ब्लॉग : कट्टरता को परिभाषित करने की गृह मंत्रालय की पहल by विवेक ओझा

कट्टरता और उग्रवादी मानसिकता विश्व शांति और सुरक्षा के साथ ही राष्ट्रों के आंतरिक सुरक्षा के लिए बड़े खतरे के रूप में बरकरार है । कट्टरता चाहे धार्मिक हो , सांस्कृतिक हो , विचारधारागत हो या इस्लामिक हो राष्ट्र की एकता और अखंडता के लिए गंभीर खतरा है । इसी बात को ध्यान में रखते हुए हाल ही में यूरोपीय देश फ्रांस ने अपने देश में एक पृथकतावाद विरोधी विधेयक पारित किया है जिसका मुख्य उद्देश्य इस्लामिक कट्टरता और उग्रवाद से अपने सामाजिक सांस्कृतिक ताने बाने को सुरक्षा देना है । फ्रांस में विचार और अभिव्यक्ति की आजादी बनाम धार्मिक आस्था का प्रश्न इस्लामिक कट्टरता से निपटने के प्रश्न से जुड़ गया है । इसलिए फ्रांस ने ऑनलाईन अथवा साइबर उग्रवाद से निपटने और ऑनलाईन हेट स्पीच तथा इंटरनेट से व्यक्तिगत जानकारी को लेकर कट्टरता बढ़ाने जैसी गतिविधियों पर प्रभावी नियंत्रण लगाने के लिए मजबूत कानून ले आने का काम किया है। फ्रांस का मानना है कि धार्मिक कट्टरता और रूढ़िवादिता विश्व के देशों के लोकतांत्रिक मूल्यों पर चोट कर रही है । फ्रांस में इस्लामिक आतंकी संगठनों के द्वारा धार्मिक आस्था के नाम पर नागरिकों , शिक्षकों की हत्याएं की गईं हैं जिन्हें फ्रांस किसी भी कीमत पर औचित्यपूर्ण मानने के लिए तैयार नहीं हैं लेकिन फ्रांस को यह साफ करना पड़ा है कि वह इस्लामिक कट्टरता से निपटने वाले बिल के जरिए फ्रांस में रहने वाले मुस्लिम समुदाय को रेडिकल इस्लाम की मजबूत जकड़न से मुक्त करने की मंशा रखता है , ना कि इस्लाम और पूरे मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाने की । फ्रांस के इस प्रस्तावित कानून के जरिए मस्जिदों को प्राप्त होने वाली विदेशी वित्तीय सहायता पर रोक लगाना आसान हो जाएगा । वहीं टर्की जैसे देश फ्रांस के इस निर्णय को एक रेसिस्ट कदम कह रहे हैं जो इस्लाम के खिलाफ जाते दिख रहा है।

फ्रांस से हट कर अपने देश भारत की बात करें तो यहां भी कट्टरता , धर्मांधता , धार्मिक और अन्य आधारों पर उग्रवादी मानसिकता , रूढ़िवादिता के जरिए आतंकी गतिविधि , अलगाववादी आंदोलन , जेहादी विचारधारा को फलने फूलने का अवसर मिला है और इस बात की गंभीरता को ध्यान में रखकर भारत सरकार के गृह मंत्रालय ने भी हाल ही में देश में हर तरह के रेडिकलाइजेशन ( कट्टरता ) की वर्तमान स्थिति को जानने और उसके हिसाब से देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए काम करने के उद्देश्य से एक व्यापक अध्ययन को मंजूरी दी है । देश में कट्टरता की स्थिति का पता लगाने संबंधी अनुसंधान इस दिशा में देश में पहली बार किया जा रहा है। इसके तहत कट्टरता शब्द को वैधानिक रूप से परिभाषित किया जाएगा और उसके अनुरूप वैधानिक क्रियाकलाप ( रोकथाम ) अधिनियम , 1967 में आवश्यक संशोधन करने की सिफारिश की जाएगी। गृह मंत्रालय के तत्वावधान में इस अध्ययन और अनुसंधान को दिशा देने वाले नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी , दिल्ली ने स्पष्ट किया है कि देश में किस किस प्रकार की कट्टरता है , उसकी वजह क्या है , उसको बढ़ावा देने वाले कारक कौन से हैं और कट्टरता की सोच को खत्म कैसे किया जा सकता है , इन सब अध्ययनों को धार्मिक रूप से तटस्थ होकर संपन्न किया जाएगा।

