(डाउनलोड) आर्थिक समीक्षा 2018 -19 सारांश "भाग - 1" (The Gist of Economic Survey 2018-2019 "Volume - 1")


(डाउनलोड) आर्थिक समीक्षा 2018 -19 सारांश "भाग - 1" (The Gist of Economic Survey 2018-2019 "Volume - 1")


1. परिवर्तन का दौर:विकास, रोजगार और मांग में तेजी लाने का मुख्‍य प्रेरक निजी निवेश

  • केन्‍द्रीय वित्‍त एवं कॉरपोरेट कार्य मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमन द्वारा आज संसद में पेश आर्थिक समीक्षा में आर्थिक विकास के लिए अच्‍छी संभावनाओं की भविष्‍यवाणी की गई है। समीक्षा में कहा गया है कि वर्ष 2024-25 तक भारत को 5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्‍यवस्‍था बनाने के प्रधानमंत्री द्वारा रखे गए लक्ष्‍य को हासिल करने के लिए समीक्षा की विषय वस्‍तु ‘एक उत्कृष्ट दौर में प्रवेश की अलग शुरूआत’ है। इसमें कहा गया है कि इसके लिए ‘भारत को अपनी वास्‍तविक विकास दर को 8 प्रतिशत पर बनाए रखने की आवश्‍यकता है।’
  • समीक्षा में कहा गया है कि भारत के लिए विकास के मॉडल की वकालत करके वह खुद को परम्‍परागत सोच से अलग करती है, जहां अर्थव्‍यवस्‍था को एक उत्‍कृष्‍ट अथवा एक निंदनीय दौर में देखा गया, और कभी भी संतुलन में नहीं देखा गया।’
  • समीक्षा में कहा गया है कि वह ‘निवेश, खासतौर से निजी निवेश को एक प्रमुख चालक के रूप में देखती है, जो मांग, क्षमता का सृजन करने के साथ, श्रम उत्‍पादकता बढ़ाती है, नई प्रौद्योगिकी की शुरुआत करती है और रोजगार सृजन करती है।’ समीक्षा में सुझाव दिया गया है कि ‘निर्यात को विकास के मॉडल का एक अभिन्‍न अंग होना चाहिए, क्‍योंकि अंतिम मांग के चालक के रूप में अधिक बचत, घरेलू खपत में बाधा डालती है।’
  • समीक्षा में सुझाव दिया गया है कि मांग, नौकरियों, निर्यात की विभिन्‍न आर्थिक चुनौतियों से निपटने के लिए इन्‍हें अलग समस्‍याओं के रूप में नहीं, बल्कि समानता के रूप में देखा जाना चाहिए। समीक्षा में कहा गया है कि ये वृहद आर्थिक तत्‍व महत्‍वपूर्ण समानताओं को दर्शाते हैं और ‘अर्थव्‍यवस्‍था को एक उत्‍कृष्‍ट दौर’ में बदलने के लिए उत्‍प्रेरक के रूप में उसका हिस्‍सा बन सकते हैं। समीक्षा में ‘आंकड़ों को जनहित, कानूनी सुधारों पर जोर देने, नीतिगत संगतता और व्‍यावहारिक अर्थव्‍यवस्‍था के सिद्धांतों का इस्‍तेमाल करते हुए व्‍यावहारिक बदलाव को प्रोत्‍साहन देने के रूप में प्रस्‍तुत किया गया है।’
  • आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि प्रमुख घटकों में ‘उन नीतियों पर ध्‍यान केन्दित किया जाए, जिनसे एमएसएमई विकसित हो, ता‍कि अधिक नौकरियां सृजित हो सकें तथा इसे अधिक उपयोगी बनाया जा सके, पूंजी की लागत को कम किया जा सके और वित्‍तीय बाजार में निवेश के जोखिम और उससे संभावित मुनाफे के बीच संबंध को युक्ति संगत बनाया जा सके।’

उपलब्धियां :

  • आर्थिक समीक्षा में यह बताया गया है कि पिछले पांच वर्षों के दौरान भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था का प्रदर्शन उल्लेखनीय रहा है और सरकार ने विकास एवं वृहद अर्थव्‍यवस्‍था में अंतर्निहित स्थिरता के लाभों को समाज के निचले तबकों तक पहुंचाना सुनिश्चित किया है।
  • आर्थिक समीक्षा में यह बात रेखांकित की गई है कि जहां एक ओर वर्ष 2014 एवं वर्ष 2018 में विश्‍व स्‍तर पर उत्‍पादन में 3.6 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई, वहीं दूसरी ओर भारत ने चीन से भी ज्‍यादा आर्थिक विकास दर को बरकरार रखते हुए छठी सबसे बड़ी अर्थव्‍यवस्‍था बनने की दिशा में महत्‍वपूर्ण कदम उठाए। समीक्षा में बताया गया है, ‘इन पांच वर्षों में औसत महंगाई दर इससे पहले के पांच वर्षों की महंगाई दर की तुलना में कम रही और इस आधार पर यह देश की आजादी के बाद के इतिहास में न्‍यूनतम महंगाई दर के बराबर रही। चालू खाता घाटा (सीएडी) संतोषजनक स्‍तर पर बना रहा और विदेशी मुद्रा भंडार अब तक के सर्वाधिक उच्‍चतम स्‍तर पर पहुंच गया।’
  • आर्थिक समीक्षा में यह जानकारी दी गई है कि यह नई संस्‍थागत रूपरेखा से ही संभव हो पाया है जिसके तहत फरवरी, 2015 में ‘मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी)’ का गठन किया गया और जिसे महंगाई दर को दो प्रतिशत की घट-बढ़ के साथ चार प्रतिशत के स्‍तर पर बनाए रखने का लक्ष्‍य दिया गया। आर्थिक समीक्षा में बताया गया है, ‘इस आशय की व्‍यवस्‍था सकल राजकोषीय घाटे (जीएफडी) के मामले में भी लागू की गई। राजकोषीय जवाबदेही और बजट प्रबंधन (एफआरबीएम) अधिनियम 2003, जिसके तहत 3 प्रतिशत के सकल राजकोषीय घाटे एवं जीडीपी के अनुपात के लक्ष्‍य के लिए विशिष्‍ट दिशा निर्धारित की जाती है, को वर्ष 2016 से नई ऊर्जा प्राप्‍त हुई और यह अनुपात वर्ष 2013-14 के 4.5 प्रतिशत से घटकर वर्ष 2018-19 में 3.4 प्रतिशत के स्‍तर पर आ गया। आर्थिक समीक्षा में बताया गया है कि इसी तरह अन्‍य वृहद आर्थिक संकेतकों में भी सुधार देखा गया है।

लाभार्थियों पर फोकस और लक्षित डिलीवरी

  • आर्थिक समीक्षा में जानकारी दी गई है, ‘आधार अधिनियम, 2016 ने विकास के लाभों को सामाजिक-आर्थिक दृष्टि से सबसे निचले तबके तक पहुंचाने का मार्ग प्रशस्‍त कर दिया है।’ आर्थिक समीक्षा में बताया गया है कि प्रधानमंत्री जन धन योजना (पीएमजेडीवाई) और जन धन, आधार, मोबाइल (जैम) की तीन सुविधाओं ने विभिन्‍न योजनाओं जैसे कि महात्‍मा गांधी राष्‍ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) राष्‍ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम (एनएसएपी), प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण (पीएमएवाई-जी), प्रधानमंत्री उज्‍ज्वला योजना (पीएमयूवाई) इत्‍यादि के तहत 7.3 लाख करोड़ रुपये से भी अधिक राशि का प्रत्‍यक्ष लाभ हस्‍तांतरण (डीबीटी) सुनिश्चित किया। वर्तमान में 55 केन्‍द्रीय मंत्रालय 370 नकद-आधारित योजनाओं के जरिए विभिन्‍न लाभों को डीबीटी व्‍यवस्‍था के तहत हस्‍तांतरित कर रहे हैं।

बुनियादी ढांचागत सुविधाएं

  • आर्थिक समीक्षा में बताया गया है कि वर्ष 2014 से लेकर वर्ष 2019 तक की अवधि के दौरान बुनियादी ढांचागत सुविधाओं का सृजन बड़ी तेजी से हुआ है। भारत में बिजली आखिरकार अप्रैल, 2018 में हर घर में पहुंच गई। राष्‍ट्रीय राजमार्गों के निर्माण ने तेज रफ्तार पकड़ी और 1,32,000 किलोमीटर लंबे मौजूदा राजमार्गों के 20 प्रतिशत से भी अधिक का निर्माण पिछले चार वर्षों में किया गया। टियर 3 और टियर 4 शहरों में हवाई कनेक्टिविटी सु‍निश्चित करने की योजना वर्ष 2017 में शुरू की गई।

संघवाद

  • राजकोषीय संघवाद को उस समय काफी मजबूती प्राप्‍त हुई जब 14वें वित्त आयोग ने केन्‍द्रीय करों की बंटवारा योग्‍य धनराशि में राज्‍यों की हिस्‍सेदारी 32 प्रतिशत से बढ़ाकर 42 प्रतिशत कर दी। जुलाई 2017 में जीएसटी को लागू करने के साथ-साथ जीएसटी परिषद के अनुभव कई अन्‍य क्षेत्रों जैसे कि श्रम एवं भूमि नियमन में भी सहकारी संघवाद को लागू करने के लिए आवश्‍यक प्रेरणा प्रदान करते हैं।
  • कंपनियों का अपने कारोबार से बाहर निकलना
  • दिवाला एवं दिवालियापन संहिता (आईबीसी) वर्ष 2017 में लागू की गई और बड़ी संख्‍या में गैर-निष्‍पादित परिसंपत्तियों अथवा फंसे कर्जों को इसके दायरे में लाया गया। समाधान अथवा परिसमापन के जरिए कर्जदाताओं ने बड़ी राशि वसूली जिससे देश में कारोबार करने की समूची संस्‍कृति बेहतर हो गई।

विकास और रोजगारों के लिए ब्‍लू प्रिंट- अगले पांच वर्ष

  • आर्थिक समीक्षा में बताया गया है, ‘भारत ने विश्‍व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्‍यवस्‍था बनने के लिए वर्ष 2024-25 तक 5 लाख करोड़ (ट्रिलियन) डॉलर की अर्थव्‍यवस्‍था के रूप में विकसित होने का लक्ष्‍य रखा है।’
  • आर्थिक समीक्षा में कहा गया है ‘भारत विकास मॉडल को रेखांकित करते हुए पारंपरिक सोच से परे हट रहा है जिसमें अर्थव्‍यवस्‍था को निरंतर असंतुलन की स्थिति में देखा जाता है – अच्‍छा चक्र या बुरा चक्र।’ आर्थिक समीक्षा में बताया गया है, ‘जब अर्थव्‍यवस्‍था अच्‍छे चक्र या दौर से गुजरती है तो निवेश, उत्‍पादकता में वृद्धि, रोजगार सृजन, मांग और निर्यात एक-दूसरे के लिए लाभप्रद साबित होते हैं और अर्थव्‍यवस्‍था को तेज गति से विकसित होने के लिए स्‍व–प्रेरित माहौल उत्‍पन्‍न कर देते हैं।’ आर्थिक समीक्षा में चीन, थाइलैंड, इंडोनेशिया और दक्षिण कोरिया में विकास की गाथाओं की चर्चा की गई है, ताकि इन देशों के सकल घरेलू उत्‍पाद (जीडीपी) में योगदान देने वाले सकल पूंजी निर्माण – बचत और निवेश के मुद्दों पर प्रकाश डाला जा सके।

