ब्लॉग : क्या ग्रीन बजट और इकोलॉजिकल डेफिसिट को दूर करने के लिए तैयार हैं राज्य सरकारें और केंद्र सरकार by विवेक ओझा

हाल ही में दक्षिण भारतीय राज्य कर्नाटक ने हरित बजट , हरित निवेश को बढ़ावा देने और पारिस्थितिकी घाटे को भरने पर एक ग्रीन विजन पेश किया है जो अन्य भारतीय राज्यों और केंद्र सरकार का भी इस दिशा में उत्साहवर्धन कर सकती है। हाल ही में कर्नाटक के मुख्यमंत्री बोम्मई ने अपने वन और पर्यावरण विभाग को आदेश दिया है कि प्राकृतिक संसाधनों की क्षति और कुल पारिस्थितिकी घाटे ( ecological deficit ) का वार्षिक आंकलन किया जाए। बोम्मई ने साफ तौर पर कहा है कि पहली बार अगले साल से वो इकोलॉजिकल डेफिसिट को भरने के प्रावधानों की शुरुआत करेंगे। कर्नाटक की इस हरित इच्छाशक्ति से एक सवाल मन में जाहिर तौर पर उठ खड़ा होता है कि क्या अन्य भारतीय राज्य भी ग्रीन बजट की दिशा में कुछ ठोस कार्य करने की मंशा रखते हैं ? क्या केंद्र सरकार ने देश के पर्यावरण और पारितंत्र को बचाने के लिए हरित निवेश ( green investment) या हरित बजट की कोई योजना बनाई है। केंद्र सरकार का कहना है कि वो पर्यावरण संरक्षण के मुद्दे पर संवेदनशीलता के साथ काम कर रही है और उसने ग्रीन बजट का भी आवंटन कर रखा है लेकिन पर्यावरणविदों में एक बात को लेकर जो असंतुष्टि है वह यह है कि 2020 -21 में देश के पर्यावरण और वन मंत्रालय को आवंटित किया गया कुल 3100 करोड़ की राशि पर्याप्त नही है , यह आवंटन और अधिक होना चाहिए था। प्रदूषण नियंत्रण के लिए इसमें से मात्र 460 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है जो पिछले वित्त वर्ष के लिए भी इतना ही था। इसमें कोई परिवर्तन नही किया गया है। वहीं क्लाइमेट चेंज एक्शन प्लान के लिए केवल 40 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है। इन सब आंकड़ों , तथ्यों के साथ हाल के समय में भारत सरकार के ग्रीन बजट के प्रति प्रतिबद्धता की समीक्षा की गई है।

यहां जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को निम्नलिखित पंक्तियों के जरिये रखना ठीक रहेगा :

पास रखेगी नहीं सब कुछ लुटाएगी नदी ।
शंख, सीपी , रेत , पानी जो भी पायेगी नदी ।
हमने वर्षों विष पिला के आजमाया है इसे ।
अब हमें भी विष पिलाकर आजमायेगी नदी ।

वर्ष 2019-2020  के बजट को भारतीय प्रधानमंत्री ने इन्हीं भावों से जुड़कर ग्रीन बजट की संज्ञा दिया था । इस ग्रीन बजट से जो सबसे बड़ा अर्थ निकला वह यह है कि पर्यावरण , जैव विविधता और जलवायु परिवर्तन के क्षेत्रों में केवल बजट का आबंटन बढ़ाने भर से सतत विकास के लक्ष्यों को प्राप्त नहीं किया जा सकता बल्कि इको फ्रेंडली तकनीकों का समुचित विकास और उनका क्रियान्वयन ज्यादा जरूरी है ।

न्यू इंडिया के इस ग्रीन बजट का मूल मंत्र था हरी-भरी धरती और नीले आकाश के साथ प्रदूषण मुक्‍त भारत का निर्माण । एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था को 5 ट्रिलियन डॉलर अर्थव्यवस्था बनने के लिए देश में हरित आचरण और साथ ही हरित निवेश को बढ़ावा देने की जरूरत पड़ेगी । सबसे पहले यह जानते हैं कि 2019-20 के बजट को भारत सरकार ने ग्रीन बजट क्यूं कहा था ? सरकार ने अल्प कार्बन अथवा हरित अर्थव्यवस्था के विकास के लिए हरित परिवहन को बढ़ावा देने की बात की है । फेम स्कीम के दूसरे चरण में देश में इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देने के लिए 1 अप्रैल , 2019 को भारत सरकार द्वारा 10 हज़ार करोड़ रुपए का आवंटन किया गया है।  वहीं दूसरी तरफ नीति आयोग ने 2023 तक 150 सीसी  वाले सभी दुपहिया वाहनों और 2025 तक सभी तिपहिया वाहनों  को इलेक्ट्रिक वाहनों के रूप में बदलने का प्रस्ताव किया उसे मूर्तमान स्वरूप देने के लिए बजट में वित्त मंत्री द्वारा इलेक्ट्रिक वाहनों पर जीएसटी को 12 प्रतिशत से घटा कर 5 प्रतिशत करने का प्रस्ताव किया गया । उपभोक्ताओं के लिए ये वाहन वहनीय दर पर उपलब्ध हों इसके लिए इलेक्ट्रिक वाहनों को खरीदने के लिए लिए गए ऋणों पर चुकाए जाने वाले ब्याज में भारत सरकार 1.5 लाख रुपए की अतिरिक्त आयकर कटौती करेगी । इस कदम से वाहन उत्सर्जन से होने वाले स्वास्थ्य जोखिमों से बचने में मदद मिलेगी ।

