ब्लॉग : तार्किक निवेश और सतत विकास लक्ष्यों में गहरा संबंध by विवेक ओझा

इन्वेस्ट इंडिया और यूएनडीपी ने मिलकर हाल ही में एसडीजी इन्वेस्टर मैप को भारत में लॉन्च किया है और इसका मूल मकसद सतत विकास को मजबूती देना है । इसमें 18 निवेश अवसर क्षेत्रों की पहचान की गई है । यह बहुत ही उत्साहवर्धक पहल कही जा सकती है क्योंकि 6 सतत विकास लक्ष्य जिनमें निवेश को बढ़ावा देने की बात की गई है उनमें शामिल हैं : शिक्षा , हेल्थकेयर , कृषि और संबंधित गतिविधियां , वित्तीय सेवाएं , नवीकरणीय ऊर्जा और सतत पर्यावरण । इनके जरिए अर्थपूर्ण निवेशों को समावेशी विकास के लिए दिशा दिया जा सकेगा । ग़ौरतलब है कि 25 सितंबर , 2015 को संयुक्त राष्ट के 193 देशों ने जिस सतत विकास लक्ष्य रूपरेखा या एजेंडा 2030 को अपनाया था , उसे इस वर्ष 24 सितंबर को पांच वर्ष पूरे हो गए । इस वर्ष सितंबर माह में हुए संयुक्त राष्ट्र महासभा सम्मेलन में भी यह महत्वपूर्ण विषय रहा कि कोरोना महामारी ने सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के प्रयासों में किस प्रकार बाधाएं खड़ी की हैं और इसका समाधान किस प्रकार किया जा सकता है ?

सतत विकास लक्ष्य 1 और 2 क्रमशः निर्धनता और भुखमरी उन्मूलन की बात करता है । सामाजिक और मानव पूंजी के निर्माण के लिए यह आवश्यक शर्त है लेकिन कोविड 19 ने इस लक्ष्य प्राप्ति के वैश्विक अभियानों पर गंभीर चोट किया है । यूएनडीपी के इक्वेटर पहल जैसे अभियान जो दुनिया भर के देशों की स्थानीय जनसंख्या के आजीविका संरक्षण के लक्ष्य से प्रेरित है , आज नकारात्मक रूप से प्रभावित हो रहे हैं। अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन ने कुछ समय पूर्व ही श्रमिकों के कामकाज, उनकी स्थिति पर इस आपदा के प्रभाव से संबंधित अपनी रिपोर्ट साझा की थी जिसका कहना था कि कोरोना वायरस संकट दूसरे विश्व युद्ध के बाद सबसे भयानक संकट के रूप में हमारे सामने है और कोरोना वायरस संकट के कारण भारत में अनौपचारिक क्षेत्र में काम करने वाले लगभग 40 करोड़ लोग गरीबी में फंस सकते हैं और अनुमान है कि इस साल दुनिया भर में 19.5 करोड़ लोगों की पूर्णकालिक नौकरी छूट सकती है। ऐसे में रोजगार सृजन और आय सुरक्षा जरूरी है।

