ब्लॉग : भारत म्यांमार संबंध : अवसर , चुनौतियां एवं समाधान by विवेक ओझा

भारत और म्यांमार के द्विपक्षीय संबंध ना केवल दक्षिण पूर्वी एशिया और दक्षिण एशिया बल्कि समूचे एशियाई महाद्वीप की राजनीति और अर्थव्यवस्था के लिहाज से बहुत महत्तवपूर्ण है । पारंपरिक रूप में देखें तो दोनों देशों में ऐतिहासिक , सांस्कृतिक , धार्मिक और नृजातीय आधारों पर मजबूत संबंध रहे हैं। बौद्ध धर्म दर्शन ने दोनों देशों के मजबूत सांस्कृतिक और आध्यात्मिक संबंधों की नींव रखी थी । म्यांमार के बौद्ध मतावलंबी भारत में धार्मिक यात्रा के लिए आते हैं जिससे दोनों देशों के नागरिकों के मध्य अंतरसंपर्क स्थापित होता है। पर्यटन मंत्रालय दो वर्ष में एक बार अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध सम्मेलन का आयोजन करता है ऑस्ट्रेलिया, बांग्लादेश, भूटान, ब्राजील, कम्बोडिया, कनाडा, चीन, फ्रांस, जर्मनी, हांगकांग, इंडोनेशिया, जापान, लाओ पीडीआर, मलेशिया, मंगोलिया, म्यांमार, नेपाल, नार्वे, सिंगापुर, दक्षिण कोरिया, स्लोवाक गणराज्य, स्पेन, श्रीलंका, ताइवान, थाइलैंड, ब्रिटेन, अमेरिका और वियतनाम जैसे देश भाग लेते हैं। अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध सम्मेलन का धार्मिक/आध्यात्मिक, शैक्षणिक, कूटनीतिक तथा व्यावसायिक महत्व है। विदेशों में भारतीय दूतावासों ने अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध सम्मेलन के लिए प्रमुख बौद्ध विद्वानों/भिक्षुओं/विचारकों की पहचान की है। विदेशों में भारतीय पर्यटन कार्यालयों ने भी सम्मेलन के लिए दूर संचालकों/मीडिया आदि की भी पहचान की है। भारत में समृद्ध प्राचीन बौद्ध स्थल हैं जिनमें से अनेक महत्वपूर्ण स्थल भगवान बुद्ध के जीवन से जुड़े हैं। एक अनुमान के अनुसार इस समय दुनिया भर में करीब 500 मिलियन बौद्ध हैं जिनमें से अधिकांश पूर्वी एशिया, दक्षिण पूर्व एशिया और सुदूर पूर्व देशों में रहते हैं। उनमें से बहुत मामूली प्रतिशत हर वर्ष भारत के बौद्ध स्थलों को देखने आता है। अत: बौद्ध स्थलों की यात्रा के लिए और अधिक पर्यटकों को प्रोत्साहित करने की संभावना है।

भारत और म्यांमार हरित ऊर्जा सहयोग की ...

इस प्रकार भारत और म्यांमार के मध्य धार्मिक सांस्कृतिक लिंक के कई ऐसे अन्य उपकरण विद्यमान रहे हैं। हजारों वर्षों से भारत और म्यांमार की सिर्फ सीमाएं ही नहीं, बल्कि भावनाएं भी एक-दूसरे से जुड़ी हुई हैं। भारत में म्यांमार को ब्रह्मदेश या भगवान ब्रह्मा की धरती भी कहा जाता है। म्यांमार में भी आज भी, रामायण को यामा के नाम से पेश किया जाता है, विद्या की देवी सरस्वती को आप लोग थरूथरी के नाम पर से पूजते हैं और शिव को परविजवा, विष्णु को विथानो कहते हैं। भारत और म्यांमार के रिश्तों का आधार 5B है, यानी कि बुद्धिज़्म , बिजनेस, बॉलीवुड, भरतनाट्यम और बर्मा टीक । 1951 की मैत्री संधि पर आधारित द्विपक्षीय संबंध समय की कसौटी पर खरे उतरे हैं तथा एक दुर्लभ गतिशीलता एवं लोच का प्रदर्शन किया है। 1987 में तत्कालीन प्रधान मंत्री राजीव गांधी की यात्रा ने भारत और म्यांमार के बीच मजबूत संबंध की नींव रखी। तीसरी सहस्राब्दी की उदय ने देखा है कि द्विपक्षीय संबंधों को एक नया बल मिल रहा है।

