ब्लॉग : इंडो-पैसिफिक को नकारने का मतलब वैश्वीकरण को नकारना है : भारत by विवेक ओझा

हाल ही में कनफेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्री के पार्टनरशिप समिट 2020 में भारतीय विदेश मंत्री ने कहा है कि इंडो पेसिफिक की अवधारणा को अस्वीकार करने का मतलब वैश्वीकरण को अस्वीकार करने जैसा है। भारतीय विदेश मंत्री का इस समिट में कहना था कि इंडो पैसिफिक की अवधारणा कल का पूर्वानुमान नहीं बल्कि बीते दिन की वास्तविकता है ( नॉट टूमारोज फोरकास्ट बट येस्टर्डेज रियलिटी ) । राजनयिक , कूटनीतिक महकमों में आज इंडो पैसिफिक की अवधारणा अत्यंत प्रासंगिक और प्रचलित हो चली है। इंडो पैसिफिक क्षेत्र के महत्व को रेखांकित करते हुए विदेश मंत्री का मानना है कि हिन्द महासागर और प्रशांत महासागर को अब दो पृथक इकाई के रूप में देखना संभव नहीं है।

हिंद महासागर और प्रशांत महासागर के कुछ भागों को मिलाकर समुद्र का जो हिस्सा बनता है, उसे इंडो पैसिफिक क्षेत्र कहते हैं। वहीं इस क्षेत्र में शामिल देशों को ‘ हिन्द प्रशांत देशों’ की संज्ञा दी गई है। अमेरिका इंडो पैसिफिक को भारत के पश्चिमी तट तक विस्तृत मानता है और जो अमेरिका इंडो पैसिफिक कमांड की भौगोलिक सीमा भी है। वहीं भारत इंडो पैसिफिक की अवधारणा में समूचे हिन्द महासागर और पश्चिमी प्रशांत महासागर को शामिल करता है । वर्ष 2018 में शांग्रीला संवाद के दौरान भारतीय प्रधानमंत्री ने इंडो पैसिफिक की अवधारणा को स्पष्ट किया था।

हिन्द प्रशांत क्षेत्र की सुरक्षा के ...

भारतीय प्रधानमंत्री ने भारत के इंडो पैसिफिक के विचार में अफ्रीका से अमेरिका तक के क्षेत्रों के शामिल होने की बात कही थी जो हिन्द और प्रशांत दोनों महासागरों को अपनी परिधि में शामिल करते हैं। भारत का कहना है कि उसकी इंडो पैसिफिक की अवधारणा समावेशिता, खुलेपन और आसियान केंद्रीयता ( आसियान सेंट्रलिटी) पर आधारित है और यह अवधारणा किसी देश के खिलाफ नहीं है। भारत हिंद-प्रशांत क्षेत्र को एक रणनीति या सीमित सदस्यों के क्लब के रूप में नहीं देखता और न ही ऐसे गुट के तौर पर जो वर्चस्व चाहता है और ये तो किसी भी हाल में नहीं मानता हैं कि ये किसी देश के खिलाफ़ है। प्रधानमंत्री मोदी ने 2018 में ही स्पष्ट किया था कि भारत की हिंद-प्रशांत नीति चीन को टारगेट करने के लिए भी नहीं है। हिंद-प्रशांत को लेकर भारत की एक सकारात्मक सोच है, जिसमें आसियान को केंद्र में रख कर दक्षिण पूर्व एशिया को क्षेत्र का अहम् इलाक़ा माना गया है। भारत की परिभाषा के तहत हिंद-प्रशांत ‘एक स्वतंत्र, खुला, समावेशी क्षेत्र है जो हम सब को प्रगति और खुशहाली की दिशा में आगे बढ़ते हुए हर किसी को खुले दिल से स्वीकार करता है.’ इसमें वो सभी देश शामिल हैं जो इस क्षेत्र के भीतर आते हैं और बाहर के भी जिनका यहां साझेदारी है.’ भारत ने जानबूझकर ‘समावेशी’ शब्द जोड़कर हिंद-प्रशांत की परिभाषा को वैचारिक दृष्टि से एक नया आयाम देने की कोशिश की है। भारत इंडो पेसिफिक की अवधारणा के जरिए कुछ मूलभूत सिद्धांतों में आस्था रखता है जैसे : नियम आधारित (रूल बेस्ड) ऑर्डर, समावेशिता, पारदर्शिता, अंतर्राष्ट्रीय कानूनों का पालन करना, नेवीगेशन और ओवरफ्लाइट की स्वतंत्रता, क्षेत्रीय अखंडता आदि।

इंडो पैसिफिक के विचार की पृष्टभूमि :

