ब्लॉग : अंतरराष्ट्रीय उत्तर दक्षिण गलियारा परियोजना के भू-राजनीतिक मायने by विवेक ओझा

यूरेशिया यानि यूरोप और एशिया की भू राजनीति , भू आर्थिकी आज विश्व राजनीति और अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने वाले सबसे बड़े कारकों में से एक के रूप में उभरा है। स्वेज नहर के पारंपरिक व्यापारिक मार्ग के एक सस्ते और समय की बचत करने वाले वैकल्पिक व्यापारिक मार्ग के रूप में अंतरराष्ट्रीय उत्तर दक्षिण गलियारा यूरेशिया की भू राजनीतिक महत्ता को दर्शाने वाला एक बड़ा प्रोजेक्ट है। ईरान से होते हुए रूस और उत्तरी यूरोप तक यह गलियारा हिंद महासागर को फारस की खाड़ी से लिंक करने की बड़ी महत्वाकांक्षी योजना रखता है। यही कारण है कि भारत ने हाल ही में साफ तौर पर चाबहार बंदरगाह प्रोजेक्ट को अन्तर्राष्ट्रीय उत्तर दक्षिण व्यापारिक गलियारा प्रोजेक्ट में शामिल करने की मंशा जाहिर करते हुए इसका प्रस्ताव कर दिया है । भारत को आशा है कि आईएनएसटीसी समन्वय परिषद् की बैठक में सदस्य राष्ट्रों द्वारा भारत के प्रस्ताव को मान लिया जायेगा । भारत ने हाल ही में अपने मैरीटाइम इंडिया समिट में चाबहार दिवस कार्यक्रम को आयोजित करते हुए अंतर्राष्ट्रीय उत्तर दक्षिण व्यापारिक गलियारा मार्ग के विस्तार को एक बड़े विजन के रूप में प्रस्तुत किया है। ईरान और अफ़गानिस्तान को मजबूती से जोड़ना इस विजन का मुख्य आधार है।

आईएनएसटीसी में ईरान की महत्ता:

आईएनएसटीसी ईरान के सबसे बड़े बंदरगाह बंदर अब्बास से होकर गुजरता है और अब भारतीय विदेश मंत्री ने प्रस्ताव किया है कि इस कॉरिडोर का काबुल और ताशकंद से होकर जाने वाला स्थल मार्ग आईएनएसटीसी के पूर्वी गलियारे का निर्माण करे । एक तरह से यूं कहें कि भारत ने अपने कुछ भू सामरिक , भू आर्थिक हितों को ध्यान में रखकर इस अन्तर्राष्ट्रीय गलियारे के एक पूर्वी गलियारे का निर्माण चाहता है। ऐसे पूर्वी गलियारे का निर्माण जो कि अफ़ग़ानिस्तान से होकर होगा तो इस गलियारे से प्राप्त होने वाले लाभ और बढ़ जायेंगे या यूं कहें बढ़ाएं जा सकते हैं। एक बार इस परियोजना के मूर्तमान रूप लेते ही भारत समंदर के रास्ते ईरान के बंदर अब्बास पोर्ट तक अपनी वस्तुएं भेज सकेगा और फिर वहां से आगे सड़क मार्ग से कैस्पियन सागर के पास ईरान के बंदर अंजाली तक भारतीय वस्तुओं को भेजा जा सकेगा । वहां से आगे रूस के अस्त्राखान तक समंदर के रास्ते वस्तुओं का व्यापार संभव होगा और फिर आगे रेल मार्ग से यूरोप तक भेज दिया जायेगा। स्वेज नहर की तुलना में आईएनएसटीसी मुंबई और मॉस्को के बीच के परिवहन समय में 20 दिन की कटौती करेगा जिससे आर्थिक लाभ बढ़ जायेंगे। इस कॉरिडोर की अनुमानित क्षमता प्रति वर्ष 20 से 30 मिलियन टन वस्तुओं के परिवहन का है । भारत के न्हावा शेवा बंदरगाह ( पूर्व में जवाहर लाल नेहरू बंदरगाह ) से शुरू होने वाला यह कॉरिडोर ईरान के कैस्पियन सागर बंदरगाहों अस्तरा , बंदर अंजाली और अमीराबाद रूस के अस्त्राखान बंदरगाह से कनेक्टेड हैं। अस्त्राखान से मॉस्को तक के लिए रेलवेलाइन भी है। आईएनएसटीसी प्रॉजेक्ट के तहत बनने वाले गलियारे से भारत के पारंपरिक व्यापारिक मार्गों की तुलना में समय के स्तर पर 40 प्रतिशत और लागत के स्तर पर 30 प्रतिशत की कमी हो जाएगी। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि ईरान के बंदरगाह कजाखस्तान के अकटाऊ पोर्ट से भी जुड़ा हुआ है कजाखस्तान ईरान के अमीराबाद बंदरबाह के विकास में सहभाग कर चुका है ताकि उसे अपने गेहूं निर्यातों में आसानी हो सके।