भारत म्यांमार समसामयिक संबंध :

आधुनिक समय में जिस एक कारक ने दोनों देशों के मध्य संबंधों की मजबूत पृष्टभूमि रखने का काम किया है वह है दोनों देशों के मध्य भौगोलिक निकटता। यह भौगोलिक निकटता का ही प्रभाव है कि अब भारत सरकार ने म्यांमार को अपने विस्तारित पड़ोस की धारणा में शामिल करने का मन बना लिया है। म्यांमार भारत के लुक ईस्ट पॉलिसी के साथ अब एक्ट ईस्ट पॉलिसी और एक्सटेंडेड नेबरहुड फर्स्ट पॉलिसी की सफलता के लिए अति आवश्यक है। दक्षिण एशिया और बंगाल की खाड़ी में क्षेत्रीय एकीकरण , अवसंरचनात्मक विकास , सुरक्षा निश्चिंतता के लिहाज से म्यांमार का अहम योगदान है। भारत म्यांमार थाईलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग जिसे अब लाओस , कंबोडिया और वियतनाम तक विस्तारित कर दिया गया है , इस बात का मजबूत प्रमाण है । एक लोकतांत्रिक , क्षेत्रीय स्थिरता और समृद्धि समर्थक म्यांमार कई मुद्दों पर चीन के साथ अपने रिश्तों को पुनर्परिभाषित कर भारत के साथ मजबूती से खड़ा हो सकता है । खासकर दक्षिण चीन सागर में चीन ने दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों के सागरीय संप्रभुता का जिस प्रकार से हनन करने की कोशिश की है , उसका तार्किक ढंग से विरोध करने के लिए म्यांमार को कॉस्ट बेनिफिट एनालिसिस से ऊपर उठना होगा । आखिर चीन ने आसियान सदस्य देशों को अपनी महत्वाकांक्षा को पूरा करने के लिए निशाना बनाया है तो म्यांमार को आसियान के एक सक्रिय सदस्य के रूप में एशिया प्रशांत क्षेत्र में नियम और क़ानून आधारित व्यवस्था के विकास के लिए पूर्ण साहस के साथ आगे आना होगा।

भारत म्यांमार के साथ 1643 किलोमीटर लंबी अंतर्राष्ट्रीय सीमा साझा करता है । 4 उत्तर पूर्वी भारतीय राज्यों अरुणाचल प्रदेश , नागालैंड , मणिपुर और मिजोरम के साथ म्यांमार की सीमा लगती है । इस दृष्टि से सीमा पार प्रवासन , शरणार्थीयों की समस्या , सीमा पार तस्करी और अपराध भारत की सुरक्षा के लिए एक संभावित खतरे के रूप में म्यांमार की तरफ से आते हैं।

भारत म्यांमार थाईलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग परियोजना की पृष्टभूमि :