इंडो पैसेफ़िक शब्द का इस्तेमाल सबसे पहले भारतीय इतिहासकार कालिदास नाग ने 1941 में किया और फिर 2007 में जापानी पीएम शिंजो आबे के भारतीय संसद में दिए गए मशहूर भाषण “कॉन्फ्लूअन्स ऑफ द टू सी” (दो समंदरों का मिलन) के बाद इसे फिर से इस्तेमाल किया गया। इसी क्रम में ऑस्ट्रेलिया की सरकार ने 2013 में रक्षा क्षेत्र के श्वेत पत्र में इसका इस्तेमाल किया। इंडोनेशिया के पूर्व विदेश मंत्री मार्टी नतालेगावा ने उसी साल इंडो-पैसेफ़िक की सुरक्षा के लिए एक क्षेत्र व्यापी समझौते की मांग की, वहीं 2018 की शुरुआत में इंडोनेशिया ने आसियान के मंच पर बातचीत के लिए इंडो-पैसेफ़िक के मुद्दे को रखा। पीएम मोदी के 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद “इंडो-पैसेफ़िक” शब्द का आधिकारिक तौर पर इस्तेमाल होने लगा। हांलाकि ओबामा प्रशासन ने इस शब्द का इस्तेमाल शुरू किया लेकिन राष्ट्रपति ट्रम्प ने अमेरिका के आधिकारिक बयान में एशिया-प्रशांत को हिंद-प्रशांत (इंडो-पैसेफ़िक) से बदला।

भारत द्वारा इंडो पैसिफिक की अवधारणा की मजबूती के हालिया प्रयास :

हिन्द प्रशांत और एशिया प्रशांत क्षेत्र महाशक्तियों के सामरिक आर्थिक हितों के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण और संवेदनशील क्षेत्र के रूप में सामने आए हैं । सैन्य और नौसैन्य अड्डों , ऊर्जा आवश्यकताओं , खाद्य सुरक्षा हेतु मत्स्य संसाधन पर बढ़ती निर्भरता आदि कई अन्य कारणों से ये क्षेत्र भू सामरिक , भू राजनीतिक और भू आर्थिक महत्व के हो गए हैं । इसी बात को ध्यान में रखकर भारत सरकार के विदेश मंत्रालय ने हाल ही में हिंद प्रशांत क्षेत्र पर ध्यान देने के लिए एक अलग ही प्रभाग का गठन किया है। इसे ओसेनिया डिवीजन नाम दिया गया है । यह अतिरिक्त सचिव की अध्यक्षता में कार्य करेगा और यह दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों, प्रशांत द्वीपीय देशों - कुक आइलैंड्स , तुवालू , पापुआ न्यू गिनी , नौरू , मार्शल द्वीप , सोलोमन द्वीप और टोंगा पर विशेष ध्यान केंद्रित करेगा और वृहद हिंद प्रशांत क्षेत्र के मुद्दों और भारत के उससे जुड़े हितों पर ध्यान केंद्रित करेगा । इसके साथ ही भारत द्वारा इंडो पैसिफिक और आसियान नीति को एक एकल यूनिट के अन्तर्गत लाया गया है। इसे चीन से निपटने का कारगर उपाय माना जा रहा है ।

चीन द्वारा हिंद महासागरीय क्षेत्र के साथ ही एशिया प्रशांत और हिंद प्रशांत क्षेत्र के देशों को अपने प्रभाव में लेने के लिए अति सक्रिय होते पाया गया है । ऐसे में भारत का ओशनिया डिवीजन इन सभी क्षेत्रों को एकीकृत रूप से देखते हुए भारत के हितों के लिए नीतिगत निर्णय ले सकेगा । इस निर्णय के जरिए भारत पश्चिमी प्रशांत ( प्रशांत द्वीपीय देशों ) से लेकर अंडमान सागर और चीन द्वारा सामरिक रूप से महत्वपूर्ण समझे जाने वाले क्षेत्रों को समान महत्व वाले स्थलों के रूप में देखेगा । इस नए डिवीजन में ऑस्ट्रेलिया , न्यूजीलैंड के साथ संबंधों पर विशेष बल दिए जाने का निर्णय किया गया है। क्वाड में ऑस्ट्रेलिया की भूमिका और प्रभाव को देखते हुए ऐसा किया जाना स्वाभाविक भी था । क्वाड सुरक्षा समूह के सदस्य देशों - अमेरिका , जापान , भारत और ऑस्ट्रेलिया के विदेश मंत्रियों की बैठक जो इंडो पैसिफिक क्षेत्र की सुरक्षा को लेकर हुई थी , उससे पूर्व ही ओशेनिया डिविजन को बनाकर भारत ने इंडो पैसिफिक के लिए अपनी संवेदनशीलता भी जाहिर कर दी थी । ओशेनिया डिवीजन को इंडो पैसिफिक क्षेत्र के संबंध में एक नई नीतिगत प्राथमिकता के आधार पर सृजित किया गया है। यह दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों, प्रशांत द्वीपीय देशों और वृहद हिंद प्रशांत क्षेत्र के मुद्दों और भारत के उससे जुड़े हितों पर ध्यान केंद्रित करेगा ।
इसमें दो डायरेक्टर रैंक के प्राधिकारियों को संबंधित विषय से जुड़े मुद्दे पर भूमिका देने का प्रावधान किया गया है।

विवेक ओझा (ध्येय IAS)


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