रोजगार

  • आर्थिक समीक्षा में चीन के अनुभव को उद्धृत करते हुए कहा गया है, ‘जब पूर्ण मूल्‍य श्रृंखला के अंतर्गत गंभीरता से गौर किया गया तो पता चला कि पूंजीगत निवेश से रोजगार सृजन को बढ़ावा मिलता है क्‍योंकि पूंजीगत सामान के उत्‍पादन और अनुसंधान एवं विकास के साथ-साथ आपूर्ति श्रृंखलाएं (सप्‍लाई चेन) भी रोजगार सृजित करती हैं।

निर्यात

  • आर्थिक समीक्षा में देश के आर्थिक विकास के लिए निर्यात की अहमियत पर बल देते हुए यह बात रेखांकित की गई है कि वैश्विक निर्यात में भारत की हिस्‍सेदारी अपेक्षाकृत कम है, अत: भारत को अपनी बाजार हिस्‍सेदारी पर फोकस करना चाहिए। डॉ. सुरजीत भल्‍ला की अध्‍यक्षता वाले उच्‍चस्‍तरीय सलाहकार समूह ने जून, 2019 में इस विषय पर अपनी रिपोर्ट पेश की कि भारत अपना निर्यात किसी तरह से बढ़ा सकता है और जहां कहीं भी संभव हो, समुचित उपाय पर अमल करने की जरूरत है।’

अर्थव्‍यवस्‍थाओं में संतुलन और असंतुलन

आर्थिक समीक्षा में बताया गया है, ‘मुख्‍यत: संतुलन रूपरेखा का उपयोग करने वाली पंचवर्षीय योजनाएं बनाने का पूर्ववर्ती प्रयास विफल हो गया क्‍योंकि इनमें एक ऐसी दुनिया के लिए लंबे-चौड़े उपाय बताये जाते थे जिसके बारे में अनुमान लगाना अत्‍यंत मुश्किल था। अंत: असंतुलन से भरे इस अनिश्चित दुनिया में इसी ढंग से आगे बढ़ने के लिए ये तीन अवयव अत्‍यंत आवश्‍यक हैं-

(i) एक स्‍पष्‍ट विजन,
(ii) विजन को साकार करने के लिए एक सामान्‍य रणनीति और
(iii) अप्रत्‍याशित स्थितियों से निपटने के तौर-तरीकों में निरंतर बदलाव सुनिश्चित करने के लिए लचीलापन एवं इच्‍छा शक्ति।

  • आर्थिक समीक्षा में यह सुझाव दिया गया है कि वर्ष 2024-25 तक 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्‍यवस्‍था बनने के सपने को साकार करने के तौर-तरीकों के तहत यह आवश्‍यक है कि हम कल्‍याणकारी कार्यक्रमों की उत्‍पादकता एवं प्रभावशीलता बढ़ाने के लिए व्‍यवहारगत अर्थशास्‍त्र जैसे साधनों का उपयोग करने के साथ-साथ अन्‍य नई अवधारणाओं पर अमल करके एकीकृत ढंग से अर्थव्‍यवस्‍था के विभिन्‍न अवयवों को एक साथ आदर्श रूप प्रदान करें।
  • तदनुसार, आर्थिक समीक्षा में बताया गया है कि 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्‍यवस्‍था बनने के सपने को साकार करने के लिए इसके विभिन्‍न अध्‍यायों में डेटा आधारित साक्ष्‍य के जरिए व्‍यवहारगत अर्थशास्‍त्र के पहलुओं के साथ-साथ नीतियों में निरंतर बदलाव के मुद्दे के बारे में भी बताया गया है।
  • विकास के साथ-साथ रोजगारों में वृद्धि करने के लक्ष्‍यों को प्राप्त करने के लिए अगले पांच वर्षों के ब्‍लू प्रिंट के एक हिस्‍से के रूप में आर्थिक समीक्षा में यह सुझाव दिया गया है, ‘भारतीय सुधारक जो सर्वोत्तम उपाय कर सकते हैं वह है कानूनी प्रणाली को मजबूत करना।’

III प्रमुख कारक, सुधार और भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था के लिए जोखिम आबादी की भूमिका

  • आर्थिक समीक्षा में बताया गया है कि उसके एक अध्‍याय में आबादी की भूमिका के बारे में विस्‍तार से बताया गया है क्‍योंकि आबादी के मामले में प्राप्‍त बढ़त का वर्ष 1960 और वर्ष 1990 के बीच की अवधि के दौरान पूरे एशिया में आर्थिक विकास पर उल्‍लेखनीय सकारात्‍मक असर पड़ा था। रिपोर्ट में ग्राफ के जरिए इस तथ्‍य पर प्रकाश डाला गया है कि कामकाजी लोगों की आबादी (20-59 वर्ष), जिसका अनुपात वर्ष 2011 में कुल आबादी में 50.5 प्रतिशत था, बढ़कर वर्ष 2041 में लगभग 60 प्रतिशत हो जाएगी। प्रजनन दर में कमी की बदौलत कामकाजी लोगों की आबादी के अनुपात में वृद्धि होने से प्रति व्‍यक्ति आय बढ़ जाती है क्‍योंकि प्रति व्‍यक्ति उत्‍पादन तो यथावत ही रहता है, लेकिन आश्रित युवाओं की संख्‍या घट जाती है। अंतत:, आबादी के अनुपात में बदलाव होने से बचत भी बढ़ जाती है क्‍योंकि अधिकांश बचत 40 वर्ष से 65 वर्ष की आयु के लोगों द्वारा ही की जाती है। इसका कारण यह है कि लोग सेवानिवृत्ति‍ के लिए बचत करना शुरू कर देते हैं।
  • आर्थिक समीक्षा में बताया गया है, ‘उसके विश्‍लेषण से पता चलता है कि बचत बढ़ाने में आबादी के स्‍वरूप के साथ-साथ आय में वृद्धि उल्‍लेखनीय भूमिका निभाती है। अत: घरेलू ब्‍याज दरों को उच्‍च स्‍तर पर बनाए रखने से बचत की प्रवृत्ति को संभवत: बढ़ावा नहीं मिल पाएगा। अत: वास्‍तविक दर का सकारात्‍मक होना अत्‍यंत जरूरी है। इसके साथ ही वास्‍तविक ब्‍याज दरों में कमी से निवेश को बढ़ावा मिल सकता है जिससे निवेश, विकास, निर्यात और रोजगारों का अच्‍छा चक्र या दौर शुरू हो सकता है।’

एमएसएमई, उनके आकार, परिचालन अवधि, प्रोत्‍साहन और श्रम कानून

  • आर्थिक समीक्षा में बताया गया है कि अनेक रोचक तथ्‍यों के बारे में पता चला है जो वर्ष 2016-17 के उद्योगों के वार्षिक सर्वेक्षण से प्राप्‍त कंपनी स्‍तर के आंकड़ों का उपयोग करते हुए किए गए विश्‍लेषण पर आधारित है। आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि ऐसी कंपनियां जो समय के साथ बड़ी कंपनियां (जिनमें 100 या उससे अधिक कामगार कार्यरत हों और जो 10 साल से अधिक पुरानी न हों) बनने में समर्थ हैं, वे अर्थव्‍यवस्‍था में रोजगार और उत्‍पादकता में सर्वाधिक योगदान करती हैं।
  • आर्थिक समीक्षा में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि प्रतिबंधात्‍मक श्रम नियमन, जो छोटी कंपनियों को इस तरह के नियमन से मुक्‍त करती हैं, के साथ-साथ एमएसएमई को लाभान्वित करने वाले अन्‍य व्‍यापक प्रोत्‍साहनों ने भारतीय आर्थिक परिदृश्‍य में कई कंपनियों को आगे भी छोटी कंपनियां ही बने रहने के लिए संबंधित प्रोत्‍साहन देने में महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाई है। इसे ध्‍यान में रखते हुए आर्थिक स‍मीक्षा में 10 साल से कम परिचालन अवधि वाली कंपनियों को प्रोत्‍साहन देने पर फोकस करने की सिफारिश की गई है और इसके साथ ही एमएसएमई को दिए जाने वाले प्रोत्‍साहनों के मौजूदा स्‍वरूप से इन्‍हें समुचित तौर पर मुक्‍त रखने को कहा गया है।
  • राजस्‍थान में श्रम कानून में किए गए बदलावों को उद्धृत करते हुए आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि प्रतिबंधात्‍मक श्रम कानूनों में सुधार करने से रोजगार सृजन के साथ-साथ राज्‍यों में पूंजी संचय को भी बढ़ावा मिल सकता है। आर्थिक समीक्षा में कहा गया है, ‘श्रम कानून में परिवर्तन इसलिए भी आवश्‍यक है क्‍योंकि इसकी बदौलत निवेश बढ़ सकता है।’

वित्तीय क्षेत्र की भूमिका

  • आर्थिक समीक्षा में कहा गया है, ‘निवेश की अगुवाई वाले विकास मॉडल से वित्तीय प्रणाली यानी बैंकों और पूंजी बाजारों दोनों का ही त्‍वरित विस्‍तारीकरण होता है।’ लेकिन इसके साथ ही आर्थिक समीक्षा में बताया गया है, ‘वर्ष 2006 से लेकर वर्ष 2012 तक की अवधि के दौरान ऋणों में तेजी से वृद्धि होने से जुड़ा हमारा अपना अनुभव उस जोखिम को दर्शाता है जिसके तहत ऋणों की मात्रा बढ़ने पर कर्ज की गुणवत्ता तेजी से घट गई। इस संदर्भ में बैंकों को फंसे कर्जों से मुक्‍त करने और दिवालियापन प्रक्रिया स्‍थापित करने के लिए हाल ही में किए गए प्रयासों को ऐसे मूल्‍यवान उपाय के रूप में देखा जाना चाहिए जिसे निश्चित तौर पर पूरा किया जाना चाहिए। हो सकता है कि यह कष्‍टदायक प्रतीत हुआ हो, लेकिन बैंकिंग सेक्‍टर को फंसे कर्जों से मुक्‍त किया जाना और आईबीसी रूपरेखा ऐसी महत्‍वपूर्ण बुनियाद हैं जो निवेश की अगुवाई वाले विकास मॉडल पर अमल करने के परिणामस्‍वरूप अब लाभ देना शुरू कर देंगी।

अर्थव्‍यवस्‍था में जोखिम रिटर्न

  • आर्थिक समीक्षा में बताया गया है, ‘आर्थिक विकास के उद्देश्‍य से निवेश की अगुवाई वाले मॉडल की सफलता के लिए भारत में निवेशकों के समक्ष मौजूद जोखिमों को सुव्‍यवस्थित ढंग से कम करना अत्‍यंत आवश्‍यक है।’ आर्थिक समीक्षा में यह बात रेखांकित की गई है कि भारत को अब स्‍टार्ट-अप परिदृश्‍य में दुनिया में तीसरी रैंकिंग दी गई है और इसके साथ ही निजी निवेश के उद्देश्‍य से इस तरह के परिदृश्‍य के लिए अनुकूल परिस्थितियों को बरकरार रखना अत्‍यंत जरूरी है, ताकि निवेश, मांग, निर्यात, विकास और रोजगारों का अच्‍छा चक्र या दौर संभव हो सके।

2. अर्थलिप्‍सा के लिए नहीं अपितु मानव जाति के लिए नीति-व्‍यावहारिक अर्थव्‍यवस्‍था का अनुप्रयोग