त्रिपक्षीय राजमार्ग परियोजना के संबंध में भारत – म्यांमार – थाईलैंड के संयुक्त कार्यबल की बैठक 11 सितंबर 2012 को नई दिल्ली में आयोजित की गई थी। इससे पूर्व भारत में मोरेह से म्यांमार के रास्ते थाईलैंड में माई सोत तक त्रिपक्षीय राजमार्ग का विचार अप्रैल, 2002 में यांगून में परिवहन संपर्क के संबंध में त्रिपक्षीय मंत्रिस्तरीय बैठक में आया था। यह त्रिपक्षीय राजमार्ग भारत और दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के मध्य सड़क संपर्क की स्थापना में सर्वाधिक महत्वपूर्ण कदम का द्योतक है। इसकी संकल्पना अवसर और मैत्री के राजमार्ग के रूप में की गई थी जो माल और सेवाओं के आवागमन में ही नहीं अपितु लोगों एवं विचारों के आवागमन में भी मदद देगा। तीनों पक्ष सन् 2016 तक त्रिपक्षीय सड़क संपर्क स्थापित करने के लिए सभी प्रयास करने पर सहमत हुए। यह भी सहमति हुई कि त्रिपक्षीय राजमार्ग की पूरी क्षमता को साकार करने के लिए माल एवं लोगों के निर्बाध आवागमन हेतु सीमा पर स्थित जांच चौकियों पर सीमा शुल्क और आप्रावास प्रक्रियाओं को सुसंगत बनाने से संबंधित मामलों के समाधान के उपाय शुरू किए जाएं। अगस्त 2016 में म्यांमार के राष्ट्रपति हटिन कयाव की भारत यात्रा के दौरान म्यांमार में आईएमटी राजमार्ग के तमु-क्इगोन-कलइवा खंड और कलइवा-यार्गी खंड में पुलों और संपर्क सड़कों के निर्माण एवं उन्नयन के लिए दो एमओयू पर हस्ताक्षर किए गए थे। तमु-क्इगोन-कलइवा सड़क खंड जो 149.70 किलोमीटर लंबा है पर 69 पुलों के निर्माण का भी प्रस्ताव है। ये हाईवे भारत में उत्तरपूर्वी राज्य मणिपुर के मोरेह से म्यांमार के तामू शहर जाएगा। इस 1400 किलोमीटर सड़क के इस्तेमाल के लिए त्रिपक्षीय मोटर वाहन समझौता पूरा करने पर बात हुई थी। ये हाईवे थाईलैंड के मेई सोत जिले के ताक तक जाएगी। दवेई पोर्ट को भारत के चेन्नई पोर्ट और थाईलैंड के लेईंग चाबांग पोर्ट से जोड़ा जा सकता है।

भारत म्यांमार और थाईलैंड त्रिपक्षीय ...

भारत के महत्तवपूर्ण पड़ोसी देश और सार्क और बिमस्टेक जैसी संस्थाओं के प्रमुख सदस्य बांग्लादेश ने हाल ही में भारत म्यांमार थाईलैंड ट्राईलेटरल हाईवे प्रोजेक्ट से जुड़ने में अपनी रुचि जाहिर की है । वर्ष 2019 में म्यांमार थाईलैंड के अलावा इस प्रोजेक्ट में लाओस कंबोडिया और वियतनाम को भी जोड़ा गया था । यानि आधे से अधिक आसियान या यूं कहें दक्षिण पूर्वी एशिया भारत के साथ इस राजमार्ग परियोजना से जुड़ गया है जिस पर तेज गति से कार्य हो रहा है। भारत के इस मुहिम को उसकी एक्ट ईस्ट पॉलिसी को मजबूती देनी वाली मुहिम कहा जा सकता है है जिसके लिए दक्षिण पूर्वी एशिया के देश महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। इसी क्रम में दक्षिण और दक्षिण पूर्वी एशिया के देशों के मध्य क्षेत्रीय अंतर संपर्क को मजबूती देने के उद्देश्य से बंगलादेश ने इस प्रोजेक्ट से जुड़ने के लिए अपनी इच्छा जाहिर की है। 17 दिसंबर को भारत और बांग्लादेश के प्रधानमंत्रियों के बीच हुए वर्चुअल बैठक में बांग्लादेशी प्रधानमंत्री शेख हसीना ने दक्षिण और दक्षिण पूर्वी एशिया को जोड़ने वाले इस अति महत्वपूर्ण राजमार्ग परियोजना से जुड़ने का प्रस्ताव किया । वहीं भारत ने बांग्लादेश से होते हुए पश्चिम बंगाल के हिली से मेघालय के महेंद्रगंज तक कनेक्टिविटी को शुरू करने का बांग्लादेश से आग्रह भी किया है।

