को विकसित करने पर भारत ने बल दिया है। इसके साथ ही भारत ने तमिल बाहुल्य वाले उत्तरी प्रांत में ( जाफना ) पलाली एयरपोर्ट को विकसित करने के लिए श्रीलंका सरकार से समझौता करने में रुचि दिखाई है । भारत ने पहले से ही इस एयरपोर्ट को विकसित करने के लिए 300 मिलियन डॉलर के अनुदान देने पर सहमति दे चुका है। पलाली और चेन्नई के बीच वायु सेवा हाल में शुरू की गई है । वर्ष 2018 में मताल्ला एयरपोर्ट को विकसित करने में भी भारत की भूमिका की पहचान की गई थी । इसका नाम मताल्ला राजपक्षा इंटरनेशनल एयरपोर्ट है। वर्ष 2019 में श्रीलंका के नए राष्ट्रपति ने स्पष्ट किया है कि इस एयरपोर्ट को श्रीलंका के नागरिक उड्डयन प्राधिकरणों के द्वारा विकसित किया जाएगा ना कि भारत के द्वारा । इस प्रकार श्रीलंका के तमिल बाहुल्य इलाकों में अवसंरचनात्मक विकास में भारत की महत्वपूर्ण भूमिका रही है।

विवेक ओझा (ध्येय IAS)


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