  • केन्‍द्रीय वित्‍त एवं कॉरपोरेट मामलों की मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमन ने आज संसद में आर्थिक समीक्षा 2018-19 पेश की। इसमें जन नीतियों और कार्यक्रमों के प्रभाव को बेहतर बनाने के लिए सुझाव दिए गए हैं। इसमें विस्तार से चर्चा की गई है किस प्रकार व्यावहारिक अर्थशास्त्र भारत जैसे देश में परिवर्तन लाने के लिए एक प्रभावी उपाय हो सकता है जहां सामाजिक और धार्मिक नियम व्यवहार को प्रभावित करने में प्रमुख भूमिका निभाते हैं। यह इस अवधारणा पर आधारित है कि वास्तविक लोगों द्वारा लिए गए निर्णय, पारंपरिक अर्थशास्त्र में अव्यावहारिक रोबोटों द्वारा बनाए गए सिद्धांतों से पृथक होते हैं। आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि ‘’मानवीय व्यवहार के मनोविज्ञान को ध्यान में रखते हुए व्यावहारिक अर्थशास्त्र लोगों को वांछित व्यवहार की ओर प्रेरित करने के लिए दृष्टि प्रदान करता है।“
  • हाल के समय में बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ (बीबीबीपी) और स्‍वच्‍छ भारत मिशन जैसी लोकप्रिय सरकारी योजनाओं की सफलता का हवाला देते हुए आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि इन योजनाओं ने नीति के प्रभाव को व्‍यापक बनाने के लिए व्‍यवहारिक ज्ञान को सफलतापूर्वक लागू किया है। उदाहरण के लिए सोशल मीडिया पर ‘#सेल्‍फी विद डॉटर’ दुनिया भर में लोकप्रिय हो गया और बालिका के जन्‍म पर खुशियां मनाना जल्‍द ही एक नियम बन गया, जिसका ज्‍यादा से ज्‍यादा लोग पालन करने के इच्‍छुक हो गये। इसी तरह हाल की विभिन्‍न योजनाओं जैसे नमामि गंगे, उज्‍ज्‍वला, पोषण अभियान जैसे सामाजिक और सांस्‍कृतिक पहचान वाले नामों की योजनाओं ने जनता के बीच अपनापन कायम करने में सहायता प्रदान की।
  • एसबीएम में स्‍वच्‍छता के समुदाय आधारित दृष्टिकोण ने सत्‍याग्रही से मिलते-जुलते शब्‍द स्‍वच्‍छाग्राहियों की मदद से इस संदेश को लागू करने में सहायता की। एसबीएम के महिला सशक्तिकरण संघटक ने बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ योजना को पूर्णता प्रदान करने में सहायता की।
  • आर्थिक समीक्षा के अनुसार, व्‍यवहारिक अर्थशास्‍त्र के प्रमुख सिद्धान्‍त ‘लाभकारी सामाजिक नियमों पर जोर देने’, ‘पारम्‍परिक विकल्‍प में बदलाव’ और ‘बार-बार बल देना’ हैं।
  • आर्थिक समीक्षा की राय है कि जहां अनेक भारतीय कार्यक्रमों ने व्‍यवहारिक अर्थशास्‍त्र के सिद्धांतों को लागू किया है, वही भारत में इन कार्यक्रमों के प्रभाव को व्‍यापक बनाने के लिए इस प्रकार के ज्ञान से लाभ उठाने की अभी भी काफी गुंजाइश बची हुई है। तदनुसार, आर्थिक समीक्षा नीति आयोग ने व्‍यवहारिक अर्थशास्‍त्र इकाई की स्‍थापना की सिफारिश करती है। समीक्षा इस बात की भी जोरदार सिफारिश करती है कि प्रत्‍येक कार्यक्रम के कार्यान्‍वयन से पहले उसे आवश्‍यक तौर पर ‘व्‍यवहारिक आर्थिक लेखा परीक्षा’ से गुजरना चाहिए।

3. छोटों को पोषित कर, उन्‍हें विशाल बनाना: एमएसएमई वृद्धि के लिए नीतियों को नई दिशा देना

  • केन्‍द्रीय वित्‍त एवं कॉरपोरेट मामलों की मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमन ने आज संसद में आर्थिक समीक्षा 2018-19 पेश की।
  • एमएसएमई क्षेत्र के विकास के लिए नीतियों में बदलाव के संदर्भ में आर्थिक सर्वेक्षण कहता है कि जो एमएसएमई उद्यम विकास करते हैं वे केवल लाभ ही अर्जित नहीं करते बल्कि वे रोजगार के अवसरों के सृजन में तथा अर्थव्यवस्था के लिए उत्पादन में योगदान भी देते हैं। इसलिए हमारी नीतियां ऐसी होनी चाहिए जो एमएसएमई के विकास पर विशेष ध्यान दें।
  • भारत में रोजगार सृजन को उन नीतियों के कारण समस्याओं का सामना करना पड़ता है जो लघु उद्यमों को प्रोत्साहन प्रदान करने के लिए बनाई गई हैं। ये लघु उद्यम कभी विकसित नहीं होते। इसके स्थान पर नए उद्यमों में विकसित होने और तेजी से बड़ी कंपनी में तब्दील होने की क्षमता होती है। ऐसी कंपनियां जहां 100 से कम कर्मचारी कार्यरत हैं लघु कंपनियों की श्रेणी में आती हैं। 10 वर्षों से अधिक पुरानी होने के बावजूद ये कंपनियां संख्या के संदर्भ में विनिर्माण क्षेत्र की कुल संगठित कंपनियों की आधी है लेकिन इन कंपनियों का रोजगार के लिए योगदान केवल 14 प्रतिशत है और उत्पादन के लिए योगदान मात्र 8 प्रतिशत है। इनकी तुलना में बड़ी कंपनियों (100 कर्मचारियों से अधिक) की हिस्सेदारी रोजगार के लिए तीन चौथाई है और उत्पादन में हिस्सेदारी लगभग 90 प्रतिशत है जबकि इन कंपनियों की संख्या मात्र 15 प्रतिशत है।
  • कंपनियों के आकार के आधार पर प्रोत्साहन और कठोर श्रम कानून ऐसे संकट के लिए जिम्मेदार हैं जहां कंपनियां कितने वर्षों से चल रही हैं इस तथ्य पर ध्यान नहीं दिया जाता। इसके अलावा कंपनियों के आकार से संबंधित सीमाएं भी हैं। एमएसएमई के विकास के लिए आकार आधारित सभी प्रकार के प्रोत्साहनों को 10 साल से कम की अवधि के लिए समाप्त कर देना चाहिए।

आगे की राह – एमएसएमई को प्रोत्साहन देना

  • मध्यम, लघु तथा सूक्ष्म उद्यम अपने प्रर्वतकों के लिए न केवल मुनाफा देते हैं, बल्कि अर्थव्यवस्था में रोजगार सृजन तथा उत्पादकता में भी योगदान करते हैं। इसलिए हमारी नीतियों का फोकस बाधारहित रूप से आगे बढ़ने में एमएसएमई को सक्षम बनाने पर होना चाहिए।
  • पुराने होने के बावजूद छोटे प्रतिष्ठान छोटे रहते हैं। विनिर्माण में उनकी उत्पादकता और मूल्यवर्धन कम रहता है। इसके विपरित नये प्रतिष्ठान यानी युवा अवस्था में छोटे रहने वाले प्रतिष्ठान समय के साथ बड़े प्रतिष्ठान हो सकते हैं और विनिर्माण में उनकी उच्च उत्पादकता तथा उच्च मूल्यवर्धन होता है। इसलिए अधिक संसाधन खपत करने वाले छोटे प्रतिष्ठानों को नये प्रतिष्ठान का रूप दिया जा सकता है, क्योंकि छोटे प्रतिष्ठान नये प्रतिष्ठानों की तुलना में रोजगार सृजन तथा आर्थिक विकास की तुलना में कम योगदान करते हैं। इससे नये प्रतिष्ठानों को समर्थन देने की नीति की आवश्यकता महसूस की गई।
  • छोटे प्रतिष्ठानों की तुलना में नये प्रतिष्ठानों को प्रोत्साहन देनाःवर्तमान प्रोत्साहनों को पहले के छोटे प्रतिष्ठानों से हटाकर नये प्रतिष्ठानों में लगाने की आवश्यकता है। यदि प्रतिष्ठानों की आयु देखे बिना उन्हें प्रोत्साहन दिया जाता है तो ऐसे प्रोत्साहन प्रतिष्ठानों को छोटा बनाए रखते हैं। यदि आयु को मानक बनाया जाता है तो इस तरह के गलत प्रोत्साहन नहीं होंगे। आयु आधारित मानक के दुरुपयोग को आसानी से आधार का इस्तेमाल करके टाला जा सकता है। उदाहरण के लिए यदि एक प्रवर्तक एक नया प्रतिष्ठान प्रारंभ करता है और आयु आधारित नीति उपलब्ध होते हुए 10 वर्षों तक लाभ उठाता है, फिर वही प्रवर्तक प्रतिष्ठान को बंद करके नया प्रतिष्ठान शुरू करता है, ताकि नये प्रतिष्ठान के माध्यम से आयु आधारित लाभ प्राप्त कर सके। ऐसे में प्रवर्तक का आधार अधिकारियों को दुरूपयोग के बारे में सचेत कर सकता है। इसलिए आधार के लाभों को देखते हुए आयु आधारित नीतियां लागू की जा सकती हैं, ताकि गलत प्रोत्साहनों की समाप्ति सुनिश्चित की जा सके। छोटे प्रतिष्ठानों को मालूम रहता है कि वह आयु के बावजूद छोटे बने रहने के लिए कोई लाभ प्राप्त नहीं करेंगे, इसलिए उनके विकास के स्वभाविक प्रोत्साहन सक्रिय हो जाएंगे। इससे आर्थिक विकास और रोजगार सृजन होगा।
  • प्राथमिकता क्षेत्र ऋण (पीएसएल) को नया रूप देनाः मौजूदा नीति के अनुसार सूक्ष्म, लघु और मध्यम (एमएसएमई) क्षेत्र को ऋण देने के लिए बैंकों के लिए कुछ लक्ष्य निर्दिष्ट किये गये हैं वे प्रोत्साहनों को प्रतिकूल बना देते हैं और ये फर्में छोटी ही बनी रहती हैं। पीएसएल दिशा-निर्देशों के अनुसार समायोजित शुद्ध बैंक क्रेडिट (एएनबीसी) की 7.5 प्रतिशत राशि या बैलेंस शीट से अलग क्रेडिट समतुल्य राशि में जो अधिक हो वह सूक्ष्म उद्यमों के लिए लागू है। एमएसएमई के पीएसएल लक्ष्यों के तहत अधिक रोजगार जुटाने वाले क्षेत्रों में स्टार्टअप्स और ‘इन्फेंट्स’ को प्राथमिकता देने आवश्यक है। इससे इन क्षेत्रों में सीधा क्रेडिट प्रवाह बढ़ेगा जो अर्थव्यवस्था में अधिक रोजगार जुटाएगा।
  • प्रोत्साहनों के लिए सनसेट क्लॉजः उचित संचित विधि के साथ प्रगति को बढ़ावा देने के लिए प्रत्येक प्रोत्साहन के लिये 5 से 7 वर्षों की अवधि के लिए एक ‘सनसेट (समापन) क्लॉज’ होनी चाहिए। इसके बाद फर्म स्वयं स्थापित होने योग्य हो जाती है। नीति का यह फोकस इनफेट फर्मों पर भी होना चाहिए।
  • अधिक रोजगार जुटाने वाले क्षेत्रों पर ध्यान केन्द्रित करनाः रबड़ और प्लास्टिक उत्पाद इलेक्ट्रोनिक और ऑप्टिकल उत्पाद, परिवहन उपकरण, मशीनरी, मूल धातू और फेब्रिकेटिड धातु उत्पाद, रसायन और रासायनिक उत्पाद, टेक्सटाइल्स और चमड़ा तथा चमड़ा उत्पाद अधिक रोजगार जुटाने वाले उप-क्षेत्र हैं। रोजगार पर आर्थिक प्रगति का प्रभाव बढ़ाने के लिए ऐसे अधिक रोजगार जुटाने वालों क्षेत्रों पर ध्यान देना होगा।
  • पर्यटन जैसे अधिक प्रभाव डालने वाले सेवा क्षेत्रों पर ध्यान केन्द्रित करनाः प्रमुख पर्यटन केन्द्रों को विकसित करके भ्रमण और सफारी गाइड, होटल, खानपान और हाउसकीपिंग स्टार्ट, पर्यटन स्थलों पर दुकान आदि जैसे क्षेत्रों में रोजगार जुटाने पर बड़ा प्रभाव पड़ेगा। बड़े बीस राज्य में दस-दस पर्यटन स्थलों और छोटे राज्यों में नौ-नौ पर्यटन स्थलों की पहचान करना तथा इन पर्यटन स्थलों पर सड़क और हवाई सेवा उपलब्ध कराना है। इससे पर्यटन स्थलों के पूरे मार्ग में आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा मिलेगा तथा गांव के मजदूरों को बाहर जाने की कम जरूरत पड़ेगी। ये ग्रामीण मजदूर कुल श्रम बल का एक बड़ा हिस्सा होते हैं।

