Daily Audio Bulletin for UPSC, IAS, Civil Services, UPPSC/UPPCS, State PCS & All Competitive Exams (27, June 2019)


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बुलेटिन्स

1. खाद्य और पोषण सुरक्षा रिपोर्ट हुआ जारी। साल 2022 तक क़रीब 31 फीसद बच्चे हो सकते हैं कुपोषित।
2. यू.के.सिन्हा की अगुवाई वाली आरबीआई समिति ने सौंपा रिपोर्ट। एमएसएमई सेक्टर के लिए 15,000 करोड़ रुपये के फंड का दिया सुझाव।
3. अरुणाचल प्रदेश में हुई कछुवे की एक नयी प्रजाति की खोज। ख़ूबसूरत दिखने के चलते कहा जाता है इसे ‘इम्प्रेस्ड कछुआ’।
4. भारत बन सकता है UNSC का अस्थाइ सदस्य। एशिया पैसिफिक देशों ने किया एकमत समर्थन।
5. एक लाख से ज्यादा नाम NRC मसौदे से हुए बाहर। सिटिजनशिप रजिस्टर की व्यवस्था वाला इकलौता राज्य है असम।

आइये अब ख़बरों को विस्तार से समझते हैं

1. पहली न्यूज़

हाल ही में, भूखमरी को खत्म करने के लिहाज़ से दूसरे सतत विकास लक्ष्य में भारत की प्रगति को लेकर 'राष्ट्रीय खाद्य और पोषण सुरक्षा विश्लेषण रिपोर्ट' जारी किया गया है। ये रिपोर्ट यूएन विश्व खाद्य कार्यक्रम और सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय द्वारा संयुक्त रुप से जारी किया गया है।

ग़ौरतलब है कि दूसरे सतत विकास लक्ष्य में भुखमरी की समाप्ति, खाद्य सुरक्षा और बेहतर पोषण एवं टिकाऊ कृषि को बढ़ावा देने जैसे लक्ष्य शामिल हैं।

रिपोर्ट के मुताबिक पिछले एक दशक में गंभीर कुपोषण के चलते बच्चों के अविकसित रहने के मामलों में केवल एक फीसदी की कमी आई है। विकासशील देशों की कैटेगरी में ये सबसे खराब प्रदर्शन है। अगर इस पर ध्यान नहीं दिया गया तो साल 2022 तक 31.4 फीसदी बच्चे गंभीर रूप से कुपोषित हो सकते हैं।

इसमें बताया गया है कि कुपोषण को 25 फीसदी के तय लक्ष्य तक रोकने के लिए दोगुनी गति से प्रयास करने की ज़रुरत है। रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि देश में अनाजों का उत्पादन तो बढ़ा है लेकिन जनसंख्या वृद्धि, असमानता, खाद्य सामग्री की बर्बादी और निर्यात के चलते उपभोक्ताओं के बीच इसका उचित उपभोग नहीं बढ़ पाया है।

आपको बता दें कि विश्व खाद्य कार्यक्रम, भुखमरी मिटाने और खाद्य सुरक्षा पर केन्द्रित संयुक्त राष्ट्र की एक एजेंसी है। इसका काम यह देखना है कि किसी भी आपात के हालात में मसलन युद्ध और प्राकृतिक आपदा के दौरान दुनिया भर में जरूरतमंदों तक खाद्य सामग्री आसानी से पहुंच पाए।

भारत में विश्व खाद्य कार्यक्रम अब सीधे खाद्य सहायता प्रदान करने के बजाय भारत सरकार को तकनीकी सहायता और क्षमता निर्माण सेवाएं प्रदान करता है। विश्व खाद्य कार्यक्रम अब इस बात पर ध्यान दे रहा है कि देश के भोजन आधारित सामाजिक सुरक्षा कवच को इतना मज़बूत कर दिया जाए कि वह लक्षित जनसंख्या तक भोजन को अधिक कुशलता और असरदार ढंग से पहुंचा सके।

2. दूसरी न्यूज़

एमएसएमई सेक्टर पर सुझाव देने के लिये बनी विशेषज्ञ समिति ने आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास को अपनी रिपोर्ट सौंप दी है। नौ सदस्यों वाली ये समिति सेबी के पूर्व चेयरमैन यू.के.सिन्हा की अगुवाई में इसी साल जनवरी में गठित की गयी थी। समिति को एमएसएमई क्षेत्र के लिये बनी रूपरेखा की समीक्षा करने और इसके आर्थिक एवं वित्तीय टिकाऊपन के लिए दीर्घकालिक उपाय सुझाने का काम दिया गया था।

समिति ने छोटे कारोबारों के लिए 5,000 करोड़ रुपये का एक संकट निधि यानी स्ट्रेस फंड बनाने की सिफारिश की है। साथ ही एमएसएमई सेक्टर में निवेश करने वाली वेंचर कैपिटल या प्राइवेट इक्विटी कंपनियों की मदद के लिए सरकार प्रायोजित एक निधि का भी सुझाव दिया गया है, ताकि उन्हें इस सेक्टर में निवेश के लिए प्रोत्साहित किया जा सके। समिति ने एमएसएमई की परिभाषा में भी बदलाव की वकालत की है।

आपको बता दें कि एमएसएमई सेक्टर की देश के जीडीपी में क़रीब 28 फीसदी, विनिर्माण क्षेत्र में 45 फीसदी और निर्यात में लगभग 40 फीसदी की हिस्सेदारी है। वहीं लगभग 6 करोड़ से अधिक उद्यमों से यह 11 करोड़ से ज़्यादा लोगों को रोजगार देता है। जबकि एमएसएमई ने लगभग 10% की लगातार बढ़ोत्तरी दर्ज़ की है जो बड़े कॉरपोरेट क्षेत्र से अधिक है।