भारत जैसे बहुधार्मिक , बहुसांस्कृतिक और बहुनृजातीय देश में यह आश्वासन कि कट्टरपंथ और कट्टरपंथियों का कोई खास मजहब नहीं होता , कट्टरपंथी किसी भी धर्म से संबंधित हो सकते हैं फिर चाहे वो इस्लामिक कट्टरपंथी हों या फिर हिन्दू , सिक्ख। गृह मंत्रालय का मानना है कि रेडिकलाइजेशन के वैधानिक रूप से परिभाषित ना होने के चलते पुलिस द्वारा इस स्थिति का दुरुपयोग किया जाता है । गुमराह युवाओं को जो देश में माओवादी , नक्सवादी या वामपंथी उग्रवाद , आतंकी गतिविधि , अलगाववादी और उग्रवादी गतिविधि में संलग्न होते हैं , उन्हें किन आधारों पर कट्टरपंथी कहा जाएगा , यह परिभाषित होना जरूरी है जिससे देश के विधि प्रवर्तन कारी निकायों के समक्ष उनके खिलाफ कार्यवाही करने में कोई असमंजस ना हो और कोई मानवाधिकार की दुहाई देते हुए कश्मीर या उत्तर पूर्व के अलगाववादियों , मिलिटेंट्स के हक में बोलने के लायक रह जाए।

गृह मंत्रालय के इस अनुसंधान पहल के तहत भारत के पवित्र धर्म ग्रंथों कुरान ,गीता , बाइबल की सही व्याख्या करने पर बल देने के साथ ही कट्टरपंथी युवाओं को दोषी नहीं बल्कि गुमराह युवा होने की बात की गई है जो सरकार के उदार दृष्टिकोण को दर्शाता है । इसलिए यह कहा गया है कि गुमराह युवाओं के खिलाफ आक्रामक पुलिस कार्यवाही का उल्टा प्रभाव पड़ सकता है । इसलिए जोर इस बात पर होना चाहिए कि गुमराह युवाओं का डी - रेडीकलाइजेशन रणनीति के तहत कैसे उनकी कट्टरपंथी सोच और वैचारिकी का खात्मा किया जा सकता है। गृह मंत्रालय के तत्वावधान में गुमराह युवाओं को उनकी कट्टरपंथी सोच से उन्हें मुक्त करने के लिए डी- रेडीकलाइजेशन के लिए महाराष्ट्र मॉडल का अध्ययन किया गया है जहां इस दिशा में सफलता पाई गई है। भारत में युवाओं में कट्टरपंथ के प्रसार का साक्ष्य संयुक्त राष्ट्र के इस्लामिक स्टेट , अल कायदा और अन्य संबंधित व्यक्तियों और इकाइयों से संबंधित एनालिटिकल सपोर्ट एंड सैंक्शंस मॉनिटरिंग टीम पर 26 वीं रिपोर्ट में दिया गया है। इस रिपोर्ट में कहां गया है कि आईएस और अल कायदा के कई सदस्य कर्नाटक और केरल के हैं। ऐसी भी आशंका रिपोर्ट में व्यक्त की गई है कि आईएसआईएल से संबद्ध भारतीय शाखा हिन्द विलायाह में लगभग 200 सदस्य हैं जो इस्लामिक चरमपंथी मानसिकता के शिकार हैं। वहीं भारत के नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी भी तेलंगाना , केरल , आंध्र प्रदेश, कर्नाटक , तमिलनाडु से 122 व्यक्तियों जिनपर आईएसआईएस से जुड़े होने का आरोप है पर 17 मामलों के तहत अभियोग चलाकर उन्हें गिरफ्तार किया गया था।

कश्मीर में ओवरग्रांउड वर्कर्स के रूप में गुमराह युवा :