भारत सरकार का मत है कि बजट में पेट्रोल और डीजल की ड्यूटी में वृद्धि पर्यावरण के सरोकारों को ध्यान में रखकर किया गया है । जीवाश्म ईंधन पर टैक्स के जरिए वायु प्रदूषण से निपटने में मदद मिलेगी। न्यू इंडिया के इस बजट में प्रदूषण नियंत्रण स्कीमों जिसमें नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम भी शामिल है , 460 करोड़ रुपए का बजट आवंटित किया गया है। चूंकि वर्तमान में राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण द्वारा प्रदूषण संबंधित मामलों को केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की समितियों को रेफर करने में इजाफा हुआ है , ऐसे में सीपीसीबी का बजट 100 करोड़ रखा गया है । इस मामले पर सरकार को थोड़ा और प्रतिबद्धता  दिखाने की जरूरत थी । हाल ही में सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट की रिपोर्ट में बताया गया है कि वायु प्रदूषण से उत्पन्न बीमारियों के  चलते भारत में जीवन प्रत्याशा में 2.6 वर्ष की कमी आयी है । आउटडोर पर्टिकुलेट मैटर के चलते 1.6 माह और हाउसहोल्ड वायु प्रदूषण के चलते एक वर्ष दी माह की कमी जीवन प्रत्याशा में देखी गई है ।

इस 2019-20 के हरित बजट में जल प्रबंधन और नदियों कि स्वच्छता का इंतजाम करते हुए एक नए जल शक्ति मंत्रालय को शुरू करने की बात की गई है ताकि जल संसाधनों और जल की आपूर्ति को एकीकृत और समग्र तरीके से दिशा दी जा सके । इसके अलावा 2024 तक हर घर जल के मंत्र के साथ सभी ग्रामीण घरों में पाइप के जरिए जल आपूर्ति के लिए जल जीवन मिशन शुरू करने का निर्णय लिया गया है । स्थानीय स्तर पर जल प्रबंधन को मांग और आपूर्ति के स्तर पर बेहतर करने की मंशा बनाई गई है । भूमिगत जल की कमी और असंतुलन को झेलने वाले भारतीय जिलों में जल शक्ति अभियान चलाने का निर्णय लिया गया है । बजट 2019 में पर्यावरण संरक्षण को स्वच्छ भारत अभियान और खुले में शौच मुक्त भारत से जोड़कर देखा गया है । भारत सरकार  स्वच्छ भारत मिशन का दायरा बढ़ाते हुए उसमें  प्रत्येक गांव में धारणीय ठोस अपशिष्ट प्रबंधन को शामिल करने की योजना बना रही है । 

ऊर्जा संरक्षण और सतत विकास पर बल देते हुए बजट 2019-20 में बताया गया है कि अब तक उजाला योजना के तहत 35 करोड़ एलईडी बल्ब वितरित किए गए हैं जिससे वार्षिक स्तर पर 18,341 करोड़ रूपए की लागत बचत संभव हुई है । सोलर स्टोव्स और बैटरी चार्जर को भी बढ़ावा देने की बात की गई है । तटीय प्रबंधन कार्यक्रम के लिए 95 करोड़, जलवायु परिवर्तन कार्य योजना के लिए 40 करोड़  और जोखिमकारी तत्वों  के प्रबंधन के लिए 15 करोड़ रूपए की राशि आवंटित की गई है । 

ग्रीन बजट और इकोनॉमी की जरूरत क्यूं -

1970 के दशक में क्लब ऑफ रोम ने जिस लिमिट्स टू ग्रोथ की रिपोर्ट बनाई , वह आज अत्यंत प्रासंगिक हो गई है ।  धारणीय विकास के लिए आज पर्यावरणीय और जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटना जरूरी हो गया है । इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन ने हाल ही में अपनी रिपोर्ट " वर्किंग ऑन ए वॉर्मर प्लेनेट: दि इंपैक्ट ऑफ हीट स्ट्रेस ऑन लेबर प्रोडक्टिविटी एंड डिसेंट वर्क में बताया है कि जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग के चलते 2030 तक भारत का  श्रम बल काम करने के घंटों का 5.8 प्रतिशत खो देगा जो कि 34 मिलियन पूर्णकालिक रोजगार की  उत्पादकीय क्षति के बराबर होगा। इस क्रम में सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाले क्षेत्र कृषि और निर्माण कार्य होंगे । इसी प्रकार वैश्विक स्तर पर कुल  वर्किंग आवर्स का 2.2 प्रतिशत उच्च तापमान के चलते ख़त्म हो जाएगा और यह वैश्विक स्तर पर 80 मिलियन पूर्णकालिक रोजगारों को खो देने जैसा होगा । हीट स्ट्रेस से 2030 तक वैश्विक स्तर पर 2400 बिलियन डॉलर तक के नुकसान की आशंका आईएलओ ने व्यक्त की है । इसका यह भी कहना है कि प्रति वर्ष वैश्विक स्तर पर दो तिहाई वर्किंग आवर्स की क्षति इसलिए होगी की कामगार लोग अत्यंत गरम मौसम के चलते कार्य नहीं कर पाएंगे अथवा उनके कार्य करने की गति काफी घट जाएगी।