उत्तर पूर्वी भारत की सुरक्षा और म्यांमार -

पिछले तीन वर्षों में नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड ( इजाक मुइवा ) ने म्यांमार में रहने वाले विद्रोहियों और उत्तर पूर्वी भारत में रहने वाले विद्रोहियों के साथ मिलकर भारत सरकार और उत्तर-पूर्वी राज्यों के सुरक्षा के समक्ष बड़ी चुनौती उत्पन्न की है । इस गुट ने म्यांमार के टागा क्षेत्र में भारत विरोधी अभियानों को संपन्न करने का काम किया है। नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड (खापलांग) ने म्यांमार के अराकान साल्वेशन आर्मी के विद्रोहियों और काचिन पृथकतावादियों के साथ मिलकर म्यांमार में भारत की ऊर्जा परियोजनाओं और विकास परियोजनाओं को निशाना बनाने की योजना बनाई है। यह विद्रोही कलादान मल्टीमॉडल ट्रांसपोर्टेशन प्रोजेक्ट और अन्य संयंत्रों को नष्ट करने की रणनीति बनाते पाए गए हैं। इन सबसे निपटने के लिए म्यांमार और भारत की संयुक्त सेना ने फरवरी-मार्च 2019 में सर्जिकल स्ट्राइक - 3 जिसे ऑपरेशन सनराइज भी नाम दिया गया, के माध्यम से नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड (खापलांग) नगा विद्रोही समूहों और अराकान साल्वेशन आर्मी के टागा स्थित आतंकी शिविरों को नष्ट कर दिया। वर्तमान में नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड खापलांग ने अपने कैडरों को टागा में कैम्प खोलने और म्यांमार की सेना के खिलाफ जवाबी कार्यवाही के आदेश भी दिए हैं । उन्होंने म्यानमार के कोकी क्षेत्र में भी कैम्प खोलने का निर्णय किया है । इन सब कामों को नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड ( खापलांग) कई उत्तर पूर्वी विद्रोही संगठनों के लिंक के साथ अंजाम दे रहा है, जिसमें उल्फा (आई) एनडीएफबी और केएलओ शामिल हैं।

म्यांमार सेना ने हाल ही में भारत-म्यांमार सीमा पर विद्रोही समूहों पर प्रभावी नियंत्रण के लिए ऑपरेशन सनराइज-3 शुरू किया है। चूंकि विद्रोही समूह कोरोना के बाद बोरोजगार हुए युवाओं को जाल में फंसा रहे हैं , इसलिए म्यांमार सरकार द्वारा ऐसा निर्णय लिया गया है। कई अवसरों पर यह प्रमाण मिल चुके हैं कि युंग आंग के नेतृत्व वाली नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड-खापलांग म्यांमार के अंदर अपनी स्थिति मजबूत करने की कोशिश में है। विभिन्न एनएससीएन समूह भारतीय सुरक्षा बलों पर हमला करने की साजिश रच रहे हैं जिसको नाकाम किया जाना जरूरी है। इसी क्रम में म्यांमार के सैगिंग क्षेत्र में विभिन्न स्थानों पर एनएससीएन ( के) और अन्य समूहों की तलाश में विशेष म्यांमार सेना इकाइयां तलाशी अभियान चलाने में लगी हुई हैं। म्यांमार सेना मणिपुर नदी के पूर्वी हिस्से की ओर भी अभियान चला रही हैं। विद्रोही समूह अराकान सेना मिजोरम के लोंग्थलाई जिले के कई इलाकों में शिविर लगाए हुए है, जो कलादान परियोजना के लिए खतरा हैंं। कलादान मल्टी-मॉडल परिवहन परियोजना को भारत के दक्षिण-पूर्व एशिया के प्रवेश द्वार के रूप में देखा जा रहा है। भारत ने इस परियोजना के लिए अप्रैल 2008 में म्यांमार के साथ एक समझौता किया था। इसके जरिए मिज़ोरम को म्यांमार के रखाइन सित्वे से जोड़ा जाएगा।

भारत म्यांमार द्विपक्षीय संबंध -

भारत और म्यांमार ने हाल के समय में जिन विषयों पर अपने द्विपक्षीय संबंधों को मजबूती देने के लिए समझौते किए हैं उनमें शामिल हैं : म्यांमार के रखाइन प्रांत के सामाजिक आर्थिक विकास में भारत द्वारा सहायता , मानव दुर्व्यापार को रोकने के लिए पारस्परिक सहयोग , रखाइन क्षेत्र में जल आपूर्ति प्रणाली का निर्माण, सौर ऊर्जा के जरिए विद्युत वितरण, रखाइन क्षेत्र में स्कूलों और सड़कों का निर्माण आदि । इससे स्पष्ट है कि भारत रोहिंग्या संकट के समाधान के रूप में उन्हें म्यांमार में विकास का वातारण देने के लिए प्रतिबद्ध है। दोनों देशों ने भारतीय रुपे कार्ड म्यांमार में शुरू करने का भी निर्णय किया है। दोनों देश एक डिजिटल पेमेंट गेटवे के निर्माण की संभावना पर विचार करने में भी लगे हैं।