भूमि ऊपरी कार्यकर्ता ( ओवरग्राउंड वर्कर ) ऐसे युवा व्यक्ति हैं जो प्रत्यक्ष रूप से आतंकी घटना को संपन्न करने में तो संलग्न नहीं होते लेकिन आतंकवादियों को हिंसक आतंकी हमलों और उनके अन्य उद्देश्यों को पूरा कराने में सहायक की भूमिका अदा करते हैं। ये ऐसे व्यक्ति हैं जो आतंकी विचारधारा से धर्म और मौद्रिक लाभों के आधार पर प्रभावित होते हैं और आतंकियों के लिए अपने घरों में शरण देने , उनके लिए विभिन्न आवश्यक उपकरण जैसे मोबाइल , सिम , हथियार , अन्य आवश्यक रसद मुहैय्या कराने में अप्रत्यक्ष रूप से लगे होते हैं । इनके द्वारा धर्म के आधार पर युवाओं को गुमराह कर आतंकी गुटों में भर्ती कराने के लिए सक्रियता देखी गई है । कश्मीर में भूमि ऊपरी कार्यकर्ताओं ने आतंकियों की भर्ती और प्रशिक्षण को संपन्न कराने में सहायक की भूमिका निभाई है । ये विभिन्न प्रकार के वाहनों का इंतजाम कर आतंकियों के लिए हथियारों की आपूर्ति करते हैं। दक्षिणी कश्मीर में सक्रिय हिज्बुल मुजाहिदीन जैसे आतंकवादी गुटों के भूमि ऊपरी कार्यकर्ताओं के नेटवर्क पर नियंत्रण लगाने के उद्देश्य से ही भारत सरकार ने वर्ष 2019 के प्रारंभ में ही कश्मीर में जमात ए इस्लामी पर प्रतिबंध लगा दिया । यह संगठन अपने ओवर ग्राउंड वर्कर्स की सहायता से कश्मीर में अलगाववाद और पत्थरबाजी के साथ ही आतंकवादियों को सहयोग देने के कार्य में लिप्त पाया गया था । भारत सरकार के गृह मंत्रालय द्वारा कहा गया है कि जमात-ए-इस्लामी जो कि हिज्बुल मुजाहिदीन और हुर्रियत का अभिभावक संगठन है, वह कश्मीर घाटी में पृथकतावादी और कट्टर विचारधारा के प्रसार के लिए जिम्मेदार है । इसके साथ ही यह हिज्बुल मुजाहिदीन को सभी प्रकार के सहयोग और समर्थन लगातार उपलब्ध करा रहा है। यह हिज्बुल मुजाहिदीन को भर्ती, फंडिंग, हथियारों की सप्लाई, आश्रय और लॉजिस्टिक्स समर्थन प्रदान करते हुए पाया गया है।

ग़ौरतलब है कि जमात-ए-इस्लामी एक सामाजिक धार्मिक समूह के रूप में वर्ष 1942 से जम्मू और कश्मीर में सक्रिय रहा है लेकिन हाल के समय में इसके द्वारा पाकिस्तान से प्राप्त फंडिंग के जरिए कश्मीर के युवाओं को इस्लामिक रेडिकलाइजेशन के मार्ग पर ले जाने का सक्रिय प्रयास किया गया है और स्थानीय युवाओं ने इसकी कट्टर धार्मिक सीखों से प्रेरित होकर आतंकवादी संगठनों के सदस्य बन गए हैं। हाल के समय में अधिकांश स्थानीय नागरिक जो कश्मीर में आतंकवादी समूहों से जुड़े हैं, वे जमात-ए-इस्लामी से भी उसके शैक्षणिक संस्थानों या धार्मिक गतिविधियों से किसी न किसी रूप में जुड़े रहे हैं। वर्ष 2018 में 180 से अधिक कश्मीरी युवाओं ने आतंकी समूहों की सदस्यता ली है जिसमें 56 प्रतिशत से अधिक स्थानीय नागरिक थे। वर्ष 2018 में ही कश्मीर में 252 आतंकवादी मारे गए जिनमें से लगभग 60 प्रतिशत स्थानीय नागरिक थे। पूर्व में विदेशी आतंकवादी ज्यादा संख्या में मारे जाते थे लेकिन पिछले 2 वर्षों में कश्मीर के स्थानीय युवा जो आतंकी बन चुके हैं उनकी मौत अधिक हुई है। यह बात गुमराह युवाओं की स्थिति को दर्शाता है। केंद्र सरकार ने 28 फरवरी 2019 को जमात-ए-इस्लामी पर प्रतिबंध लगाते हुए कहा था कि यह कश्मीर घाटी में बच्चों और युवाओं के मध्य अपने स्कूली नेटवर्क का इस्तेमाल कर भारत विरोधी भावना और मानसिकता का पोषण कर रहा है इसके नेता जमात-ए-इस्लामी के यूथ विंग के कैडरों को प्रोत्साहित कर रहे हैं और इसका यूथ विंग जमीअत उल तुलबा युवाओं को आतंकियों के रूप में भर्ती करने के कार्य में लगा है ।