अच्छा स्वास्थ्य और कल्याण तथा गुणवत्तपूर्ण शिक्षा सतत विकास लक्ष्य 3 और 4 के रूप में अंगीकृत किए गए हैं । इन दोनों लक्ष्यों के सामने गंभीर चुनौतियां कोरोना काल के पहले से बनी हुई हैं और राष्ट्रीय सरकारों से इस दिशा में बेहतर कार्य करने की अपेक्षा की जाती रही है । जेनेरिक दवाओं , वैक्सीन और बुनियादी स्वास्थ्य अवसंरचनाओं के अभाव के उदाहरण लगातार मिलते रहे हैं । कुछ राष्ट्र स्वास्थ्य क्षेत्र में अपने जीडीपी का एक बड़ा हिस्सा अनुसंधान कार्य पर खर्च करने का तर्क और महत्व समझ चुके हैं पर अभी भी कई विकासशील देशों में यह काफी कम है जिसके चलते वहां शिशु मृत्यु दर , मातृत्व मृत्यु दर , वृद्धों और दिव्यांगों की मृत्यु दर उच्च बनी हुई है। लैंगिक समानता और शुद्ध जल तथा स्वच्छता 5 वें और 6वें सतत विकास लक्ष्य हैं जिन्हें दुनिया के 193 देशों को प्राप्त करना है। यद्यपि महिलाओं और किशोरियों के सशक्तिकरण का लक्ष्य ग्लोबल फोरमों के द्वारा हाल के वर्षों में जोर शोर से उठाया गया है लेकिन असंगठित क्षेत्र में काम करने वाली महिलाएं , प्रवासी मजदूर महिलाएं पुरुषों के समान वेतन होने के दावों के बावजूद आर्थिक भेदभाव का दंश झेलने को अभी भी मजबूर है । कई इस्लामिक देशों में अभी भी महिला शिक्षा में अड़चनें पैदा करने के लिए कट्टरवादी परंपरावादी पितृसत्तात्मक मूल्यों को मजबूती देने के प्रयास किए गए हैं । इसमें अफगान तालिबान समेत , नाईजीरिया का बोको हराम संगठन सक्रिय है। सिविल युद्ध , नृजातीय संघर्षों , प्राकृतिक आपदाओं के दौरान महिला शरणार्थियों को अपेक्षाकृत अधिक चुनौतियों का सामना अभी भी करना पड़ रहा है । यौन शोषण के साथ ही यौन दासता के पीड़ादायक दंश को शरणार्थी और प्रवासी महिलाओं को झेलना पड़ा है । वैश्विक संगठनों में महिला सशक्तिकरण के लिए जिन सहभागिता मूलक अभियानों को चलाया गया है , उसमें भी उच्च और कुलीन वर्ग की महिलाओं को बेहतर स्थान मिल जाने भर से सतत विकास लक्ष्य पूर्ण नहीं हो जाएगा । जी 20 या ब्रिक्स या किसी भी अन्य संगठन में शीर्ष पदों पर महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करने से अधिक काम राष्ट्रीय सरकारों को करना अभी बाकी है । इसी प्रकार शिक्षा प्रणाली को कैसे रोजगारपरक बनाया जाए , शिक्षा के क्षेत्र में डिजिटल डिवाइड के साथ अन्य वर्ग विभाजन की दशाओं को कैसे तोड़ा जाए इसके लिए राष्ट्रों को गंभीरता से सोचना होगा ।

वहनीय और स्वच्छ ऊर्जा तथा डिसेंट वर्क और इकोनॉमिक ग्रोथ भी सतत विकास लक्ष्य के रूप में निर्धारित हैं । दुनिया भर के देशों को आज अल्प कार्बन अर्थव्यवस्था बनने , यूरोपीय देशों की तरह जीवाश्म ईंधन और थर्मल पावर प्लांट्स को खत्म करने की दिशा में सक्रिय होना पड़ेगा और नवीकरणीय ऊर्जा को एक स्थापित वैश्विक प्रायोगिक मूल्य बनाने के लिए सकारात्मक गठजोड़ करना होगा। इस दिशा में भारत के नेतृत्व वाले इंटरनेशनल सोलर एलायंस और वैश्विक स्तर पर कुछ वर्ष पूर्व गठित किए गए हाइड्रोजन काउंसिल की महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है । इस क्षेत्र में अनुसंधान कार्य को बढ़ाने का उपाय देशों को करना होगा ।

दुनिया के सभी देशों के मन में सर्वाधिक तेज गति से उभरती हुई अर्थव्यवस्था बनने का भाव होता है , भारत के मन में भी ऐसा है । कुछ समय पूर्व देश को 5 ट्रिलियन डॉलर अर्थव्यवस्था बनाने के लक्ष्य की मंशा केंद्र सरकार ने प्रकट की थी । यहां यह ध्यान देने की जरूरत है कि श्रमिकों , मजदूरों को उचित कार्य दशाओं , वेतन , सामाजिक सुरक्षा , बीमा दिए बगैर और प्राथमिक सहित अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों के संतुलित विकास पर जोर दिए बगैर आर्थिक संवृद्धि की धारणीयता को सुनिश्चित कर पाना मुश्किल है । जो क्षेत्र भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ कहे जाते हैं ,उन्हें मजबूती देने के लिए आमूलचूल सुधार करने की जरूरत अनवरत बनी रहती है ।

