ब्लॉग : फ्रांस बना भारत के हिंद-प्रशांत महासागर पहल (आईपीओआई) का हिस्सा by विवेक ओझा

हाल ही में भारत और फ्रांस ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सहयोग को मजबूत करने के लिए वार्ता संपन्न की है और इस वार्ता के दौरान फ्रांस ने भारत की हिंद-प्रशांत महासागर पहल (आईपीओआई) का हिस्सा बनने का भी निर्णय लिया है। इस विचार विर्मश के दौरान दोनों ही देशों ने भारत-यूरोपीय संघ व्यापार और निवेश समझौते पर चर्चा में तेजी लाने के महत्व को भी रेखांकित किया। भारत और फ्रांस ने 13 अप्रैल को हुई बातचीत में ऑस्ट्रेलिया के साथ मिलकर त्रिपक्षीय सहयोग करने और समुद्र तथा अंतरिक्ष में उभरती हुई चुनौती का सामना करने और जलवायु परिवर्तन पर साथ मिलकर काम करने तथा जैव विविधता संरक्षण के मुद्दे पर मंथन किया।

हाल ही में फ्रांस ने पहली बार भारत , अमेरिका , जापान , ऑस्ट्रेलिया की नौसेनाओं के साथ मिलकर हाल ही में हिंद महासागर में अपने नेतृत्व में नौसनिक अभ्यास संपन्न किया था । यह पहली बार था जब फ्रांसीसी नौसेना क्षेत्रीय जल में क्वॉड के सभी चार सदस्यों के साथ एक संयुक्त ड्रिल का आयोजन किया और यह भी पहली बार था कि फ्रांस जैसी यूरोपीय शक्ति ने पूर्वी हिंद महासागर के बंगाल की खाड़ी में ला पेरोज नामक नौसैनिक अभ्यास का संचालन किया है। टोननेर और फ्रिगेट नाम के दो फ्रांसीसी जहाज ला पेरेस संयुक्त अभ्यास में हिस्सा लेने के लिए जब कोच्चि बंदरगाह पर पहुंचे तो भारत और फ्रांस की सामरिक साझेदारी की महत्ता का पता लगा। इन जहाजों ने बंगाल की खाड़ी में फ्रांसीसी नौसेना के नेतृत्व में होने वाले संयुक्त अभ्यास में भी हिस्सा लिया। नौसेनाओं के इंटरोऑपरेबिलिटी बढ़ाने ( सूचना और सहयोग के लिए पारस्परिकता ) के लिए क्वॉड सदस्य देश आज सक्रिय हैं।

फ़्रांस की हिंद महासागर में उपस्थिति:

वर्ष 2018 में फ़्रांस के राष्ट्रपति ने अपनी इंडो पैसिफिक रणनीति की रूपरेखा प्रस्तुत की थी और इस क्षेत्र की सुरक्षा , स्थिरता , विकास को विश्व शांति और समृद्धि के लिए आवश्यक माना था। भारत और फ्रांस की नौसेनाओं ने पिछले वर्ष हिंद महासागर के रीयूनियन द्वीप में संयुक्त पेट्रोलिंग की थी । यह द्वीप हिंद महासागर में फ़्रांस के नियंत्रण वाला विदेशी क्षेत्र है। यह मेडागास्कर और मॉरीशस से निकट भी है। पी 8I एयरक्राफ्ट के जरिए ही यह पेट्रोलिंग की गई थी। फ्रांस हिंद महासागर में एक मज़बूत नौसेनिक शक्ति है जिसके अड्डे अबू धाबी , जिबूती , मायोट , रियूनियन द्वीप में है और इसके साथ ही दक्षिणी प्रशान्त महासागर में फ्रेंच पोलिनेशिया और न्यू कैलेडोनिया में भी इसके नौ सैनिक अड्डे हैं । इसी साल फ्रांस इंडियन ओसियन रिम एसोसिएशन का 23 वाँ पूर्ण सदस्य देश बना है जिससे हिंद महासागर को चीन जैसे देशों के एकाधिकारवादी मानसिकता के दायरे से बाहर निकालने की फ्रांस की जिम्मेदारी बढ़ जाती है।

ब्लॉग : इंडो-पैसिफिक को नकारने का ...