कट्टरपंथ से निपटना है जरूरी :

भारत सरकार के गृह मंत्रालय के तहत देश में चरमपंथ और कट्टरपंथी सोच से निपटने के लिए आतंकवाद-रोधी एवं इस्लामिक कट्टरवाद रोधी (सीटीसीआर) प्रभाग बनाया गया है । यह आतंकवाद, आतंकवाद से मुकाबला करने, कट्टरपंथीकरण, गैर कानूनी क्रियाकलाप ( रोकथाम) अधिनियम , नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी अधिनियम, फेक इंडियन करेंसी नेटवर्क ( एफआईसीएन) और फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) के आतंक के वित्त पोषण को रोकने , काले धन और मनी लॉन्ड्रिंग से निपटने के प्रयासों को दिशा देता है। इसके अलावा कट्टरपंथ से निपटने के लिए भारत के सशस्त्र बलों , अर्ध सैनिक बलों के द्वारा कट्टरपंथ , अलगाववाद और आतंकवाद प्रभावित क्षेत्रों में प्रभावी तरीके से सिविक एक्शन प्रोग्राम और परसेप्शन मैनेजमेंट रणनीति के जरिए गुमराह युवाओं में शासन प्रशासन के प्रति विश्वसनीयता के भावों का विकास किया जाना जरूरी है। जेहादी साहित्य , दस्तावेज आदि के प्रसार को रोकने के लिए सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म्स का प्रभावी विनियमन जरूरी है। उग्रवाद , आतंकवाद और कट्टरतावाद या चरमपंथ को केवल बल के इस्तेमाल से पराजित नहीं किया जा सकता और इसके लिए समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता को स्वीकार करना राष्ट्रों के लिए जरूरी है। अतिवादी और हिंसक विचारधाराओं को बढ़ावा देने के लिए वेब और सोशल मीडिया के उपयोग को रोकना, युवाओं को कट्टरपंथी बनाने और आतंकवादी कार्यकर्ताओं की भर्ती करने में धार्मिक केंद्रों के उपयोग को रोकने और सहिष्णुता को बढ़ावा देने के उपाय राष्ट्रों द्वारा किए जाने आवश्यक हैं। इस संदर्भ में उरुग्वे के सवाब और हेदायह केंद्र जैसी पहलों के योगदान का उदाहरण दिया जा सकता है जो चरमपंथी विचारधाराओं का मुकाबला करने और अंतरराष्ट्रीय उग्रवाद-विरोधी सहयोग को ऑनलाईन स्तर पर आगे बढ़ा रहे हैं। ऐसे ही चरमपंथ विरोधी केंद्रों के गठन की जरूरत भारत में भी है। इसके अतिरिक्त आधुनिक शिक्षा प्रणाली जिसमें मानवीय मूल्य , लोकतांत्रिक मूल्यों और सरोकारों , मानवाधिकारों , राष्ट्रीय एकीकरण के भावों को संवेदनशीलता के साथ रखा गया हो , उसे चरमपंथ प्रभावित क्षेत्रों में कुशलता से रखा जाना आवश्यक है।

विवेक ओझा (ध्येय IAS)


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