4. डाटा 'लोगो का, लोगों द्वारा, लोगों के लिए'

  • केंद्रीय वित्त और कॉरपोरेट मामलों की मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण ने आज आर्थिक समीक्षा 2018-19 संसद में पेश की। आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि जहां लाभ नहीं होता है वहां निजी क्षेत्र निवेश नहीं करता है, इसलिए सरकार को इस क्षेत्र में हस्तक्षेप करना चाहिए और लोगों के कल्याण के लिए देश के सामाजिक क्षेत्र और गरीबों की बेहतरी के लिए डाटा तैयार किया जाना चाहिए।
  • सरकारों के पास पहले से ही नागरिकों के प्रशासनिक, सर्वेक्षण, संस्थागत और ट्रांजेक्शन का डाटा मौजूद है, लेकिन ये डाटा यानी सूचना विभिन्न सरकारी निकायों में मौजूद है और इन्हें एक जगह एकत्रित किए जाने की आवश्यकता है। इन सूचनाओं के इस्तेमाल के जरिये सरकार नागरिकों के जीवन को आसान बना सकती है। इन सूचनाओं के आधार पर उपयुक्त नीतियां तैयार की जा सकती है जिससे सार्वजनिक कल्याण के कार्यों को अंजाम देने में सहूलियत होगी। साथ ही इससे सरकारी सेवाओं में जिम्मेदारी का निर्धारण सुनिश्चित करने के साथ बड़े पैमाने पर सुशासन में नागरिकों की भागीदारी सुनिश्चित की जा सकेगी
  • समीक्षा में कहा गया है कि हाल के वर्षों में डाटा का महत्व बढ़ा है और इसको लेकर खर्च में भी कमी आई है जबकि न्यूनतम स्तर पर लोगों को इससे मिलने वाले लाभ में कई गुना बढ़ोतरी हुई है। इसीलिए समाज में डाटा का उपयोग बढ़ा बढ़ा है। आर्थिक समीक्षा में यह बात भी कही गई है कि निजी क्षेत्र ने जहां लाभ दिखा वहां डाटा जुटाने में उल्लेखनीय काम किया है, लेकिन सरकार को उन सामाजिक क्षेत्रों में हस्तक्षेप करना चाहिए जहां डाटा एकत्रित करने के लिए निजी क्षेत्र पर्याप्त रूप से निवेश नहीं कर पाया है। निजता की सुरक्षा और गोपनीय सूचनाओं को साझा करने के लिए पहले से ही उन्नत प्रौद्योगिकी उपलब्ध है, ऐसी स्थिति में सरकार निजता कानून के दायरे में नागरिकों की बेहतर के लिए डाटा तैयार कर सकती है।
  • आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि हाल के वर्षों में प्रकाशित डाटा में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है। वैश्विक डाटा का बुनियादी ढांचा विश्वसनीय, तेज और सुरक्षित है। कुछ दशक पहले डाटा जुटाने के लिए काफी परिश्रम का काम हुआ करता था, लेकिन आज शून्य लागत पर इसे आसानी से ऑनलाइन एकत्रित किया जा सकता है, भले ही यह देशभर में बिखरा हुआ हो। डाटा साइंस के जरिये इस क्षेत्र में निरंतर नवाचार किया जा रहा है ताकि सूचनाओं का अधिकतम इस्तेमाल किया जा सके। साथ ही न्यूनतम खर्च पर डाटा एकत्रित करने, संग्रहण, प्रसंस्करण और उसके विस्तार में सहूलियत मिल रही है, जो कि अभूतपूर्व है।
  • आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि विभिन्न मंत्रालयों में बिखरे पड़े डाटाबेस को एक जगह एकत्रित करके नागरिकों को बेहतर सेवाओं का अनुभव कराया जा सकता है, यानी सरकार इसके जरिये अपने नागरिकों को बेहतर सेवा मुहैया करा सकती है। इससे कल्याणकारी योजनाओं में त्रुटि की आशंका भी कम होगी। आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि विभिन्न क्षेत्रों में एकत्रित किए गए डाटा का अब तक इस्तेमाल नहीं हो पाया है। सरकार को चाहिए कि सामाजिक रूप से जरूरी डाटा का उपयोग सुनिश्चित किया जाए। सरकार को इस क्षेत्र में कदम उठाने की आवश्यकता है। लोगों की बेहतरी के लिए डाटा को एकत्रित करने के दौरान निजता की जटिलता को ध्यान रखा जाना चाहिए और इनके उपयोग में पारदर्शिता बरतनी होगी। समीक्षा में कहा गया है कि डाटा को लोगों के द्वारा, लोगों के लिए एकत्रित किया जाना चाहिए।
  • निजता की सुरक्षा और गोपनीय सूचनाओं को साझा करने के लिए पहले से ही उन्नत प्रौद्योगिकी उपलब्ध है, ऐसी स्थिति में सरकार निजता कानून के दायरे में नागरिकों की बेहतर के लिए डाटा तैयार कर सकती है। डाटा लोगों द्वारा लोगों के लिए जुटाया जाना चाहिए।
  • जन कल्याण लिए डाटा के बारे में सोचते हुए इस बात का ख्याल रखना होगा कि अभिजात्य लोगों की निजता की प्राथमिकता गरीबों पर न थोपी जाए। आर्थिक समीक्षा में इसकी परिकल्पना की गई है कि डाटा एकत्रित करते वक्त लोगों की सहमति ली जाए या कानूनी दायरे में राज्यों द्वारा डाटा एकत्रित किया जाए। डाटा एकत्रित करने का काम चार चरणों-एकत्र, संग्रहण, प्रसंस्करण, और विस्तार- में किया जाना है।
  • आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि भारत आधार के जरिये डाटा और प्रौद्योगिकी के मोर्चे पर क्रांति कर रह है। सरकार को डाटा को लोगों की बेहतरी के नजरिये से देखना चाहिए और इस क्षेत्र में निवेश किए जाने की जरूरत है। जनकल्याण के लिए एकत्रित किए जाने वाले डाटा को कानून के दायरे में एकत्रित किया जा सकता है। डाटा के महत्व को राष्ट्रीय राजमार्गों के महत्व के सामान ही समझा जाना चाहिए। संविधान की भावना के तहत डाटा लोगों का, लोगों के द्वारा, लोगों के लिए होना चाहिए।

5. मत्‍स्‍य न्‍याय का समापन: निचली न्‍यायपालिका की क्षमता कैसे बढ़ाएं

  • केन्‍द्रीय वित्‍त एवं कॉरपोरेट मामलों की मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमन ने आज संसद में आर्थिक समीक्षा 2018-19 पेश की। इसमें बताया गया है कि आर्थिक शासन और कानून के शासन के बीच संबंध बनाने के लिए समीक्षा के ‘मत्स्यन्याय समाप्त करनाः निचली अदालतों की क्षमता कैसे बढ़ाई जाए’ में यह बताया गया है कि अनुबंध लागू न करना भारत में कारोबार को सरल बनाने की रैंकिंग को सुधारने में एक सबसे बड़ी बाधा बना हुआ है। समीक्षा में बताया गया है कि इसमें कोई आश्चर्य नही हैं कि अदालतों में साढ़े तीन करोड़ केस लंबित पड़े हैं। यह समस्या अधिकतर जिले और अधीनस्थ न्यायालयों में केन्द्रित है, जहां 87.5 प्रतिशत केस लंबित हैं। इसलिए इस खंड के बारे में सुधार लाने पर ध्यान केन्द्रित किया जाना चाहिए। समीक्षा में बताया गया है कि कानूनी प्रणाली में अपेक्षाकृत कम निवेश से आर्थिक प्रगति की बड़ी बाधा और सामाजिक भलाई को मजबूत किया जा सकता है।
  • आर्थिक समीक्षा 2018-19 में इस बड़े प्रभाव पर प्रकाश डाला गया कि सरकार द्वारा दिवालिया और दिवालियापन कोड की शुरुआत करने और वस्तु और सेवाकर को अपनाने से भारत में कारोबार को आसान बनाने के काम में सुधार आया है। देश विश्व बैंक की ईओडीबी 2019 में सबसे बड़ा सुधारकर्ता बन गया है। देश पिछले चार वर्षों में 142वें पायदान से छलांग लगाकर 77वें पायदान पर आ गया है।
  • कुशलता अनुकरण के लाभों से अतिरिक्त जजों को पांच वर्षों में लंबित मामलों के बैकलॉग को निपटाने की जरूरत बताते हुए सुझाव दिया गया है कि यह संख्या बहुत बड़ी है लेकिन इसे अर्जित किया जा सकता है। समीक्षा का निष्कर्ष है कि अच्छे ढंग से काम करने वाली कानूनी प्रणाली की आर्थिक संभावना और सामाजिक प्रभाव की क्षमता बढ़ाने के लिए यह सबसे अच्छा निवेश हो सकता है जिसे भारत कर सकता है। समीक्षा में हालांकि यह बताया गया है कि औपचारिक विश्वास की अपेक्षा यह बड़ी समस्या नहीं है। दस्तावेज में यह सुझाव दिया गया है कि निचले न्यायालयों में 2279 जजों, उच्च न्यायालयों में 93 जजों और उच्चतम न्यायालयों में केवल एक जज की नियुक्ति से शत-प्रतिशत ‘केस क्लीयरेंस रेट’ (अर्थात शून्य संचय) अर्जित की जा सकती है। यह संख्या पहले से स्वीकृत पदों के अंतर्गत ही है। केवल खाली पदों को भरे जाने की जरूरत है।
  • दस्तावेज में आगे यह बताया गया है कि दक्षता लाभों के परिदृश्य विश्लेषण से पिछले पांच वर्षों में बैकलॉक निपटाने की जरूरत है। आवश्यक दक्षता लाभ महत्वाकांक्षी हैं लेकिन इन्हें अर्जित किया जा सकता है। समीक्षा के अनुसार जजों की पूरी स्वीकृत संख्या के अपेक्षित उत्पादकता लाभ निचली अदालतों में 24.5 प्रतिशत उच्च न्यायालयों में 4.3 प्रतिशत उच्चतम न्यायालय में 18 प्रतिशत हैं। आंकड़ों के अनुसार मामलों के विश्लेषण से पता चलता है कि निचली अदालतों ने आपराधिक मामलों की संख्या सबसे अधिक है। 31 मई 2019 के अनुसार आपराधिक मुकदमों का कुल लंबित मामलों में 64 प्रतिशत योगदान है। जबकि निपटान दर 85.3 प्रतिशत है। समीक्षा में यह विश्वास जताया गया है कि कानून के शासन की संस्कृति सुशासन के रूप में कायम होनी चाहिए। इसे नकारात्मक रूप से नहीं सुधारा जा सकता है। दस्तावेज में सिफारिश की गई है कि अतिरिक्त न्यायाधीशों को इस तरह के मामलों को तेजी से निपटाने में दक्ष होने की जरूरत है।
  • समीक्षा में बताया गया है कि उत्तर प्रदेश, बिहार, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, में विशेष ध्यान दिये जाने की जरूरत है क्योंकि इन राज्यों में निपटान दर कम है। समीक्षा में अतिरिक्त जजों की नियुक्ति को प्राथमिकता देने का सुझाव दिया गया है। न्याय प्रणाली की उत्पादकता बढ़ाने के लिए समीक्षा में कार्य दिवसों की संख्या बढ़ाने, कानून प्रणाली के प्रशासनिक पहलुओं पर ध्यान देते हुए भारतीय न्यायालयों और ट्रिब्यूनल सेवाओं की स्थापना, न्यायालयों की कुशलता में सुधार लाने के लिए विधि और न्याय मंत्रालय द्वारा ई-कोर्ट्स मिशन मोड परियोजना और विभिन्न चरणों में राष्ट्रीय न्यायिक डाटा ग्रिड जैसी प्रौद्योगिकी लागू करने का सुझाव दिया गया है।

