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Blog / 20 Jun 2019

(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) एक राष्ट्र एक चुनाव (One Nation One Election)

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(डेली न्यूज़ स्कैन - DNS हिंदी) एक राष्ट्र एक चुनाव (One Nation One Election)


मुख्य बिंदु:

प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने नए लोक सभा के पहले सत्र में अन्य मुद्दों के साथ "एक राष्ट्र , एक चुनाव " की बात रखी है। इन विषयों पर बातचीत करने के लिए 19 जून को एक सर्वदलीय बैठक भी बुलाई गयी है । विधि आयोग ने भी इसी मुद्दे पर विचार विमर्श करने के लिए तीन दिन की एक कांफ्रेंस रखी जिसमे कुछ दलों ने इस विषय पर सहमति जताई तो कुछ दलों ने इसका विरोध भी किया।

कोई भी फैसला आये उससे पहले उसके अलग अलग पहलुओं को जानना भी ज़रूरी होता है, इसलिए आज के हमारे DNS में हम "एक राष्ट्र , एक चुनाव" के पहलुओं को समझेंगे।

भारत एक विशाल देश है और ऐसे देश में चुनाव होना अपने आप में एक चुनौती बन जाता है। पुरे साल भारत में कहीं न कहीं चुनाव होते रहते हैं जिसके कारण देश में एक चुनावी माहौल बना रहता है। इससे प्रशासनिक और नीतिगत निर्णय तो प्रभावित होते ही हैं साथ ही साथ सरकारी ख़ज़ाने पर भी काफी दबाव पड़ता है। ऐसे माहौल में एक अनुकूल बदलाव लाने के लिए नीति निर्माताओं ने राज्य विधान सभा और लोक सभा के चुनाव को एक साथ कराने की राय आगे रखी है। हालाँकि इस सिफारिश के समर्थन और विरोध में में कई तर्क आये हैं ।

इस सिफारिश के विरोध में तर्क कुछ इस तरह हैं।

  • इसे लागू करने के लिए संविधान और दल-बदल कानून में संशोधन करना होगा।
  • नप्रतिनिधि और संसदीय प्रक्रिया से जुड़े अन्य कानूनों में बदलाव करना होगा।
  • VVPAT मशीन की संख्या चुनाव आयोग के पास इतनी पर्याप्त नहीं की वे एक साथ लोक सभा और 11 राज्यों में चुनाव करा सकें।

विधानसभा और लोक सभा के चुनाव के मुद्दे अलग होते हैं। लोक सभा चुनाव में राष्ट्रीय मुद्दों को प्रमुखता दी जाती है जबकि विधानसभा चुनावों में क्षेत्रीय मुद्दों को वरीयता दी जाती है। ऐसे में राष्ट्रीय मुद्दों के आगे क्षेत्रीय मुद्दों के छोटे पड़ जाने या क्षेत्रीय मुद्दों के आगे राष्ट्रीय मुद्दों के अपना अस्तित्व खोने का खतरा पैदा हो सकता है।

जहाँ 'एक राष्ट्र एक चुनाव' के विरोध में इतने तर्क हैं, वहीँ इसके समर्थन में भी कई राय हैं ।एक राष्ट्र एक चुनाव के समर्थन में लोगों की कई दलीलें हैं जैसे

  • लगातार चुनावों के कारण देश में बार बार मॉडल कोड ऑफ़ कंडक्ट यानि आदर्श आचार संहिता लागू करनी पड़ती हैं जिसके कारण सरकार ज़रूरी मामलों पर निर्णय नहीं ले पाती और योजनाओं को लागू करने में कई समस्याएं आती है।
  • निर्वाचन आयोग के द्वारा चुनावी अधिसूचना जारी करने के बाद सत्ताधारी दल किसी भी परियोजना की घोषणा या नयी स्कीम की शुरुआत नहीं कर सकता न ही किसी भी योजना को वित्तीय मंज़ूरी दे सकता है । ऐसा होने से सत्ताधारी दल के चुनाव में अतिरिक्त लाभ होने की गुंजाईश बन जाती है । अतः चुनावों के एक ही बार में होने से आदर्श आचार संहिता कुछ समय तक ही लागू रहेगी और उसके बाद विकास कार्यों को बिना रुकावट के आगे बढ़ाया जा सकेगा ।
  • चुनाव पर हो रहे खर्च में लगातार बढ़ोत्तरी से सरकारी ख़ज़ाने पर काफी असर पड़ता है इसलिए चुनावों को बार बार न करा कर एक बार कराना ज़्यादा फायदेमंद होगा
  • चुनावों के दौरान काला धन इस्तेमाल न हो इसके मद्देनज़र पूरे देश में एक साथ चुनाव कराना आवश्यक है । चुनाव के दौरान कितना पैसा खर्च होगा ये तो तय कर दिया जाता है लेकिन पार्टियां कितना पैसा खर्च करेंगी इसका निर्धारण नहीं होता । ऐसे में पार्टियां सामाजिक समरसता को भंग करती हैं।
  • निर्बाध चुनाव कराने के लिए भारी संख्या में पुलिस कर्मी तैनात किये जाते हैं, इसी के साथ चुनावी ड्यूटी पर शिक्षक और सरकारी कर्मचारियों की भी सेवाएं ली जाती हैं, जिससे रोज़मर्रा का जीवन भी प्रभावित होता है । ऐसी दशा में अगर चुनाव एक ही बार कराया जाए तो आम जनमानस पर भी कोई असर नहीं पड़ेगा ।

एक राष्ट्र एक चुनाव में कोई बड़ी खामी नहीं मगर खामी है तो बस इन चुनावों में इस्तेमाल हो रहे काले धन की और लोगों में हर वक़्त फैले राजनीतिक माहौल की। इन पर यदि कानून सख्त किया जाए तो विविधता से भरे भारत देश में जहाँ एक कर अर्थात GST को लागू किया जा सकता है तो वहीं एक राष्ट्र एक चुनाव की अवधारणा भी कोई मुश्किल नहीं है।