इसके साथ ही अप्रैल माह के अंतिम सप्ताह में भारत और फ्रांस के बीच पश्चिमी हिंद महासागर में वरुण नौसैनिक अभ्यास को संपन्न किया जाना है। इससे साफ तौर पर जाहिर होता है कि फ्रांस भारत और अन्य लाइक माइंडेड देशों के साथ मिलकर महासागरीय सुरक्षा को सर्वोपरि प्राथमिकता दे रहा है। विभिन्न देशों के साथ नौसैनिक अभ्यासों को संपन्न करने के साथ ही भारत की मैरीटाइम डिप्लोमेसी तो मजबूत हो ही रही है लेकिन इसके साथ साथ भारत की ब्लू वॉटर नेवी बनने के लिए आवश्यक सामर्थ्य का भी विकास हो रहा है । इन नौसैनिक अभ्यासों से साझा स्तर पर मैरीटाइम डोमेन अवेयरनेस को बढ़ाने में मदद मिल रही है।

अभी पिछले माह ही क्वॉड के सदस्य देशों के नेताओं की पहली वर्चुअल मीटिंग हुई थी जिसमें भारत , अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के शासनाध्यक्षों के बीच जिस मुद्दे पर सबसे प्रमुख रूप में बात हुई वो थी इंडो पैसिफिक क्षेत्र की सुरक्षा और भारत का सागर विजन। कोविड 19 वैक्सीन को लेकर भारत और अन्य सदस्यों ने जिस तरह से सकारात्मक सोच को जाहिर किया उसने क्वाड को एक सकारात्मक और समावेशी सोच वाले फोरम के रूप में बनाए रखा , सदस्य देशों ने इसमें जलवायु परिवर्तन , सागरीय सुरक्षा, महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकी सहयोग , आपूर्ति प्रणालियों पर चर्चा कर इसे चीन के प्रतिसंतुलन करने वाले ब्लॉक से ऊपर एक बहुआयामी महत्व वाले समूह के रूप में प्रस्तुत किया। बैठक में ऑस्ट्रेलिया का कहना था कि 21वीं सदी हिंद-प्रशांत क्षेत्र की ही है जो दुनिया की तकदीर तय करेगी।

हिंद महासागर में भारत के सुरक्षा इंतज़ाम :

भारत ने हिंद महासागर और हिंद प्रशांत क्षेत्र की सुरक्षा के लिए जागरूकता , सतर्कता और साथ ही अप्रत्यक्ष चेतावनी के देने के मकसद से बड़ी शक्तियों के साथ मिलकर मालाबार और रिमपैक जैसे अभ्यासों को संपन्न किया है। अमेरिका के साथ युद्ध अभ्यास जैसा अभ्यास भी भारत विशेष मकसद से ही करता है। मालाबार संयुक्त अभ्यास के तर्ज पर भारत ने अंडमान सागर में सिंगापुर और थाईलैंड के साथ वार गेम्स भी संपन्न किया है । वहीं वियतनाम की नौ सेना के साथ मिलकर दिसम्बर 2020 में दक्षिण चीन सागर में भारत द्वारा पैसेज एक्सरसाइज भी महासागरीय सहयोग के नाम पर संपन्न किया गया । इन सब अभ्यासों से दो देशों की नौसेनाओं के मध्य पारस्परिक विश्वास और आपसी समझ बढ़ती है। आतंकवाद निरोधक क्षमता विकसित करने में मदद मिलती है। लेकिन इससे भी बड़ी बात यह है कि महासागरीय संसाधनों के अनधिकृत दोहन की कुछ राष्ट्रों की प्रकृति का सामूहिक प्रतिकार करने का अवसर इससे मिलता है। वर्तमान समय में चीन की पश्चिमी हिंद महासागर के पॉलीमेटालिक सलफाइडों के अन्वेषण और निष्कर्षण पर चीन की निगाह लगी हुई है।