6. नीति की अनिश्‍चितता निवेश को कैसे प्रभावित करती है?

  • केन्द्रीय वित्त एवं कॉरपोरेट मामलों की मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण की ओर से आज संसद में पेश की गई 2018-19 आर्थिक समीक्षा में देश में निवेश का माहौल बेहतर बनाने के लिए आर्थिक नीतिगत अनिश्चितता को कम करने पर जोर दिया गया है। देश में निवेश आधारित विकास को गति देने के परिप्रेक्ष्य में इसे काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
  • आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि आर्थिक नीतिगत अनिश्चितता देश में निवेश को हतोत्साहित करती है, जबकि भविष्‍य में नीतियों के पूर्वानुमान के अनुरूप कार्य और नीतियों की स्थिरता देश में निवेश को  आकर्षित करने में मदद करती है। पिछले एक दशक में देश में आर्थिक नीतिगत अनिश्चितता में आई कमी का हवाला देते हुए समीक्षा में कहा गया है कि आने वाले वर्षों में निवेश में बढ़ोतरी के लिए इसे निचले स्तर पर बनाए रखना सुनिश्चित किया जाना चाहिए।

भारत में आर्थिक नीतिगत अनिश्चितता

  • वैश्विक स्तर पर मान्य ईपीयू सूचकांक के आधार पर भारत में आर्थिक नीतिगत अनिश्चितता के पिछले एक दशक में घटने का हवाला देते हुए आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि 2011-12 की अवधि में जब नीतियों में पूरी तरह से ठहराव की स्थिति थी और जिसके कारण आर्थिक नीतिगत अनिश्चितता सबसे ऊंचे स्तर पर थी लेकिन इसके बाद से इसमें लगातार कमी आती जा रही है। हालांकि बीच में कुछ समय के लिए इसमें बढ़ोतरी भी देखी गई।
  • समीक्षा में कहा गया है कि देश में आर्थिक नीतिगत अनिश्चितता की स्थिति 2014 तक वैश्विक अनिश्चितताओं के अनुरूप बनी रही। हालांकि 2015 की शुरूआत से इसमें कमी आने लगी और 2018 के आते-आते इसमें दोगुनी कमी आ चुकी थी।

भारत में आर्थिक नीतिगत अनिश्चितता और निवेश के बीच परस्पर संबंध

  • भारत में वर्ष 2008 के बाद से करीब एक दशक तक निवेश गतिविधियों में आई कमी में 2017-18 की पहली तिमाही से बदलाव आने लगा है। 2007-08 में देश में फिक्सड निवेश दर जहां 37 प्रतिशत से घटकर 27 प्रतिशत पर पहुंच गई थी उसमें हाल में 28 प्रतिशत का सुधार देखा गया है। आर्थिक नीतिगत अनिश्चितताओं को कम करने के प्रभावी उपायों ने देश में निवेश गतिविधियों में तेजी लाने में मदद की है।
  • आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि आर्थिक नीतिगत अनिश्चितताओं का संबंध व्यापक आर्थिक माहौल कारोबारी स्थितियों और ऐसी अन्य आर्थिक गतिविधियों से गहरे जुड़ा है जो निवेश को प्रभावित करती है। आर्थिक नीतिगत अनिश्चितता बढ़ने से अर्थव्यवस्था के जोखिम बढ़ते है और साथ ही पूंजी की लागत में भी वृद्धि होती है। इसके परिणामस्वरूप आर्थिक नीतिगत अनिश्चितता में जितनी वृद्धि होती है निवेश उतना ही घटता है। निवेश से लाभ न मिल पाने की आशंकाएं इसकी मुख्य वजह होती है।

नीतिगत सुझाव

आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि हालांकि आर्थिक अनिश्चितताओं पर किसी का बस नहीं चलता पर नीति-निर्माता आर्थिक नीतिगत अनिश्चितताओं को कम करने का कदम जरूर उठा सकते है ताकि निवेश माहौल को प्रोत्साहित किया जा सके, इसके लिए आर्थिक समीक्षा में नीतियों में बदलाव कुछ उपाए सुझाव गए है।

  • पहला, नीति-निर्माताओं को ऐसी नीतियां बनानी चाहिए, जिससे भविष्य के परिणामों का पूर्वानुमान लगाया जा सके। उन्हें नीतियों के निष्पादन में निरंतरता बनाए रखना चाहिए। नीतियों के बेहतर परिणाम सुनिश्चित करने के लिए ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए, ताकि निवेशकों को यह भरोसा दिलाया जा सके कि भविष्य में नीतियों में किसी तरह का बदलाव नहीं किया जाएगा। सरकार, निवेशकों को भविष्य के प्रति आश्वस्त रखने के लिए आर्थिक नीतियों को विभिन्न श्रेणियों जैसे- तटस्थ (स्टेंड स्टिल) या परिवर्तनशील (रेचेट-अप) में विभाजित कर सकती है।
  • दूसरा, जिस चीज की निगरानी होती है उस पर कार्रवाई होती है के अनुरूप आर्थिक नीतिगत अनिश्चितता सूचकांक की तिमाही स्तर पर नियमित समीक्षा की जानी चाहिए। सरकार को आर्थिक नीतिगत अनिश्चितता उप-सूचकांक बनाए जाने को भी प्रोत्साहित करना चाहिए, ताकि वित्तीय, कर, मौद्रिक व्यापार और बैंकिंग नीतियों से उपजने वाली अनिश्चितताओं का पता लगाया जा सके।
  • आखिर में, समीक्षा में यह सुझाव भी दिया गया है कि नीति-निर्माण में गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए सरकार को अंतर्राष्ट्रीय गुणवत्ता मानकों का पालन करना चाहिए। इस संदर्भ में सरकार को इस कहावत का अनुसरण करना चाहिए कि ‘जो आप करते हो उसे लिखो लेकिन उससे भी ज्यादा जरूरी है कि आपने जो लिखा है उसे करो।’ गुणवत्ता प्रमाणन की प्रक्रिया के लिए लोगों को पर्याप्त प्रशिक्षण देना जरूरी है ताकि आर्थिक नीतिगत अनिश्चितता को काफी हद तक कम किया जा सकेगा।

7. वर्ष 2040 में भारत की जनसंख्‍या: 21वीं श्‍ताब्‍दी के लिए सरकारी प्रावधान की आयोजना

  • केन्द्रीय वित्त एवं कॉरपोरेट मामलों की मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण की ओर से आज संसद में पेश की गई 2018-19 की आर्थिक समीक्षा में भारत की जनसंख्या पर प्रकाश डालते हुए कहा गया है कि आने वाले दो दशकों में देश की जनसंख्या वृद्धि दर में काफी गिरावट देखी जाएगी। हालांकि बड़ी संख्या में युवा आबादी की वजह से देश को जनसांख्यिकीय लाभांश का फायदा मिलता रहेगा, लेकिन 2030 की शुरूआत से कुछ राज्यों में जनसंख्या स्वरूप में बदलाव से अधिक आयु वाले लोगों की तदाद बढ़ेगी। इन राज्यों की आबादी में बदलाव की प्रक्रिया काफी आगे बढ़ चुकी है। वर्ष 2041 के लिए राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर जनसंख्या अनुमान यह दर्शाता है कि भारत जनसंख्या स्वरूप में बदलाव के अगले चरण में पहुंच चुका है। आने वाले दो दशकों में जनसंख्या वृद्धि दर में भारी गिरावट, कुल गर्भधारण दर में हाल के वर्षों में आई कमी तथा 2021 तक इसका और कम हो जाना इसकी प्रमुख वजह होगी। ऐसे समय जबकि सभी प्रमुख राज्यों में जनसंख्या वृद्धि दर में गिरावट देखी जा रही है बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और हरियाणा में यह अभी भी काफी ऊंचे स्तर पर है।
  • अगले दो दशकों में देश में जनसंख्या और लोगों की आयु संरचना के पूर्वानुमान नीति-निर्धारकों के लिए स्वास्थ्य सेवा, वृद्धों की देखभाल, स्कूल सुविधाओं, सेवानिवृत्ति से संबंध वित्तीय सेवाएं, पेंशन कोष, आयकर राजस्व, श्रम बल, श्रमिकों की हिस्सेदारी की दर तथा सेवानिवृत्ति की आयु जैसे मुद्दों से जुड़ी नीतियां बनाना एकत बड़ा काम होगी।
  • आर्थिक समीक्षा में जनसंख्या के स्वरूप और जनसंख्या वृद्धि के रुझानों पर कहा गया है कि देश में राज्य स्तर पर इनमें विभिन्नता दिखेगी। जिन राज्यों में जनसंख्या का स्वरूप तेजी से बदल रहा है वहां जनसंख्या वृद्धि दर 2031-41 तक लगभग शून्य हो जाएगी। जिन राज्यों में जनसंख्या संरचना बदलाव धीमा है वहां भी 2021-41 तक जनसंख्या वृद्धि दर में काफी गिरावट दिखेगी।
  • समीक्षा के अनुसार देश में गर्भधारण क्षमता दर में आई गिरावट के कारण 0-19 वर्ष की आयु वर्ग वाले लोगों की जनसंख्या आश्चर्यजनक रूप से बढ़ी है। देश में टीएफआर दर 2021 तक भरपाई नहीं किए जाने के स्तर तक गिर जाएगी। जनसंख्या में 0-19 वर्ष आयु वर्ग के युवाओं की संख्या 2011 के उच्चतम स्तर 41 प्रतिशत से घटकर 2041 में 25 प्रतिशत रह जाएगी। दूसरी ओर आबादी में 60 वर्ष आयु वर्ग वाले लोगों की संख्या 2011 के 8.6 प्रतिशत से बढ़कर 2041 तक 16 प्रतिशत पर पहुंच जाएगी। कामगार आबादी की संख्या 2021-31 के बीच 9.7 मिलियन प्रति वर्ष की दर से बढ़ेगी और 2031-41 के बीच यह घटकर 4.2 मिलियन प्रति वर्ष रह जाएगी।
  • आर्थिक समीक्षा में कामगार आबादी के प्रभावों पर कहा गया है कि इनकी संख्या श्रम बल और एक राज्य से दूसरे राज्य में विस्थापन में बड़ी भूमिका निभाएगी। 2021-41 की अवधि में श्रम बल की हिस्सेदारी के रूझानों के हिसाब से सरकार को अतिरिक्त रोजगार के अवसर सृजित करने होंगे, ताकि श्रम बल में सलाना हो रही वृद्धि के हिसाब से रोजगार भी उपलब्ध कराए जा सके।
  • जनसंख्या के स्वरूप में बदलाव कई तरह के नीतिगत कठनाईयां पैदा होंगी, इनमें स्कूलों, स्वास्थ्य सेवाओं और सेवानिवृत्ति की आयु तय करने जैसी बाते होगी। 2021-41 के बीच देश में स्कूल जाने वाले बच्चों की संख्या 18.4 प्रतिशत घट जाएगी। इसके बड़े आर्थिक-सामाजिक परिणाम देखने को मिलेगे। प्राथमिक स्कूलों में बच्चों की संख्या घटने से छात्रों के अनुपात में स्कूलों की संख्या बढ़ जाएगी इससे कई प्राथमिक स्कूलों को एक साथ मिलाना पड़ जाएगा।
  • स्वास्थ्य सेवाएं आज भी देश में एक बड़ी चुनौती है। यदि देश में अस्पताल की सुविधाएं मौजूदा स्तर तक बनी रही तो अगले दो दशक में जनसंख्या वृद्धि दर में गिरावट के बावजूद बढ़ती आबादी के कारण प्रति व्यक्ति अस्पताल के बिस्तरों की उपलब्ध बहुत कम हो जाएगी। ऐसे में राज्यों के लिए चिकित्सा सुविधाओं का विस्तार बहुत जरूरी हो जाएगा।
  • भारत में जीवन प्रत्याशा औसतन 60 वर्ष होने लगी है यानी 60 वर्ष आयु के लोग भी अब पूरी तरह स्वस्थ रहते है। महिला और पुरुषों के जीवन प्रत्याशा में लगातार हो रही बढ़ोतरी अन्य देशों के अनुरूप है। ऐसे में यह पेंशन प्रणाली की व्यवहार्यता और महिला श्रम बल में वृद्धि में बड़ी भूमिका निभा सकती है।