3. तीसरी न्यूज़

हाल ही में, अरुणाचल प्रदेश के लोअर सुबनसिरी ज़िले के याजली इलाक़े में ‘इम्प्रेस्ड कछुआ’ नामक कछुवे की एक नयी प्रजाति की खोज की गई। इस कछुवे का वैज्ञानिक नाम मनौरिया इम्प्रेस्सा है और इसकी जाति यानी जीनस (Genus) ‘मनौरिया’ है। आपको बता दें कि मनौरिया इम्प्रेस्सा दक्षिण-पूर्व एशिया की जंगलों में पाए जाने वाले कछुओं की अब तक चार ज्ञात प्रजातियों में से एक है। मनौरिया जीनस के तहत कछुओं की केवल दो प्रजातियाँ हैं जिसमें भारत में केवल एक एशियाई वन कछुआ - मनौरिया ईमेस (Manouria emys) ही पाया जाता है।

यह कछुआ पश्चिमी म्याँमार, थाईलैंड, लाओस, वियतनाम, कंबोडिया और दक्षिणी चीन तथा प्रायद्वीपीय मलेशिया के क्षेत्रों में भी पाया जाता है। पारंपरिक चिकित्सा और व्यापार के लिहाज़ से अवैध शिकार किये जाने के कारण कछुए की ये प्रजाति खतरे में है। इसी वज़ह से इसे CITES की सूची II के तहत सूचीबद्ध किया गया है, साथ ही IUCN के रेड लिस्ट में इसे भेद्य यानी Vulnerable केटेगरी के तहत रखा गया है।

4. चौथी न्यूज़

एशिया पैसिफिक देशों ने साल 2021-22 के लिए यूएन की सुरक्षा परिषद में भारत की अस्थाइ सदस्यता का एकमत समर्थन किया है। आपको बता दें कि यूएन सुरक्षा परिषद में कुल 15 सदस्य देश होते हैं। इनमें से पांच देशों अमेरिका, रूस, फ्रांस, ब्रिटंन और चीन इसके स्थाई सदस्य हैं। बाकी बचे 10 देश इसमें अस्थाई सदस्य के तौर पर शामिल होते हैं। अस्थाई देशों का कार्यकाल 2 साल का होता है, इसके बाद चुनाव द्वारा फिर से सदस्यता तय की जाती है।

ग़ौरतलब है कि हाल ही में, जर्मनी ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत को स्थाई सीट दिए जाने की वक़ालत की थी। जर्मनी का कहना था कि 1.4 अरब जनसंख्या वाला देश भारत अभी तक संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का स्थाई सदस्य नहीं है। ऐसे में संयुक्त राष्ट्र प्रणाली की विश्वसनीयता को चोट पहुंचती है।

दरअसल भारत संयुक्त राष्ट्र में सुरक्षा परिषद में सुधारों को लेकर के लंबे समय से दबाव बनाता रहा है। भारत ये कहता रहा है कि वह संयुक्त राष्ट्र की महत्त्वपूर्ण संस्था में एक स्थायी सदस्य के तौर पर उचित ज़गह का हक़दार है।

5. पांचवी न्यूज़

असम में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर यानी NRC के मसौदे से एक लाख से ज़्यादा लोगों को बाहर कर दिया गया है। जिनका नाम NRC की मसौदा सूची से बाहर हुआ है वो अब भारतीय नागरिकता के लिए अयोग्य माने जाएँगे। पिछले साल 30 जुलाई को NRC की जारी सूची से बाहर रह गए 40 लाख लोगों के नामों के साथ ही अब ये नाम भी जुड़ गए हैं।

आपको बता दें कि देश में असम इकलौता ऐसा राज्य है जहां सिटिजनशिप रजिस्टर की व्यवस्था लागू है। असम में सिटिजनशिप रजिस्टर देश में लागू नागरिकता कानून से अलग है। एनआरसी में जिस व्यक्ति का नाम नहीं होता है उसे अवैध नागरिक माना जाता है्। इसे साल 1951 की जनगणना के बाद तैयार किया गया था। इसमें यहां के हर गांव के हर घर में रहने वाले लोगों के नाम और संख्या दर्ज की गई है।

गौरतलब है कि वर्ष 1947 में भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के बाद कुछ लोग असम से पूर्वी पाकिस्तान चले गए, लेकिन उनकी जमीन असम में थी और लोगों का दोनों ओर से आना-जाना बंटवारे के बाद भी जारी रहा। और इस आवागमन की आड़ में भारत में घुसपैठ भी लगातार जारी रहा। असम में वर्ष 1971 में बांग्लादेश बनने के बाद भारी संख्या में बांग्लादेशी शरणार्थी भारत आये और इससे राज्य की आबादी का स्वरूप बदलने लगा। इसके ख़िलाफ़ 80 के दशक में अखिल असम छात्र संघ यानी आसू ने एक आंदोलन शुरू कर दिया। आसू के छह साल के संघर्ष के बाद वर्ष 1985 में असम समझौत पर हस्ताक्षर किए गए थे। इसमें तय किया गया कि 24 मार्च, 1971 से पहले असम आए लोग ही भारतीय नागरिकता के हकदार होंगे।

आज के न्यूज़ बुलेटिन में इतना ही... कल फिर से हाज़िर होंगे एग्जाम के लिहाज़ से महत्वपूर्ण कुछ अहम ख़बरों के साथ...

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