ईरान और मध्य पूर्व की भू आर्थिकी को मजबूत आधार देने की क्षमता जिस प्रोजेक्ट में है वो है अन्तर्राष्ट्रीय उत्तर दक्षिण व्यापार गलियारा। ऐसा ईरान का मानना है। इसलिए ईरान का मानना है कि इस प्रोजेक्ट में अगर चाबहार प्रोजेक्ट को भी शामिल कर लिया जाए तो ईरान सहित इस क्षेत्र को बड़ा व्यापारिक लाभ होगा। अब ईरान इस सपने को हकीकत में बदलने के लिए भारत का सहयोग चाहता है। ईरान को याद है कि वह भारत ही था जिसने कुछ वर्ष पूर्व मध्य एशियाई देश तुर्कमेनिस्तान को अन्तर्राष्ट्रीय उत्तर दक्षिण गलियारे का भाग बनाने का प्रस्ताव किया था।

आईएनएसटीसी की शुरुआत :

आईएनएसटीसी प्रोजेक्ट को शुरू करने की योजना मूल रूप से भारत रूस और ईरान ने वर्ष 2000 में सेंट पीटर्सबर्ग में बनाई थी। इसे एक मल्टी मॉडल परिवहन प्रोजेक्ट के रूप में विकसित करने की योजना बनाई गई थी। यानि इसे जहाज , रेल और सड़क मार्ग के रूप में विकसित किया जाना है। भारत रूस ईरान के अलावा इसमें 10 अन्य सदस्य ( कुल 13) और एक पर्यवेक्षक सदस्य देश शामिल है। इसमें 10 मध्य एशियाई और पश्चिम एशियाई देशों अजरबैजान , आर्मीनिया , कजाखस्तान , किर्गिस्तान , ताजिकिस्तान , टर्की , यूक्रेन , बेलारूस , ओमान , सीरिया सदस्य हैं जबकि बुलगारिया को पर्यवेक्षक बनाया गया था।

भारत के लिए लाभ :

आईएनएसटीसी भारत के लिए मध्य एशिया और यूरेशिया के संसाधन समृद्ध क्षेत्र से जुड़ने के प्रवेश द्वार के रूप में कार्य करता है। यह भारत के वर्ष 2012 में शुरू किए गए कनेक्ट सेंट्रल एशिया पॉलिसी में निहित प्रमुख उद्देश्य यानि मध्य एशिया के देश से मजबूत संबंध निर्माण को साकार करेगा । भारत और अफगानिस्तान और पश्चिम की ओर कनेक्टिविटी में बड़ा रोड़ा पाकिस्तान रहा है । इस समस्या से निजात दिलाने में भारत को आईएनएसटीसी से बड़ी मदद मिलेगी क्योंकि यह कॉरिडोर ईरान के बंदरगाहों चाबहार और बंदर अब्बास तक एक प्रत्यक्ष लिंक उपलब्ध कराता है और ईरान को भी पाकिस्तान अवरोध से परे जाने का अवसर देता है । गौरतलब है कि अफगानिस्तान को भारत से व्यापार के लिए लैंड कनेक्टिविटी प्रदान करने में पाकिस्तान बाधा उत्पन्न करता रहा है जबकि दोनों देशों के मध्य अफगानिस्तान और पाकिस्तान के मध्य ट्रांजिट एंड ट्रेड एग्रीमेंट पर वर्ष 1965 में हस्ताक्षर हुआ था जिसमें प्रावधान किया गया था की अफगानिस्तान पाकिस्तान के कराची बंदरगाह का इस्तेमाल करते हुए किसी अन्य देश में निर्यात और किसी देश से अफ़गानिस्तान में आयात कर सकेगा । दोनों देशों के बीच वर्तमान समझौता अफगानिस्तान को अधिक पाकिस्तानी बंदरगाहों को प्रयोग में लाने की अनुमति देता है। इसी समझौते में अफ़ग़ान निर्यातों के भारत पहुंचने के लिए पाकिस्तान और भारत के बीच के लैंड बॉर्डर को प्रयोग में लाने की भी अनुमति है। इस समझौते में पाकिस्तान के मध्य एशिया के देशों के साथ व्यापार के लिए अफ़ग़ान भू क्षेत्र के इस्तेमाल करने का भी प्रावधान किया गया है।