8. स्‍वच्‍छ भारत के माध्‍यम से स्‍वच्‍छ भारत से सुंदर भारत:स्‍वच्‍छ भारत मिशन का एक विश्‍लेषण

  • केन्‍द्रीय वित्‍त एवं कॉरपोरेट मामलों की मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमन ने आज संसद में आर्थिक समीक्षा 2018-19 पेश की। इसमें कहा गया है कि 02 अक्‍टूबर,2019 तक सम्‍पूर्ण स्‍वच्‍छता कवरेज के लक्ष्‍य को प्राप्‍त करने के लिए 2014 में शुरू किये गये स्‍वच्‍छ भारत मिशन (एसबीएम) के अंतर्गत हुई प्रगति को इस समीक्षा में रेखांकित किया गया है। यह प्रमुख कार्यक्रम विशालतम स्‍वच्‍छता अभियान होने के साथ-साथ विश्‍व में व्‍यवहारिक परिवर्तन को प्रभावित करने का एक प्रयास भी है। पिछले चार वर्षों में 99.2 प्रतिशत ग्रामीण भारत एसबीएम के माध्‍यम से कवर किया गया है। अक्‍टूबर, 2014 से देशभर में 9.5 करोड़ से अधिक शौचालयों का निर्माण किया गया है और 5,64,658 गांवों को खुले में शौच से मुक्‍त (ओडीएफ) घोषित किया गया है। 14 जून, 2019 तक 30 राज्‍यों/केन्‍द्र शासित प्रदेशों में 100 प्रतिशत व्‍यक्तिगत घरेलू शौचालय (आईएचएचएल) कवरेज उपलब्‍ध कराई जा चुकी है। एसबीएम ने स्‍वास्‍थ्‍य निष्‍कर्षों में महत्‍वपूर्ण सुधार किया है।
  • एसबीएम ने पांच साल से छोटे बच्‍चों में अतिसार और मलेरिया जैसे रोगों, मृत जन्‍म लेने वाले शिशुओं और कम वजन वाले शिशु का जन्‍म (2.5 किलोग्राम से कम वजन वाला नवजात शिशु) जैसे मामलों में कमी लाने में मदद की है। ये प्रभाव खासतौर पर उन जिलों में देखा गया, जहां 2015 में आईएचएचएल कवरेज कम थी। एसबीएम दुनिया के विशालतम स्‍वच्‍छता अभियानों में से एक है और इसकी बदौलत जबरदस्‍त बदलाव और उल्‍लेखनीय स्‍वास्‍थ्‍य लाभ प्राप्‍त हुए है। इस मिशन के अंतर्गत केवल शौचालयों के निर्माण पर ही नहीं, बल्कि समुदायों में व्‍यव‍हारिक बदलाव को प्रभावित करने पर भी ध्‍यान केन्द्रित किया गया। इसकी परिणति स्‍वास्‍थ्‍य संबं‍धी मानकों में महत्‍वपूर्ण लाभ में हुई है, जैसा कि विभिन्‍न अध्‍ययनों में दर्शाया गया है। स्‍वच्‍छ भारत से प्राप्‍त होने वाले लाभ व्‍यापक आर्थिक विकास के उद्देश्‍यों को प्राप्‍त करने की दिशा में प्रत्‍यक्ष और परोक्ष दोनों रूप से महत्‍वपूर्ण है।

एसबीएम ने बहु-आयामी दृष्टिकोण अपनाया है, जिसमें निम्‍नलिखित बिन्‍दु शामिल हैं :-

  1. सामुदायिक भागीदारी : स्‍वामित्‍व और निरंतर उपयोग को बढ़ावा देने के लिए शौचालयों के निर्माण में वित्‍तीय या अन्‍य रूप से लाभार्थियों/समुदायों की उचित भागीदारी सुनिश्चित करना।
  2. विकल्‍पों के चयन की छूट : एसबीएम निर्माण कार्य में विकल्‍पों के चयन की छूट प्रदान करता है, ताकि गरीब/वंचित परिवार अपनी जरूरतों और अपनी वित्‍तीय स्थिति के मुताबिक अपने शौचालयों को बेहतर बना सकें।
  3. क्षमता निर्माण : एसबीएम मूलभूत स्‍तर पर व्‍यवहार में परिवर्तन लाने की दिशा में जिले की संस्‍थागत क्षमता में वृद्धि करता है और कार्यान्‍वयन एजेंसियों की क्षमताओं को मजबूती प्रदान करता है, ताकि कार्यक्रम को समयबद्ध रूप से शुरू किया जा सके और सामूहिक निष्‍कर्षों का आकलन किया जा सके।
  4. व्‍यवहार में परिवर्तन को मन में बिठाना : समुदाय में व्‍यवहार में बदलाव लाने की गतिविधियों का कार्यान्‍वयन करने के लिए राज्‍य स्‍तरीय संस्‍थाओं के प्रदर्शन को प्रोत्‍साहन देना।
  5. व्‍यापक सम्‍पर्क : एसबीएम ने कॉरपोरेट सामाजिक उत्‍तरदायित्‍व को प्रोत्‍साहन देने के लिए स्‍वच्‍छ भारत कोष की स्‍थापना की है और उसके लिए निजी संगठनों, व्‍यक्तियों और परोपकारी व्‍यक्तियों से योगदान स्‍वीकार किया जाता है।
  6. प्रौद्योगिकी का इस्‍तेमाल : सूचना प्रौद्योगिकी और सोशल मीडिया इस कार्यक्रम के लिए आवश्‍यक है, क्‍योंकि ये नागरिकों को भारत में प्रत्‍येक ग्रामीण परिवार के लिए शौचालयों की उपलब्‍धता पर नजर रखने का अवसर देता है। समस्‍त एसबीएम शौचालयों में से लगभग 90 प्रतिशत पहले ही जीओ-टैग्‍ड से युक्‍त किये जा चुके है। केवल सरकार द्वारा ही नहीं, बल्कि कुछ नागरिकों द्वारा भी अनेक मोबाइल एप्‍लीकेशन्‍स शुरू किये गये है, जो अस्‍वच्‍छ स्‍थानों की ओर नगर निगमों का ध्‍यान आकृष्‍ट करते है।
  7. एसबीएम के अंतर्गत ग्रामीण क्षेत्रों में पात्र लाभार्थियों को व्‍यक्तिगत घरेलू शौचालय (आईएचएचएल) के निर्माण के लिए 12,000 रुपये के प्रोत्‍साहन का प्रावधान किया गया है और जल भंडारण के प्रावधान को कवर किया गया है। आईएचएचएल के लिए दिये जाने वाले इस प्रोत्‍साहन के लिए केन्‍द्र का अंश 60 प्रतिशत और राज्‍य का 40 प्रतिशत है। पूर्वोत्‍तर राज्‍यों, जम्‍मू कश्‍मीर और विशेष श्रेणी के राज्‍यों के लिए केन्‍द्र का अंश 90 प्रतिशत और राज्‍यों का 10 प्रतिशत है। अन्‍य स्रोतों से अतिरिक्‍त योगदान की भी अनुमति है। एसबीएम के लिए वर्ष 2014-15 से कुल 51,314.3 करोड़ रुपये की राशि आबंटित की गई है, जिसमें से 48,902.2 करोड़ रुपये (95.3 प्रतिशत) जारी किये जा चुके हैं। इसके अलावा 15,000 करोड़ रुपये के अतिरिक्‍त बजटीय संसाधन के लिए प्रावधान किया गया है, जिसमें से 8,698.20 करोड़ रुपये प्राप्‍त किये जा चुके है।
  8. सरकार के प्रयासों के परिणामस्‍वरूप अब तक 98.9 प्रतिशत भारत को एसबीएम के दायरे में लाया जा चुका है। 2014 से लेकर 2018 तक निर्माण किये गये घरेलू शौचालयों की कुल संख्‍या में पिछले कुछ वर्षों में तेजी से प्रगति देखी गई है। शुरूआत में प्रतिवर्ष 50 लाख घरेलू शौचालयों से बढ़कर यह आंकड़ा अब 3 करोड़ शौचालय प्रति वर्ष हो चुका है। एसबीएम में गांवों को खुले में शौच से मुक्‍त कराने (ओडीएफ) पर मुख्‍य रूप से ध्‍यान केन्द्रित किया गया है। ओडीएफ का आशय खुले में मल त्‍याग समाप्ति है, जिसकी परिभाषा है 1) वातावरण/गांवों में कही भी मल दिखाई न देना, 2) प्रत्‍येक परिवार साथ ही साथ सार्वजनिक/सामुदायिक संस्‍था (संस्‍थाओं) द्वारा मल के निस्‍तारण के लिए सुरक्षित तकनीक के विकल्‍प का उपयोग। वर्ष 2015 से ओडीएफ गांवों की संख्‍या में महत्‍वपूर्ण वृद्धि हुई है। 29 मई, 2019 को 5,61,014 गांवों (93.41 प्रतिशत), 2,48,847 ग्राम पंचायतों (96.20 प्रतिशत) – 6,091 ब्‍लॉक (88.60 प्रतिशत) और 618 जिलों (88.41 प्रतिशत) को ओडीएफ घोषित किया जा चुका है।