भारत और म्यांमार ने सीमा सहयोग पर वर्ष 2014 में एक समझौता ज्ञापन (एम ओ यू) पर हस्ताक्षर किया था। इस एम ओ यू पर हस्ताक्षर म्यांमार में भारत के राजदूत श्री गौतम मुखोपाध्याय और म्यांमार के उप रक्षा मंत्री मेजर जनरल काव निंत द्वारा 8 मई 2014 को नाय पी ताव में किया गया था। यह एम ओ यू भारत एवं म्यांमार की सुरक्षा एजेंसियों के बीच सुरक्षा सहयोग एवं सूचना के आदान - प्रदान के लिए एक रूपरेखा प्रदान करता है। इसमें निहित एक प्रमुख प्रवधान अंतरराष्ट्रीय सीमा और समुद्री सीमा के अपने - अपने हिस्से में दोनों देशों के सशस्त्र बलों द्वारा समन्वित रूप से गश्त लगाने से संबंधित है। दोनों पक्ष बगावत, हथियारों की तस्करी तथा औषधि, मानव एवं वन्य जीव दुर्व्यापार के विरूद्ध लड़ाई में सूचना के आदान - प्रदान के लिए सहमत हुए हैं। दोनों पक्ष गैर कानूनी सीमा पारीय गतिविधियों पर रोक लगाने हेतु कदम उठाने के लिए भी सहमत हुए हैं। एम ओ यू में सशस्त्र बलों, औषधि नियंत्रण एजेंसियों एवं वन्य जीव अपराध नियंत्रण एजेंसियों के बीच बैठक के स्तर एवं बारंबारता का उल्लेख किया गया है। ( भारत और म्यांमार ने सीमा सहयोग पर समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किया, विदेश मंत्रालय , 2014 ) म्यांमार में भारतीय राजदूत ने पिछले वर्ष भारत द्वारा रोहिंग्या शरणार्थियों के लिए बनाए गए 250 पूर्ण निर्मित घर म्यांमार को सौंपे थे। यह प्रोजेक्ट भारत और म्यांमार सरकार द्वारा 2017 में हस्ताक्षरित किए गए समझौते का हिस्सा था। इसके तहत सरकार को पांच वर्षों में 25 मिलियन का व्यय करना था। 40 वर्ग मीटर में बने इन घरों को भूकंप और चक्रवाती तूफान से बचने के लिए भी डिजाइन किया गया है। यह भारत सरकार के मानवतावादी सहायता के दृष्टिकोण को भी दर्शाता है साथ ही अपनी आंतरिक सुरक्षा के प्रति सजगता और सतर्कता को भी प्रदर्शित करता है।

Kaladan Multi-Modal Transport Project : Daily Current Affairs ...

दोनों देशों के मध्य वस्तुओं और सेवाओं में द्विपक्षीय व्यापार को देखें तो इसमें 2018-19 में 7.53 प्रतिशत की वृद्धि हुई है और यह 1.7 बिलियन डॉलर है। एक तरफ जहां म्यांमार से भारतीय आयात में 18.47 प्रतिशत की गिरावट देखी गई हैं तो वहीं दूसरी तरफ म्यांमार में भारतीय निर्यात में 24.74 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई है। भारत म्यांमार का पांचवा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। म्यांमार भारत के ऊर्जा हितों की दृष्टि से एक महत्वपूर्ण दक्षिण पूर्वी एशियाई शक्ति है। प्राकृतिक गैस और तेल के क्षेत्र में दोनों देशों ने महत्वपूर्ण समझौतों को संपन्न किया है। भारत का म्यांमार में लगभग 800 मिलियन डॉलर का निवेश है और 33 भारतीय उपक्रम इस कार्य में लगे हैं वहीं भारत में म्यांमार का निवेश मात्र 9 मिलियन डॉलर है। फार्मास्युटिकल्स का निर्यात दोनों देशों के संबंधों का एक प्रमुख चालक तत्व है।