बंगाल की खाड़ी में हुए इस नौसैनिक अभ्यास के बाद चीन के सुर में थोड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है चीन का कहना है कि भारत क्वाड की महाशक्तियों का यह अभ्यास क्षेत्रीय शांति को बढ़ावा देने पर केंद्रित होना चाहिए न कि प्रतिस्पर्धा के भाव से इसे बढ़ावा दिया जाए। पूर्वी हिंद महासागर क्षेत्र में हुआ यह नौसैनिक अभ्यास इसलिए महत्वपूर्ण है कि बंगाल की खाड़ी क्षेत्र और बिमस्टेक दक्षिण एशिया और दक्षिण पूर्वी एशिया में क्षेत्रीय शांति और सुरक्षा के लिहाज से बेहद अहम क्षेत्र है। भारत के नौसैनिक जहाजों सतपुड़ा और किलतान ने भारत के पी 8I लॉन्ग रेंज मैरिटाइम पैट्रोल एयरक्राफ्ट के साथ इस संयुक्त अभ्यास में भाग लिया । गौरतलब है कि ये वही पैट्रोल एयरक्राफ्ट है जो भारत को अमेरीका से मजबूत प्रतिरक्षा संबंधों के चलते मिला था। इनसे प्राप्त सूचनाओं से ही एक स्वतंत्र और मुक्त हिंद प्रशांत क्षेत्र के हित में राष्ट्रों द्वारा मजबूत दलीलें दीं जाती हैं। भारत ने कुछ समय पूर्व इस पैट्रोल एयरक्राफ्ट को ओमान की खाड़ी में तैनात किया था जिसका मकसद समुद्री डकैती की गतिविधियों पर निगाह रखना था ।

इसी बीच 6 अप्रैल को भारत और वियतनाम ने वर्चुअल स्तर पर अपना दूसरा समुद्री सुरक्षा संवाद भी आयोजित कर यह संदेश दे दिया कि वह इंडो पैसिफिक की सुरक्षा के लिए बहुस्तरीय कार्य में संलग्न है। गौरतलब है कि वियतनाम ही पहला महत्वपूर्ण दक्षिण पूर्वी एशियाई देश है जिसने एपेक संगठन में भारत की सदस्यता को एशिया प्रशांत क्षेत्र की सुरक्षा , स्थिरता , विकास के दृष्टि से आवश्यक मानते हुए भारत की सदस्यता का समर्थन वर्ष 2000 से ही किया है।

समुद्री रास्ते से संकीर्ण मलक्का जलडमरूमध्य तक अपनी आपूर्तियों के लिए चीन अंडमान सागर को एक चोक प्वाइंट के रूप में देखता है । इसलिए अंडमान सागर में रूल बेस्ड इंटरनेशनल ऑर्डर , फ्रीडम ऑफ नेविगेशन जैसी बातों को चीन बर्दाश्त नहीं कर पाता । चीन दक्षिण एशिया के राष्ट्रों श्रीलंका , पाकिस्तान और बांग्लादेश में अपनी उपस्थिति बढ़ाकर अपने लिए वैकल्पिक समुद्री और स्थल आधारित आपूर्ति मार्ग के निर्माण की मंशा रखता है और इसके लिए सक्रिय भी है। इसके साथ ही मध्य पूर्व से चीन तक ऊर्जा आपूर्ति में मलक्का स्ट्रेट की भूमिका किसी से छुपी नहीं है । यही कारण है कि चीन की ईरान से भी दोस्ती लगातार बढ़ रही है । दोनों ने अभी 25 वर्षीय सहयोग समझौते पर भी हस्ताक्षर किया है। इंडो पैसिफिक क्षेत्र में चूंकि पूर्वी अफ्रीकी देश भी आते हैं और पूर्वी अफ्रीकी देशों में भी चीन लगातार अपनी आर्थिक कूटनीतिक पहुंच को बढ़ाने के प्रयास में लगा हुआ है । इस लिहाज से भी हिंद महासागर क्षेत्र की सुरक्षा , स्थिरता का प्रश्न संवेदनशील हो जाता है। अभी तक अमरीका की रुचि तेल पर नियंत्रण रखने की थी । लेकिन, शेल गैस और दूसरी खोजों के बाद अमरीका तेल का नेट एक्सपोर्टर बन गया है। ऐसे में उसकी तेल पर निर्भरता कम हुई है। इससे मध्य पूर्व पर एनर्जी के लिए उसकी निर्भरता कम हुई है। और इस इलाके की अहमियत अमरीका के लिए घट गई है। दूसरी ओर, चीन के लिए तेल का मुख्य जरिया मध्य पूर्व ही है। इस लिहाज से चीन की हिंद महासागर क्षेत्र में बढ़ती रुचि पर लगाम लगाना राष्ट्रों के लिए जरूरी हो गया है।

क्वॉड की परिकल्पना :