ठोस एवं तरल अपशिष्‍ट प्रबंधन (एसएलडब्‍ल्‍यूएम)

  • आर्थिक समीक्षा में कहा गया है, ‘ठोस एवं तरल अपशिष्‍ट प्रबंधन (एसएलडब्‍ल्‍यूएम) एसबीएम मिशन का एक अन्‍य प्रमुख संघटक है। बहुत से राज्‍यों ने अपशिष्‍ट संग्रह केन्‍द्रों, मासिक धर्म के दौरान स्‍वच्‍छता के प्रबंधन की गतिविधियां, बायो-गैस संयंत्रों की स्‍थापना, कम्‍पोस्‍ट पिट्स का निर्माण, कूड़ेदान की व्‍यवस्‍था, कचरे के संग्रह, पृथककरण और निपटान की प्रणाली, जल निकासी की सुविधा का निर्माण और लीच पिट्स और सोक पिट्स का निर्माण तथा स्थिरीकरण तालाब (स्‍टेबलाइजेशन पान्‍ड्स) जैसी गतिविधियों का संचालन किया है।’
  • भौतिक वातावरण पर एसबीएम के प्रभाव के संदर्भ में यूनिसेफ द्वारा पेयजल एवं स्‍वच्‍छता मंत्रालय के सहयोग से हाल ही में कराये गये एक अध्‍ययन से संकेत मिलता है कि जल, मिट्टी और भोजन के दूषण से निपटने पर व्‍यापक प्रभाव पड़ा है। अध्‍ययन से प्राप्‍त निष्‍कर्ष इस ओर इशारा करते है कि इस दूषण में कमी आने का श्रेय काफी हद तक स्‍वच्‍छता और साफ-सफाई के तरीकों में हुए सुधार, साथ ही साथ नियमित निगरानी जैसी सहायक प्रणालियों को दिया जा सकता है।

भविष्‍य की राह

  • आर्थिक समीक्षा में कहा गया है, ‘एसबीएम जबरदस्‍त बदलाव लाने और कुल मिलाकर समाज को उल्‍लेखनीय लाभ प्रदान करने में समर्थ रहा है। दुनिया में चलाये गये विशालतम स्‍वच्‍छता अभियानों में से एक है। अनेक राज्‍य 100 प्रतिशत ओडीएफ और आईएचएचएल कवरेज का दर्जा प्राप्‍त कर चुके है और इस प्रकार लोगों विशेषकर महिलाओं की गरिमा में व्‍यापक बदलाव आया है। इस मिशन ने स्‍कूलों, सड़कों और पार्कों जैसे सार्वजनिक स्‍थानों में महिलाओं के लिए अलग से शौचालय बनवाने के जरिये महिला-पुरूष में भेदभाव को दूर करने के वाहक का कार्य किया है। स्‍कूलों में दाखिला लेने वाली लड़कियों की संख्‍या में वृद्धि और स्‍वास्‍थ्‍य संबंधी मानकों में सुधार लाने के जरिये इस जनांदोलन का समाज पर परोक्ष रूप से सकारात्‍मक प्रभाव पड़ेगा।’
  • सबके लिए स्‍वच्‍छता के प्रति भारत की शानदार यात्रा ने व्‍यवहार संबंधी परिवर्तन की जड़े लोगों की चेतना में गहराई से जमाते हुए सामाजिक, पर्यावरणीय और आर्थिक लाभ सुनिश्चित किये है। यह मिशन नागरिकों के व्‍यवहार में बड़ा बदलाव लाया है। यह मिशन महिला-पुरूष समानता और महिला सशक्तिकरण पर ध्‍यान केन्द्रित करते हुए राष्‍ट्रीय विकास प्राथमिकताओं को प्रतिबिम्बित करता है। सबसे महत्‍वपूर्ण बात ये है कि यह मिशन 2030 वैश्‍विक सतत विकास एजेंडा और सतत विकास लक्ष्‍यों (एसडीजी) विशेषकर एसडीजी 6.2 के साथ संरेखित है। ‘2030 तक सबके लिए उपयुक्‍त और समान साफ-सफाई एवं स्‍वच्‍छता तक पहुंच प्राप्‍त करना और खुले में शौच समाप्‍त करना, महिलाओं और लड़कियों तथा असुरक्षित स्थितियों में रहने वाली महिलाओं की जरूरतों पर विशेष ध्‍यान देना।’

9. किफायती, भरोसेमंद और सतत ऊर्जा के माध्‍यम से समावेशी विकास को संभव बनाना

  • केन्‍द्रीय वित्त एवं कॉरपोरेट मामलों की मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण ने आज संसद में 2018-19 की आर्थिक समीक्षा पेश की। आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत एक महत्‍वपूर्ण राष्‍ट्रीय संसाधन है। समीक्षा में यह भी कहा गया है, ‘इन संसाधनों का दोहन ऊर्जा सुरक्षा, एक मजबूत अर्थव्‍यवस्‍था और जलवायु परिवर्तन में कमी के साथ ऊर्जा क्षेत्र में बदलाव लाने और सामाजिक समानता हासिल करने संबंधी भारत के विजन का एक हिस्‍सा है।’ समीक्षा में कहा गया है कि वैसे तो ऊर्जा तक लोगों की पहुंच बढ़ाना आवश्‍यक है, लेकिन इसके साथ ही यह भी जरूरी है कि विकसित देशों में इस वजह से पर्यावरण को ऐतिहासिक रूप से हुई भारी क्षति के बजाय यह भारत में पर्यावरण को अपेक्षाकृत कम नुकसान के साथ हासिल हो।
  • आर्थिक समीक्षा में यह बात रेखांकित की गई है कि भारत को भी दुनिया के सबसे बड़े नवीकरणीय ऊर्जा विस्‍तार कार्यक्रमों को लागू करने वाले देशों में शुमार किया जाता है। समीक्षा में यह बताया गया है कि भारत में समग्र विद्युत मिश्रण या उत्‍पादन में नवीकरणीय ऊर्जा की हिस्‍सेदारी निरंतर बढ़ती जा रही है। आर्थिक समीक्षा के अनुसार, वर्ष 2018-19 में कुल विद्युत उत्‍पादन में नवीकरणीय ऊर्जा (25 मेगावाट से अधिक पनबिजली को छोड़कर) की हिस्‍सेदारी लगभग 10 प्रतिशत आंकी गई, जबकि वर्ष 2014-15 में यह हिस्‍सेदारी लगभग 6 प्रतिशत ही थी।
  • समीक्षा में कहा गया है, ‘अब विश्‍व स्‍तर पर भारत पवन ऊर्जा के क्षेत्र में चौथे, सौर ऊर्जा के क्षेत्र में पांचवें और नवीकरणीय ऊर्जा की समग्र स्‍थापित क्षमता के मामले में पांचवें पायदान पर पहुंच गया है। नवीकरणीय ऊर्जा की संचयी स्‍थापित क्षमता (25 मेगावाट से अधिक पनबिजली को छोड़कर) 31 मार्च, 2014 के 35 गीगावाट से दोगुनी से भी अधिक होकर 31 मार्च, 2019 तक 78 गीगावाट (जीडब्‍ल्‍यू) के स्‍तर पर पहुंच गई है। वर्ष 2022 तक 175 गीगावाट की नवीकरणीय ऊर्जा आधारित विद्युत की स्‍थापित क्षमता हासिल करना है।’
  • आर्थिक समीक्षा में अनुमान लगाया गया है कि वर्ष 2022 तक नवीकरणीय ऊर्जा के संयंत्रों (बिना पारेषण लाइनों वाले संयंत्र) में अतिरिक्‍त निवेश आज के मूल्‍यों पर लगभग 80 अरब अमेरिकी डॉलर का होगा और वर्ष 2023 से लेकर वर्ष 2030 तक की अवधि के दौरान तकरीबन 250 अरब अमेरिकी डॉलर के निवेश की आवश्‍यकता होगी। अत: वार्षिक आधार पर अगले दशक के दौरान एवं उसके बाद 30 अरब अमेरिकी डॉलर से भी अधिक के निवेश अवसर प्राप्‍त होने की आशा है।
  • आर्थिक समीक्षा में बताया गया है कि वैसे तो नवीकरणीय ऊर्जा की क्षमता कई गुना बढ़ा दी गई है, लेकिन जीवाश्‍म ईंधन आधारित ऊर्जा के आगे भी बिजली का एक महत्‍वपूर्ण स्रोत बने रहने की संभावना है।

सरकार की प्राथमिकता निरंतर स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों के इस्तेमाल को सुनिश्चित करना है

  • सरकार की प्राथमिकता निरंतर स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों के इस्तेमाल को सुनिश्चित करने की है। केंद्रीय वित्त और कॉरपोरेट मामलों की मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण ने आज आर्थिक समीक्षा 2018-19 संसद में पेश की। आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि भारत सरकार ने प्रधानमंत्री उज्जवला योजना के जरिये बड़ा कदम उठाया है। इस योजना के तहत 7 करोड़ घर एलपीजी का इस्तेमाल कर रहे हैं। अब मुख्य काम घरों में खाना पकाने के लिए एलपीजी के निरंतर इस्तेमाल से स्वच्छ ऊर्जा को सुनिश्चित करना है। इसके लिए एलपीजी के रिफिलिंग को निरंतर जारी रखने की बात कही गई है। आर्थिक समीक्षा में यह भी कहा गया है कि 21.44 करोड़ घरों तक बिजली पहुंचने के साथ ही भारत ने करीब 100 प्रतिशत विद्युतीकरण का लक्ष्य प्राप्त कर लिया है।
  • आर्थिक समीक्षा के मुताबिक शहरी क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर भोजन पकाने के लिए एलपीजी की स्वीकार्यता है। भोजन पकाने के ईंधन के रूप में एलपीजी का इस्तेमाल बढ़ा है, रिपोर्टों में यह भी बताया गया कि शहरों में भोजन बनाने के लिए एलपीजी ईंधन का एक प्राथमिक स्रोत है।
  • आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि सब्सिडी लिकेज को रोकने के लिए एलपीजी उपभोक्ता के लिए प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण योजना (डीबीटीएल) जिसे ‘पहल’ के नाम से भी जाना जाता है, 15 नवंबर 2014 को देश के 54 जिलों में लॉन्च की गई थी। 5 मार्च 2019 के मुताबिक 24.39 करोड़ एलपीजी उपभोक्ता अब इस योजना से जुड़ चुके हैं। समीक्षा में यह भी बताया गया है कि ‘पहल’ को गिनीज बुक ऑफ रिकॉर्ड में सबसे बड़ी प्रत्यक्ष लाभ योजना के तौर पर दर्ज किया गया है।