म्यांमार में श्वे तेल एवं गैस परियोजना के आगे के विकास के लिए ओवीएल द्वारा अतिरिक्त निवेश को मंजूरी भी दी गई है । ओएनजीसी विदेश लिमिटेड (ओवीएल) दक्षिण कोरिया, भारत तथा म्यांमार की कंपनियों के एक संकाय के हिस्से के रूप में 2002 से ही म्यांमार में श्वे परियोजना के उत्खनन एवं विकास से जुड़ी हुई है। भारतीय पीएसयू गेल भी इस परियोजना में एक निवेशक है। ओवीएल ने 31 मार्च, 2019 तक इस परियोजना में 722 मिलियन डॉलर (औसत वार्षिक विनिमय दर के अनुसार लगभग 3949 करोड़ रुपये) का निवेश किया है। श्वे परियोजना से गैस की पहली प्राप्ति जुलाई 2013 में हुई तथा स्थिरांक उत्पादन दिसंबर 2014 में पहुंचा। परियोजना वित्त वर्ष 2014-15 से ही सकारात्मक नकदी प्रवाह सृजित कर रही है। आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडल समिति ने आज ओएनजीसी विदेश लिमिटेड (ओवीएल) द्वारा म्यांमार में श्वे तेल और गैस परियोजना के विकास के लिए 121.27 मिलियन डॉलर (लगभग 909 करोड़ रुपये; 1 यूएस डॉलर = 75 रुपये) के अतिरिक्त निवेश को मंजूरी दे दी है। पड़ोसी देशों में तेल एवं गैस उत्खनन तथा विकास परियोजनाओं में भारतीय पीएसयू की भागीदारी भारत की पूर्व की ओर देखो नीति के साथ जुड़ने तथा निकटतम पड़ोसी देशों के साथ ऊर्जा सेतुओं का विकास करने की भारत की कोशिशों का एक हिस्सा है।

नशीले पदार्थों की तस्करी और भारत म्यांमार संबंध -

एक और प्रमुख मुद्दा जो भारत और म्यांमार के द्विपक्षीय संबंधों में खलल डालता रहा है वह है नशीले पदार्थों की तस्करी का मुद्दा । चूंकि म्यांमार नार्कोटिक ड्रग्स की तस्करी वाले क्षेत्र स्वर्णिम त्रिभुज का हिस्सा है और यह चार उत्तर पूर्वी भारतीय राज्यों अरुणाचल प्रदेश , नागालैंड , मणिपुर और मिजोरम से सीमा साझा करता है , इसलिए म्यांमार के साथ भारत के संबंध इस विषय पर बहुत संवेदनशील हो जाते हैं। मणिपुर के उखरूल , चंदेल , चंद्रचुरपुर में अफीम और हेरोइन की तस्करी बड़े पैमाने पर होती है। ड्रग फ़्री उत्तर पूर्व और म्यांमार दोनों देशों की साझी जिम्मेदारी है। अमेरिकी ड्रग एनफोर्समेंट एडमिनिस्ट्रेशन के अनुसार , म्यांमार दक्षिण पूर्वी एशिया का 80 प्रतिशत हेरोइन उत्पादन करता है और वैश्विक आपूर्ति के 60 प्रतिशत के लिए अकेले जिम्मेदार है । चीन को म्यांमार के ड्रगलॉर्ड्स का सहयोग समर्थन समय समय पर मिलता रहा है लेकिन सर्वाधिक चिंता की बात तो यह है कि भारत म्यांमार की सीमा पर कई हेरोइन लैब्स सक्रिय हैं। मिज़ोरम में म्यांमार के रास्ते से एंफेटामाइन जैसे पार्टी ड्रग्स की तस्करी और अवैध खरीद फरोख्त भी काफी बढ़ चुकी है जो उत्तर पूर्वी भारत के युवा मानव संसाधन को क्षति पहुंचा रही है। नार्कोटिक ड्रग्स के इम्फाल , आइजोल, कोहिमा, सिलचर , दीमापुर में पहुंचने के बाद इसे कोलकाता, मुंबई , दिल्ली , चेन्नई और बंगलुरू को डिस्पैच कर दिया जाता है। हाल ही में भारत म्यांमार सीमा पर स्थित मोरेह पर लगभग 9 करोड़ रूपए मूल्य के अवैध ड्रग्स को सुरक्षा बलों द्वारा जब्त किया गया है। ऐसे कई उदाहरण अन्य उत्तर पूर्वी राज्यों के संबध में आए दिन मिलते रहते हैं जिससे इस व्यापार की बढ़ती विभीषिका का पता चलता है। यहां यह उल्लेखनीय है कि ड्रग तस्करी दोनों देशों के लिए एक गंभीर मसला इसलिए है क्योंकि इससे आतंक , उग्रवादी , विप्लवकारी , पृथकतावादी गतिविधियों और उन्हें करने वाले समूहों का वित्त पोषण संभव हो जाता है । इसलिए यह दोनों देशों के लिए आंतरिक सुरक्षा के साथ साथ प्रादेशिक अखंडता का भी मुद्दा है जिसके समाधान के लिए भारत और म्यांमार ने अपनी प्रतिबद्धता भी प्रदर्शित की है । इसके अलावा नागालैंड और अरुणाचल प्रदेश में सक्रिय उग्रवादी अलगाववादी समूहों को भी चीन से वित्तीय सहायता और हथियार आपूर्ति के रूप में सहायता मिल रही है। ऐसे भारत विरोधी नेटवर्क्स को तोड़ने में म्यांमार का सहयोग अपेक्षित है।