उद्योग नवाचार और अवसंरचना को वैश्विक और क्षेत्रीय स्तर पर इस तरह दिशा देने की जरूरत है जिससे आगामी पीढ़ियों को भी इसका लाभ मिल सके । यह सतत विकास लक्ष्य तब पूरा होगा जब आर्थिक और अन्य गतिविधियों में विकसित और विकासशील देशों के द्वारा संरक्षण वादी प्रवृत्ति को छोड़ा जाएगा , बौद्धिक संपदा अधिकारों को समुचित संरक्षण दिया जाएगा , ग्लोबल रिसर्च और डेवलपमेंट के लिए साझेदारियां की जाएंगी । इसके साथ ही असामनता और भेदभाव को खत्म करना भी जरूरी हो जाता है फिर चाहे वो ब्लैक लाइव्स मैटर का मुद्दा हो या क्षेत्रीय विषमताओं का मुद्दा हो ।

जिस गति से आज विश्व में शहरीकरण बढ़ा है , उससे स्पष्ट है कि आगामी समय में दुनिया की सर्वाधिक आबादी शहरों में होगी। सुविधाओं के बड़े केंद्र के रूप में माने जाने वाले इन शहरों में संसाधनों के ऊपर बोझ भी बढ़ता जा रहा है । अर्बन फ्लड , क्षरित होती आर्द्रभूमियों , विलुप्त होने जीव जंतुओं और वनस्पतियों को बचाने के लिए शहरों की सस्टेनेबिलिटी पर ध्यान रखना दुनिया के सभी देशों के लिए जरूरी हो गया है। इसी प्रकार सतत विकास लक्ष्य की प्राप्ति के लिए जलवायु परिवर्तन की मार से निपटने की मजबूत रणनीति जरूरी है । जलवायु परिवर्तन और जैव विविधता के क्षरण के साथ कृषि , उद्योग , स्वास्थ्य से लेकर सभी क्षेत्रों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है । ऐसे में पर्यावरण बनाम विकास के द्वंद को दूर करना होगा।

इस दिशा में महासागरीय विवादों को दूर करने , ब्लू इकोनॉमी के विकास के लिए सहमति बनाने , अवैध मत्स्यन ,समुद्री डकैती , सागरीय कचरे और प्लास्टिक प्रदूषण , सागरों पर ग्लोबल वार्मिंग की मार से महासागरों को बचाना जरूरी है । लुप्त होती समुद्री जैवविविधता के लिए राष्ट्रों को बिना शर्त एक साथ आने की जरूरत है। संयुक्त राष्ट्र के मंच से ऐसा किया जाना जरूरी है। सभी राष्ट्रीय कानूनों में महासागरीय सुरक्षा के प्रति प्रतिबद्धता का भी प्रावधान होना चाहिए।

आज विश्व में जिस तरह से बहुपक्षीयतावाद का क्षरण हो रहा है ,उसको देखते हुए वैश्विक संस्थाओं में आस्था और विश्वास को मजबूती देने की जरूरत है लेकिन इसके साथ ही वैश्विक संगठनों को अपनी भूमिका को भी निष्पक्ष , पारदर्शी और जवाबदेह बनाने की कोशिश करनी होगी जिससे राष्ट्रों के मन में उनके लिए विश्वसनीयता का भाव बना रहे । इन्हीं संस्थाओं की कार्यकुशलता पर वैश्विक शांति और न्याय की उपलब्धता निर्भर करती है और इसके लिए राष्ट्रों के बीच वैश्विक साझेदारियां जरूरी हैं। वैश्विक स्वास्थ्य सुविधा अवसंरचना , नवीकरणीय ऊर्जा , वैश्विक आपदा प्रबंधन , वैश्विक पीसकीपिंग गठजोड़ जैसे कई अन्य क्षेत्र हैं जहां वैश्विक समावेशी विकास के लिए साझेदारियां करनी जरूरी हैं।

विवेक ओझा (ध्येय IAS)


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