10. कल्‍याणकारी योजनाओं के लिए प्रौद्योगिकी का प्रभावी उपयोग-मनरेगा का मामला

  • केन्‍द्रीय वित्‍त एवं कॉरपोरेट मामलों की मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमन ने आज संसद में आर्थिक समीक्षा 2018-19 पेश की। इसमें कहा गया कि विश्‍व की सबसे बड़ी ग्रामीण रोजगार योजना –महात्‍मा गांधी राष्‍ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा योजना) के अंतर्गत सूखे से प्रभावित ब्‍लॉकों में कार्य की आपूर्ति में 20 प्रतिशत वृद्धि हुई है। इससे यह पता चलता है कि मनरेगा के अंतर्गत सूखा प्रभावित ब्‍लॉकों में कार्य की मांग में वृद्धि कार्य की आपूर्ति के अनुकूल है। गैर-सूखाग्रस्‍त ब्‍लॉकों में मस्‍टर रोल में 19 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। यह मस्‍टर रोल हाजिरी रजिस्‍टर के ही एक स्‍वरूप है। इसके विपरीत सूखाग्रस्‍त ब्‍लॉकों में जबरदस्‍त 44 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इस प्रकार आधार संबद्ध भुगतान (एएलपी) के इस्‍तेमाल के कारण सूखे से प्रभावित ब्‍लॉकों में मनरेगा योजना के तहत किये गये वास्‍तविक कार्य में भी महत्‍वपूर्ण वृद्धि हुई है। यह वृद्धि गैर-सूखा प्रभावित ब्‍लॉकों में हुई वृद्धि से दुगुनी से अधिक है।
  • वैसे तो मनरेगा योजना को फरवरी, 2006 से लागू किया गया था, लेकिन इस कार्यक्रम को 2015 में उस समय सुचारू बनाया गया, जब सरकार ने तकनीक के लाभ का उपयोग इस दिशा में‍ किया। इसमें अन्‍य के अलावा प्रत्‍यक्ष लाभ अंतरण (डीबीटी) और आधार संबद्ध भुगतान (एएलपी) से इसकी संबद्धता शामिल है। इसने जन-धन, आधार और मोबाइल (जेएएम) की त्रिमूर्ति का इस्‍तेमाल करते हुए मजदूरी का भुगतान सीधे मनरेगा योजना के कामगारों के बैंक खातों में कराया, जिसकी बदौलत भुगतान में विलंब होने की आशंका में कमी आई।
  • समीक्षा में संकेत किया गया है कि राष्‍ट्रीय इलेक्‍ट्रॉनिक कोष प्रबंधन प्रणाली (एनईएफएमएस) 24 राज्‍यों और एक केन्‍द्र शासित प्रदेश में लागू की गई है, जहां मजदूरी का भुगतान सीधे मनरेगा योजना के कामगारों के बैंक/डाकघर खातों में केन्‍द्र सरकार द्वारा किया जा रहा है। इसने योजना में डीबीटी के कार्यान्‍वयन की शुरूआत की। इस पहल के परिणामस्‍वरूप मनरेगा योजना के अंतर्गत ई-भुगतान वित्‍त वर्ष 2014-15 में 77.34 प्रतिशत से बढ़कर वित्‍त वर्ष 2018-19 में 99 प्रतिशत हो गया।
  • 2015 में सरकार ने 300 जिलों में, जहां बेहतर बैंकिंग सेवाएं उपलब्‍ध थी। मनरेगा योजना में आधार संबद्ध भुगतान (एएलपी) की शुरूआत की। शेष जिलों को 2016 में एएलपी के अंतर्गत कवर किया गया। संकल्‍पनात्‍मक रूप से एएलपी मजदूरी भुगतान चक्र को दो तरीकों से गति प्रदान करता है।
  • मनरेगा योजना के अंतर्गत 11.61 करोड़ सक्रिय कामगारों में से 10.16 करोड़ कामगारों (87.51 प्रतिशत) के आधार नम्‍बर एकत्र किए गए और उनके खाते से जोड़े गये। मनरेगा योजना के अंतर्गत हुए सभी भुगतानों में से लगभग 55.05 प्रतिशत आधार आधारित भुगतान प्रणाली (एबीपीएस) के माध्‍यम से किये गये है। योजना के तहत लाभा‍र्थियों की संख्‍या और डीबीटी के अंतर्गत हस्‍तांतरित राशि में 2015-16 से 2018-19 में कई गुना वृद्धि हुई।
  • डीबीटी के कार्यान्‍वयन के बाद मस्‍टर रोल में भी महत्‍वपूर्ण वृद्धि देखी गई है, जो इस बात का संकेत है कि लोग ज्‍यादा संख्‍या में काम पर आ रहे हैं। कुल कार्य दिवसों और असहाय वर्गों (महिलाओं, अजा और अजजा) के कुल कार्य दिवसों में भी डीबीटी के बाद के वर्षों में वृद्धि देखी गई है। ये जानकार खुशी होगी कि 90 प्रतिशत से ज्‍यादा कार्य दिवसों से असहाय वर्ग लाभांवित हुए हैं।
  • समीक्षा में कहा गया है कि इस योजना की दक्षता में वृद्धि करने के लिए योजना के अंतर्गत ‘कार्य’ की परिभाषा की निरंतर समीक्षा की जानी चाहिए और आवश्‍यकताओं के अनुसार उसमें संशोधन किया जाना चाहिए। मनरेगा योजना का दीनदयाल उपाध्‍याय ग्रामीण कौशल्‍य योजना (डीडीयू-जीकेवाई) में विलय और महिला स्‍व-सहायता समूहों को सम्मिलित किये जाने पर बल दिये जाने की जरूरत है, ताकि कुशल कामगारों की आपूर्ति में वृद्धि हो सकें। उन्‍हें गरीबी के चंगुल से बाहर निकालने के लिए आमदनी के विविध स्रोतों सहित आजीविका के वैविध्यिकरण पर ध्‍यान दिये जाने की जरूरत है।
  • इस कार्यक्रम की समीक्षा 2015 में की गई थी और सरकार ने प्रौद्योगिकी का इस्‍तेमाल करते हुए प्रमुख सुधारों की शुरूआत की। इसके अलावा अधिक पारदर्शिता और जवाबदेही लाने, सुदृढ़ नियोजन और टिकाऊ उत्‍पादक परिसम्‍पत्तियों के सृजन पर बल दिया गया।

11. कल्‍याणकारी योजनाओं के लिए प्रौद्योगिकी का प्रभावी उपयोग-मनरेगा का मामला

  • न्‍यूनतम मजदूरी के बेहतर और प्रभावी कार्यान्‍वयन से मजदूरी की, खासतौर से निचले स्‍तर पर असमानता कम करने की दिशा में मदद मिलेगी। आज के परिप्रेक्ष्‍य में यह महत्‍वपूर्ण है, क्‍योंकि मजदूरी वितरण के मामले में महिलाएं निचले पायदान पर हैं। केन्‍द्रीय वित्‍त एवं कॉरपोरेट मामलों की मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमन द्वारा आज संसद में पेश आर्थिक समीक्षा 2018-19 में यह बात कही गई है।
  • आर्थिक समीक्षा 2018-19 में कहा गया है कि एक प्रभावी न्‍यूनतम मजदूरी नीति, जिसमें कम मजदूरी वाले निचले पायदान के लोगों को लक्षित किया गया है, वह औसत मांग बढ़ाने में मदद कर सकती है और मध्‍यम वर्ग को मजबूती प्रदान कर सकती है, जिसके परिणामस्‍वरूप निरंतर और समग्र विकास होगा।

आर्थिक समीक्षा 2018-19 के अनुसार न्‍यूनतम मजदूरी प्रणाली का एक प्रभावी प्रारूप तैयार करने के लिए निम्‍नलिखित नीतिगत सिफारिशें की गई हैं :

सरल और युक्तिसंगत बनाना : मजदूरी विधेयक कोड के अंतर्गत प्रस्‍तावित न्‍यूनतम मजदूरी को युक्तिसंगत बनाने के लिए सहयोग की आवश्‍यकता है। यह कोड न्‍यूनतम मजदूरी कानून 1948, मजदूरी भुगतान कानून 1936, बोनस भुगतान कानून 1965 और समान पारिश्रमिक कानून को एक करता है। नये विधेयक में ‘मजदूरी’ की परिभाषा में विभिन्‍न श्रम कानूनों में मजदूरी की 12 विभिन्‍न परिभाषाओं के संबंध में वर्तमान स्थिति को शामिल किया जाए।

न्‍यूनतम मजदूरी के लिए एक राष्‍ट्रीय स्‍तर के मंच की स्‍थापना : केन्‍द्र सरकार को ‘न्‍यूनतम मजदूरी के लिए एक राष्‍ट्रीय स्‍तर का एक मंच’ अधिसूचित करना चाहिए, जो पांच भौगोलिक क्षेत्रों में विस्‍तृत रूप से फैला हो। इसके बाद राज्‍य विभिन्‍न स्‍तरों पर अपनी न्‍यूनतम मजदूरी तय कर सकते हैं, जो ‘इस मंच में निर्धारित मजदूरी’ से कम नहीं होनी चाहिए। इससे देश भर में न्‍यूनतम मजदूरी में कुछ समानता लाई जा सकेगी और निवेश के लिए श्रम लागत की दृष्टि से सभी राज्‍यों को समान रूप से आकर्षित बनाया जा सकेगा, साथ ही कठिनाई की स्थिति में होने वाले पलायन को कम किया जा सकेगा।

न्‍यूनतम मजदूरी तय करने के लिए मानदंड : मजदूरी विधेयक के बारे में कोड में न्‍यूनतम मजदूरी तय करने के दो कारकों यानी (i) कौशल युक्‍त श्रेणी, जिसमें अकुशल, अर्द्ध कुशल, कुशल और अत्‍याधिक कुशल लोग होंगे; और (ii) भौगोलिक क्षेत्र, अथवा अन्‍यथा दोनों पर विचार किया जाना चाहिए। इस महत्‍वपूर्ण परिवर्तन से देश में न्‍यूनतम मजदूरी लेने वाले लोगों की संख्‍या में पर्याप्‍त कमी आएगी।

कवरेज: मजदूरी विधेयक पर प्रस्‍तावित कोड में सभी क्षेत्रों में रोजगारों/श्रमिकों के लिए न्‍यूनतम मजदूरी की उपयुक्‍तता का विस्‍तार किया जाए और इसमें संगठित तथा असंगठित दोनों क्षेत्रों को शामिल किया जाए।

नियमित रूप से सुधार और प्रौद्योगिकी की भूमिका : न्‍यूनतम मजदूरी का नियमित रूप से और अधिक तेजी से तालमेल करने के लिए एक प्रकिेया विकसित की जानी चाहिए। केन्‍द्र में एक राष्‍ट्रीय स्‍तर का डैश बोर्ड बनाया जा सकता है, जिसकी पहुंच राज्‍य सरकारों तक हो, जब‍कि राज्‍य न्‍यूनतम मजदूरी के संबंध में अधिसूचनाओं को नियमित रूप से अपडेट कर सकते हैं। यह पोर्टल कॉमन सर्विस सेंटरों (सीएससी), ग्रामीण हाटों आदि में अवश्‍य उपलब्‍ध हो, जिसमें आवश्‍यक जनसंचार कवरेज हो, ता‍कि श्रमिकों को अपने सौदेबाजी के कौशल की पूरी जानकारी रहे और उसकी निर्णय करने की शक्ति मजबूत हो।
शिकायत निवारक : कानूनी तौर पर निर्धारित न्‍यूनतम मजदूरी का भुगतान नहीं होने पर शिकायत दर्ज करने के लिए आसानी से याद रखने लायक एक टोल फ्री नम्‍बर होना चाहिए और इसका काफी प्रचार किया जाना चाहिए, ता‍कि कम मजदूरी लेने वाले श्रमिकों को अपनी शिकायत दर्ज कराने के लिए एक मंच मिल सके।

आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि एक प्रभावी न्‍यूनतम मजदूरी प्रणाली की स्‍थापना एक तात्‍कालिक आवश्‍यकता है, जिसका विकास के विविध आयामों पर लाभकारी प्रभाव पड़ेगा।

Courtesy: PIB