म्यांमार में नए नेतृत्व के मायने :

म्यांमार के सत्ताधारी दल नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी ने हाल ही में संसदीय चुनावों में जीत दर्ज की है और नोबेल शांति पुरस्कार विजेता आन सान सू ची के नेतृत्व में म्यांमार एक बार फिर से अपनी क्षेत्रीय और वैश्विक भूमिका को निभाने की दिशा में अग्रसर होगा। कई अन्य देशों के चुनावों की तरह म्यांमार का चुनाव भी विवादों से मुक्त नहीं रह पाया और सेना समर्थित विरोधी दल यूनियन सॉलीडैरिटी एंड डेवलपमेंट पार्टी ने सत्ताधारी दल पर सत्ता के दुरूपयोग के साथ चुनाव जीतने का आरोप लगाया । लेकिन इसका सत्ता संरचना पर कोई नकारात्मक प्रभाव पड़े , इसकी संभावना बहुत ही कम है। यहां महत्वपूर्ण सवाल यह उठता है कि दक्षिण पूर्वी एशिया में आसियान सदस्य म्यांमार अपने नेतृत्व के साथ किन प्राथमिकताओं के साथ काम करेगा । क्या म्यांमार इंडो पैसिफिक और एशिया प्रशांत क्षेत्र की शांति सुरक्षा और स्थिरता के लिए कार्य करने वाले देशों के साथ ईमानदारी से लगकर अपनी भूमिका निभाएगा अथवा चीन के वन बेल्ट वन रोड पहल के तहत चीन म्यांमार इकोनोमिक कॉरिडोर जैसे अवसंरचनात्मक गठजोड़ों पर ध्यान केंद्रित करेगा। सवाल यह भी उठता कि रोहिंग्या संकट के मामले पर आन सान सू की सरकार पर मानवाधिकार उल्लंघन के जो गंभीर आरोप लगाए गए , उनके प्रति म्यांमार की सरकार कितनी संवेदनशील है और क्या अब रोहिंग्या समस्या का कोई स्थाई समाधान बांग्लादेश और भारत सहित अन्य देशों के साथ मिलकर म्यांमार का नेतृत्व ढूंढेगा ? इसके अतिरिक्त म्यांमार में नए शासन को भारत के उत्तर पूर्वी राज्यों की सुरक्षा और विकास से जोड़कर भी देखा जाता है। भारत म्यांमार सीमा और खासकर उत्तर पूर्वी राज्यों में उग्रवादी संगठनों , विप्लव कारी समूहों और गुटों से निपटने में म्यांमार सरकार की प्रतिबद्धता महत्तवपूर्ण मानी गई है । चूंकि म्यांमार में लंबे समय से मिलिट्री जुंटा ( सैन्य शासन ) रहा है जिसके चलते वहां सरकार ने लोकतांत्रिक मूल्यों की बजाय सर्वाधिकार वादी और अधिनायवादी मूल्यों को अधिक तरजीह दी है , इसलिए अब म्यांमार में भी माना जाने लगा है कि जब तक नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी को पूर्ण बहुमत देकर आन सान की सरकार की मिलिट्री पर निर्भरता और उसके दबाव से मुक्त नहीं किया जाता तब तक एक बेहतर शासन प्रणाली के समक्ष अड़चनें बनी रहेंगी । यही कारण है कि इस बार के संसदीय चुनावों में आन सान की पार्टी को बड़े पैमाने पर समर्थन मिला है। नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी म्यांमार में सक्रिय विद्रोही उग्रवादी समूहों से शांति वार्ता को संपन्न करने में अधिक प्रभावी तरीके से कार्य कर सकती है। एनएलडी की जीत केे दूरगामी परिणाम प्राप्त हो सकतेे हैं । यूएसडीपी के कई नेता जो म्यांमार की सेना में अपनी सेवाएं दे चुके हैं , उनके चीन के साथ घनिष्ठ संबंध रहे हैं और यूएस डीपी के सत्ता में आने पर वे चीनी हितों के प्रति अधिक निष्ठावान होकर कार्य करते जिसका नुकसान भारत को होता । अराकान आर्मी को बीजिंग का समर्थन प्राप्त है ।