गौरतलब है कि पाकिस्तान द्वारा अफगानिस्तान को भारत से व्यापार के लिए लैंड कनेक्टिविटी ना देने की चुनौती से निपटने के लिए भारत और अफगानिस्तान ने 2017 में एयर फ्रेट कॉरिडोर यानि वायु मालभाड़ा गलियारा खोला गया था और इसके जरिए बिना पाकिस्तानी मार्ग का प्रयोग किए भारत और अफ़गानिस्तान के मध्य व्यापार के लिए डायरेक्ट वायु मार्ग अपनाया गया । इससे वैकल्पिक व्यापारिक मार्गों के खोले जाने का महत्व भी स्पष्ट होता है । इसी प्रकार तापी गैस पाइपलाइन परियोजना में यदि पाकिस्तान का उचित समर्थन सहयोग नहीं मिलता है तो भी आईएनएससीटी को तुर्कमेनिस्तान , अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्थाओं के विकास में प्रभावी भूमिका निभाने का अवसर हमेशा विद्यमान रहेगा ।

आईएनएसटीसी परियोजना का एक बड़ा लाभ भारत और रूस के रिश्ते को मजबूती देने के रूप में हो सकता है । 2014 के बाद से जिस प्रकार रूस ने भारत की विदेश नीति में अपने लिए गर्मजोशी की कमी का अनुभव किया , उसे भरने में इस परियोजना की बड़ी भूमिका हो सकती है । रूस को लगता रहा है कि भारत ने अमेरिका के साथ अपनी सामरिक आर्थिक साझेदारी को बढ़ाने पर ही ज्यादा ध्यान केंद्रित किया है । इसी क्रम में 2014 के बाद से रूस ने पाकिस्तान से अपने संबंध बढ़ाने शुरू कर दिए थे। वर्ष 2018 में भारत और रूस के मध्य वस्तु और सेवाओं का द्विपक्षीय वार्षिक व्यापार मात्र 8.2 बिलियन डॉलर था जिसे 2025 तक बढ़ाकर 30 बिलियन डॉलर करने का लक्ष्य किया तय किया गया है। वहीं भारत और अमेरिका के मध्य द्विपक्षीय व्यापार वर्तमान में 149 बिलियन डॉलर पहुंच गया है जिसे दोनों देश निकट भविष्य में बढ़ाकर 500 बिलियन डॉलर करने का लक्ष्य तय कर चुके हैं। भारत और अमेरिका का प्रतिरक्षा व्यापार भी अत्यंत तेज गति से बढ़कर वार्षिक स्तर पर 20 बिलियन डॉलर हो गया है। ये आंकड़े बताते हैं कि भारत की विदेश नीति में रूस को पुनः यथोचित स्थान , सम्मान देने की जरूरत है और इसमें आईएनएसटीसी परियोजना का प्रभावी क्रियान्वयन एक प्रभावी भूमिका निभा सकता है।

