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DNS / 17 Mar 2020

(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) पॉस्को (POSCO) के नए नियम (POSCO New Provisions)

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(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) पॉस्को (POSCO) के नए नियम (POSCO New Provisions)



कई खूबसूरत और रंग बिरंगी यादों को अगर किसी पन्ने पर उतारा जाए तो जो तस्वीर बनती है उसे बचपन कहते हैं । हम सभी बचपन की यादों के उन खट्टे मीठे पलों को याद करके खुश हो जाते हैं । यही वजह है की हँसते खिलखिलाते बच्चों को देखकर हमारा मन भी बचपन की पुराणी यादों में चला जाता है । बेपरवाह अल्हड और बेरोकटोक बचपन जहां न तो भविष्य की चिंताएं हैं न ही बीती जिंदगी की कड़वी यादें । लेकिन इस बचपन को तब ग्रहण लग जाता है जब समाज और अपनों के बीच में ही मौजूद कुछ दरिंदे वहशीपन के चलते इन मासूम ज़िन्दगियों से खिलवाड़ करते हैं, उनका यौन शोषण करते हैं। इन दरिंदों की हैवानियत के चलते ये फूल खिलने से पहले ही मुरझा जाते हैं । पूरी ज़िंदगी उन्हें इस बदनुमा दाग और कड़वी यादों के सहारे जीना पड़ता है ।कई बार हैवानियत का शिकार ये बच्ची खुदकुशी करने तक पर मजबूर हो जाते हैं। बचपन पर इस ग्रहण को रोकने और बच्चों के यौन शोषण और उत्पीड़न को रोकने के लिए साल 2012 में पॉस्को एक्ट लागू किया गया। लेकिन इसके बावजूद देश में बच्चों के साथ बढ़ती दरिंदगी को रोकने के लिए पॉक्सो एक्ट 2012 में बदलाव करने के लिए पॉक्सो संशोधन विधेयक 2019 लाया गया।

हाल ही में केंद्र सरकार ने बच्चों के यौन शोषण के मामलों में सजा को और कड़ा करने वाले नए पोक्सो (प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्चुअल ऑफेनसेज रूल्स,2020) नियमों को लागू करने के लिए अधिसूचना जारी कर दी है। नए पोक्सो नियम 9 मार्च से प्रभावी हो गए हैं। नए पोक्सो संशोधन कानून में कुछ नए नियम भी शामिल किए गए हैं। इनके तहत स्कूलों और केयर होम्स के स्टाफ का पुलिस वैरीफिकेशन ज़रूरी कर दिया गया है। पोर्नोग्राफी या यौन उत्पीड़न संबंधी सामग्री की शिकायत करने की प्रक्रिया, बाल अधिकारों की शिक्षा और अन्य प्रावधानों को भी इस संशोधन कानून के तहत सख्त किया गया है।

चाइल्ड प्रोर्नोग्राफी के खिलाफ कड़ी कार्रवाई के लिए नए नियम के तहत जिस किसी को भी किसी बच्चे से जुड़ी पोर्न सामग्री मिलती है या ऐसी किसी सामग्री के बारे में जानकारी मिलती है, जिसे स्टोर किया गया है, तैयार किया गया है या फिर बांटा, दिखाया या प्रसारित-प्रचारित किया जा रहा है, उसकी जानकारी तत्काल प्रभाव से विशेष जेव्युनाइल पुलिस यूनिट (एसजेपीयू) या पुलिस या साइबरक्राइम पोर्टल को दी जाएगी।

इन नियमों के तहत राज्य सरकारों को बच्चों के खिलाफ हिंसा को बिल्कुल भी बर्दाश्त न करने के लिए बाल संरक्षण नीति बनाने के लिए भी कहा गया है। इस नीति को बच्चों के संबंध में काम कर रहे सभी संस्थानों, संगठनों या अन्य एजेंसियों को भी लागू करना होगा। केंद्र और राज्य सरकारों को आयु के हिसाब से शैक्षिक सामग्री और बच्चों के लिए पाठ्यक्रम तैयार करने के लिए भी कहा गया है। इन पाठ्यक्रमों में बच्चों को निजी सुरक्षा के विभिन्न पहलुओं के बारे में जानकारी दी जाने के भी निर्देश दिए गए हैं।