चीन म्यांमार आर्थिक गलियारा के निहितार्थ :

चीन के युन्नात प्रांत में म्यामांर की सीमा के साथ 2010 से लेकर अब तक कई सारे बॉर्डर इकनॉमिक ज़ोन बनाए गए हैं और आर्थिक आधार पर म्यांमार को चीन से जोड़ने की कोशिश की जा रही है। यहां से ऑयल और गैस पाइपलाइन बिछाने की भी बात की गई है। म्यांमार चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव और एशियाई अवसंरचना निवेश बैंक का अंग है और इसके साथ चीन ने मुक्त व्यापार समझौता भी संपन्न कर रखा है। बेल्ट रोड इनिशिएटिव के तहत चीन का इरादा कम से कम 70 देशों के माध्यम से सड़कों, रेल की पटरियों और समुद्री जहाज़ों के रास्तों का जाल सा बिछाकर चीन को मध्य एशिया, मध्य पूर्व और रूस होते हुए यूरोप से जोड़ने का है। चीन यह सब ट्रेड और निवेश के माध्यम से करना चाहता है। चीन के इस बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव में भौगोलिक रूप से म्यांमार काफ़ी अहम है। म्यांमार ऐसी जगह पर स्थित है जो दक्षिण एशिया और दक्षिण पूर्व एशिया के बीच है। यह चारों ओर से ज़मीन से घिरे चीन के युन्नान प्रांत और हिंद महासागर के बीच पड़ता है इसलिए चीन-म्यांमार इकनॉमिक कॉरिडोर की चीन के लिए बहुत अहमियत है। अप्रैल 2019 में हुए चीन के दूसरे बेल्ट एंड रोड फ़ोरम (बीआरएफ़) में म्यांमार की नेता आंग सान सू ची ने 'चीन-म्यांमार आर्थिक गलियारे (सीएमईसी) के तहत सहयोग बढ़ाने के लिए चीन के साथ तीन एमओयू पर हस्ताक्षर किए थे। चीन-म्यांमार आर्थिक गलियारा अंग्रेज़ी के Y अक्षर के आकार का एक कॉरिडोर है. इसके तहत चीन विभिन्न परियोजनाओं के माध्यम से हिंद महासागर तक पहुंचकर म्यांमार के साथ आर्थिक सहयोग बढ़ाना चाहता है। 2019 से 2030 तक चलने वाले इस आर्थिक सहयोग के तहत दोनों देशों की सरकारों में इन्फ्रास्ट्रक्चर, उत्पादन, कृषि, यातायात, वित्त, मानव संसाधन विकास, शोध, तकनीक और दूरसंचार जैसे कई क्षेत्रों में कई सारी परियोजनाओं को लेकर सहयोग करने पर सहमति बनी थी। इसके तहत चीन के युन्नान प्रांत की राजधानी कुनमिंग से म्यांमार के दो मुख्य आर्थिक केंद्रों को जोड़ने के लिए लगभग 1700 किलोमीटर लंबा कॉरिडोर बनाया जाना है।

चीन और म्यांमार के राजनयिक संबध की हाल में 70 वीं वर्षगांठ पूरी हुई है जिसके उपलक्ष्य में दोनों देशों ने अपने उपरोक्त परियोजनाओं को गति देने पर सहमति बनाई है जो भारत के लिए चिन्ता का विषय साबित हो सकती है । चीन म्यांमार गठजोड़ दक्षिण पूर्वी एशिया में भारत के हितों को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकता है । इसलिए भारत को बहुस्तरीय और बहुपक्षीय ढंग से म्यांमार को विश्वास में लेते हुए क्षेत्रीय सुरक्षा और आर्थिक प्रगति के लिए कार्य करना होगा।

विवेक ओझा (ध्येय IAS)


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