आईएनएसटीसी का एक बड़ा लाभ भारत को यह मिल सकता है कि वह इसके जरिए कई क्षेत्रों में चीन की बढ़ती उपस्थिति पर लगाम लगा सकता है। चाबहार में भारत द्वारा विकसित किए जा रहे बंदरगाह से भारत की मध्य एशिया में भी मजबूत उपस्थिति सुनिश्चित होती है। पाकिस्तानी ग्वादर बंदरगाह के पश्चिम में महज 72 किलोमीटर की दूरी पर स्थित चाबहार भारत को हिन्द महासागर क्षेत्र में चीन की उपस्थिति को प्रतिसंतुलित करने का अवसर प्रदान करता है। भारत ने अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था के विकास को बढ़ावा देने को अत्यंत आवश्यक माना है और स्थलरुद्ध देश अफगानिस्तान को अपने व्यापार संभावनाओं से जुड़ने और पाकिस्तान पर अपनी निर्भरता को कम करने के लिहाज से अंतर्राष्ट्रीय उत्तर दक्षिण गलियारा एक गेम चेंजर की भूमिका निभा सकता है। यहां यह भी समझना आवश्यक है की आईएनएसटीसी की सफलता में ईरान की केंद्रीय भूमिका है और इस भूमिका को अधिक से अधिक दिशा देने के लिए भारत और रूस को कार्य करना होगा और ऐसे में दोनों के सामने सबसे बड़ी संभावित चुनौती ईरान मुद्दे पर अमेरिका के दृष्टिकोण के जरिए देखने को मिल सकती है । अमेरिका ने भारत ईरान और भारत रूस ऊर्जा और प्रतिरक्षा संबंधों से नाराज होकर 2019 में भारत को जेनरलाइज्ड सिस्टम ऑफ़ प्रिफरेंस की सूची से बाहर निकालकर भारत को अमेरिकी बाजार से मिलने वाले आर्थिक लाभ से वंचित कर दिया था । यह ज़रूर है कि वो राष्ट्रपति ट्रंप का दौर था जिन्हें कई अवसरों पर गैर जिम्मेदारी से काम करने का दोषी पाया गया था लेकिन इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता की बाइडेन प्रशासन अमेरिका के सर्वोच्च हितों के लिए संरक्षणवादी नीतियां अपनाने से नहीं हिचकेंगे । ऐसे में इस परियोजना के जरिए रूस ईरान अफगानिस्तान के साथ भारत के संबंधों को गति मिलने के क्रम में अमेरिका के सहज दृष्टिकोण को सुनिश्चित करने की चुनौती कहीं न कहीं देखने को मिल सकती है। अमेरिका यदि आईएनएसटीसी परियोजना को सुगम रूप से चलते देख सकता है तो उसके पीछे सबसे बड़ा कारण चीन के बेल्ट रोड पहल को अप्रभावी हुआ देखने की मंशा है। चीन और ईरान के संबंध में भी हाल के वर्षों में गर्मजोशी आई है जिसे अमेरिका नहीं देखना चाहेगा क्योंकि चीन ईरान मिलकर मध्य पूर्व में अमेरिकी हितों को प्रभावित कर सकते हैं । ऐसे में अमेरिका , भारत ईरान और भारत रूस संबंधों को अपेक्षाकृत उदार दृष्टि से देख सकता है क्योंकि उसे अपने और भारत के संबंधों की महत्ता पता है । जिस चीन को प्रतिसंतुलित करने के लिए भारत अमेरिका आज इतनी प्रतिरक्षा साझेदारियां कर रहे हैं उसी चीन को मध्य एशिया , ईरान , मध्य पूर्व , यूरोप और यूरेशिया के क्षेत्रों में अपना वर्चस्व आए और प्रभाव को बढ़ाते हुए देखना अमेरिका पसंद नहीं करेगा। इस लिहाज से आईएनएसटीसी परियोजना को अमेरिका सरलता सहजता के साथ लेगा और भविष्य में रूस और ईरान से भारत की बढ़ती हुई नजदीकी का हवाला देकर कोई गलत कदम भारत के खिलाफ नहीं उठाएगा , इस बात की पूरी संभावना है।

कंटेनर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया और रूसी रेलवेज लॉजिस्टिक्स ज्वाइंट स्टॉक कंपनी के बीच 2020 में आईएनएसटीसी के जरिए कार्गो परिवहन के लिए एमओयू पर हस्ताक्षर किया है और वो भी बिना इस बात के भय के कहीं अमेरिका कोई आर्थिक प्रतिबंध न लगा दे । इन बातों से यह पता चलता है कि इस गलियारे के निर्माण की महत्ता से सभी अवगत हैं। आईएनएसटीसी कई क्षेत्रों के देशों को उनकी भू आर्थिकी में बड़ा सकारात्मक बदलाव करने का अवसर प्रदान करता है । अजरबैजान और आर्मेनिया के बीच विवादों का काकेसस क्षेत्र की ऊर्जा सुरक्षा परिदृश्य पर काफी नकारात्मक प्रभाव पहले से ही पड़ चुका है। भारत इस कॉरिडोर के चलते काकेसस क्षेत्र से भी बेहतर ऊर्जा संबंध स्थापित कर सकेगा । अजरबैजान अपने चिर प्रतिद्वंद्वी आर्मेनिया से भू रराजनीतिक , भू आर्थिक बढ़त लेने की चाहत के साथ आईएनएसटीसी में 500 मिलियन डॉलर के निवेश की बात कर चुका है । यहां यह उल्लेखनीय है की यह गलियारा आर्मेनिया के खुद के अल्पपोषित रीजनल रेलबोर्ड एनिशियेटिव को इस आधार पर प्रभावहीन कर देता है कि यह जॉर्जिया के ब्लैक सी बंदरगाहों से होते हुए ईरान और टर्की को लिंक करने और अपेक्षाकृत अधिक आर्थिक लाभांश देने का मार्ग प्रशस्त करता है। आईएनएसटीसी आर्मीनिया के बाकू त्बिलिसी कार्स रूट को बाईपास करने की क्षमता से लैस है। गौरतलब है कि आर्मेनिया ईरान रेलवे कंसेशन प्रोजेक्ट के जरिए आर्मेनिया टर्की और अजरबैजान के ब्लॉकेड से बचते हुए अपनी अर्थव्यवस्था के लिए प्रत्यक्ष लाभ प्राप्त करना चाहता है लेकिन फंड की कमी के चलते अभी यह योजना कागज पर ही है।