यही नहीं अगर हम वर्ल्ड वाइड फंड की लिविंग ब्लू प्लेनेट रिपोर्ट देखें तो उसमें बताया गया है कि 2050 तक समंदर में मछलियों से ज्यादा प्लास्टिक होगा ।

भारत और पर्यावरणीय चुनौतियां -

भारत के बारे में विचार करें तो कई प्रकार की विसंगतियां नजर आती हैं । भारत में  पैंगोलिन , स्टार कछुओं , हॉर्स सू क्रैब , लेपोर्ड जैसे कई जीव जंतुओं की अवैध तस्करी हो रही है । ढेर सारे जीव जंतुओं को संकटापन्न, अति संकटापन्न घोषित किया जा चुका है , रक्त चंदन ( रेड सैंडर ) की लकड़ी जो केवल भारत में पाई जाती है , दक्षिण भारत के बंदरगाहों से विदेशों में तस्करी जारी है । विदेशी खतरनाक पादप भारत के  जैव विविधता को नुकसान पहुंचा रहे हैं , विदेशी कोरल अंडमान निकोबार और लक्ष्यद्वीप की सागरीय जैव विविधता को क्षति पहुंचा रहे हैं । मुंबई और चेन्नई और केरल की बाढ़ आर्द्रभूमियों , मैंग्रोव वनों और प्रवाल भित्तियों का क्षरण , वनों की आग से अपार क्षति , सूखा और बढ़ता मरूस्थलीकरण , मानव पशु संघर्ष जैसी स्थितियों से निपटने के लिए भारत को कारगर उपाय करना होगा। अक्सर कई नेशनल पार्क और वाइल्डलाइफ सैंक्चुअरी के क्षेत्रों को  विकास परियोजनाओं की बलि चढते देखा गया है , कान्हा नेशनल पार्क की बात हो, मुंबई के फ्लेमिंगो सेंक्चुअरी वाले क्षेत्र की बात हो या फिर भारत के पहले न्यूट्रिनों ऑब्जर्वेटरी को बनाने की बात हो , विकास के नाम पर समझौता करते हुए देखा गया है । 

हरी भरी भारत की धरती की अपेक्षाएं -

भारत सरकार को आज प्लास्टिक , सॉलिड , बायोमेडिकल अपशिष्ट पदार्थ से बचने में अधिक निवेश करने की जरूरत है । प्लाज्मा गैसिफिकेशन या पायरलोसिस टेक्नोलॉजी के जरिए प्लास्टिक वेस्ट का प्रभावी निपटान किया जा सकता है। जीव जंतुओं की अवैध तस्करी को रोकने के प्रभावी उपाय करने होंगे । अंतरराष्ट्रीय जैव विविधता दिवस के दिन 22 मई को भारत के पर्यावरण मंत्रालय ने भारत के सभी प्रमुख एयरपोर्ट पर उच्च संकटापन्न जीव जंतुओं की तस्वीरों को लगाने का निर्देश जारी किया है , इसमें पैंगोलीन , स्टार कछुए , बाघ और तेंदुए शामिल हैं । भारत सरकार को अपने स्पिसीज रिकवरी प्रोग्राम के तहत जीव जंतुओं की सुरक्षा , कैप्टिव ब्रीडिंग के जरिए सुरक्षा और इनके ट्रांसलोकेशन के लिए अधिक हरित निवेश की जरूरत है । भारत सरकार को तत्काल वेटलैंड्स , कोरल रीफ और मैंग्रोव के पुनर्जीवन के लिए अधिक बजट आवंटन कर जैव विविधता संरक्षण को एक आंदोलन का स्वरूप देना होगा । सभी राष्ट्रीय सरकारों को याद रखना पड़ेगा कि पृथ्वी के अस्तित्व में बने रहने पर ही ट्रिलियन डॉलर इकोनॉमी बनना संभव हो पाएगा , हिन्द महासागर, प्रशांत महासागर ग्लोबल वार्मिंग मुक्त होंगे तभी अबाधित रूप से ब्लू इकोनॉमी का विकास हो पाएगा , महासागरीय फूड वेब और फूड चेन सुरक्षित होंगे तभी समग्र खाद्यान्न सुरक्षा संभव हो पाएगी और वनों में आग की घटनाओं और वायु प्रदूषण को रोका नहीं गया तो सांस लेना दूभर हो जाएगा । 

विवेक ओझा (ध्येय IAS)


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