यही नहीं इसके साथ ही टोल फ्री नंबर 1098 के जरिए चाइल्डलाइन हेल्पलाइन सेवाओं की जानकारी देने के लिए भी कहा गया है। अब नए नियमों के मुताबिक, स्कूलों, क्रैच, खेल अकादमियों या बच्चों के लिए किसी अन्य केंद्र समेत बच्चों के नियमित संपर्क में आने वाले किसी भी संस्थान को सभी कर्मचारियों का पुलिस वेरीफिकेशन कराना होगा।

वर्ष 2012 में एक विशेष कानून "पॉस्को एक्ट" बनाया। इस कानून के तहत दोषी व्यक्ति को उम्रकैद तक की सजा हो सकती है। क्योंकि यह कानून बच्चों को छेड़खानी, बलात्कार और कुकर्म जैसे मामलों से सुरक्षा प्रदान करता है। खास बात यह कि वर्ष 2018 में इस कानून में संशोधन किया गया, जिसके बाद 12 साल तक की बच्ची से दुष्कर्म के दोषियों को मौत की सजा देने का प्रावधान किया गया है। इससे 'प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंस' यानी पॉक्सो (पीओसीएसओ) एक्ट को काफी मजबूती मिली है।

पॉक्सो शब्द संक्षिप्त अंग्रेजी वर्ण समूह है जो "प्रोटेक्शन आफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल अफेंसेस एक्ट 2012" से बना है। हिंदी में इसे "लैंगिक उत्पीड़न से बच्चों के संरक्षण का अधिनियम 2012" कहते हैं।इस एक्ट के तहत नाबालिग बच्चों के साथ होने वाले यौन अपराध और छेड़छाड़ के मामलों में सख्त कार्रवाई की जाती है। इसलिए यह एक्ट बच्चों को सेक्सुअल हैरेसमेंट, सेक्सुअल असॉल्ट और पोर्नोग्राफी जैसे गंभीर अपराधों से सुरक्षा प्रदान करता है।

वर्ष 2012 में बनाए गए इस कानून के तहत अलग-अलग प्रकृति के अपराध के लिए अलग-अलग सजा तय की गई है, जिसका कड़ाई से पालन किया जाना भी सुनिश्चित किया गया है। बावजूद इसके, जब नाबालिगों के प्रति जारी यौन हिंसा में कमी नहीं आई तो ठीक छह साल बाद वर्ष 2018 में इसमें संशोधन करके यह स्पष्ट कर दिया गया कि 12 साल तक की बच्ची से दुष्कर्म करने के दोषियों को सजा-ए-मौत भी दी जा सकती है।

2012 में बने पॉक्सो एक्ट की विभिन्न धाराओं पर नजर दौड़ाएंगे तो यह पाएंगे कि इस अधिनियम की धारा 4 के तहत वो मामले शामिल किए जाते हैं जिनमें बच्चे के साथ दुष्कर्म या कुकर्म किया गया हो। इस प्रकृति के मामले में सात साल सजा से लेकर उम्रकैद और अर्थदंड भी लगाया जा सकता है। वहीं, पॉक्सो एक्ट की धारा 6 के अधीन वे मामले लाए जाते हैं जिनमें बच्चों को दुष्कर्म या कुकर्म के बाद गम्भीर चोट पहुंचाई गई हो। ऐसे मामले में दस साल से लेकर उम्रकैद तक की सजा हो सकती है और साथ ही साथ जुर्माना भी लगाया जा सकता है।

इसी तरह, पॉक्सो अधिनियम की धारा 7 और 8 के तहत वो मामले पंजीकृत किए जाते हैं जिनमें बच्चों के गुप्तांग से छेडछाड़ की जाती है। इस प्रकार की धारा के आरोपियों पर दोष सिद्ध हो जाने पर पांच से सात साल तक की सजा और जुर्माना दोनों हो सकता है। वहीं, पॉक्सो एक्ट की धारा 3 के तहत पेनेट्रेटिव सेक्सुअल असॉल्ट को भी परिभाषित किया गया है, जिसमें बच्चे के शरीर के साथ किसी भी तरह की हरकत करने वाले शख्स को कड़ी सजा का प्रावधान है।