क्वॉड की परिकल्पना 2004 में सुनामी के बाद सामने आई थी। उस वर्ष भारत ने अपनी नौसैनिक क्षमता दिखाते हुए सिद्ध किया था कि वह ऐसी प्राकृतिक आपदाओं के दौरान न केवल तमिलनाडु और अंडमान निकोबार द्वीपसमूह को सुरक्षा दे सकता है बल्कि अपने पड़ोसियों मालदीव , श्रीलंका और इंडोनेशिया को भी सहायता दे सकता है। 32 भारतीय जहाजों और 5500 कार्मिकों ने भारत की तरफ से हिंद महासागर की सुनामी के समय अपनी मानवतावादी सहायता पड़ोसी देशों को उपलब्ध कराई थी। इसके बाद जापान के प्रधानमन्त्री ने आर्क ऑफ प्रोस्पेरिटी एंड फ्रीडम की धारणा और दो महासागरों के संगम ( कांफ्लूएंस ऑफ़ टू सीज ) की धारणा के जरिए हिंद महासागर और प्रशांत महासागर के संगम को क्षेत्र के राष्ट्रों के लिए साझे हित के रूप में प्रस्तुत किया था जिसने क्वाड को एक नया आकार देने की कोशिश की थी । दिसंबर 2006 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी जापान के आर्क ऑफ प्रोस्पेरिटी एंड फ्रीडम की धारणा का समर्थन और स्वागत किया था। 2007 में मालाबार संयुक्त सैन्यभ्यास के आयोजन के साथ क्वॉड की धारणा को एक नया आधार मिला। जब ये विशाखापट्टनम में आयोजित हुआ तो जापान , ऑस्ट्रेलिया और सिंगापुर को भी इससे जोड़ा गया। जब ये सब हो रहा था और दो महासागरों के संगम की धारणा को जापान मजबूती देने में लगा था तब चीन और रूस ने क्वॉड को एशियाई नाटो के रूप में प्रस्तुत कर इसके प्रति अपनी आशंकाएं प्रकट की थीं।

क्वाड (Quad) : डेली करेंट अफेयर्स ...

अमेरिका जिसे उत्तर कोरिया के साथ सिक्स पार्टी वार्ता में चीन का सहयोग चाहिए था ,ने क्वॉड के प्रति अपना रुझान एक समय में हल्का कर दिया था और ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री ने भी अपने को संयुक्त अभ्यासों से बाहर रखा था । इसके बाद क्वॉड एक दशक के लिए प्रभावहीन सा हो गया लेकिन एक बार फिर से क्वाड को नई ऊर्जा 2017 में तब मिली जब डोकलाम विवाद और चीन की एशिया खासकर दक्षिण एशिया में बढ़ती विस्तारवादी नीति और डोकलाम मुद्दे पर भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच तनातनी को देखते हुए इस विवाद के एक महीने बाद ही क्वाड के चारों देशों के नेता मनीला में इंडिया ऑस्ट्रेलिया जापान यूएस वार्ता के लिए मिले और यहां से क्वॉड की धारणा को अधिक मजबूती मिली ।

भारत ने हिन्द महासागर और प्रशांत महासागर में नौ गमन की स्वतंत्रता , महत्वपूर्ण वाणिज्यिक समुद्री मार्गों से अबाधित आवाजाही को एक नया वैश्विक आंदोलन बना दिया है जिसमें उसे अमेरिका , जापान , ऑस्ट्रेलिया समेत आसियान , पूर्वी एशियाई और अफ्रीकी देशों का सहयोग मिला है । यही कारण है कि भारत ने 2015 में भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा एक्ट ईस्ट पॉलिसी की शुरुआत की गई और वर्ष 2015 में दोनों देशों ने "जापान भारत विजन 2025 विशेष सामरिक और वैश्विक साझेदारी " की घोषणा की जिसका मुख्य उद्देश्य हिन्द प्रशांत क्षेत्र और विश्व में शांति और समृद्धि के लिए काम करना है । हाल ही में कनाडा ने भी जापान के साथ मिलकर मुक्त और स्वतंत्र इंडो पैसिफिक क्षेत्र की आवश्यकता पर बल देते हुए अपनी इंडो पेसिफिक पॉलिसी बनाने का संकेत दिया है। ब्रिटेन ने भी इंडो पैसिफिक रणनीति में रुचि लेनी शुरू कर दी है। इस प्रकार चीन द्वारा वैश्विक विधियों के अतिक्रमण को रोकने के लिए यूरोप के कई देश लगातार इंडो पैसिफिक के मुद्दे पर लामबंद हो रहे हैं।

विवेक ओझा (ध्येय IAS)


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