आईएनएसटीसी के हित से जुड़ा एक मुद्दा यह भी है कि यदि भविष्य में रूस और ईरान के संबंधों में कोई समस्या आती है और आर्थिक और अन्य प्रतिबंधों से मुक्त ईरान एक एनर्जी हब बनने का प्रयास करता है और उसे यूरोप के तेल और गैस बाजारों में बड़ी हिस्सेदारी मिलती है तो यह बात रूस को कितनी स्वीकार्य होगी । सच्चाई यह भी है कि यूरोपीय देश रूसी गैस पर से अपनी निर्भरता में कमी करना चाहते हैं और ईरान को कहीं बेहतर अवसर मिले तो वो मध्य पूर्व और यूरोप की अर्थव्यवस्था में योगदानकर्ता के रूप में प्रभावी भूमिका में आ जायेगा ।

यहां इस बात पर भी विचार किया जा सकता है कि यदि बाल्टिक और नार्डिक देशों और जापान जैसे इच्छुक देशों को भी आईएनएसटीसी के दायरे में लाया जाता है तो वैश्विक भू राजनीति और अर्थव्यवस्था के समीकरण में आने वाला बदलाव जटिलता लायेगा या सरलता । चीन के बेल्ट रोड पहल और मध्य एशियाई देशों के ऊर्जा बाजार से जुड़ने की चाहत किसी से छुपी नहीं है। चीन का टर्की और ईरान से बढ़ता गठजोड़ भी सर्वविदित है। इसके बावजूद दो सबसे प्रमुख कारक जो चीन के बेल्ट रोड पहल की तुलना में आईएनएसटीसी को राष्ट्रों के लिए खासकर यूरोपीय राष्ट्रों के लिए अच्छा विकल्प बनाते हैं वो हैं , पहला, चीन द्वारा कोविड 19 महामारी के दौरान यूरोप के देशों को की गई लचर , प्रभावहीन और डिफेक्टेड मेडिकल सप्लाई , पूर्वी यूरोपीय देशों का चीन से मोहभंग होना और दूसरा , आईएनएसटीसी के प्रस्ताव डेप्ट ट्रेप डिप्लोमैसी जैसे किसी दुर्गुण से दूर हैं । चीन ने पिछले वर्ष कोविड 19 महामारी के दौरान एक वर्चुअल मीटिंग में 4 देशों के मध्य सहयोग का आवाहन किया था जिसमें चीन, पाकिस्तान, नेपाल और अफगानिस्तान शामिल थे। चीनी विदेश मंत्री ने पाकिस्तान, नेपाल और अफगानिस्तान से कहा कि वह चीन पाकिस्तान इकोनामिक कॉरिडोर को अफगानिस्तान तक विस्तार देने में मदद करें। इस "फोर पार्टी कोऑपरेशन" की आड़ में चीन ने तीनों देशों को वन बेल्ट वन रोड इनीशिएटिव के तहत चलने वाली परियोजनाओं को जारी रखने में सहयोग करने पर बल दिया । चीन के विदेश मंत्री ने इस मीटिंग में यह भी कहा कि चारों देशों को भौगोलिक लाभों को लेने के लिए एक साथ आना होगा । इससे भी पता चलता कि भारत और अफ़गानिस्तान के मध्य बढ़ते संबंध से अपने लिए होने वाली क्षति का आंकलन चीन कर रहा है। भारत की मध्य एशियाई देशों और ईरान में मजबूत स्थिति के लिए अफ़गानिस्तान भारत का विकल्प नहीं बल्कि आवश्यकता है और ऐसे में भारतीय विदेश मंत्री द्वारा हाल में अफ़गानिस्तान को आईएनएसटीसी से मजूबती से जोड़ने का प्रस्ताव भारत की भू राजनीतिक समझ को दर्शाता है।

विवेक ओझा (ध्येय IAS)


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